Tuesday, 11 April 2017

गाय

गाय के वैज्ञानिक महत्व को जाने और जन-जन तक पहुंचाए जिससे गाय की उपयोगिता सिद्ध हो सके|

"गाय को बचा कर ही हम देश को बचा सकते है| जिसने भी गौमाता को बचाया समझ लीजिये उसने राष्ट्रहित में कार्य किया है| "

महाराष्ट्र और हरियाणा में गौहत्या विरोधी कानून बनने के बाद समारात्मक खबरे मिलना शुरू हो गयी है| महाराष्ट्र पुलिस ने डेढ़ क्विंटल गोमांस जब्त किया मालेगांव के आजाद नगर क्षेत्र में एक दुकानदार अवैध रूप से गौमांस बैच रहा था| लेकिन वही इसके उलट केरल में हिन्दू मुस्लिम महाराष्ट्र में बने क़ानून के विरोध में बीफ उत्सव मना रहे है|केरल सीपीएम यूथ विंग के अजीत पी. ने कहा कि, 'मैं एक हिंदू हूं। मैं भी बीफ खाता हूं। मुझे अपनी पसंद की चीजें खाने की आजादी मिलनी चाहिए। इसलिए मैं यहां प्रोटेस्ट करने आया हूं।' अजीत का दोस्त मुहम्मद कहता है कि, 'हम दोनों को ही बीफ खाने से कोई समस्या नहीं है। यह केरल का कल्चर है। हम अगर कुछ खाना चाहते हैं तो कोई हमें कैसे रोक सकता है?'बीफ करी खाते हुए सीपीएम विधायक पी. श्रीरामकृष्णन ने कहा, 'मैं बीफ खाऊंगा और केरल के बहुत से लोग भी। कुछ बदलने वाला नहीं है।' अगर यहीं मानसिकता हिन्दुओं की रही तो कैसे गौ माता की रक्षा की जायेगी??
अखिल भारतीय इमाम संगठन के मुख्य इमाम उमर अहमद इलयासिजी का कहना है कि, ‘मैं स्वयं कृष्णवंशी हूँ, हम गाय को पालते है| तिब्बे नब्वी किताब में मोहम्मद साहब ने कहाँ है कि गाय का दूध तंदरुस्ती, मांस बीमारी और घी शिफा है|’देशी गाय हमारे देश का भविष्य है, जिस गाय को हम गौ माता कह कर बुलाते है आज हम ही लोग गाय को भोजन प्लास्टिक की थेलियों में भर कर देते है. जिससे वो प्लास्टिक गाय के पेट में जाकर फुल जाता है, परिणाम स्वरुप गाय अनेकों बिमारियों की चपेट में आ जाती है और यहीं उसके मरने का कारण होता है|हम हमारी संस्कृति को भी भूलते जा रहे है,पहले हम भोजन की पहली रोटी गाय माता को खिलाते थे, घरो में गाय पालन करते थे, गौशालाओं का संरक्षण करते थे लेकिन अब हमें गौ माता का बिलकुल भी ख़याल नहीं है| गाय हमें दूध, दही, घी, मक्खन, मलाई, गौमूत्र, गौबर देकर हमारे ऊपर उपकार करती है परन्तु बदले में हम उसे क्या देते है?

गाय आज बेसहारा गलियों, कॉलोनियों, सडको पर कचरा खाती दिखाई देती है हम उन्हें ना तो कोई छत दे सकते है और ना ही किसी गौशाला में स्थान|

मेरा सरकार से निवेदन है कि गाय के संरक्षण के लिए एक गौ-मंत्रालय बनाया जाए जो गाय की उपयुक्त देखभाल कर सके| उसके भोजन व आवास की व्यवस्था कर सके| सरकार अरबों रुपये मछली बोर्ड, ऊंट बोर्ड व बकरी बोर्ड पर खर्च करती है लेकिन गौ माता के लिए कोई बोर्ड की व्यवस्था नहीं है|गाय के सही संरक्षण से ही भारत पुनः विश्वगुरु बन सकता है|

गाय के वैज्ञानिक महत्व को जाने और जन-जन तक पहुंचाए जिससे गाय की उपयोगिता सिद्ध हो सके..
गाय के मूत्र में पोटेशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड होता है, दूध देते समय गाय के मूत्र में लेक्टोज की वृद्धि होती है। जो हृदय रोगों के लिए लाभकारी है।
गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है।
गाय का दूध फैट रहित परंतु शक्तिशाली होता है उसे पीने से मोटापा नहीं बढ़ता तथा स्त्रियों के प्रदर रोग आदि में लाभ होता है। गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश होता है।
गाय के समीप जाने से ही संक्रामक रोग कफ सर्दी, खांसी, जुकाम का नाश हो जाता है। गौमूत्र का एक पाव रोज़ सुबह ख़ाली पेट सेवन करने से कैंसर जैसा रोग भी नष्ट हो जाता है।
चाय, कॉफ़ी जैसे लोकप्रिय पेय पदार्थों में दूध एक जरूरी पदार्थ है, भारत में ऐसी अनेक मिठाइयाँ जो गौ दूध पर आधारित होती है। दही,मक्खन और घी भारतीय भोजन के आवश्यक अंग हैं। घी में तले व्यंजनों का खाद अप्रतिम होता है। छाछ न केवल प्यास बुझाती हैं बल्की बहुत से प्रचलित व्यंजनों का आधार है।
गाय के सींग गाय के रक्षा कवच होते हैं। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है। यह एक प्रकार से गाय को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एंटीना उपकरण है।
गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी यह सुरक्षित बने रहते हैं। गाय की मृत्यु के बाद उसके सींग का उपयोग श्रेठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है।
हिंदुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश उनकी माता पार्वती को गाय के गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है।
गाय की उपस्थिति का पर्यावरण के लिए एक महत्त्वपूर्ण योगदान है, प्राचीन ग्रंथ बताते हैं कि गाय की पीठ पर के सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकिरण को रोक कर वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं।
कृषि में गाय के गोबर की खाद्य, औषधि और उद्योगों से पर्यावरण में काफ़ी सुधार है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिये लाभ दायक है, गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है।
गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है।

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