Friday 28 October 2016

क्या करे आग से जल जाने पर........


आग या अन्य किसी पदार्थ से त्वचा जलने पर असहनीय पीड़ा होती है। ऐसे में घबराहट, जानकारी की कमी और तीव्र जलन व दर्द के चलते लोग तत्काल बरती जाने वाली सावधानियों और आवश्यक उपचार नहीं कर पाते। जलने के कई कारण जैसे शुष्क गर्मी (आग से जलना), गीली गर्मी (भाप या कोई गर्म तरल पदार्थ), विकिरण, घर्षण, सूरज, बिजली या रसायमिक पदार्थ आदि हो सकते हैं। जले हुए अंग का उपचार जलने की श्रेणी पर निर्भर करता है। आइए जाने कि जलने की श्रेणी, इसके उपचार और जलने पर रखी जाने वाली सावधानियां क्या हैं।

जलने के कई कारण जैसे गर्म तेल, गर्म पानी, किसी रसायन, गर्म बरतन पकड़ने से या दिवाली के पटाखे के बारूद से भी कोई व्यक्ति जल सकता है। इसके अलावा खाना पकाते समय महिलाएं अक्सर जल जाती हैं। जिसमें गर्म दूध या गर्म तेल से जलना मुख्य होता हैं। वहीं बच्चे अक्सर खेल-कूद या शैतानी करते समय आग या फिर अन्य किसी गर्म चीज की चपेट में आकर जल जाते हैं। इसलिए आग से सुरक्षा बहुत जरूरी है। मामूली रूप से जलने के जख्म तो समय के साथ भर जाते हैं, लेकिन गंभीर रूप से जलने पर संक्रमण को रोकने और घावों को भरने के लिए विशेष देखभाल जरूरी होती है। उष्णता के अलावा रेडिएशन, रसायन, बिजली से होने वाले जख्मों को भी जलने की श्रेणी में रखा जाता है।

क्यों और कैसे जलती है 'त्वचा'-
त्वचा क्रमशः एपिडर्मिस, डर्मिस तथा हाइपोडर्मिस तीन सतहों में बनी होती है। एपिडर्मिस त्वचा की सबसे बाहरी परत (कवर) होती है। जो मौसम के असर से बचाने वाली परत का काम करती है। डर्मिस, एपिडर्मिस के नीचे वाली त्वचा परत होती है और किसी तनाव से शरीर की एक कुशन की तरह रक्षा करती है। हाइपोडर्मिस, डर्मिस के नीचे वाली परत होती है जो मांसपेशियों के ऊतकों, हड्डी और त्वचा को जोड़ने का काम करती है। त्वचा हल्के से लेकर बहुत गंभीर प्रकार से जल सकती है। जब शरीर का कोई पार्ट कम जलता है तो इसे फर्स्ट डिग्री बर्न (प्रथम श्रेणी का जलना) कहते हैं। फर्स्ट डिग्री बर्न में चिकित्सीय उपचार (डॉक्टरी ट्रीटमेंट) की तब तक कोई खास जरूरत नहीं होती जब तक कि जलने का असर ऊतकों पर न पड़ा हो। सेकेंड और थर्ड डिग्री बर्न में चिकित्सक के पास ले जाना जरूरी होता है।

फर्स्ट डिग्री में सिर्फ एपिडर्मिस (त्वचा की सबसे ऊपरी परत) ही प्रभावित होती है। इसमें घाव में दर्द होता है और जले हुए भाग में सूजन और लालिमा आ जाती है। अगर घाव तीन इंच से बड़ा हो या त्वचा की अंदरूनी परत तक हो तो डॉक्टर से अवश्य परामर्श करना चाहिए। इस प्रकार के घाव को ठीक होने में तीन दिन से लेकर एक हफ्ते तक का समय लग जाता है। जब थोड़ा ज्यादा जल जाता है तो त्वचा की बाहरी परत एपिडर्मिस और अंदरूनी परत डर्मिस दोनों क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इससे जले हुई जगह पर दर्द, लालिमा, सूजन और फफोले हो जाते हैं।

अगर घाव जोड़ों पर हुआ है तो उस हिस्से को हिलाने-डुलाने में तकलीफ होती है, साथ ही शरीर में पानी की कमी भी हो सकती है। जलने की ऐसी स्थिति को सेकेंड डिग्री बर्न कहते हैं। वहीं थर्ड डिग्री बर्न में त्वचा की तीनों परत पर जलने का असर होता है। इससे त्वचा सफेद या काली पड़ जाती है और सुन्न पड़ जाती है। जले हुए स्थान के हेयर फॉलिकल, स्वेट ग्लैंड और तंत्रिकाओं के सिरे नष्ट हो जाते हैं। तंत्रिकाओं के नष्ट होने से दर्द, फफोले और सूजन की तो शिकायत नहीं होती। इससे रक्त संचरण बाधित हो जाता है। यदि व्यक्ति 80 से 90 फीसदी जल जाता है तो मनुष्य के जीवित बचने की संभावना बहुत कम रह जाती है।

जलने पर क्या करें-
जले हुए स्थान को साफ और ठंडे पानी से धीरे-धीरे धोएं। हो सके तो जले हुए अंग पर नल से धीरे- धीरे पानी गिरने दें। संभव हो तो सिल्वरेक्स या बरनोल का लेप लगाएं। प्राथमिक उपचार के तौर पर जले हुए अंग पर सोफरामाइसिन भी लगा सकते हैं। इसके बाद मरीज को जल्द से जल्द चिकित्सक को दिखाएं।

चिकित्सक की सलाह के मुताबिक दवाओं का सेवन करें। इसके अलावा अगर आपके पास एलोवेरा जेल या एंटीबायोटिक क्रीम है तो उसे जले हुए भाग पर लगा सकते हैं। एलोवेरा घाव भरने के साथ ही त्वचा को ठंडक भी देता है। घाव के ऊपर ढीली पट्टी या न चिपकने वाली पट्टी बांध लें और हवा से रखें ताकि दर्द कम हो। घाव गहरा है तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए। ऐसे में आपको त्वचा प्रत्यारोपण की भी जरूरत पड़ सकती है। जख्म के थोड़ा सूखने पर सूखी पट्टी को ढीला करके बांधें, ताकि गंदगी और संक्रमण न फैले। सांस नहीं चल रही हो तो सीपीआर दें।

जलने के बाद संक्रमण फैलने की आशंका ज्यादा होती है। इसलिए टिटनेस का इंजेक्शन लगावाएं। आप जिस स्थान पर हैं यदि वहां आग लग गई है तो फर्श पर लेट जाएं और धुंए की परत से नीचे रहने की कोशिश करें।..

मस्से के घरेलु उपचार

शरीर पर मस्से बहुत अजीब लगते है मस्से वैसे तो कोई तकलीफ़ नहीं देते लेकिन ये शरीर खासकर चेहरे की सुंदरता को भी बिगाड़ देते हैं। मस्से काले और भूरे रंग के होते हैं। अक्सर मस्से अपने-आप समाप्त हो जाते हैं, लेकिन कुछ मस्से इलाज के बाद ही जाते हैं। मस्से को काटने और फोड़ने के कारण मस्से का वायरस शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल जाते है जिसके कारण और ज्यादा मस्से हो जाते हैं। मस्से गर्दन,हाथ,पीठ ,चिन,पैर आदि शरीर के किसी भी जगह हो सकते हैं।

मस्सों से बचने के लिए कुछ आसान घरेलू उपचार

* मस्से को समाप्त करने के लिए एक अगरबत्ती जला लें और उसके जले हुए हिस्से को मस्से का स्पर्श कर तुरन्त हटा लें। ऐसा 8-10 बार करें, इससे मस्सा सूखकर झड़ जाएगा। ध्यान रहे, अगरबत्ती का स्पर्श सिर्फ मस्से पर ही होना चाहिए।

* मस्से पर आलू काटकर तुरंत उसकी फ़ांक को रगडनी चाहिये। ऐसा दिन में 3 से 4 बार करें । कुछ ही रोज में मस्से झडने लगेगे।

* केले के छिलके का भीतरी हिस्सा मस्से पर रगडें। इससे बहुत ही लाभ मिलता है।

* अलसी के बीजों को पीस कर इसमें अलसी का तेल और शहद मिलाएं और फिर इसे मस्से पर लगा लें ऐसा 4 - 5 दिन नियम से करें।

* खट्टे सेब लेकर उनका जूस निकाल के उसे दिन में कम से कम तीन बार मस्से पर लगाइए। मस्से धीरे-धीरे झड़ जाएंगे।

* एक प्याज को लेकर उसके रस को सुबह शाम नियमित रूप से लगाने से मस्से समाप्त होते हैं।

* बेकिंग सोडा और अरंडी के तेल को रात में मस्सों पर लगाकर सो जाइए, धीरे-धीरे मस्से समाप्त हो जाएंगे।

* रात को सोने से पहले और सुबह उठने के बाद मस्सों पर शहद लगाइए, इससे मस्से शीघ्र खत्म होते है ।

* लहसुन की कली को छील कर उसे काटकर मस्सों पर रगडि़ए, मस्से जल्दी ही सूखकर झड़ जाएंगे।

* ताजा कटा हुआ अनानास लें कर उसे मस्से पर लगाएं इससे जल्द ही राहत मिलती है।

बिस्तर के पास रखे कटा हुआ नींबू

सोते समय बिस्तर के पास रखे कटा हुआ नींबू, देखे इसका असर

नीबू में ए, बी और सी विटामिनों की भरपूर मात्रा है-विटामिन ए अगर एक भाग है तो विटामिन बी दो भाग और विटामिन सी तीन भाग। इसमें -पोटेशियम, लोहा, सोडियम, मैगनेशियम, तांबा, फास्फोरस और क्लोरीन तत्त्व तो हैं ही, प्रोटीन, वसा और कार्बोज भी पर्याप्त मात्रा में हैं। विटामिन सी से भरपूर नीबू शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही एंटी आक्सीडेंट का काम भी करता है और कोलेस्ट्राल भी कम करता है। नीबू में मौजूद विटामिन सी और पोटेशियम घुलनशील होते हैं, जिसके कारण ज्यादा मात्रा में इसका सेवन भी नुकसानदायक नहीं होता। नींबू केवल विटामिन जानें-

बीपी को ठीक करे

जिनको सुबह उठने पर लो ब्लड प्रेशर की शिकायत है वो भी इस नुस्खे का इस्तेमाल कर सकते हैं। लो ब्लड प्रेशर के मरीज अगर रात को सोते समय अपने बिस्तर के बगल में नींबू का टुकड़ा रखते हैं तो सुबह उनको फ्रेश महसूस होगा। ऐसा नींबू की खुशबू के कारण होता है। नींबू के गुणों के ऊपर हुए रिसर्च की माने तो नींबू की खुशबू शरीर में सेरोटिन का लेवल बढ़ाने में मदद करती है जिससे ब्लड प्रेशर के मरीजों को राहत मिलती है।

तनाव को दूर करे

कई बार लोगों को बहुत अधिक थकावट या तनाव के कारण रात को नींद नहीं आती। ऐसा दिमाग के अशांत होने के कारण होता है। अगर आपको भी तनाव या घबराहट की वजह से रात को सोने में समस्या होती है तो नींबू का टुकड़ा काट के अपने बिस्तर के पास सोते वक्त रखें। नींबू में मौजूद एंटीबैक्टीरियल प्रॉपर्टी दिमाग को शांत करती है और सोने में मदद करती है।

सर्दी की समस्या में भी लाए नींद

ठंड आने वाली है। इस मौसम में कई लोगों को बंद नाक की समस्या होती है। बंद नाक के कारण कई बार रात को सांस लेने में समस्या हो जाती है जिससे नींद में खलल पड़ती है। ऐसी स्थिति में नींबू के टुकड़े को बिस्तर के बगल में रखें। इससे अच्छी नींद आएगी। ठंड में नींबू का इस्तेमाल खाने में ना करें, इससे आपको सर्दी हो सकती है।

मक्खी दूर भगाए

अगर आपके घर में मक्खियां बहुत हैं और अन्य दूसरे कीड़े-मकोड़ों की भी समस्या है तो घर में हमेशा नींबू का टुकड़ा काट कर रखें। नींबू की खुशबू से कीड़े-मकोड़े दूर भागते हैं। रात को सोने से पहले कुछ देर के लिए नींबू का टूकड़ा काटकर बिस्तर के पास रख दें और लाइट बुझा दें। नींबू की खुशबू और अंधेरे के कारण सारे कीड़े-मकोड़े और मक्खियां दूर भाग जाएंगे और आप आराम से सो पाएंगे।

इनसोमेनिया से राहत दिलाए

आज की भाग-दौड़ वाली लाइफ में कई लोगों को इनसोमेनिया मतलब अनिद्रा या कम नींद की समस्या होती है। इस समस्या के कारण लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है जिससे भविष्य में कई गंभीर बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है। अगर आपको भी इनसोमेनिया की समस्या है तो रोज रात को नींबू का टुकड़ा अपने बिस्तर के नजदीक रखकर सोएं। नींबू की खुशबू दिमाग को शांत करेगी और सोने में मदद करेगी।

स्त्रोत से पढ़ें।

ज़ुकाम हो जायेगा छू मंतर

चुटकी बजाते सेकण्ड्स में ज़ुकाम हो जायेगा छू मंतर...............

जुकाम कैसा भी हो, ये प्रयोग ऐसा है के इसको करते ही ऐसे असर आएगा जैसे कोई जादू. और अगर आपको अक्सर ही ज़ुकाम रहता हैं और आप ज़ुकाम की दवा खा खा कर परेशान हो गए हैं तब तो आपके लिए ये जानकारी बेहद महत्वपूर्ण हैं। आप इस घरेलु नुस्खे से चुटकी बजाते ही जुकाम से आराम पा सकते हैं।

जुकाम को दूर भगाने की चमत्कारिक औषिधि आपकी रसोई में ही मौजूद हैं। ये हैं रोज़ाना भोजन में इस्तेमाल होने वाला एक छोटा सा मसाला – जीरा। जी हाँ जीरा।

इस छोटे से जीरे में न सिर्फ ज़ुकाम और सिर दर्द भगाने के गुण हैं – यह फंगस और बैक्टीरिया से भी लड़ता है – जीरा इन्फेक्शन्स से भी बचाता है और इससे आपका इम्यून सिस्टम भी स्ट्रॉन्ग रहता है। जीरे में विटामिन ए और विटामिन सी भी हैं, ये सर्दी – ज़ुकाम से बचाते हैं।

जाने ज़ुकाम होने पर कैसे करे जीरे का इस्तेमाल :-

ज़ुकाम होने पर आप एक चम्मच जीरा कच्चा ही धीरे धीरे चबा चबा कर खाए। आपको तुरंत आराम मिल जायेगा। ज़ुकाम होने पर दिन में 3-4 बार खा सकते हैं। इसके साथ आप जीरा चाय भी पी सकते हैं।

जीरा चाय...................
दो कप पानी में एक चम्मच जीरा डालकर उबालें – जब पानी उबल जाए तो उसमें पिसी हुई अदरक चाय वाला आध पौन चम्मच और तुलसी की 8 – 10 पत्तीयां डालकर फिर से उबालें। इस पानी को छाने और फिर इसे धीरे – धीरे पिएं। जीरा डाल कर पानी की गर्म स्टीम भी ली जा सकती हैं।

जीरा स्टीम..................
पानी में जीरा उबालकर स्टीम भी ले सकते हैं – इसमें थोड़ी लौंग मिला लें !इससे आपकी बंद नाक खुल जाएगी और ज़ुकाम से राहत मिलेगी। ध्यान रहे कि स्टीम लेने के बाद थोड़ी देर अपना सिर और छाती चादर से ज़रूर ढक लें। अगर स्टीम लेने के बाद बाहर गए व ठंड लग गई – तो चेस्ट कन्जेशन के चांसेस होते हैं।

अगर आपको ज़ुकाम के साथ ठंड भी लग रही है – तो रात में गर्म दूध में थोड़ी हल्दी डालकर पिएं। इससे आपको ज़ुकाम के साथ – साथ खांसी से भी राहत मिलेगी।                                                 

अरण्डी

सफेद एरंड : सफेद एरंड, बुखार, कफ, पेट दर्द, सूजन, बदन दर्द, कमर दर्द, सिर दर्द, मोटापा, प्रमेह और अंडवृद्धि का नाश करता है।

लाल एरंड : पेट के कीड़े, बवासीर, रक्तदोष (रक्तविकार), भूख कम लगना, और पीलिया रोग का नाश करता है। इसके अन्य गुण सफेद एरंड के जैसे हैं।          

पेड़ : एरंड का पेड़ 2.4 से 4.5 मीटर, पतला, लम्बा और चिकना होता है।

फूल : एरंड का फूल एक लिंगी, लाल बैंगनी रंग के होते हैं। एरंड के फूल ठंड से उत्पन्न रोग जैसे खांसी, जुकाम और बलगम तथा पेट दर्द संबधी बीमारी का नाश करता है।

फल : एरंड के फल के ऊपर हरे रंग का आवरण होता है। प्रत्येक फल में तीन बीज होते हैं।
एरंड के पत्ते : एरंड के पत्ते वात पित्त को बढ़ाते हैं और मूत्रकृच्छ्र (पेशाब करने में कठिनाई होना), वायु, कफ और कीड़ों का नाश करते हैं।

एरंड के अंकुर : एरंड के अंकुर फोड़े, पेट के दर्द, खांसी, पेट के कीड़े आदि रोगों का नाश करते हैं।
बीज : एरंड के बीज सफेद चिकने होते हैं।एरंड के बीजों का गूदा बदन दर्द, पेट दर्द, फोड़े-फुंसी, भूख कम लगना तथा यकृत सम्बंधी बीमारी का नाश करता है।

एरंड का तेल : पेट की बीमारी, फोड़े-फुन्सी, सर्दी से होने वाले रोग, सूजन, कमर, पीठ, पेट और गुदा के दर्द का नाश करता है।

स्वभाव : एरंड गर्म प्रकृति का होता है।। 

पायरिया
एरंड के तेल में कपूर का चूर्ण मिलाकर दिन में 2 बार नियमित रूप से मसूढ़ों की मालिश करते रहने से पायरिया रोग में आरम मिलता है।.

 वात प्रकोप और वात शूल
एरंड के बीजों को पीसकर लेप करने से छोटी संधियों और गठिया की सूजन मिटती है।वात रोग में एरंड तेल उत्तम गुणकारी है। कमर व जोड़ों का दर्द, हृदय दर्द, कफ और जोड़ों की सूजन, इन सब रोगों में एरंड की जड़ 10 ग्राम और सोंठ का चूर्ण 5 ग्राम का काढ़ा बनाकर सेवन करना चाहिए
तथा दर्द पर एरंड तेल की मालिश करनी चाहिए।
 
दाग-धब्बे
तिल, मस्से, चेहरे पर धब्बे, घट्टा-आटन, कील-मुंहासे हो तो एक दो महीने तक सुबह-शाम एरंड के तेल की मालिश करें। इससे उपर्युक्त विकार ठीक हो जाते हैं। मस्से, औटन पर तेल में गाज (कपड़ा) भिगोकर पट्टी बांधकर रखना चाहिए। एरंड के तेल में चने का आटा मिलाकर चेहरे पर रगड़ने से झांई आदि दूर होकर चेहरा साफ हो जाता है।.  

 बालों का झड़ना (गंजेपन का रोग)
अरंडी (एरंड) या सरसों के तेल में हल्दी जलाकर छान लें और इसमें थोड़ा सा कपूर मिलाकर सिर के गंजे जगह पर मालिश करें। इससे सिर पर बाल उगना शुरू हो जाते हैं।एरंड के गूदे को पीसकर बाल गिर जाने के बाद लगाने से बाल फिर से उग आते हैं।

आंवला

आंवले में सारे रोग दूर करने के गुण व शक्ति होती है। आंवला युवकों को भी यौवन शक्ति प्रदान करता है तथा बूढ़ों को युवा जैसी शक्ति देता है। बशर्ते आंवला किसी न किसी रूप में रोज सेवन करें। आंवले में विटामिन सी भरपूर होता है। हर इंसान को प्रतिदिन 50 मिली ग्राम विटामिन सी की जरूरत होती है। एक आंवला दो संतरे के बराबर होता है। आंवले का मुरब्बा ताकत देने वाला होता है।

1. गर्भवती स्त्रियों को आंवला अवश्य लेना चाहिये। किसी भी रूप में लें।

2. आंवला एक अंण्डे से अधिक बल देता है।

3. आंवला ब्लडप्रेशर वालों के लिये लाभप्रद है।

4. आंवला टूटी हड्डियों को जोड़ने वाला है।

5. जिन्हें नकसीर होता हो (नाक से खून) सूखा आंवला रात में भिगाकर उस पानी से सर धोयें। आंवले का मुरब्बा खायें। आंवले का रस नाक में टपकायें।

6. आंवले का चूर्ण मूली में भरकर खाने से मूत्राशय की पथरी में लाभ होता है।

7. आंवले के रस में शहद मिलाकर खाने से मधुमेह में लाभ होता है।

8. रात के आंवले का चूर्ण भीगो कर पानी पीये सुबह पेट साफ होता है। पाचन शक्ति बढ़ती है।

9. नित्य 1-2 ताजे आंवले का रस पीने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं। पांच दिन तक बराबर पियें।

10. जो लोग स्वस्थ रहना चाहते हैं वो ताजा आंवला का रस शहद में मिलाकर पीने के बाद ऊपर से दूध पियें इससे स्वास्थ अच्छा रहता है। दिन भर प्रसन्नता का अनुभव होता है। नई शक्ति व चेतना देता है। यौवन बहार आयेगा।

11. आंवले का रस पीने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।

12. गर्भावस्था में उल्टी हो रही हो, तो आंवले का मुरब्बा खायें।

13. आंवले के चूर्ण का उबटन चेहरे पर लगाये चेहरा साफ होगा दाग धब्बे दूर होंगे।

14. गर्मियों में चक्कर आता हो जी घबराता हो तो आंवले का शर्बत पियें।

15. आवाज बैठ गई हो, तो पिसे आंवले की फंली लें।

16. आंवले में बाल करने के गुण है। आंवला बहुत खट्टा इसलिये सफाई अच्छी करता है बालों की। साथ रोज आंवले का सेवन करें।

17. बुढ़ापा दूर रखता है। सूखे आंवले का चूर्ण 2 चम्मच रोज रोटी में रखकर खायें। बुढ़ापा दूर रहेगा जवानी बनी रहेगी।

आज में आमला के गुणों के बारे में बता रहा हु ..आमला एक अमृत तुल्य है जिसमे विटामिन प्रचुर मात्र में होता है मेरा अनुरोध आप सभी जरुर उपयोग करे ..व् निरोगी बने ...पहला सुख निरोगी काया

11 कारण सर्दियों में आंवला खाने ...

आंवले को बहुत ही गुणकारी माना जाता है लेकिन आंवले का सबसे बड़ा गुण यह है कि इसे पकाने के बाद भी इसमें मौजूद विटामिन सी खत्म नहीं होता। वैसे तो आंवला हर मौसम में ही फायदा पहुंचाता है। लेकिन ठंड के मौसम आंवले खाने के कुछ विशेष फायदे होते हैं। आंवले में क्रोमियम काफी मात्रा में होता है, आंवला हरा, ताजा हो या सुखाया हुआ पुराना हो, इसके गुण नष्ट नहीं होते। इसकी अम्लता इसके गुणों की रक्षा करती है। आयुर्वेद में आंवले को रसायन माना जाता है। च्यवनप्राश आयुर्वेद का प्रसिद्ध रसायन है, जो टॉनिक के रूप में आम आदमी भी प्रयोग करता है। यह शरीर में आरोग्य शक्ति बढ़ाता है। त्वचा, नेत्र रोग और बालों के लिए विटामिन बहुत उपयोगी है

-मोटापे के लिए ..आमला का रस , मधु व् गर्म पानी सुभ खली पेट ले ...जो मधु नही ले सकते पांच आमला का रस एक गिलास गुनगुने पानी के साथ खाली पेट ले
- एसीडिटी की समस्या है, तो एक ग्राम आंवला पाउडर और थोड़ी-सी चीनी को एक
गिलास पानी या दूध में मिलाकर लें।
- आंवला अर्थराइटिस के दर्द को कम करने में भी सहायक होता है।
आंवला खाने से सर्दी, खांसी, जुकाम जैसी बीमारियों से बचा जा सकता है।
-आंवले के जूस में शहद मिलाकर पीएं। यह मोतियाबिंद की परेशानी में भी फायदेमंद रहता है।
- आंवला हमारे पाचन तन्त्र और हमारी किडनी को स्वस्थ रखता है।
-आंवला बालों को मजबूत बनाता है, इनकी जड़ों को मजबूत करता है और बालों का झडऩा भी काफी हद तक रोकता है।
- आंवला खाने से कब्ज दूर होती है। यह डायरिया जैसी परेशानियों को दूर करने में बहुत फायदेमंद है।खाना खाने से पहले आंवले का पाउडर, शहद और मक्खन मिलाकर खाने से भूख अच्छी लगती है।
- दिल को सेहतमंद रखने के लिए ठंड में रोजआंवला खाने की आदत डालें। इससे आपके दिल की मांसपेशियां मजबूत होंगी, जिससे दिल शरीर को ज्यादा व साफ खून सप्लाई कर पाएगा। बेशक इससे आप सेहतमंद रहेंगे।
- आंवला हमारे शरीर की त्वचा और हमारे बालों के लिए बहुत लाभकारी होता है।
- डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद है। दरअसल, क्रोमियम इंसुलिन बनाने वाले सेल्स को ऐक्टिवेट करता है और इस हॉर्मोन का काम शरीर में ब्लड शुगर को कंट्रोल करना होता है।
- ठंड में सुबह नाश्ते में आंवले का मुरब्बा खाने से आप सालभर स्वस्थ बने रहेंगे।
- आयुर्वेद में आमला , गिलोय व् गोखरू के संमभाग संयोजन से एक चूर्ण तयार होता है जिसे रसायन चूर्ण कहते है ...रसायन चूर्ण 12 माह खाने वाले से बुढ़ापा दूर रहता है

सरसों का तेल ...............भूख बढ़ाना


जिन लोगों को भूख कम लगती है या भूख न लगती हो तो सरसों आपको फायदा दे सकती है। अपने खाने में सरसों के तेल का इस्तेमाल करें। क्योंकि यह तेल हमारे पेट में ऐपिटाइजर के रूप में काम करता है जिससे भूख बढ़ने लगती है।

वजन कम करना
सरसों के तेल में मौजूद विटामिन जैसे थियामाइन, फोलेट व नियासिन शरीर के मेटाबाल्जिम को बढ़ाते हैं जिससे वजन आसानी से कम होने लगता है।

मलेरिया में

मलेरिया मच्छरों के काटने से होता है। ऐसे में सरसों का तेल रात को सोने से पहले अपने शरीर पर लगाकर सोएं।  इस उपाय से मलेरिया के मच्छर नहीं काटते हैं।

त्वचा को लाइट करना

नारियल तेल में सरसों के तेल को मिलाकर अपने चेहरे पर मालिश करें। यह त्वचा में खून का संचार करता है जिससे त्वचा का रंग लाइट होता है।

कान दर्द में

कान के दर्द में सरसों का तेल फायदा करता है। जब भी कान में दर्द हो तब गुनगुने सरसों के तेल को कान में टपकाएं।

गठिया दर्द में

सरसों के तेल में कपूर को पीसकर मिलाएं और फिर इसकी गठिया वाली जगह पर मालिश करें। यह गठिया दर्द में राहत देता है।

कमर दर्द में

कमर दर्द से छुटकारा पाने के लिए  सरसों के तेल में अजवाइन, लहसुन और थोड़ी से हींग को मिलाकर कमर की  मालिश करें।.                  ...................... अस्थमा की रोकथाम
नियमित रूप से अस्थमा से परेशान लोगों को सरसों का तेल खाने में इस्तेमाल करना चाहिए। सरसों के बीज में मैग्नीशियम ज्यादा होता है। इसके अलावा यह तेल सर्दी और ब्रेस्ट में होने वाली परेशानियों को दूर करता है।

बढ़ती उम्र को रोके
सरसों के तेल में विटामिन ए, सी और के की अधिक मात्रा होती है जो बढ़ती हुई उम्र से होने वाले झुर्रिंयां यानि रिंकल और निशान आदि को दूर करती है। सरसों का  तेल एंटीआक्सीडेंट भी होता है। जिससे त्वचा टाइट बनी रहती है।

कैंसर को रोके
सरसों के तेल में कैंसर को रोकने वाला गुण ग्लुकोजिलोलेट होता है। जो कैंसर के टयूमर व गांठ को शरीर में बनने से रोकता है साथ ही किसी भी तरह के कैंसर को शरीर पर लगने नहीं देता है।

लंबे बालों के लिए
सरसों के तेल से सिर पर मालिश करने से बाल तेजी से बढ़ते हैं। साथ ही यह खून के सर्कुलेशन को भी बढ़ाता है। सरसों का तेल बालों को पोषण देता है जिससे बाल झड़ने भी कम हो जाते हैं।

बालों के रंग के लिए
भूरे बालों से परेशान लोगों के लिए सरसों का तेल किसी दवा से कम नहीं है। सरसों का तेल नियमित लगाने से भूरे बाल काले होने लगते हैं। रात को सोने से पहले नियमित सरसों का तेल लगाएं। थोड़े ही दिनों में बालों का रंग काला होने लगेगा।

दांत दर्द में
यदि दातों में किसी प्रकार का दर्द हो रहा हो तो सरसों के तेल में नमक मिलाकर रगड़ें। आपको राहत मिलेगी। और दांत भी मजबूत बनेगें।

शरीर की क्षमता को बढ़ाता है
सरसों का तेल शरीर की क्षमता बढ़ाने में एक दवा का काम करता है। शरीर की कमजोरी को दूर करने के लिए और उसकी क्षमता को बढ़ाने के लिए सरसों के तेल की मालिश के बाद नहाने से त्वचा और शरीर दोनों स्वस्थ रहते हैं।

सरसों के तेल का नियमित इस्तेमाल करने से कोरोनरी हार्ट डिसीज का खतरा कम होता है। जिन्हें दिल की बीमारी की समस्या हो वे सरसों का तेल खाने में इस्तेमाल करे...

सरसों का तेल त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद है। सरसों के तेल में विटामिन ई की मात्रा अधिक होती है जो आपकी त्वचा को अल्ट्रावाइलेट किरणों से बचाती है।

हमारे शरीर के लिए सरसों का तेल बेहद फायदेमंद है। इसे खाने में इस्तेमाल करने से शरीर की अंदरूहणी शक्ति बढ़ती है और यह शरीर को मजबूत बनाता है।

छोटे बच्चों की मालिश भी सरसों के तेल से करनी चाहिए। इससे बच्चों का शरीर मजबूत और लंबाई बढ़ती है।

लिप बाम

यदि लिप बाम से आपके होठों को कोई फायदा न मिल रहा हो तो आप सरसों के तेल को होंठों पर लगाएं। इससे होंठ मुलायम बनते हैं।

नियमित रूप से सरसों के तेल को चेहरे पर लगाने से चेहरे के पोर्स गहराई से साफ हो जाते हैं। क्योंकि सरसों का तेल शरीर में खून के सर्कुलेशन को बढ़ाता है। जो चेहरे पर चमक लाता है।



फुन्सी या रैशेज और इन्फेक्शन

सरसों के तेल में मौजूद गुणों से त्वचा से जुड़ी हुई दिक्कतें जैसे रैशेज या फुन्सी आदि ठिक होती हैं। सरसों के तेल को त्वचा पर लगाने से चेहरे का रूखापन, डलनेस और जलन कम हो जाती है। इस तेल की मालिश करने से शरीर में इन्फेक्शन का खतरा भी नहीं होता है।

दर्द में दे राहत
दर्द चाहे जोड़ों का हो या फिर गठिया का, सरसों के तेल से मालिश करने से सभी तरह के दर्द से मुक्ति मिलती है। सर्दियों में ठंड़ की वजह से होने वाले जोड़ों के दर्द में सरसों के तेल को गुनगुना करके मालिश करने से दर्द में आराम मिलता है।....

Wednesday 26 October 2016

घरेलू नुस्खे

1. नीम का पेस्ट सिर में कुछ देर लगाए रखें। फिर बाल धो लें। बाल झड़ना बंद हो जाएगा।

2. बेसन मिला दूध या दही के घोल से बालों को धोएं। फायदा होगा।

3. दस मिनट का कच्चे पपीता का पेस्ट सिर में लगाएं। बाल नहीं झड़ेंगे और डेंड्रफ (रूसी) भी नहीं होगी।


कफ और सर्दी जुकाम में सर्दी जुकाम, कफ आए दिन की समस्या है। आप ये घरेलू उपाय आजमाकर इनसे बचे रह सकते हैं।

1. नाक बह रही हो तो काली मिर्च, अदरक, तुलसी को शहद में मिलाकर दिन में तीन बार लें। नाक बहना रुक जाएगा।

2. गले में खराश या ड्राई कफ होने पर अदरक के पेस्ट में गुड़ और घी मिलाकर खाएं। आराम मिलेगा।

3. नहाते समय शरीर पर नमक रगड़ने से भी जुकाम या नाक बहना बंद हो जाता है।

4. तुलसी के साथ शहद हर दो घंटे में खाएं। कफ से छुटकारा मिलेगा।


शरीर, सांस की दुर्गध में यह परेशानी भी आम है। कई बार तो हमें इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ जाता है।

1. नहाने से पहले शरीर पर बेसन और दही का पेस्ट लगाएं। इससे त्वचा साफ हो जाती है और बंद रोम छिद्र भी खुल जाते हैं।

2. गाजर का जूस रोज पिएं। तन की दुर्गध दूर भगाने में यह कारगर है।

3. पान के पत्ते और आंवला को बराबर मात्रा में पीसे। नहाने के पहले इसका पेस्ट लगाएं। फायदा होगा।

4. सांस की बदबू दूर करने के लिए रोज तुलसी के पत्ते चबाएं।

5. इलाइची और लौंग चूसने से भी सांस की बदबू से निजात मिलता है।..

बुखार

क्या बुखार ने तोड़ कर रख दिया
              मित्रों नमस्कार🙏 शरद ऋतु(मध्य सितंबर से मध्य नवंबर)में विभिन्न प्रकार के रोग पनपते हैं, उनमें से बुखार होना एक आम बात है,ऐसा आयुर्वेद ग्रंथो में पहले से ही नीहित है

♦ इस मौसम में होने वाले ज्वर को ग्रंथो अनुसार वात श्लैषमिक ज्वर कहा जाता है जिसे आजकल डेंगू,चिकनगुनिया कहा जाता है और  आधुनिक चिकित्सा इस आसान से ज्वर प्रबंधन तक में आजकल फ़ेल दिखता है और दु:ख की बात तो ये कि जिस ज्वर के लिये आज तक यें कहते थे कि "इससे कोई मरता नही,आजकल केवल आधुनिक चिकित्सा का सहारा लेने वाले इस  बुखार के कारण खूब मर रहे हैं,यह इन चिकित्सको की बहुत बडी नाकामी है  

♦ बुखार ठीक होने के बाद भी यह अनेक रोग जैसे जोड़ के दर्द,पेट के रोग अपने पीछे छोड़ देता है,इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि व्यक्ति हैवी एंटीबायोटिक और पेरासिटामोल आदि खाकर बुखार से निजात पाना चाहता हैl आज मैं आपसे निवेदन करना चाहूंगा कि डेंगू,चिकनगुनिया बुखार पर काबू पाने के लिए आप केवल आधुनिक चिकित्सा का सहारा न ले बल्कि साथ ही साथ आयुष चिकित्सा से बुखार का प्रबंधन करें क्योंकि यह बुखार उतरने के बाद आपको किसी अन्य बीमारी से बचा कर रखेगा व किसी भी प्रकार के साइड इफेक्ट से दूर रखेगाl
                                              
♦ ऐसे ज्वर के रोगी को चाहिए कि वह एक जगह मिली हुई बराबर मात्रा में पीपल (जो गरम मसाले में डाली जाती है)पीपला मूल,चव्य,चित्रक और सोंठ के काढे को पीता रहेl                                               भूख लगने पर मूंग की दाल की     खिचड़ी,फलों का स्वरस आदि लेता रहे,  दूध हल्दी डाले बिना न पियेंl        
                                               
💊 औषधि के रूप में गोदंती भस्म  250-250मिलीग्राम, चौसठ प्रहरी पीपल-250 मिलिग्राम ,लक्ष्मी विलास रस एक गोली अदरक रस के साथ शहद मिलाकर चाटते रहेl बुखार के पांचवे,छठे और सातवे दिन महाज्वरांकुश की 2-2 गोली चीनी के एक कप शरबत के साथ सुबह खाली पेट देंl        
                                             
🍵 औषधि देने के बाद नित्य चार-पांच बार तक हल्के मरोड़ के साथ दस्त लग सकते हैं घबरायें नही व दस्त बंद होने पर भूख लगने पर मूंग की दाल का पानी और फलों का रस देंl सातवे दिन से परवल की सब्जी और मूंग की दाल की चावल की खिचड़ी सेवन करें,यही पथ्य कम से कम 5 दिन तक निभायेंl      
                          
😀रोगी पूर्ण आराम करें तथा शारीरिक मानसिक परिश्रम मैथून, पैदल चलना,स्नान का तब तक त्याग रखें जब तक की पूर्ववत्त बल न आ जाए l       
                
😀 इस प्रकार की चिकित्सा से रोगी का ज्वर भी मिटता है तथा भूख भी अच्छी लगने लगती है तथा निर्बलता दूर हो जाती है और सबसे बड़ी बात यह होती है कि वर्ष भर उन्हें ज्वर नहीं लौटताlसाथ ही अन्य रोगों की जड़ कट जाती है, प्लेटलेट काउंट घटने जैसी समस्या का तो सवाल ही नहींl                    
 ईश्वर आपको स्वस्थ रखे  

Arogya🌺


 1-- 90 प्रतिशत रोग केवल पेट से होते हैं। पेट में कब्ज नहीं रहना चाहिए। अन्यथा रोगों की कभी कमी नहीं रहेगी।

2-- कुल 13 अधारणीय वेग हैं |

3--160 रोग केवल मांसाहार से होते है |

4-- 103 रोग भोजन के बाद जल पीने से होते हैं। भोजन के 1 घंटे बाद ही जल पीना चाहिये।

5-- 80 रोग चाय पीने से होते हैं।

6-- 48 रोग ऐलुमिनियम के बर्तन या कुकर के खाने से होते हैं।

7-- शराब, कोल्डड्रिंक और चाय के सेवन से हृदय रोग होता है।

8-- अण्डा खाने से हृदयरोग, पथरी और गुर्दे खराब होते हैं।

9-- ठंडे जल (फ्रिज) और आइसक्रीम से बड़ी आंत सिकुड़ जाती है।

10-- मैगी, गुटका, शराब, सूअर का माँस, पिज्जा, बर्गर, बीड़ी, सिगरेट, पेप्सी, कोक से बड़ी आंत सड़ती है।

11-- भोजन के पश्चात् स्नान करने से पाचनशक्ति मन्द हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है।

12-- बाल रंगने वाले द्रव्यों (हेयरकलर) से आँखों को हानि (अंधापन भी) होती है।

13-- दूध (चाय) के साथ नमक (नमकीन पदार्थ) खाने से चर्म रोग हो जाता है।

14-- शैम्पू, कंडीशनर और विभिन्न प्रकार के तेलों से बाल पकने, झड़ने और दोमुहें होने लगते हैं।

15-- गर्म जल से स्नान से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है। गर्म जल सिर पर डालने से आँखें कमजोर हो जाती हैं।

16-- टाई बांधने से आँखों और मस्तिश्क हो हानि पहुँचती है।

17-- खड़े होकर जल पीने से घुटनों (जोड़ों) में पीड़ा होती है।

18-- खड़े होकर मूत्र-त्याग करने से रीढ़ की हड्डी को हानि होती है।

19-- भोजन पकाने के बाद उसमें नमक डालने से रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) बढ़ता है।

20-- जोर लगाकर छींकने से कानों को क्षति पहुँचती है।

21-- मुँह से साँस लेने पर आयु कम होती है।

22-- पुस्तक पर अधिक झुकने से फेफड़े खराब हो जाते हैं और क्षय (टीबी) होने का डर रहता है।

23-- चैत्र माह में नीम के पत्ते खाने से रक्त शुद्ध हो जाता है, मलेरिया नहीं होता है।

24-- तुलसी के सेवन से मलेरिया नहीं होता है।

25-- मूली प्रतिदिन खाने से व्यक्ति अनेक रोगों से मुक्त रहता है।

26-- अनार आंव, संग्रहणी, पुरानी खांसी व हृदय रोगों के लिए सर्वश्रेश्ठ है।

27-- हृदय-रोगी के लिए अर्जुन की छाल, लौकी का रस, तुलसी, पुदीना, मौसमी, सेंधा नमक, गुड़, चोकर-युक्त आटा, छिलके-युक्त अनाज औशधियां हैं।

28-- भोजन के पश्चात् पान, गुड़ या सौंफ खाने से पाचन अच्छा होता है। अपच नहीं होता है।

29-- अपक्व भोजन (जो आग पर न पकाया गया हो) से शरीर स्वस्थ रहता है और आयु दीर्घ होती है।

30-- मुलहठी चूसने से कफ बाहर आता है और आवाज मधुर होती है।

31-- जल सदैव ताजा (चापाकल, कुएं आदि का) पीना चाहिये, बोतलबंद (फ्रिज) पानी बासी और अनेक रोगों के कारण होते हैं।

32-- नीबू गंदे पानी के रोग (यकृत, टाइफाइड, दस्त, पेट के रोग) तथा हैजा से बचाता है।

33-- चोकर खाने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। इसलिए सदैव गेहूं मोटा ही पिसवाना चाहिए।

34-- फल, मीठा और घी या तेल से बने पदार्थ खाकर तुरन्त जल नहीं पीना चाहिए।

35-- भोजन पकने के 48 मिनट के अन्दर खा लेना चाहिए। उसके पश्चात् उसकी पोशकता कम होने लगती है। 12 घण्टे के बाद पशुओं के खाने लायक भी नहीं रहता है।

36-- मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाने से पोशकता 100%, कांसे के बर्तन में 97%, पीतल के बर्तन में 93%, अल्युमिनियम के बर्तन और प्रेशर कुकर में 7-13% ही बचते हैं।

37-- गेहूँ का आटा 15 दिनों पुराना और चना, ज्वार, बाजरा, मक्का का आटा 7 दिनों से अधिक पुराना नहीं प्रयोग करना चाहिए।

38-- 14 वर्श से कम उम्र के बच्चों को मैदा (बिस्कुट, बे्रड, समोसा आदि) कभी भी नहीं खिलाना चाहिए।

39-- खाने के लिए सेंधा नमक सर्वश्रेश्ठ होता है उसके बाद काला नमक का स्थान आता है। सफेद नमक जहर के समान होता है।

40-- जल जाने पर आलू का रस, हल्दी, शहद, घृतकुमारी में से कुछ भी लगाने पर जलन ठीक हो जाती है और फफोले नहीं पड़ते।

41-- सरसों, तिल, मूंगफली या नारियल का तेल ही खाना चाहिए। देशी घी ही खाना चाहिए है। रिफाइंड तेल और वनस्पति घी (डालडा) जहर होता है।

42-- पैर के अंगूठे के नाखूनों को सरसों तेल से भिगोने से आँखों की खुजली लाली और जलन ठीक हो जाती है।

43-- खाने का चूना 70 रोगों को ठीक करता है।

44-- चोट, सूजन, दर्द, घाव, फोड़ा होने पर उस पर 5-20 मिनट तक चुम्बक रखने से जल्दी ठीक होता है। हड्डी टूटने पर चुम्बक का प्रयोग करने से आधे से भी कम समय में ठीक होती है।

45-- मीठे में मिश्री, गुड़, शहद, देशी (कच्ची) चीनी का प्रयोग करना चाहिए सफेद चीनी जहर होता है।

46-- कुत्ता काटने पर हल्दी लगाना चाहिए।

47-- बर्तन मिटटी के ही परयोग करन चाहिए।

48-- टूथपेस्ट और ब्रश के स्थान पर दातून और मंजन करना चाहिए दाँत मजबूत रहेंगे। (आँखों के रोग में दातून नहीं करना)

49-- यदि सम्भव हो तो सूर्यास्त के पश्चात् न तो पढ़े और लिखने का काम तो न ही करें तो अच्छा है।

50-- निरोग रहने के लिए अच्छी नींद और अच्छा (ताजा) भोजन अत्यन्त आवश्यक है।

51-- देर रात तक जागने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हो जाती है। भोजन का पाचन भी ठीक से नहीं हो पाता है आँखों के रोग भी होते हैं।

52-- प्रातः का भोजन राजकुमार के समान, दोपहर का राजा और रात्रि का भिखारी के समान।

आशा है स्वयं के परिवार में भी इसे लागु करेंगे।
 .आदरणीय बन्धुवर.,
अपनी दिनचर्या को बीमार होने के बाद भी तो सही बनाओगे, बेहतर हैं बीमार नहीं हो, ऐसी दिनचर्या बना ले। निश्चित लाभ मिलेगा। मैं स्वम भी प्रयासरत ही आप भी प्रयत्न करना शुरू करे।

मोतियाबिंद से बचाव और उपचार☀

जब आँख के लैंस की पारदर्शिता हल्की या समाप्त होने लगती है धुंधला दिखने लगता है तो उसे मोतियाबिंद कहते है । इस रोग में आँखों की काली पुतलियों में सफ़ेद मोती जैसा बिंदु उत्पन्न होता है जिससे व्यक्ति की आँखों की देखने की क्षमता कम हो जाती है ज्यादातर यह रोग 40 वर्ष के बाद होता है। मोतियाबिंद उम्र , मधुमेह, विटामिन या प्रोटीन की कमी , संक्रमण, सूजन या किसी चोट की वजह से भी सकता है ।

* मोतियाबिंद से बचाव के लिए सुबह जागने के बाद मुंह में ठंडा पानी भरकर पूरी आँखें खोलकर आंखों पर पानी के 8-10 बार छींटे मारें।
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* 1 चम्मच त्रिफला चूर्ण, आधा चम्मच देसी घी और 1 चम्मच शहद को मिला लें। इसे रोज सुबह खाली पेट ले। इससे मोतियाबिंद के साथ-साथ आंखों की कई दूसरी बीमारियों से भी बचाव होता है।

* मोतियाबिंद से बचने और आँखों की रौशनी तेज करने लिए प्रतिदिन गाजर, संतरे, दूध और घी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें।

* एक बूंद प्याज का रस और एक बूंद शहद मिलाकर इसे काजल की तरह रोजाना आंख में लगाएं। आँखों की समस्या शीघ्र ही दूर होगी।
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* एक चम्मच घी, दो काली मिर्च और थोड़ी-सी मिश्री मिलाकर दिन में तीन बार इसका सेवन करें ।

* सौंफ और धनिया को बराबर मात्रा में लेकर उसमें हल्की भुनी हुई भूरी चीनी मिलाएं इसको एक एक चम्मच सुबह शाम सेवन करने से भी बहुत लाभ मिलता है।

* 6 बादाम की गिरी और 6 दाने साबुत काली मिर्च पीसकर मिश्री के साथ सुबह पानी के साथ लेने पर भी मोतियाबिंद में लाभ मिलता है।

* आँखोँ की तकलीफ में गाय के दूध का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए ।
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* गाजर, पालक, आंवलें के रस का सेवन करने से मोतियाबिंद 2-3 महीने में कटकर ख़त्म हो जाता है ।

* एक चम्मच पिसा हुआ धनिया एक कप पानी में उबाल कर छान लें ठंडा होने पर सुबह शाम आँखों में डाले इससे भी मोतियाबिंद में आराम मिलता है ।

* हल्दी मोतियाबिंद होने से रोकती है। हल्दी में करक्युमिन नामक रसायन होता है जो रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है और साइटोकाइन्स तथा एंजाइम्स को नियंत्रित करता है।इसलिए हल्दी का अधिक से अधिक सेवन करना चाहिए।

* आंखों में मोतियाबिंद और रतौंधी हो जाने पर नीम के तेल को सलाई से आंखों में अंजन की तरह से लगाएं।

तलवों का दर्द मिटायें बोतल मसाज


बोतल मसाज ( Bottle Massage )
गर्मियों के दिन की मुख्य परेशानी होती है तलवों में जलन, जिसे दूर करने के लिए सबसे अच्छा बोतल मसाज को माना जाता है. ये समस्या किसी को भी हो सकती है किन्तु इसका मुख्य शिकार घर की औरतें होती है क्योकि वे सारा दिन काम करती रहती है और कभी उनके पैर ठंडी जगह पर पड़ते है तो कभी गर्म जगह पर. जिसका सीधा असर उनकी पैरों की नसों पर पड़ता है और उनमे कमजोरी आ जाती है और यही इस रोग का मुख्य कारण भी होता है. बोतल मसाज को आप एक थैरपी की तरह देख सकते हो. जो पैरों के तलवों की सुजन, जलन और दर्द को आसानी से दूर कर देती है. आज हम अपनी इस पोस्ट में जानेंगे कि बोतल मसाज करने की सही विधि क्या है और इसे करते वक़्त किन किन सावधानियों को ध्यान में रखना चाहियें.

पैरों में जलन के कारण
-   तंत्रिका तंत्र में शिथिलता या कमजोरी

-   मधुमेह

-   अधिक शराब का सेवन

-   विषाक्त पदार्थों का सेवन

-   विटामिन बी, कैल्शियम और फोलिक एसिड की कमी

-   किडनी रोग

-   पैर सिंड्रोम

-   अधिक गर्म दवाओं का सेवन

-   रक्त प्रवाह का कम होना 

तलवों की जलन दूर करने के उपाय

        अदरक ( Ginger ) : तलवों की जलन को दूर करने के लिए आप एक कटोरी में थोडा सा जैतून और नारियल का तेल मिलाकर गर्म करें और जब ये थोडा ठंडा हो जाएँ तो इससे अपने पैरों, एड़ियों और तलवों की अच्छी तरह से मालिश करें. मालिश तब तक करनी है जब तक आपके पैर तेल को सोख ना लें. क्योकि तलवों में जलन रक्त प्रहाव के कम होने के कारण होता है तो आप चाहे तो रोज अदरक का टुकडा चबाकर अपने रक्त प्रवाह को भी बढ़ा सकते है.

*                      ठंडा पानी ( Cold Water ) : पैरों में होने वाली जलन को दूर करने के लिए ठन्डे पानी को काफी उपयोगी माना जाता है. क्योकि ये पैरों की सुन्नता, झुनझुनाहट और सुजान में तुरंत आराम दिलाता है. इसके उपयोग के लिए आप एक बाल्टी या टब में पानी भर लें और उसमें अपने पैरों को कुछ देर तक डाल कर रखें. आप ये उपाय दिन में 2 से 3 बार भी अपना सकते है. लेकिन ध्यान रखें कि आप अधिक देर तक पैरों को पानी में ना रखें और ना ही पैरों पर बर्फ लगाएं.

*                      गुलाब जल ( Rose Water ) : आप थोडा चन्दन का पाउडर लें और उसमे थोडा गुलाब जल मिलाकर एक लेप तैयार करें. उसके बाद आप इसमें थोडा सा शुद्ध देशी घी भी मिलाएं और अपने पैरों पर मलें. इस उपाय को आप नियमित रूप सी कुछ दिनों तक अपनाएँ. आपको आराम मिलता है और पैरों की नशे भी मजबूत होती है.
*                      हल्दी ( Turmeric ) : हल्दी पौषक तत्वों की खान होती है और इस खान में एक तत्व करक्यूमिन भी पाया जाता है. ये तत्व समुचित शरीर के रक्त प्रवाह को सुचारू रूप से चलाने में बहुत सहायक होता है. साथ ही इसमें पायें जाने वाले एंटी – इन्फ्लेमेंटरी तत्व तलवों में होने वाले दर्द और जलन को दूर करते है. हल्दी का इस्तेमाल करने के लिए आपको 1 ग्लास पानी में 1 से 1½ चम्मच हल्दी मिलाकर लेनी है. अगर आप इस उपाय को दिन में 2 बार अपनाते है तो आपको अधिक लाभ मिलता है. आप चाहें तो इसका पेस्ट बनाकर उससे तलवों की मालिश भी कर सकते है.

*                      सेंधा नमक ( Halite ) : नमक की एक ख़ास बात ये होती है कि वो सोखने में उत्तम होता है और इसीलिए पैरों के तलवों की जलन को शांत करने के लिए आप सेंधा नमक का भी इस्तेमाल कर सकते हो. सेंधा नमक में मैग्नीशियम नाम का तत्व पाया जाता है जो सुजन और दर्द को कम करने के लिये उत्तम होता है. इसलिए आप भी एक टब गुनगुने पानी में करीब ½ कप सेंधा नमक मिलाएं और उसमें 10 से 15 मिनट तक पैरों को डालकर सिकाई करें. आप इस उपाय को नियमित रूप से कुछ दिनों तक अपनाएँ आपको निश्चित रूप से आराम मिलेगा.

*                      मलाई ( Sour Cream ) : आप 10 से 15 ग्राम मलाई लें और उसमें 2 से 3 निम्बू की बुँदे डाल लें और एक लेप तैयार करें. इस लेप को आप रात को सोते वक़्त अपने पैरों पर लगाएं और अगले दिन सुबह उठकर इसे ठन्डे पानी से धो लें. इससे ना तो आपकी एड़ियाँ फटती है और ना ही उनमें दर्द की संभावना रहती है.
एड़ियों को नर्म मुलायम बनायें

*                      जैतून का तेल ( Olive Oil ) : तलवों में दर्द का एक कारण उनका सख्त होना भी होता है इस अवस्था में आप अपने पैरों और तलवों की ओलिव आयल से मालिश करें. इससे त्वचा नर्म और मुलायम होती है साथ ही आपको तलवों के दर्द व जलन से भी छुटकारा मिलता है.

*                      तिल का तेल ( Sesame Oil ) : तिल का तेल पैरों की मालिश के लिए सर्वोत्तम माना जाता है. इससे मालिश करने के बाद आप अपने पैरों को थोड़ी देर गुनगुने पानी में भी अवश्य डाल लें. इसके कई फायदे होते है जैसेकि तलवे नर्म बने रहते है, पैरों में नमी रहती है, उच्च रक्तचाप में आराम मिलता है, रक्त शर्करा नियंत्रित रहती है और हृदय रोगों में भी आराम मिलता है.

*                      नंगे पाँव हरी घास पर चले ( Walk Barefoot on Grass ) : वैसे तो ये सुझाव उन लोगों को दिया जाता है जिनकी आँखें कमजोर होती है या जिन्हें चश्मा चढ़ा होता है. किन्तु प्रातःकाल नंगे पैर हरी हरी घासों पर चलने से पैरों का रक्त प्रवाह भी बढ़ता है, जिससे तलवों में जलन का ख़तरा खत्म हो जाता है. 

*                      घिया ( Ghia ) : घिया का इस्तेमाल भी आप तलवों की जलन दूर करने के लिए कर सकते हो. ऐसा इसलिए होता है क्योकि घिया की तासीर ठंडी होती है और इसमें विटामिन बी भी पाया जाता है जो पैरों की नसों को मजबूती देता है. घिया का इस्तेमाल करने के लियए आपको घिया के गोल गोल छोटे छोटे टुकड़े करने है और उसके गुदे को पैरों के तलवों पर मलना है. आपको तुरंत ही आराम का अनुभव होता है.
            सरसों का तेल ( Mustard Oil ) : सरसों का तो शायद नाम ही काफी होना चाहियें. क्योकि ये हर समस्या का समाधान माना जाता है. तलवों की जलन को दूर करने के लियए भी आप इसका इस्तेमाल कर सकते हो और इसके लिए आपको बस 2 गिलास गर्म पानी में 1 चम्मच सरसों का तेल मिलाना है. इसके बाद आप इस पानी को एक कटोरे में डालें और करीब 5 मिनट तक अपने पैरों को इसमें रखना है. बाद में आप अपने पैरों को ठंडे पानी से साफ़ कर लें.

बीमारियों और पेट को साफ़ करने की प्रक्रिया है कुंजल क्रिया

शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए अनेक प्रकार की क्रियाएं की जाती है| आज हम आपको ऐसी ही एक क्रिया के बारे में बताने वाले है| जो खासकर पेट के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होती है| हम आपको आज Kunjal Kriya के बारे में जानकारी देने वाले है|

जल नेति या कुंजल क्रिया अनेक बीमारियों की अचूक दवा है| षट्कर्म में शामिल इस क्रिया के कारण ही हाथी न केवल शक्तिशाली होता है बल्कि उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी इतनी प्रबल हो जाती है कि लगातार प्रहार के बाद भी कोई घाव नहीं होता है|

यह पाचन क्रिया को भी मजबूत करती है| अगर व्यक्ति नियमित रूप से कुंजल क्रिया करता है तो बुढ़ापे की स्थिति बहुत देर से आती है साथ ही शरीर चुस्त -दुरुस्त और ऊर्जावान बना रहता है| भक्ति सागर में ऋषि-मुनियों ने बाह्य एवं आंतरिक शरीर की शुद्धि के लिए छः प्रकार की क्रियाएं बताई है, जिन्हे षट्कर्म कहा जाता है| इसमें धौति, वस्ति, नेति, कुंजल, नौलि और त्राटक क्रिया है| आइये जानते है कुंजल क्रिया की विधि और लाभ|

कुंजल क्रिया वैसे तो कठिन नहीं है लेकिन इसे करने के तरीके को हर व्यक्ति नहीं कर पाता है, क्योंकि यह एक अजीब सी क्रिया है| जो भी व्यक्ति इसमें पारंगत हो जाता है उसके जीवन में कोई भी रोग और शोक नहीं रह जाता है| यह क्रिया बहुत ही शक्तिशाली है। पानी से पेट को साफ किए जाने की क्रिया को कुंजल क्रिया कहते हैं। इस क्रिया से पेट व आहार नली पूर्ण रूप से साफ हो जाती है। मूलत: यह क्रिया वे लोग कर सकते हैं जो धौति क्रिया नहीं कर सकते हों। इस क्रिया को किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही करना चाहिए।

कुंजल क्रिया करने की विधि

इस क्रिया को सुबह के समय शौच आदि से निवृत्त होकर करना चाहिए| आइये जानते Kunjal Kriya

इस क्रिया के अभ्यास के लिए पहले एक बर्तन में शुद्ध पानी को हल्का गर्म करें। अब कागासन में बैठकर पेट  भर पानी पीएं। पेट भर जाने के बाद खड़े होकर नाभि से 90 डिग्री का कोण बनाते हुए आगे की तरफ झुके। अब हाथ को पेट पर रखें और दाएं हाथ की 2-3 अंगुलियों को मिलाकर मुंह के अन्दर जीभ के पिछले हिस्से तक ले जाएं। अब अंगुली को जीभ के पिछले भाग पर तेजी से घुमाएं। ऐसा करने से उल्टी होने लगेगी और जब पानी ऊपर आने लगे तो अंगुली को मुंह से बाहर निकालकर पानी को बाहर निकलने दें। जब अन्दर का पिया हुआ सारा पानी बाहर निकल जाए तो पुनः तीनों अंगुलियों को जीभ के पिछले भाग पर घुमाएं और पानी को बाहर निकलने दें। जब पानी निकलना बन्द हो जाए तो अंगुली को बाहर निकाल दें। इस क्रिया में पानी के साथ भोजन का बिना पचा हुआ खटटा् व कड़वा पानी भी निकल जाता है। जब अन्दर से साफ पानी बाहर निकलने लगे तो अंत में एक गिलास गर्म पानी पी लें और अंगुली डालकर उल्टी करें।

कुंजल क्रिया के लाभ

इस क्रिया के नियमित अभ्यास शारीर के तीन अंगो लिवर, ह्रदय और पेट की आंतो को काफी लाभ मिलता है| इस क्रिया को करने से शरीर और मन में बहुत ही अच्छा महसूस करता है। व्यक्ति में हमेशा प्रसंन्न और स्फूति बनी रहती है।

इस क्रिया को करने से वात, पित्त व कफ से होने वाले सभी रोग दूर हो जाते हैं। बदहजमी, गैस विकार और कब्ज आदि पेट संबंधी रोग समाप्त होकर पेट साफ रहता है तथा पाचन शक्ति बढ़ती है।

यह सर्दी, जुकाम, नजला, खांसी, दमा, कफ आदि रोगों को दूर करता है। इस क्रिया से मुंह, जीभ और दांतों के रोग दूर होते हैं। कपोल दोष, रूधिर विकार, छाती के रोग, ग्रीवा, कण्ठमाला, रतोंधी, आदि रोगों में भी यह लाभदायी है।

ध्यान रखने योग्य बातें

ध्यान रखें कि कुंजल क्रिया में पानी न अधिक गर्म हो न अधिक ठंडा और पानी मे नमक नही मिलाना है।इसे करते समय शारीरिक स्थिति सही रखें। इसे करने के लिए आगे की ओर झुककर ही खड़े हो| इससे पानी अन्दर से आसानी से निकल जाता है.

Thursday 20 October 2016

50 ग्राम गुड़ और एक ग्लास दूध, आपको कभी नही होंगे ये 5 रोग !!

कई बार घरेलू नुस्खे बड़ी-बड़ी दवाओं पर भारी पड़ जाते हैं। ठीक ऐसा ही नुस्खा है गुड़ और दूध। गुड़ खाने से पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है। गुड़ खाने से पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है। वहीं दूध पीने से कैल्शियम की पूर्ति होती है। अगर दूध में गुड़ मिलाकर पीया जाएं तो इसका फायदा और भी अधिक बढ़ जाता है। ज्यादा नही बस 50 ग्राम गुड़ ही आपको सेहतमंद बनाने के लिए काफी है।

अगर आपके जोड़ों में दर्द है तो भी इसका सेवन आपके लिए फायदेमंद है।

दूध में गुड़ मिलाकर पीने से खून साफ होता है, जिससे फोड़े-फुंसी और घाव होने की आशंका कम हो जाती है।

गुड़ और दूध मिलाकर पीने से शरीर में खून की कमी, थकान नहीं रहती है।

अगर आप भी खुद को सेहतमंद बनाने चाहते हैं तो दूध में गुड़ मिलाकर पीना शुरू कर दीजिए।

अगर आपको कब्ज की समस्या रहती है तो ग़ुड़ में दूध मिलाकर पीएं। पाचन क्रिया के लिए गुड़ से बेहतर कुछ भी नहीं है।

मांसपेशियों की मजबूती के लिए भी दूध में गुड़ मिलाकर पीना सेहत के लिहाज से अच्छा माना जाता है।

गर्भवती महिलाओं को थकावट और कमजोरी ज्यादा होती है। ऐसे में उन्हें दूध में गुड़ मिलाकर पीने की सलाह दी जाती है।

सर्दी खांसी होने पर भी गुड़-दूध का सेवन अच्छा माना गया है।

पथरी का रोग होने पर भी गुड़ के साथ दूध का सेवन लाभकारी माना गया है, पथरी स्वयं पिघल कर निकलने लगती है ।
जय हिन्द, वन्दे मातरम् ।

आरोग्य - लीवर को ठीक करने के घरेलू नुस्खे :


– रात को सोने से पहले एक गिलास दूध में थोड़ी सी हल्दी मिलाकर पी जाएं । हल्दी में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, यह एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करती है। यह हेपेटाइटिस बी, सी के वायरस को भी बढ़ने रोकती है।
– भोजन से पहले एक गिलास पानी में एक चम्मच सेब का सिरका व एक चम्मच मधु मिलाकर सेवन करने से लीवर में मौजूद विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। यह शरीर की चर्बी भी घटाता है।
– लीवर को स्वस्थ रखने के लिए प्रतिदिन चार-पांच कच्चा आंवला खाना चाहिए। इसमें भरपूर विटामिन सी मिलता है जो लीवर के सुचारु संचलन में मदद करता है।

– लीवर सिरोसिस के लिए पपीता रामबाण इलाज है। प्रतिदिन दो चम्मच पपीता के रस में आधा चम्मच नींबू का रस मिलाकर पीने से लीवर सिरोसिस ठीक हो जाता है। लीवर की रक्षा के लिए तीन-चार सप्ताह तक नियमित इसका सेवन करना चाहिए।
– लीवर को ठीक रखने के लिए सिंहपर्णी जड़ की चाय दिन में दो बार पीना चाहिए। इसे पानी में उबालकर भी पीया जा सकता है, बाज़ार में सिंहपर्णी का पाउडर भी मिलता है।
– पानी उबाल लें और उसमें मुलेठी की जड़ का पाउडर डाल दें। जब पानी ठंडा हो जाए तो उसे छानकर कर रख लें और दिन में दो बार सेवन करें। इसे चाय के बराबर लेना चाहिए। इससे ख़राब लीवर को ठीक किया जा सकता है।
– अलसी के बीज को पीसकर टोस्ट या सलाद के साथ खाने से लीवर की बीमारियां नहीं होतीं। अलसी में फीटकोंस्टीटूएंट्स होता है जो हार्मोंन को रक्त में घूमने से रोकता है और लीवर का तनाव कम करता है।
– एवोकैडो और अखरोट में ग्लुटथायन मिलता है जो लीवर में मौजूद विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है।
– लीवर सिरोसिस के लिए पालक व गाजर के रस का मिश्रण उत्तम इलाज है। दोनों की मात्रा समान होनी चाहिए। दिन में कम से कम एक बार इसका सेवन जरूर करना चाहिए।
– पत्तेदार सब्ज़ियों व सेब में पेक्टिन पाया जाता है जो पाचन तंत्र के विषैले तत्वों को बाहर निकालकर लीवर को ठीक रखता है।
– भूमि आंवला लीवर की तमाम समस्याओं को दूर करता है। इसे उखाड़कर जड़ सहित पीस लें और पी जाएं। लीवर का सूजन, लीवर का बढ़ना व पीलिया आदि रोगों में यह अत्यंत लाभकारी है।

🌺सर्वे भवन्तु सुखिनः
               सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
             मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
       "सब सुखी हों, सब निरोग हों, सब कल्याणमयी दृष्टि वाले हों और कोई भी दुःखी न हो।"

गुड़ में हैं औषधीय गुण के बारे में

गुड़ का सेवन ज्यादातर लोग ठंड में ही करते हैं, वह भी थोड़ी मात्रा में इस सोच के साथ की ज्यादा गुड़ खाने से नुकसान होता है। इसकी प्रवृत्ति गर्म होती है, लेकिन ये एक गलतफहमी है। गुड़ हर मौसम में खाया जा सकता है और पुराना गुड़ हमेशा औषधि के रूप में काम करता है। आयुर्वेद संहिता के अनुसार यह शीघ्र पचने वाला, खून बढ़ाने वाला व भूख बढ़ाने वाला होता है। इसके अतिरिक्त गुड़ से बनी चीजों के खाने से बीमारियों में राहत मिलती है।

ठंड में जरूर खाएं गुड़ : गुड़ में सुक्रोज, ग्लूकोज, खनिज तरल और जल अंश मौजूद होते हैं। इसके अलावा गुड़ में कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन और ताम्र तत्व भी अच्छी मात्रा में मिलते हैं। इसलिए चाहे हर मौसम में आप गुड़ खाना न पसन्द करें लेकिन ठंड में गुड़ जरूर खाएं।

गुड़ खाने से खून बढ़ता है।

खाना खाने के बाद इसे खाने से गैस नहीं बनती है।

असिडिटी में सहायक गुड़ : अगर आप गैस या असिडिटी से परेशान हैं तो खाने के बाद थोड़ा गुड़ जरूर खाएं ऐसा करने से ये दोनों ही समस्याएं नहीं होती हैं।

गुड़ खाने से याद्दाश्त कमजोर नहीं होती, इसलिएअगर आप अपनी याद्दाश्त दुरुस्त रखना चाहते हैं,तो इसका नियमित सेवन करें।

स्मरण शक्ति बढ़ाता है गुड़ : गुड़ का हलवा खाने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। शरीर से जहरीले तत्वों को बाहर निकालता है व सर्दियों में यह शरीर के तापमान को नियमित करने में मदद करता है। यह लड़कियों के मासिक धर्म को नियमित करने में मददगार होता है।

थकान मिटाने के लिए गुड़ का शर्बत पीएं।

थकान दूर करता है गुड़ : यह सेलेनियम के साथ एक ऐंटिऑक्सिडेंट के रूप में कार्य करता है। गुड़ में मध्यम मात्रा में कैल्शियम, फॉस्फोरस व जस्ता पाया जाता है यही कारण है कि इसका रोजाना सेवन करने वालों की इम्युनिटी पावर बढ़ता है। गुड़ में मैग्निशियम अधिक मात्रा में पाया जाता है इसलिए ये बॉडी को रिचार्ज करता है साथ ही इसे खाने से थकान भी दूर होती है।

अगर आपके कान में दर्द रहता है, तो घी में गुड़ मिलाकर खाएं।

कान दर्द की समस्या दूर करता है गुड़ : ठंड में कई लोगों को कान के दर्द की समस्या होने लगती है। ऐसे में कान में सरसों का तेल डालने से व गुड़ और घी मिलाकर खाने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।

जुकाम को भगाने में भी ये लाभदायक साबित होता है।

अगर आपको कम भूख लगती है, तो इसका सेवन करेंइसका सेवन करने से भूख ज्यादा लगती है।

रोजाना गुड़ का सेवन हाइब्लडप्रेशर को कंट्रोल करता है। जिन लोगों को खून की कमी हो उन्हें रोज थोड़ी मात्रा में गुड़ जरूर खाना चाहिए। इससे शरीर में हीमॉग्लोबिन का स्तर बढ़ता है।

दिल की बीमारी से परेशान लोगों के लिएये लाभदायक साबित होता है।

गुड़ खाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।

इसे खाने से बैठे हुए गले को ठीक किया जा सकता है।

गुड़ से बनी चाय सेहत के लिए अच्छी मानी जाती है, इसलिए चाय में चीनी की जगह गुड़ डालें।

अगर आपको खट्टी डकारें आती हैं, तो गुड़ में काला नमक मिलाकर चाटें. ऐसा करने से खट्टी डकारें आना बंद हो जाएंगी।

यह लड़कियों के मासिक धर्म को नियमित करने में मददगार होता है।

ज्यादातर लोगों को लगता है कि गर्मी के मौसम में इसका सेवन नहीं करना चाहिए। अगर आपको भी यही लगता है, तो ये आपकी गलत फहमी है। ये एक ऐसी चीज है, जिसे किसी भी मौसम में खाया जा सकता है।

गुड़ जितना पुराना होता है, उतना लाभदायक साबित होता है। इसलिए गुड़ के पुराना होने पर उसे फेंके नहीं

Liver Disease, Fatty or Cirrhosis .......

अगर आपका लिवर छोटा (Liver Cirrhosis) , कठोर हैं, सूजा(Fatty Liver) हुआ हैं। तो ये प्रयोग ऐसे cases में अचूक हैं। अगर आप अनेक दवाये खा खा कर परेशान हो गए हैं तो ये साधारण दिखने  वाला प्रयोग आपके लिए अचूक हैं। एक बार इसको ज़रूर अपनाये।

प्रयोग इस प्रकार हैं।
एक कागजी निम्बू (अच्छा पका हुआ) लेकर उसके दो टुकड़े कर ले। फिर बीज निकालकर आधे निम्बू के बिना काटे चार भाग करें पर टुकड़े अलग- अलग न हो। तत्पशचात एक भाग में काली मिर्च का चूर्ण, दूसरे में काला नमक (अथवा सेंधा नमक) तीसरे में सोंठ का चूर्ण और चौथे में मिश्री का चूर्ण (या शककर) भर दे। रात को प्लेट में रखकर ढक दे। प्रात: भोजन करने से एक घंटे पहले इस निम्बू की फांक को मंदी आंच या तवे पर गर्म करके चूस ले।

इस प्रयोग से होने वाले लाभ।
1. आवश्यकता अनुसार सात दिन से इक्कीस दिन लेने से लीवर सही होगा।

2. इससे यकृत विकार ठीक होने के साथ पेट दर्द और मुंह का जायका ठीक होगा।

3. यकृत के कठोर और छोटा होने के रोग (Cirrhosis of the liver) में अचूक है। पुराना मलेरिया, ज्वर, कुनैन या पारा के दुर्व्यवहार, अधिक मधपान, अधिक मिठाई खाना, अमेबिक पेचिश के रोगाणु का यकृत में प्रवेश आदि कारणों से यकृत रोगो की उत्पत्ति होती हैं। बुखार ठीक होने के बाद भी यकृत की बीमारी बनी रहती है और यकृत कठोर और पहले से बड़ा हो जाता हैं। रोग के घातक रूप ले लेने से यकृत का संकोचन (Cirrhosis of the liver) होता है। यकृत रोगो में आँखों व चेहरा रक्तहीन, जीभ सफ़ेद, रक्ताल्पता, नीली नसे, कमजोरी, कब्ज, गैस और बिगड़ा स्वाद, दाहिने कंधे के पीछे दर्द, शौच आंवयुक्त कीचड़ जैसा होना, आदि लक्षण प्रतीत होते है।

सावधानी।
दो सप्ताह तक चीनी अथवा मीठा का इस्तमाल न करे। अगर दूध मीठा पीते हो तो चीनी के बजाए दूध में चार-पांच मुनक्का डाल कर मीठा कर ले। रोटी भी कम खाए। अच्छा तो यह है की जब उपचार चल रहा हो तो रोटी बिलकुल न खाकर सब्जिया और फल से ही गुजारा कर ले। सब्जी में मसाला न डालें। टमाटर, पालक, गाजर, बथुआ, करेला, लोकी, आदि शाक-सब्जियां और पपीता, आंवला, जामुन, सेब, आलूबुखारा, लीची आदि फल तथा छाछ आदि का अधिक प्रयोग करें। घी और तली वस्तुओं का प्रयोग कम से कम करें। पंद्रह दिन में इस प्रयोग के साथ जिगर ठीक हो जायेगा।

इसके साथ ये सहायक उपचार ज़रूर करे।
1. जिगर के संकोचन (Liver Cirrhosis) में दिन में दो बार प्याज खाते रहने से भी लाभ होता है।

2. जिगर रोगो में छाछ ( हींग का बगार देकर, जीरा काली मिर्च और नमक मिलाकर ) दोपहर के भोजन के बाद सेवन करना बहुत लाभप्रद है।

3. आंवलों का रस 25 ग्राम या सूखे आंवलों का चूर्ण चार ग्राम पानी के साथ, दिन में तीन बार सेवन करने से पंद्रह से बीस दिन में यकृत के सारे दोष दूर हो जाते है।

4. एक सो ग्राम पानी में आधा निम्बू निचोड़कर नमक डालें (चीनी मत डाले) और इसे दिन में तीन बार पीने से जिगर की खराबी ठीक होती हैं।

5. जामुन के मौसम में 200-300 ग्राम बढ़िया और पके हुए जामुन प्रतिदिन खाली पेट खाने से जिगर की खराबी दूर हो जाती है।

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हेल्दी लिवर के लिए ज़रूर पिएं ये जूस......

लिवर हमारे शरीर के डी टॉक्सिफिकेशन में अहम भूमिका निभाता हैं। अगर आपका लिवर स्वस्थ और सही से काम नहीं कर रहा हैं तो जो विषाक्त पदार्थ आपके शरीर से बहार निकलने थे वो आपके शरीर में ही रह जाएंगे। और ये आपके शरीर के लिए प्राणघातक भी हो सकते हैं

नीचे दिए गए कुछ ड्रिंक्स को आप अपनी डेली डाइट में शामिल करे और लिवर को हेल्दी रखे।
1. सेब का सिरका।
एक गिलास गर्म पानी में एक चम्मच सेब का सिरका डालकर पीने से आपके लिवर को बहुत ताकत मिलेगी, इसको नियमित अपने भोजन में स्थान दे।

2. ऑरेंज जूस।
अगर आप ऑरेंज जूस पीते हैं तो ये आपके लिवर के स्वस्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, इस से आपका लिवर फैटी नहीं होगा, आपको कोलेस्ट्रोल और triglycerides से भी बचाएगा।

3. ग्रीन टी।
हर रोज़ एक या दो कप ग्रीन टी ज़रूर पिए, ग्रीन टी में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट लिवर को डी टॉक्सिफिकेशन में मदद करता हैं।

4. नीम्बू का रस।
हर सुबह एक गिलास गर्म पानी में आधा निम्बू का रस निचोड़ कर नियमित पिए, इस से आपके लिवर के सभी विकार सही होंगे, अगर आपका लिवर छोटा हैं, कठोर हैं, फैटी हैं या सूज गया हैं। तो निम्बू आपके लिए बेहद अहम हैं। नीम्बू में साइट्रिक एसिड होता हैं जो लिवर को बाइल बनाने में मदद करता हैं, जिस से शरीर डी टॉक्सिफाई होता हैं।


5. सब्जियों का रस।
सब्जियों का रस अपने आप में मिनरल्स, विटामिन्स और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होता हैं। इनको भी अपनी डेली डाइट में शामिल ज़रूर करे। टमाटर का रस लाइकोपीन का बहुत अच्छा स्त्रोत हैं, ये एक प्रकार का एंटी ऑक्सीडेंट हैं जो प्रोस्टेट कैंसर, हार्ट अटैक, और अन्य कैंसर की सम्भावना को कम करता हैं, अजवायन गाजर ककड़ी, खीरा, चुकंदर, शिमला मिर्च, अदरक इन सब का जूस स्वाद अनुसार बना कर पिया जा सकता हैं। डिब्बा बंद जूस से परहेज करे और जहाँ तक संभव हो ये घर पर ही बनाये।

6. पानी।
दिन में कम से कम 2 लीटर पानी ज़रूर पिए। पानी पीने से लिवर और किडनी द्वारा निकाले गए विषाक्त पदार्थ हमारे पेशाब के ज़रिये शरीर से बाहर निकल जाते हैं। ऐसा ना करने से ये विषाक्त पदार्थ हमारे खून में दोबारा मिल जाते हैं। और इनको दोबारा मेहनत करनी पड़ती हैं, जिस से इनके डैमेज होने का खतरा बढ़ जाता हैं।

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लीवर की देखभाल के लिए सरल घरेलु नुस्खे।

आज कल चंहु और लीवर के मरीज हैं, किसी को पीलिया हैं, किसी का लीवर सूजा हुआ हैं, किसी का फैटी हैं, और डॉक्टर बस नियमित दवाओ पर चला देते हैं मरीज को, मगर आराम किसी को मुश्किल से ही आते देखा हैं।

लीवर हमारे शरीर का सबसे मुख्‍य अंग है, यदि आपका लीवर ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर पा रहा है तो समझिये कि खतरे की घंटी बज चुकी है। लीवर की खराबी के लक्षणों को अनदेखा करना बड़ा ही मुश्‍किल है और फिर भी हम उसे जाने अंजाने अनदेखा कर ही देते हैं।
* लीवर की खराबी होने का कारण ज्‍यादा तेल खाना, ज्‍यादा शराब पीना और कई अन्‍य कारणों के बारे में तो हम जानते ही हैं। हालाकि लीवर की खराबी का कारण कई लोग जानते हैं पर लीवर जब खराब होना शुरु होता है तब हमारे शरीर में क्‍या क्‍या बदलाव पैदा होते हैं यानी की लक्षण क्‍या हैं, इसके बारे में कोई नहीं जानता।

वे लोग जो सोचते हैं कि वे शराब नहीं पीते तो उनका लीवर कभी खराब नहीं हो सकता तो वे बिल्‍कुल गलत हैं।

* हम आपको कुछ परीक्षण बताएंगे जिससे आप पता लगा सकते हैं कि क्‍या आपका लीवर वाकई में खराब है। कोई भी बीमारी कभी भी चेतावनी का संकेत दिये बगैर नहीं आती, इसलिये आप सावधान रहें।

* मुंह से बदबू -यदि लीवर सही से कार्य नही कर रहा है तो आपके मुंह से गंदी बदबू आएगी। ऐसा इसलिये होता है क्‍योकि मुंह में अमोनिया ज्‍याद रिसता है।

* लीवर खराब होने का एक और संकेत है कि स्‍किन क्षतिग्रस्‍त होने लगेगी और उस पर थकान दिखाई पडने लगेगी। आंखों के नीचे की स्‍किन बहुत ही नाजुक होती है जिस पर आपकी हेल्‍थ का असर साफ दिखाई पड़ता है।

* पाचन तंत्र में खराबी यदि आपके लीवर पर वसा जमा हुआ है और या फिर वह बड़ा हो गया है, तो फिर आपको पानी भी नहीं हजम होगा।

* त्‍वचा पर सफेद धब्‍बे यदि आपकी त्‍वचा का रंग उड गया है और उस पर सफेद रंग के धब्‍बे पड़ने लगे हैं तो इसे हम लीवर स्‍पॉट के नाम से बुलाएंगे।

* यदि आपकी पेशाब या मल हर रोज़ गहरे रंग का आने लगे तो लीवर गड़बड़ है। यदि ऐसा केवल एक बार होता है तो यह केवल पानी की कमी की वजह से हो सकता है।

* यदि आपके आंखों का सफेद भाग पीला नजर आने लगे और नाखून पीले दिखने लगे तो आपको जौन्‍डिस हो सकता है। इसका यह मतलब होता है कि आपका लीवर संक्रमित है।

* लीवर एक एंजाइम पैदा करता है जिसका नाम होता है बाइल जो कि स्‍वाद में बहुत खराब लगता है। यदि आपके मुंह में कडुआहर लगे तो इसका मतलब है कि आपके मुंह तब बाइल पहुंच रहा है।

* जब लीवर बड़ा हो जाता है तो पेट में सूजन आ जाती है, जिसको हम अक्‍सर मोटापा समझने की भूल कर बैठते हैं।

* मानव पाचन तंत्र में लीवर एक म‍हत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है। विभिन्‍न अंगों के कार्यों जिसमें भोजन चयापचय, ऊर्जा भंडारण, विषाक्त पदार्थों को बाहर निकलना, डिटॉक्सीफिकेशन, प्रतिरक्षा प्रणाली का समर्थन और रसायनों का उत्‍पादन शामिल हैं। लेकिन कई चीजें जैसे वायरस, दवाएं, आनुवांशिक रोग और शराब लिवर को नुकसान पहुंचाने लगती है। लेकिन यहां दिये उपायों को अपनाकर आप अपने लीवर को मजबूत और बीमारियों से दूर रख सकते हैं।

करे ये घरेलू कुछ उपाय :-

* हल्‍दी लीवर के स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार करने के लिए अत्‍यंत उपयोगी होती है। इसमें एंटीसेप्टिक गुण मौजूद होते है और एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करती है। हल्दी की रोगनिरोधन क्षमता हैपेटाइटिस बी व सी का कारण बनने वाले वायरस को बढ़ने से रोकती है। इसलिए हल्‍दी को अपने खाने में शामिल करें या रात को सोने से पहले एक गिलास दूध में थोड़ी सी हल्दी मिलाकर पिएं

* सेब का सिरका, लीवर में मौजूद विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। भोजन से पहले सेब के सिरके को पीने से शरीर की चर्बी घटती है। सेब के सिरके को आप कई तरीके से इस्‍तेमाल कर सकते हैं- एक गिलास पानी में एक चम्मच सेब का सिरका मिलाएं, या इस मिश्रण में एक चम्मच शहद मिलाएं। इस म‍िश्रण को दिन में दो से तीन बार लें।

* आंवला विटामिन सी के सबसे संपन्न स्रोतों में से एक है और इसका सेवन लीवर की कार्यशीलता को बनाये रखने में मदद करता है। अध्ययनों ने साबित किया है कि आंवला में लीवर को सुरक्षित रखने वाले सभी तत्व मौजूद हैं। लीवर के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए आपको दिन में 4-5 कच्चे आंवले खाने चाहिए.

* पपीता लीवर की बीमारियों के लिए सबसे सुरक्षित प्राकृतिक उपचार में से एक है, विशेष रूप से लीवर सिरोसिस के लिए। हर रोज दो चम्मच पपीता के रस में आधा चम्मच नींबू का रस मिलाकर पिएं। इस बीमारी से पूरी तरह निजात पाने के लिए इस मिश्रण का सेवन तीन से चार सप्ताहों के लिए करें.

* सिंहपर्णी जड़ की चाय लीवर के स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने वाले उपचारों में से एक है। अधिक लाभ पाने के लिए इस चाय को दिन में दो बार पिएं। आप चाहें तो जड़ को पानी में उबाल कर, पानी को छान कर पी सकते हैं। सिंहपर्णी की जड़ का पाउडर बड़ी आसानी से मिल जाएगा।

* लीवर की बीमारियों के इलाज के लिए मुलेठी का इस्‍तेमाल कई आयुर्वेदिक औषधियों में किया जाता है। इसके इस्‍तेमाल के लिए मुलेठी की जड़ का पाउडर बनाकर इसे उबलते पानी में डालें। फिर ठंड़ा होने पर छान लें। इस चाय रुपी पानी को दिन में एक या दो बार पिएं।

* फीटकोंस्टीटूएंट्स की उपस्थिति के कारण, अलसी के बीज हार्मोंन को ब्‍लड में घूमने से रोकता है और लीवर के तनाव को कम करता है। टोस्‍ट पर, सलाद में या अनाज के साथ अलसी के बीज को पीसकर इस्‍तेमाल करने से लिवर के रोगों को दूर रखने में मदद करता है

* एवोकैडो और अखरोट को अपने आहार में शामिल कर आप लीवर की बीमारियों के आक्रमण से बच सकते हैं। एवोकैडो और अखरोट में मौजूद ग्लुटथायन, लिवर में जमा विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालकर इसकी सफाई करता है।

* पालक और गाजर का रस का मिश्रण लीवर सिरोसिस के लिए काफी लाभदायक घरेलू उपाय है। पालक का रस और गाजर के रस को बराबर भाग में मिलाकर पिएं। लीवर की मरम्मत के लिए इस प्राकृतिक रस को रोजाना कम से कम एक बार जरूर पिएं

* सेब और पत्तेदार सब्जियों में मौजूद पेक्टिन पाचन तंत्र में उपस्थित विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल कर लीवर की रक्षा करता है। इसके अलावा, हरी सब्जियां पित्त के प्रवाह को बढ़ाती हैं।

* एक पौधा और है जो अपने आप उग आता है , जिसकी पत्तियां आंवले जैसी होती है. इन्ही पत्तियों के नीचे की ओर छोटे छोटे फुल आते है जो बाद में छोटे छोटे आंवलों में बदल जाते है . इसे भुई आंवला कहते है. इस पौधे को भूमि आंवला या भू- धात्री भी कहा जाता है .यह पौधा लीवर के लिए बहुत उपयोगी है.इसका सम्पूर्ण भाग , जड़ समेत इस्तेमाल किया जा सकता है.तथा कई बाज़ीगर भुई आंवला के पत्ते चबाकर लोहे के ब्लेड तक को चबा जाते हैं . ये यकृत ( लीवर ) की यह सबसे अधिक प्रमाणिक औषधि है . लीवर बढ़ गया है या या उसमे सूजन है तो यह पौधा उसे बिलकुल ठीक कर देगा . बिलीरुबिन बढ़ गया है , पीलिया हो गया है तो इसके पूरे पढ़े को जड़ों समेत उखाडकर , उसका काढ़ा सुबह शाम लें . सूखे हुए पंचांग का 3 ग्राम का काढ़ा सवेरे शाम लेने से बढ़ा हुआ बाईलीरुबिन ठीक होगा और पीलिया की बीमारी से मुक्ति मिलेगी

एलर्जी: कारण, लक्षण एवं उपचार

एलर्जी या अति संवेदनशीलता आज की लाइफ में बहुत तेजी से बढ़ती हुई सेहत की बड़ी परेशानी है कभी कभी एलर्जी गंभीर परेशानी का भी सबब बन जाती है जब हमारा शरीर किसी पदार्थ के प्रति अति संवेदनशीलता दर्शाता है तो इसे  एलर्जी कहा जाता है और जिस पदार्थ के प्रति प्रतिकिर्या दर्शाई जाती है उसे एलर्जन कहा जाता है l

एलर्जी  के कारण –

                           एलर्जी किसी भी पदार्थ से ,मौसम के बदलाव से या आनुवंशिकता जन्य हो  सकती है एलर्जी के कारणों में धूल ,धुआं ,मिटटी पराग कण, पालतू या अन्य जानवरों के संपर्क में आने से ,सौंदर्य प्रशाधनों से ,कीड़े बर्रे आदि के काटने से,खाद्य पदार्थों से एवं कुछ अंग्रेजी दवाओ के उपयोग से एलर्जी हो सकती है सामान्तया एलर्जी नाक ,आँख ,श्वसन  प्रणाली ,त्वचा  व खान पान से सम्बंधित होती है किन्तु कभी कभी पूरे शरीर में एक साथ भी हो सकती है जो की गंभीर हो सकती है l

 स्थानानुसार  एलर्जी  के  लक्षण  -

 नाक    की  एलर्जी -नाक  में  खुजली होना ,छीकें आना ,नाक  बहना ,नाक  बंद होना  या  बार  बार जुकाम  होना आदि lआँख की एलर्जी -आखों में लालिमा ,पानी आना ,जलन होना ,खुजली आदि lश्वसन संस्थान की एलर्जी -इसमें खांसी ,साँस लेने में तकलीफ एवं अस्थमा जैसी गंभीर समस्या हो सकती  है lत्वचा की एलर्जी -त्वचा की एलर्जी काफी कॉमन है और बारिश का मौसम त्वचा की एलर्जी के लिए बहुत ज्यादा    मुफीद है त्वचा की एलर्जी में त्वचा पर खुजली होना ,दाने निकलना ,एक्जिमा ,पित्ती  उछलना आदि होता है lखान पान से एलर्जी -बहुत से लोगों को खाने पीने  की चीजों जैसे दूध ,अंडे ,मछली ,चॉकलेट  आदि से एलर्जी  होती  है lसम्पूर्ण शरीर की एलर्जी -कभी कभी कुछ लोगों में एलर्जी से गंभीर स्तिथि उत्पन्न हो जाती है और सारे शरीर में  एक साथ गंभीर लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं ऐसी स्तिथि में तुरंत हॉस्पिटल लेकर जाना चाहिए lअंग्रेजी दवाओं से एलर्जी-कई अंग्रेजी दवाएं भी एलर्जी का सबब बन जाती हैं जैसे पेनिसिलिन का  इंजेक्शन जिसका रिएक्शन बहुत खतरनाक होता है और मौके पर ही मोत हो जाती है इसके अलावा  दर्द की गोलियां,सल्फा ड्रग्स एवं कुछ एंटीबायोटिक दवाएं भी सामान्य से गंभीर एलर्जी के लक्षण उत्पन्न  कर सकती हैं lमधु मक्खी ततैया आदि का काटना –इनसे भी कुछ लोगों में सिर्फ त्वचा की सूजन और दर्द की  परेशानी होती है जबकि कुछ लोगों को  इमर्जेन्सी में जाना पड़ जाता है l

एलर्जी  से  बचाव -


एलर्जी से बचाव ही एलर्जी का सर्वोत्तम इलाज है इसलिए एलर्जी से बचने के लिए इन उपायों का पालन करना चाहिए 1.य़दि आपको एलर्जी है तो सर्वप्रथम ये पता करें की आपको किन किन चीजों से एलर्जी है इसके लिए आप ध्यान  से अपने खान पान और रहन सहन को वाच करें lघर के आस पास गंदगी ना होने दें  lघर में अधिक से  अधिक  खुली और ताजा हवा आने का मार्ग  प्रशस्त करें  lजिन खाद्य  पदार्थों  से एलर्जी है उन्हें न खाएं lएकदम गरम से ठन्डे और ठन्डे से गरम वातावरण में ना जाएं lबाइक चलाते समय मुंह और नाक पर रुमाल बांधे,आँखों पर धूप का अच्छी क़्वालिटी का चश्मा  लगायें lगद्दे, रजाई,तकिये के कवर एवं चद्दर आदि समय समय पर गरम पानी से धोते रहे lरजाई ,गद्दे ,कम्बल आदि को समय समय पर धूप दिखाते रहे lपालतू  जानवरों से एलर्जी है तो उन्हें घर में ना रखें lज़िन पौधों के पराग कणों से एलर्जी है उनसे दूर रहे lघर में मकड़ी वगैरह के जाले ना लगने दें समय समय पर साफ सफाई करते रहे lधूल मिटटी से बचें ,यदि धूल मिटटी भरे वातावरण में काम करना ही पड़ जाये तो फेस मास्क पहन कर काम करेंlनाक की एलर्जी -जिन लोगों को नाक की एलर्जी बार बार होती है उन्हें सुबह भूखे पेट 1 चम्मच गिलोय और 2 चम्मच आंवले के रस में 1चम्मच शहद मिला कर कुछ समय तक लगातार लेना चाहिए इससे नाक की एलर्जी में आराम आता है ,सर्दी में घर पर बनाया हुआ या किसी अच्छी कंपनी का च्यवनप्राश  खाना भी नासिका एवं साँस की   एलर्जी से बचने में सहायता करता है आयुर्वेद की दवा सितोपलादि पाउडर एवं गिलोय पाउडर को 1-1 ग्राम की मात्रा   में सुबह शाम भूखे पेट शहद के साथ कुछ समय तक लगातार लेना भी नाक एवं श्वसन संस्थान की एलर्जी में बहुत आराम देता हैजिन्हे  बार बार त्वचा की एलर्जी होती है उन्हें मार्च अप्रेल के महीने में जब नीम के पेड़ पर कच्ची  कोंपलें आ रही हों उस समय 5-7 कोंपलें 2-3 कालीमिर्च के साथ अच्छी तरह चबा चबा कर 15-20 रोज तक खाना  त्वचा के रोगों से बचाता है, हल्दी से बनी आयुर्वेद की दवा हरिद्रा खंड भी त्वचा के एलर्जी जन्य रोगों में बहुत गुणकारी  है इसे किसी आयुर्वेद चिकित्सक की राय से सेवन कर सकते हैं l

             सभी एलर्जी जन्य रोगों में खान पान और रहन सहन का बहुत महत्व है इसलिए अपना खान पान और रहन सहन ठीक रखते हुए यदि ये उपाय अपनाएंगे  तो अवश्य एलर्जी से लड़ने में सक्षम होंगे और एलर्जी जन्य रोगों से बचे रहेंगे एलर्जी जन्य रोगों में अंग्रेजी दवाएं रोकथाम तो करती हैं लेकिन बीमारी को जड़ से ख़त्म नहीं करती है जबकि आयुर्वेद की दवाएं यदि नियम पूर्वक ली जाती है तो रोगों को जड़ से ख़त्म करने की ताकत रखती हैं l

Monday 17 October 2016

पेट की गैस के घरेलू उपचार


उदर-वायु एक आम तथा कभी न कभी हर किसी को होने वाली समस्या है। पेट गैस को अधोवायु भी कहते हैं। यह तब होती है, जब शरीर में भारी मात्रा में गैस भर जाती है। इस पेट में रोकने से कई बीमारियां हो सकती हैं, जैसे एसिडिटी, कब्ज, पेटदर्द, सिरदर्द, जी मिचलाना, बेचैनी आदि। पेट में गैस बनने के कई कारण हो सकते हैं, जिसके बारे में हम यहां चर्चा कर रहे हैं।
कारण
* पेट में बैक्टीरिया की ‘ओवरप्रोड्क्शन’ होना।
* जिस आहार में बहुत ज्यादा फाइबर होता है।
* मिर्च-मसाला, तली-भुनी चीजें ज्यादा खाने से।
* पाचन संबंधी विकार।
* बींस, राजमा, छोल, लोबिया, मोठ, उड़द की दाल, फास्ट फूड, ब्रेड और किसी-किसी को दूध या भूख से ज्यादा खाने से।
* खाने के बाद कोल्ड ड्रिंक लेने से, क्योंकि इसमें गैसीय तत्व होते हैं।
* बासी खाना खाने से और खराब पानी पीने से भी गैस हो जाती है।
घरेलू उपचार
* भोजन के साथ सलाद के रूप में टमाटर का प्रतिदिन सेवन करना लाभप्रद होता है। यदि उस पर काला नमक डालकर खाया जाये तो लाभ अधिक मिलता है। पथरी के रोगी को कच्चे टमाटर का सेवन नहीं करना चाहिए।
* आधा चम्मच सूखा अदरक पाउडर लें और उसमें एक चुटकी हींग और सेंधा नमक मिलाकर एक कप गर्म पानी में डालकर पीएं।
* गैस के कारण सिरदर्द होने पर चाय में काली मिर्च पाउडर डालें। वही चाय पीने से लाभ मिलता है।
* 2 चम्मच ब्रैंडी को गर्म पानी में कप में डालकर रात को सोने से पहले पिएं।
* स्लाइस की हुई कुछ ताजा अदरक नींबू के रस में भिगोकर भोजन के बाद चूमने से राहत मिलेगी।
* पेट में या आंतों में एेंठन होने पर एक छोटा चम्मच अजवाइन में थोड़ा नमक मिलाकर गर्म पानी में लेने पर लाभ मिलता है। बच्चों को अजवाइन थोड़ी दें।
* भोजन के एक घंटे बाद 1 चम्मच काली मिर्च, 1 चम्मच सूखी अदरक और 1 चम्मच इलायची के दानों को आधा चम्मच पानी के साथ मिलाकर पिएं।
* वायु समस्या होने पर हरड़ के चूर्ण को शहद के साथ मिक्स कर खाना चाहिए।
* अजवायन, जीरा, छोटी हरड़ और काला नमक बराबर मात्रा में पीस लें। बड़ों के लिए दो से छह ग्राम, खाने के तुरन्त बाद पानी से लें। बच्चों के लिए मात्रा कम कर दें।
* अदरक के छोटे टुकड़े कर उस पर नमक छिड़ककर दिन में कई बार उसका सेवन करें। गैस परेशानी से छुटकारा मिलेगा, शरीर हल्का होगा और भूख खुलकर लगेगी।
योग
* वज्रासन : खाने के बाद घुटने मोड़कर बैठ जायें। दोनों हाथों को घुटनों पर रख लें। 5 से 15 मिनट तक करें।

बरगद का ढूध ....

1.बल-वीर्य की वृद्धिः
बड़ के कच्चे फल छाया में सुखा के चूर्ण बना लें। बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर रख लें। 10 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम दूध के साथ 40 दिन तक सेवन करने से बल-वीर्य और स्तम्भन (वीर्यस्राव को रोकने की) शक्ति में भारी वृद्धि होती है।

2.निम्न रक्तचाप में:
10 बूँद बरगद का दूध, लहसुन का रस आधा चम्मच तथा तुलसी का रस आधा चम्मच इन तीनों को मिलाकर चाटने से निम्न रक्तचाप में आराम मिलता है।

3.छाइयाँ :
बरगद का दूध चेहरे पर प्रतिदिन मलें। बीस मिनट बाद ठंडे पानी से धो डालें। बरगद के दूध में बहुत शक्ति व शीतलता होती है। इससे एक सप्ताह में आपकी छाइयाँ समाप्त हो

4.गाँठ:
शरीर में कहीं गठान हो तो प्रारम्भिक स्थिति में तो गाँठ बैठ जाती है और बढ़ी हुई स्थिति में पककर फूट जाती है।

5.अतिसार में:
दूध को नाभि में भरकर थोड़ी देर लेटने से अतिसार में आराम होता है।

6.बिवाइयाँ:
हाथ पैर में बिवाइयाँ फटी हों तो उसमें बरगद का दूध लगाने से ठीक हो जाती हैं।

7.दाँत का दर्द :
दाँतों में बड़ का दूध लगाने से दाँत का दर्द समाप्त हो जाता है।.

आयुर्वेदानुसार गूलर के निम्न औषधीय उपयोग हैं –

1.   रक्त प्रदर .. गूलर के फलों को सुखाकर उसे पीसकर उसका चूर्ण चीनी में मिलाकर सुबह शाम खाया जाता है इससे हमारा रक्त प्रदर ठीक हो जाता है. ..रक्त प्रदर में हमें दूध का सेवन करना चाहिए....पके हुए गूलर के बीज निकालकर उसे पानी के साथ पीसकर उसका रस निकालकर रस में शहद मिलाकर खाने से हमारा रक्त प्रदर ठीक हो जाता है.

2. सूखा रोग – आयुर्वेदानुसार गूलर का दूध मां के या गाय, बकरी या भैंस के दूध के साथ मिलाकर पीने से हमारा शरीर सूखे रोग से मुक्त रहता है.

3. खुनी बवासीर  ....इस दशा में हमें कच्चे गूलर की सब्जी खानी चाहिए.......गूलर के सूखे फलों को पीसकर, छानकर उसमें चीनी मिलाकर प्रतिदिन खाने से हम खुनी बवासीर रोग से मुक्त हो जाते है ....... खुनी बवासीर में हमें 10 बूँद गूलर का दूध 1 चम्मच पानी में मिलाकर पीना चाहिए.

3. मधुमेह – इसके फल को पीसकर पानी के साथ पीने से हम मधुमेह रोग से मुक्त हो जाते हैं.

4. दन्त रोग – दंत रोग में हमें गूलर के 2 – 3 फल पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर इसके काढ़े से कुल्ला करना चाहिए इससे हमारे दांत व मसूढ़े स्वस्थ तथा मजबूत रहते है.

5. निमोनिया – निमोनिया होने पर गूलर के दूध को पानी में मिलाकर काढ़ा बनाकर पिलाया जाता है.

6. गर्भपात एवं गर्भाशय की पीड़ा – इस दशा में हमें गूलर के काढ़े में चीनी तथा चावल का धोवन मिलाकर पीना चाहिए.

7. फोड़ा फुन्सी – फोड़ा फुन्सी होने पर हमें फोड़े फुंसियों पर गूलर का दूध लगाना चाहिए.

8. मंदग्नि  – मंदाग्नि रोग होने पर गूलर के ताजे पत्तों को पीसकर, गोली बनाकर छाया में सुखाकर छाछ के साथ खाना खाने के समय लिया जाता है.

9. मुह के छाले – गूलर के पत्तों की गोलियों को चूसने से हमारे मुह के छाले छाले ठीक हो जाते हैं.

10. मोच या हड्डी टूटना – मोच आने पर या हड्डी टूटने पर गूलर की छाल, गेहूं भीगाकर, पीसकर देशी घी में मिलाकर थोडा गर्म करके लेप लगाया जाता है इससे लगभग 1 सप्ताह में टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है.

11. रक्त स्राव – इस अवस्था में पके हुए गूलर को पीसकर शहद में मिलाकर 20 -25 दिनों तक खाया जाता है.

12. नकसीर – इसमें गूलर के फलों को सुखाकर उसे पीसकर, छानकर, चीनी मिलाकर रोज पीने से नकसीर का रोग ख़त्म हो जाता है.

14     नासूर – इसमें पके हुए गूलर के फलों को, गूलर के छाल के रस में घोंटकर, धुप में सुखाकर, इसकी गोली बनाकर दिन में 4 बार 2 - 2 गोली शहद में मिलाकर चाटना चाहिए, फिर बकरी का दूध पीना चाहिए.

15     आमातिसार – आमातिसार रोग होने पर गूलर के जड को पीसकर खाना चाहिए.

16     श्वेत प्रदर – श्वेत प्रदर में हमें गूलर का रस पीना चाहिए.

17     पित्त ज्वर – पित्त ज्वर होने पर हमें गूलर के जड़ की छाल के हिम को चीनी में मिलाकर पीना चाहिए.u

18     पित्त विकार – पित्त विकार होने पर गूलर के पत्तों को पीसकर, शहद के साथ चाटा जाता है.

आकं (मदार)

आयुर्वेदिक चिकित्सा में पारद को बड़ा ही महत्व दिया गया है और शिव को प्रिय होने के कारण इसे रसेन्द्र नाम से भी जाना गया है। क्या आपने कभी सोचा है, कि ऐसी कोई वनस्पति है, जिसे भगवान् शिव ने उसके औषधीय गुणों के कारण पारे के समान माना है। जानना चाहेंगे आप तो हम बताते हैं ,आपको उस दिव्य वनस्पति के बारे में जिसका नाम मदार.(आकं)है। आपने मदार मालाय जय गौरी शंकराय नाम से लोगों को मंत्रउच्चारित करते भी सुना होगा हाँ इसमें भी मदार के महिमा का बखान किया गया है। इस पौधे की पहचान और गुणों की संक्षिप्त चर्चा की जा रही है जिससे आप इसके गूढ़ उपयोगों से साक्षात रूबरू होंगे।

मदार के पौधे प्राय: जनसामान्य में विषैले पौधे के रूप में जाने जाते हैं। हाँ, आयुर्वेद में भी इसे उपविष की संज्ञा दी गई है। आइए अब आपको परिचित कराते हैं इस पौधे के औषधीय गुणों से जिसे जानकर आप अचरज में पड़ जाएंगे।

-यदि आप सिर में फंगल संक्रमण के कारण होने वाली खुजली से परेशान हैं तो आप इसका अर्क (दुग्ध ) का स्थानिक प्रयोग करें और लाभ देखें। -मदार के पीले पके पत्तों पर घी चुपड़ कर धीमी आंच में गर्म कर उससे रस निकालकर दो से तीन बूँद कान में डालने से कान के रोगों में बड़ा ही लाभ मिलता है।

-दांत के किसी भी प्रकार के दर्द में मदार के दूध में हल्का सैंधा नमक मिलाकर पीड़ा वाले स्थान पर लगा देने मात्र से दंतशूल में लाभ मिलता है।

 -आक के आठ से दस पत्तों में पांच से दस ग्राम काली मिर्च मिलाकर अच्छी तरह पीसकर ,थोड़ी हल्दी मिलाकर मंजन करने से दांत को मजबूती मिलती है।

-आधे सिर के दर्द में पीले पड़े हुए मदार के एक से दो पत्तों के रस को नाक में टपका देने से लाभ मिलता है।

-दमा के रोगियों में मदार के फूल एवं लौंग 10 से 20 ग्राम क़ी मात्रा में काली मिर्च के पाउडर 2.5 ग्राम की मात्रा के साथ अच्छी तरह पीसकर सुबह शाम 250 मिलीग्राम की मात्रा की एक एक गोली देने से भी लाभ मिलता है।

-मदार की जड़ को सुखाकर जलाकर भस्मीकृत कर प्राप्त राख को शहद के साथ 2.5 से 5 ग्राम की मात्रा में लेने खांसी और सांस की तकलीफ में लाभ मिलता है।

-मदार के फूल को सुखाकर त्रिकटु (सौंठ ,मरीच और पिप्पली ) और यवक्षार के साथ मिलाकर बारिक पीस लें।अदरक स्वरस के साथ पीस लें और इसकी छोटी-छोटी गोलियां बना लें। बस तैयार हो गई गले की खरास के लिए चूसने वाली दवा इससे आपका गला ठीक रहता है और सूखी खांसी में भी लाभ मिलता है।

-यदि भोजन नहीं पच रहा हो अर्थात अजीर्ण जैसी समस्या उत्पन्न हो रही हो तो मदार के पत्तों का स्वरस निकाल लें और इसमें बराबर मात्रा में एलोवेरा (घृतकुमारी ) के रस को शक्कर के साथ मिलाकर पका लें। जब चीनी की चासनी बन जाए तो इसे ठंडा कर किसी साफ सी कांच की बोतल में भर लें।

-जौंडिस (कामला )    पीलीया के रोगियों में मदार की एक कोपल को खाली पेट पान के पत्ते में रखकर चबाने से लाभ मिलता है।

 -यदि पुराना घाव जो ठीक न हो रहा हो या नाडी व्रण/भगंदर जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई हो तो मदार का दूध 5 से 10 मिली की मात्रा में 2.5 ग्राम दारुहरिद्रा के साथ मिलाकर रूई के बत्ती बनाकर घाव या नासूर पर लगाने मात्र से लाभ मिलता है।

-मदार के दूध में शुद्ध शहद और गाय का घी बराबर मात्रा में मिलाकर इसे खरल में चार से पांच घंटे तक घोटकर 2.5 से 5 ग्राम की मात्रा में खाने से नपुंसकता दूर होती है। -

पसलियों या मांसपेशियों की दर्द में मदार के दूध में थोड़ा काला तिल मिलाकर जब लेप सा तैयार हो जाए तो इसे हल्का गर्म कर दर्द वाले स्थान पर लेप कर दें और ठीक इसके ऊपर आक के पत्तों को तिल या सरसों के तेल में चुपड़कर तवे पर हल्का सा गर्म कर प्रभावित स्थान पर बाँध दे।दर्द में फौरन आराम मिलेगा।

-यदि आप जोड़ों की दर्द से हों परेशान तो बस मदार के फूल को सौंठ,काली मिर्च ,हरिद्रा और नागरमोथा के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें और इसे एक से दो गोली सुबह-शाम चिकित्सक के निर्देशन में लें इससे आपको निश्चित लाभ मिलेगा।

-मदार के पत्तों को कूटकर पोटली बनाकर ,घी लगाकर तवे पर गर्म कर (पोटली स्वेदन ) करने से भी दर्द में आराम मिलता है।

-कहीं भी खुजली या दाद जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही हो तो मदार के फूलों के गुच्छों को तोडऩे से निकले दूध में नारियल का तेल मिलाकर लगाने से खुजली दूर हो जाती है। -

त्वचा के रोगों जैसे एक्जीमा आदि में मदार के दूध को 50 मिली की मात्रा में लेकर इससे दुगनी मात्रा में सरसों का तेल ( 100 मिली ) लेकर ,हल्दी के पाउडर 100 ग्राम और मैनसिल 10 ग्राम क़ी मात्रा में एक साथ खरल में दूध के साथ मिलाकर लेप सा बनाकर ,पुन: इसमें तिल तेल एक लीटर और इतना ही पानी मिलाकर पकायें, जब पानी उड़ जाय और तेल सिद्ध हो जाय तो इसे प्रभावित स्थान पर लगाने से चर्म रोगों में बड़ा लाभ मिलता है।

-मदार के पत्तों के रस को लगभग 1000 मिली की मात्रा में लेकर कच्ची हल्दी का रस निकालकर 250 मिली की मात्रा में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं ,जब तेल शेष रहे तो इसे छान कर पुराने से पुराने घाव जिससे मवाद आ रहा हो में लगायें और लाभ देखें -आग से जले हुए घाव में भी लगभग तीन ग्राम मदार के पत्तों की राख को तिल के तेल के साथ मिलाकर खरल में पीसकर इसमें 2.5 ग्राम चूने का पानी मिलाकर जले हुए स्थान पर लेपित करें इससे अग्निदग्ध व्रण में लाभ मिलता है।

-मदार के दूध की 5 बूँद .कच्चे पपीते का रस 10 बूँद और चिरायता का रस 15 बूँद एक साथ गौमूत्र के साथ मिलाकर पुराने बुखार से पीड़ित रोगी में देने से लाभ मिलता है।

नोट- सावधानी से चिकित्सक के निर्देशन में हो तो बेहतर होगा।

अजवाइन के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ

हिचकी, जी मचलाना, डकार, बदहजमी आदि में गुणकारी।
पेट खराब होने पर इसे एक कम गरम पानी के साथ पियें।
ठंड लगने पर थोड़ी सी अजावाइन को अच्छी तरह से चबाएं।
मुंह की दुर्गध के लिए अजवाइन को पानी में उबालकर‍ लें।


भारतीय खानपान में अजवाइन का प्रयोग सदियों से होता आया है। आयुर्वेद के अनुसार अजवाइन पाचन को दुरुस्त रखती है। यह कफ, पेट तथा छाती का दर्द और कृमि रोग में फायदेमंद होती है। साथ ही हिचकी, जी मचलाना, डकार, बदहजमी, मूत्र का रुकना और पथरी आदि बीमारी में भी लाभप्रद होती है।

आयुर्वेद के अनुसार अजवाइन पाचक, रुचिकारक, तीक्ष्ण, गर्म, चटपटी, कड़वी और पित्तवर्द्धक होती है। पाचक औषधियों में इसका बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। अकेली अजवाइन ही सैकड़ों प्रकार के अन्न को पचाने वाली होती है। आइए हम आपको अजवाइन के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ के बारे में जानकारी देते हैं।


सर्दी जुकाम में
बंद नाक या सर्दी जुकाम होने पर अजवाइन को दरदरा कूट कर महीन कपड़े में बांधकर सूंघें। सर्दी में ठंड लगने पर थोड़ी-सी अजावाइन को अच्छी तरह चबाएं और चबाने के बाद पानी के साथ निगल लें। ठंड से राहत मिलेगी।

पेट खराब होने पर
पेट खराब होने पर अजवाइन को चबाकर खाएं और एक कप गर्म पानी पीएं। पेट में कीड़े हैं तो काले नमक के साथ अजवाइन खाएं। लीवर की परेशानी है तो 3 ग्राम अजवाइन और आधा ग्राम नमक भोजन के बाद लेने से काफी लाभ होगा। पाचन तंत्र में किसी भी तरह की गड़बड़ी होने पर मट्ठे के साथ अजवाइन लें, आराम मिलेगा।

वजन कम करें
अजवाइन मोटापे कम करने में भी उपयोगी होती है। रात में एक चम्मच अजवाइन को एक गिलास पानी में भिगो दें। सुबह छान कर एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीने से लाभ होता है। इसके नियमित सेवन से मोटापा कम होता है।

मसूड़ों में सूजन

मसूड़ों में सूजन होने पर अजवाइन के तेल की कुछ बूंदों को गुनगुने पानी में डालकर कुल्ला करने से सूजन कम होती है। सरसों के तेल में अजवाइन डाल कर गर्म करें। इससे जोड़ों की मालिश करने पर दर्द से आराम मिलेगा।


मुंह की दुर्गंध
मुंह से दुर्गध आने पर थोड़ी सी अजवाइन को पानी में उबाल लें। इस पानी से दिन में दो से तीन बार कुल्ला करने पर मुंह की दुर्गंध समाप्‍त हो जाती है।

खांसी होने पर
अजवाइन के रस में दो चुटकी काला नमक मिलाकर उसका सेवन करें और उसके बाद गर्म पानी पी लें। इससे आपकी खांसी ठीक हो जाएगी। आप काली खांसी से परेशान हैं तो जंगली अजवाइन के रस को सिरका और शहद के साथ मिलाकर दिन में 2-3 बार एक-एक चम्मच सेवन करें, राहत मिलेगी।

चर्म रोगों

चर्म रोगों में सोरायसिस सबसे क्रॉनिक और गंभीर बीमारी नही बल्कि भयंकर स्किन डिसऑर्डर है।
यह रक्त में अशुद्धि और त्वचा के ज्यादा शुष्क होने की वजह से होता है।
सोरायसिस से पीड़ित मरीज जिंदगी में भावनात्मक स्तर पर काफी नाकारात्मक महसूस करने लगते हैं।
उन्हें अपने हाथ-पैर या जिस किसी भी अंग की त्वचा में सोरायसिस है उसको लेकर हमेशा एक शर्मिंदगी की भावना मन में रहती है।
कई मरीज तो बाहर जाना तक बंद कर देते हैं जबकि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।
बेहतर देखभाल और बेहतर इलाज से संभव है आप इस बीमारी के रहते भी बेहतर अनुभव कर सकते हैं।
सोरायसिस में त्वचा में तेज खुजलाहट, नोचने का मन और कभी-कभी दर्द भी होती है।
त्वचा ज्यादा शुष्क होने पर कभी-कभी लाल चकते और फ्लैक्स भी निकल आते हैं।
जो सूखने पर पपड़ी की तरह झड़ने लगती है।
सोरायसिस का कोई ठोस इलाज नहीं है, कुछ घरेलू उपचार करने से इसके लक्षण जरुर कम हो जाते हैं लेकिन हमेशा के लिए इससे छुटकारा नहीं मिलता है।

गुनगुने पानी में स्नान (Bath in Lukewarm Water)
तेल, ओटमील, सेंधा नमक गुनगुने पानी में मिला कर बाथ टब में 15 मिनट बैठ जाए।
निकलने के बाद पूरे बदन में मॉस्चराइजर लगा ले।
इससे स्किन का ड्राइनेस कम होगा और त्वचा पर पपड़ी भी नहीं जमेगी।

मॉस्चराइजर (Moisturizer)
सोरायसिस में त्वचा तुरंत-तुरंत शुष्क हो जाती है और इससे खुजली और नोचने की प्रवृति भी जल्दी-जल्दी होने लगती है।
बचने के लिए त्वचा में हमेशा नमी बनाए रखें।
त्वचा को जल्दी शुष्क ही नहीं होने दें।
पूरे बदन में मॉस्चराइजर का लेप हमेशा लगा कर रखें।

कुटकी चिरेता (Kutki Chirayta)
रक्त अशुद्धि से होने वाली सभी बीमारियों के लिए कुटकी चिरौता रामबाण है।
यह पीने में काफी कड़वा होता है और पीने के साथ उल्टी या मितली जैसा भी होने लगता है, लेकिन यह काफी असरदार है।
चार ग्राम चिरौता और चार ग्राम कुटकी लेकर शीशे या चीनी के बर्तन में आधा ग्लास पानी डाल कर भींगने के लिए रात भर छोड़ दें।
सुबह रात को भिगोया हुआ चिरौता और कुटकी का पानी निथार कर कपड़े से छानकर पी लें और पीने के बाद 3-4 घंटे तक कुछ खांए नहीं।
लगातार चार हफ्ते तक कुटकी-चिरौता पीने से सोरायसिस, फोड़े-फुंसी से लेकर पेट के कीड़े तक नष्ट हो जाते हैं।
यह रक्त को साफ करता है।

और भी हैं कई घरेलू इलाज
1. सोरायसिस में अनार के पत्तों को पीसकर लगाने काफी आराम मिलता है
2. नींबू का रस लगाने से सोरायसिस में आऱाम मिलता है
3. केले में नींबू का रस मिला लगाने से खुजलाहट कम होती है
4. किसी भी तरह के चर्म रोग में रोज बथुआ साग उबालकर इसका रस पीएं और साग बनाकर खाएं, काफी राहत मिलेगी
5. कच्चे आलू का रस पीएं काफी फायदा होगा
6. सिंघाड़े के पत्ते को घिस कर इसमें थोड़ा नींबू रस मिला दें और फिर इसे त्वचा पर लगाएं। पहले तो कुछ जलन होगी फिर ठंडक महसूस होगी। इससे सोरायसिस में काफी राहत मिलेगी।
7. हल्दी का लेप  भी बहुत काम करता है
8. सोरायसिस में रोज सुबह नीम के पत्तों का रस पीना चाहिए या नीम का पत्ता कच्चा चबा कर खाना चाहिए। इससे खून साफ रहता है
9. नीम के पत्ती को दही के साथ पीसकर लगाने काफी फायदा होता है

33 आयुर्वेदिक चूर्ण बीमारियों के उपचार के लिये

आयुर्वेद के कुछ चूर्ण, जो दैनिक जीवन में बहुत उपयोगी हैं, की जानकारी दी जा रही है-

1.अश्वगन्धादि चूर्ण : धातु पौष्टिक, नेत्रों की कमजोरी, प्रमेह, शक्तिवर्द्धक, वीर्य वर्द्धक, पौष्टिक तथा बाजीकर, शरीर की झुर्रियों को दूर करता है। मात्रा 5 से 10 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

2 अविपित्तकर चूर्ण : अम्लपित्त की सर्वोत्तम दवा। छाती और गले की जलन, खट्टी डकारें, कब्जियत आदि पित्त रोगों के सभी उपद्रव इसमें शांत होते हैं। मात्रा 3 से 6 ग्राम भोजन के साथ।

3.अष्टांग लवण चूर्ण : स्वादिष्ट तथा रुचिवर्द्धक। मंदाग्नि, अरुचि, भूख न लगना आदि पर विशेष लाभकारी। मात्रा 3 से 5 ग्राम भोजन के पश्चात या पूर्व। थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए।

4.आमलकी रसायन चूर्ण : पौष्टिक, पित्त नाशक व रसायन है। नियमित सेवन से शरीर व इन्द्रियां दृढ़ होती हैं। मात्रा 3 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

5.आमलक्यादि चूर्ण : सभी ज्वरों में उपयोगी, दस्तावर, अग्निवर्द्धक, रुचिकर एवं पाचक। मात्रा 1 से 3 गोली सुबह व शाम पानी से।

6.एलादि चूर्ण : उल्टी होना, हाथ, पांव और आंखों में जलन होना, अरुचि व मंदाग्नि में लाभदायक तथा प्यास नाशक है। मात्रा 1 से 3 ग्राम शहद से।

7.गंगाधर (वृहत) चूर्ण : अतिसार, पतले दस्त, संग्रहणी, पेचिश के दस्त आदि में। मात्रा 1 से 3 ग्राम चावल का पानी या शहद से दिन में तीन बार।

8.जातिफलादि चूर्ण : अतिसार, संग्रहणी, पेट में मरोड़, अरुचि, अपचन, मंदाग्नि, वात-कफ तथा सर्दी (जुकाम) को नष्ट करता है। मात्रा 1.5 से 3 ग्राम शहद से।

9.दाडिमाष्टक चूर्ण : स्वादिष्ट एवं रुचिवर्द्धक। अजीर्ण, अग्निमांद्य, अरुचि गुल्म, संग्रहणी, व गले के रोगों में। मात्रा 3 से 5 ग्राम भोजन के बाद।

चातुर्जात चूर्ण : अग्निवर्द्धक, दीपक, पाचक एवं विषनाशक। मात्रा 1/2 से 1 ग्राम दिन में तीन बार शहद से।

10.चातुर्भद्र चूर्ण : बालकों के सामान्य रोग, ज्वर, अपचन, उल्टी, अग्निमांद्य आदि पर गुणकारी। मात्रा 1 से 4 रत्ती दिन में तीन बार शहद से।

चोपचिन्यादि चूर्ण : उपदंश, प्रमेह, वातव्याधि, व्रण आदि पर। मात्रा 1 से 3 ग्राम प्रातः व सायं जल अथवा शहद से।

11.तालीसादि चूर्ण : जीर्ण, ज्वर, श्वास, खांसी, वमन, पांडू, तिल्ली, अरुचि, आफरा, अतिसार, संग्रहणी आदि विकारों में लाभकारी। मात्रा 3 से 5 ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम।

12.दशन संस्कार चूर्ण : दांत और मुंह के रोगों को नष्ट करता है। मंजन करना चाहिए।

13.नारायण चूर्ण : उदर रोग, अफरा, गुल्म, सूजन, कब्जियत, मंदाग्नि, बवासीर आदि रोगों में तथा पेट साफ करने के लिए उपयोगी। मात्रा 2 से 4 ग्राम गर्म जल से।

14.पुष्यानुग चूर्ण : स्त्रियों के प्रदर रोग की उत्तम दवा। सभी प्रकार के प्रदर, योनी रोग, रक्तातिसार, रजोदोष, बवासीर आदि में लाभकारी। मात्रा 2 से 3 ग्राम सुबह-शाम शहद अथवा चावल के पानी में।

15.पुष्पावरोधग्न चूर्ण : स्त्रियों को मासिक धर्म न होना या कष्ट होना तथा रुके हुए मासिक धर्म को खोलता है। मात्रा 6 से 12 ग्राम दिन में तीन समय गर्म जल के साथ।

16.पंचकोल चूर्ण : अरुचि, अफरा, शूल, गुल्म रोग आदि में। अग्निवर्द्धक व दीपन पाचन। मात्रा 1 से 3 ग्राम।

17.पंचसम चूर्ण : कब्जियत को दूर कर पेट को साफ करता है तथा पाचन शक्ति और भूख बढ़ाता है। आम शूल व उदर शूल नाशक है। हल्का दस्तावर है। आम वृद्धि, अतिसार, अजीर्ण, अफरा, आदि नाशक है। मात्रा 5 से 10 ग्राम सोते समय पानी से।

18.यवानिखांडव चूर्ण : रोचक, पाचक व स्वादिष्ट। अरुचि, मंदाग्नि, वमन, अतिसार, संग्रहणी आदि उदर रोगों पर गुणकारी। मात्रा 3 से 6 ग्राम।

19.लवणभास्कर चूर्ण : यह स्वादिष्ट व पाचक है तथा आमाशय शोधक है। अजीर्ण, अरुचि, पेट के रोग, मंदाग्नि, खट्टी डकार आना, भूख कम लगना। आदि अनेक रोगों में लाभकारी। कब्जियत मिटाता है और पतले दस्तों को बंद करता है। बवासीर, सूजन, शूल, श्वास, आमवात आदि में उपयोगी। मात्रा 3 से 6 ग्राम मठा (छाछ) या पानी से भोजन के पूर्व या पश्चात लें।

20.लवांगादि चूर्ण : वात, पित्त व कफ नाशक, कंठ रोग, वमन, अग्निमांद्य, अरुचि में लाभदायक। स्त्रियों को गर्भावस्था में होने वाले विकार, जैसे जी मिचलाना, उल्टी, अरुचि आदि में फायदा करता है। हृदय रोग, खांसी, हिचकी, पीनस, अतिसार, श्वास, प्रमेह, संग्रहणी, आदि में लाभदायक। मात्रा 3 ग्राम सुबह-शाम शहद से।

21.व्योषादि चूर्ण : श्वास, खांसी, जुकाम, नजला, पीनस में लाभदायक तथा आवाज साफ करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सायंकाल गुनगुने पानी से।

22.शतावरी चूर्ण : धातु क्षीणता, स्वप्न दोष व वीर्यविकार में, रस रक्त आदि सात धातुओं की वृद्धि होती है। शक्ति वर्द्धक, पौष्टिक, बाजीकर तथा वीर्य वर्द्धक है। मात्रा 5 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

23.स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण (सुख विरेचन चूर्ण) : हल्का दस्तावर है। बिना कतलीफ के पेट साफ करता है। खून साफ करता है तथा नियमित व्यवहार से बवासीर में लाभकारी। मात्रा 3 से 6 ग्राम रात्रि सोते समय गर्म जल अथवा दूध से।

24.सारस्वत चूर्ण : दिमाग के दोषों को दूर करता है। बुद्धि व स्मृति बढ़ाता है। अनिद्रा या कम निद्रा में लाभदायक। विद्यार्थियों एवं दिमागी काम करने वालों के लिए उत्तम। मात्रा 1 से 3 ग्राम प्रातः -सायं मधु या दूध से।

25.सितोपलादि चूर्ण : पुराना बुखार, भूख न लगना, श्वास, खांसी, शारीरिक क्षीणता, अरुचि जीभ की शून्यता, हाथ-पैर की जलन, नाक व मुंह से खून आना, क्षय आदि रोगों की प्रसिद्ध दवा। मात्रा 1 से 3 गोली सुबह-शाम शहाद से।

26.सुदर्शन (महा) चूर्ण : सब तरह का बुखार, इकतरा, दुजारी, तिजारी, मलेरिया, जीर्ण ज्वर, यकृत व प्लीहा के दोष से उत्पन्न होने वाले जीर्ण ज्वर, धातुगत ज्वर आदि में विशेष लाभकारी। कलेजे की जलन, प्यास, खांसी तथा पीठ, कमर, जांघ व पसवाडे के दर्द को दूर करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ।

27.सुलेमानी नमक चूर्ण : भूख बढ़ाता है और खाना हजम होता है। पेट का दर्द, जी मिचलाना, खट्टी डकार का आना, दस्त साफ न आना आदि अनेक प्रकार के रोग नष्ट करता है। पेट की वायु शुद्ध करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।

28.हिंग्वाष्टक चूर्ण : पेट की वायु को साफ करता है तथा अग्निवर्द्धक व पाचक है। अजीर्ण, मरोड़, ऐंठन, पेट में गुड़गुड़ाहट, पेट का फूलना, पेट का दर्द, भूख न लगना, वायु रुकना, दस्त साफ न होना, अपच के दस्त आदि में पेट के रोग नष्ट होते हैं तथा पाचन शक्ति ठीक काम करती है। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।

29.त्रिकटु चूर्ण : खांसी, कफ, वायु, शूल नाशक, व अग्निदीपक। मात्रा 1/2 से 1 ग्राम प्रातः-सायंकाल शहद से।

30.त्रिफला चूर्ण : कब्ज, पांडू, कामला, सूजन, रक्त विकार, नेत्रविकार आदि रोगों को दूर करता है तथा रसायन है। पुरानी कब्जियत दूर करता है। इसके पानी से आंखें धोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। मात्रा 1 से 3 ग्राम घी व शहद से तथा कब्जियत के लिए 5 से 10 ग्राम रात्रि को जल के साथ।

31 श्रृंग्यादि चूर्ण : बालकों के श्वास, खांसी, अतिसार, ज्वर में। मात्रा 2 से 4 रत्ती प्रातः-सायंकाल शहद से।

32 माजून मुलैयन : हाजमा करके दस्त साफ लाने के लिए प्रसिद्ध माजून है। बवासीर के मरीजों के लिए श्रेष्ठ दस्तावर दवा। मात्रा रात को सोते समय 10 ग्राम माजून दूध के साथ।

33.सैंधवादि चूर्ण : अग्निवर्द्धक, दीपन व पाचन। मात्रा 2 से 3 ग्राम प्रातः व सायंकाल पानी अथवा छाछ से।

कुछ रोगों के आसान उपाय:-

1.प्याज के रस को गुनगुना करके कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।

2.प्रतिदिन 1 अखरोट और 10 किशमिश बच्चों को खिलाने से बिस्तर में पेशाब करने की समस्या दूर होती है।

3.टमाटर के सेवन से चिढ़चिढ़ापन और मानसिक कमजोरी दूर होती है।यह मानसिक थकान को दूर करमस्तिस्क को तंदरुस्त बनाये रखता है।इसके सेवन से दांतो व् हड्डियों की कमजोरी भी दूर होती है.

4.तुलसी के पत्तो का रस,अदरख का रस और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर 1-1चम्मच की मात्रा में दिन में 3से4 बार सेवन करने से सर्दी,जुखाम व् खांसी दूर होती है।

5.चाय की पट्टी की जगह तेज पत्ते की चाय पीने से सर्दी, जुखाम ,छींके आनानाक बहना ,जलन व् सरदर्द में शीघ्र आराम मिलता है।

6.रोज सुबह खाली पेट हल्का गर्म पानी पीने से चेहरे में रौनक आती है वजन कम होता है, रक्त प्रवाह संतुलित रहता है और गुर्दे ठीक रहते है।

7.पांच ग्राम दालचीनी ,दो लवंग और एक चौथाई चम्मच सौंठ को पीसकर 1 लीटर पानी में उबाले जब यह 250 ग्राम रह जाए तब इसे छान कर दिन में 3 बार पीने से वायरल बुखार में आराम मिलता है।

8.पान के हरे पत्ते के आधे चम्मच रस में 2 चम्मच पानी मिलाकर रोज नाश्ते के बाद पीने सेपेट के घाव व् अल्सर में आराम मिलता है।

9.मूंग की छिलके वाली दाल को पकाकर यदि शुद्ध देशी घी में हींग-जीरे का तड़का लगाकर खाया जाए तो यह वात, पित्त, कफ तीनो दोषो को शांत करती है।

10. भोजन में प्रतिदिन 20 से 30 प्रतिशत ताजा सब्जियों का प्रयोग करने से जीर्ण रोग ठीक होता है उम्र लंबी होती है शरीर स्वस्थ रहता है।

11.भिन्डी की सब्जी खाने से पेशाब की जलन दूर होती है तथा पेशाब साफ़ और खुलकर आता है।

12.दो तीन चम्मच नमक कढ़ाई में अच्छी तरह सेक कर गर्म नमक को मोटे कपडे की पोटली में बांधकर सिकाई करने से कमर दर्द में आराम मिलता है।

13.हरी मिर्च में एंटी आक्सिडेंट होता है जो की शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता हैऔर कैंसर से लड़ने में मदद करता है इसमें विटामिन c प्रचुर मात्रा में होता है जो की प्राकृतिक प्रतिरक्षा में सुधार करता है।

14.मखाने को देसी घी में भून कर खाने से दस्तो में बहुत लाभ होता है इसके नियमित सेवन से रक्त चाप , कमर दर्द, तथा घुटने के दर्द में लाभ मिलता है।

15.अधिक गला ख़राब होने पर 5 अमरुद के पत्ते 1 गिलास पानी में उबाल कर थोड़ी देर आग पर पका ठंडा करके दिन में 4 से 5 बार गरारे करने से शीघ्र लाभ होता है।

16.आधा किलो अजवाइन को 4 लीटर पानी में उबाले 2 लीटर पानी बचने पर छानकर रखे, इसे प्रतिदिन भोजन के पहले 1 कप पीने से लिवर ठीक रहता है एवशराब पीने की इच्छा नहीं होती.।

17.नीम की पत्तियो को छाया में सुखा कर पीस लें . इस चूर्ण में बराबर मात्रा में कत्थे का चूर्ण मिला ले।इस चूर्ण को मुह के छालो पर लगाकर टपकाने से छाले ठीक होते है।

18.प्रतिदिन सेब का सेवन करने से ह्रदय,मस्तिस्क तथा आमाशय को समान रूप से शक्ति मिलती है तथा शरीर की कमजोरी दूर होती है।

19.20से 25 किशमिश चीनी मिटटी के बर्तन में रात को भिगो कर रख दें।सुबह इन्हें खूब चबा कर खाने से लो ब्लड प्रेसर में लाभ मिलता है व् शरीर पुष्ट होता है।

20. अमरुद में काफी पोषक तत्व होते है .इसके नियमित सेवन से कब्ज दूर होती है और मिर्गी, टाईफाइड , और पेट के कीड़े समाप्त होते है।

Sunday 16 October 2016

अखरोट से उपचार :-

1 टी.बी. (यक्ष्मा) के रोग में :- 3 अखरोट और 5 कली लहसुन पीसकर 1 चम्मच गाय के घी में भूनकर सेवन कराने से यक्ष्मा में लाभ होता है।

2 पथरी - साबुत (छिलके और गिरी सहित) अखरोट को कूट-छानकर 1 चम्मच सुबह-शाम ठंडे पानी में कुछ दिनों तक नियमित रूप से सेवन कराने से पथरी मूत्र-मार्ग से निकल जाती है।
*अखरोट को छिलके समेत पीसकर चूर्ण बनाकर रखें। 1-1 चम्मच चूर्ण ठंडे पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम खायें। इससे रोग में पेड़ू का दर्द और पथरी ठीक होती है।"

3 शैय्यामूत्र (बिस्तर पर पेशाब करना) :- प्राय: कुछ बच्चों को बिस्तर में पेशाब करने की शिकायत हो जाती है। ऐसे बाल रोगियों को 2 अखरोट और 20 किशमिश प्रतिदिन 2 सप्ताह तक सेवन करने से यह शिकायत दूर हो जाती है।

4 सफेद दाग :- अखरोट के निरन्तर सेवन से सफेद दाग ठीक हो जाते हैं।

शरद पूर्णिमा 🌷

🙏🏻 आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। यूं तो हर माह में पूर्णिमा आती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व उन सभी से कहीं अधिक है। हिंदू धर्म ग्रंथों में भी इस पूर्णिमा को विशेष बताया गया है। इस बार शरद पूर्णिमा 15 अक्टूबर, शनिवार को है। जानिए शरद पूर्णिमा की रात इतनी खास क्यों है, इससे जुड़े विभिन्न पहलू व मनोवैज्ञानिक पक्ष-

🌙 चंद्रमा से बरसता है अमृत
शरद पूर्णिमा से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष अमृतमयी गुणों से युक्त रहती हैं, जो कई बीमारियों का नाश कर देती हैं। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात को लोग अपने घरों की छतों पर खीर रखते हैं, जिससे चंद्रमा की किरणें उस खीर के संपर्क में आती है, इसके बाद उसे खाया जाता है।

कुछ स्थानों पर सार्वजनिक रूप से खीर का प्रसाद भी वितरण किया जाता है।


🍚 खीर खाने का है महत्व
शरद पूर्णिमा की रात का अगर मनोवैज्ञानिक पक्ष देखा जाए तो यही वह समय होता है जब मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी।

         🌞 ~ हिन्दू पंचांग ~ 🌞

🌷 आरोग्य व पुष्टि देनेवाली खीर 🌷

🍚 शरद पूनम ( 15 अक्टूबर 2016 शनिवार ) की रात को आप जितना दूध उतना पानी मिलाकर आग पर रखो और खीर बनाने के लिए उसमें यथायोग्य चावल तथा शक्कर या मिश्री डालो | पानी बाष्पीभूत हो जाय, केवल दूध और चावल बचे, बस खीर बन गयी | जो दूध को जलाकर तथा रात को बादाम, पिस्ता आदि डाल के खीर खाते हैं उनको तो बीमारियाँ का सामना करना पड़ता है | उस खीर को महीन सूती कपड़े, चलनी या जाली से अच्छी तरह ढककर चन्द्रमा की किरणों में पुष्ट होने के लिए रात्रि ९ से १२ बजे तक रख दिया | बाद में जब खीर खायें तो पहले उसे देखते हुए २१ बार ‘ॐ नमो नारायणाय |’ जप कर लें तो वह औषधि बन जायेगी | इससे वर्षभर आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति की सुरक्षा व प्रसन्नता बनी रहेगी |
🌙 इस रात को हजार काम छोडकर कम-से-कम १५ मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना, ज्यादा लो तो हरकत नहीं | छत या मैदान में विद्युत् का कुचालक आसन बिछाकर चन्द्रमा को एकटक देखना | अगर मौज पड़े तो आप लेट भी सकते हैं | श्वासोच्छ्वास के साथ भगवन्नाम और शांति को भरते जायें, नि:संकल्प नारायण में विश्रांति पायें  ।

इस चीज को खाने से आपके सफेद बाल फिर से हो जाएंगे काले

आंवले का मुरब्बा न केवल बाल काले करने में मदद करता है बल्कि यह ब्रेन टॉनिक की तरह भी काम करता है। इससे शरीर में ताकत आती है और मानसिक कमजोरी भी दूर होती है। यहां पढ़ें आंवले के मुरब्बे की आसान रेसिपी -

सामग्री

आंवले - 1 किग्रा.( 25 -30)
चीनी - 1.5 किग्रा.(7.5 कप)
इलाइची - 8-10 ( छील कर पीस लें )
केसर - आधा छोटी चम्मच (यदि आप चाहें)
काली मिर्च -आधा छोटी चम्मच
काला नमक - 1 छोटी चम्मच
फिटकरी आधा चम्मच

विधि

- आंवलों को पानी 2 दिन के लिए भिगो दीजिए, आंवले पानी से निकालिए और इन्हैं कांटे से गोद लीजिए।
- गोदे हुए आंवले फिटकरी के पानी में डालकर 2 दिन तक भीगने दीजिए, आंवलों को फिटकरी के पानी से निकाल कर अच्छी तरह 2 बार धो लीजिए।
- एक भगोने में एक लीटर पानी लेकर गरम कीजिए. पानी में उबाल आने पर गोदे हुए आंवले पानी में डालिए फिर से उबाल आने दीजिए, 2 मिनिट बाद गैस बन्द कर दीजिए, आंवलों को 10 मिनिट के लिए ढककर रख दीजिए।
- उबाले हुए आंवले को किसी बड़े बर्तन में डालकर चीनी ऊपर से डालकर भर कर ढक रख दीजिए।
- 4-5 घंटे बाद आंवले का जूस निकल कर चीनी को घोलकर चाशनी बनाने लगता है, और अब हम उसी चाशनी में आंवले को पका कर मुरब्बा बना लें।
- आंवले का मुरब्बा तैयार है, आंवले का मुरब्बा यदि अच्छी तरह पक गया है तब यह मुरब्बा 2 साल तक भी खराब होने वाला नहीं है, कांच के सूखे कन्टेनर में ये मुरब्बा भरकर रख लीजिए और जब भी आपका मन हो कन्टेनर से मुरब्बा निकालिए और खाइए।

सावधानी
- पानी में आंवले देर तक न पकाए, वे टूट जाएगे।
- आंवले की चाशनी को अच्छी तरह पका लीजिए नहीं तो मुरब्बा जल्दी खराब हो सकता है, यदि कभी चाशनी पतली हो रही हो तो आप फिर से पका कर भी गाढी कर सकते हैं।
- आंवले को फोर्क की सहायता से अच्छी तरह गोद लीजिए, मुरब्बा नरम बनेगा और चाशनी भी जल्दी ही उसके अन्दर चली जाएगी।

नाभि का टल जाना – जाने आसान घरेलू आयुर्वेदिक उपचार

नाभी शरीर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। नाभि को शरीर का केंद्र बिंदु भी कहा जाता है। शरीर की अच्छी सेहत के लिए नाभि का अपनी जगह पर बने रहना जरूरी होता है।

नाभि जब अपनी जगह से हट जाती है तब इंसान को कई तरह की परेशानियां जैसे पेट का दर्दए कब्जए गैसए नाभि के आस-पास भंयकर दर्द होना आदि जैसी समस्याएं होने लगती हैं। नाभि कैसे सरकती है यह भी आपको जानना जरूरी है। नाभि सरकने का मुख्य कारण है किसी झटके के साथ कोई सामान उठाना या कोई भारी सामान उठाना आदि से नाभि अपनी जगह को छोड़ देती है। नाभि का अपनी जगह पर होना बहुत जरूरी होता है।

नाभि टलने के लक्षण
नाभि या पेट में टुंडी को दबाने से धड़कन सी दबने का अहसास होना। इसके अलावा ये धड़कने पेट के बांई या दांई ओर होने लगती है। इस को ही नाभि टलना या नाभि का स्थान छोड़ना आदि कहा जाता है। आइये अब जानते हैं नाभि टलने के आयुवेर्दिक घरेलू उपचार को।

नाभि टलने के उपचार
सुबह खाली पेट सरसों के तेल की कुछ बूंदों को नाभि पर टपकाने से नाभि धीरे.धीरे वापस अपनी जगह पर आती है। या आप रूई को सरसों के तेल में भिगों लें और उसे नाभि के उपर रखें।

अदरक का रस
किसी छोटे कपड़े मे अदरक के रस को डालकर उस कपड़े को नाभि के उपर पंद्रह मिनट के बाद बदलते रहने से नाभि वापस अपने जगह पर बैठ जाती है। साथ इस समस्या से होने वाले दस्त व दर्द में आराम मिलता है।

पका टमाटर
आप पका हुआ टमाटर लें और उसे बीच में से चीर लें और इसमें भुना हुआ सुहागा की डे़ढ ग्राम की मात्रा को डालकर चूसने से नाभि वापस अपनी जगह पर आ जाती है।

गुड़ और सौंफ
यदि नाभि टल जाए तो चिंता ना करें गुड के साथ पिसी हुई दो चम्मच सौंफ को लगातार पांच दिनों तक खाएं। इस उपचार से नाभि अपनी जगह से खिसकनी बंद हो जाती है। और धीरे-धीरे वापस अपनी असल स्थिति में आ जाती है।

अन्य उपचार
नाभि को सही जगह पर वापस लाने के लिए यदि नाभि दाहिनी तरफ चली गई हो तो र्बांइं ओर की पिंडली को दबाएं। और यदि नाभि बांई ओर चली गई हो तो दांई तरफ दबाने से नाभि वापस अपनी वास्तविक जगह पर आ जाती है।

नाभि बैठाने के बाद ध्यान में रखें ये बातें
एक चम्मच हल्दी के चूर्ण को आधा किलो दही के साथ मिलाकर कुछ दिनों तक लगातार खांए। इससे नाभि फिर अपना स्थान दोबारा नहीं छोड़ती है।
नमक को गुड़ के साथ मिलाकर खाने से नाभि अपने स्थान पर बनी रहती है।

नाभि का टलना कोई सामान्य समस्या नहीं है इस वजह से आपको कई तरह के नुकसान हो सकते हैं।

🌺 सर्वे भवन्तु सुखिनः
               सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
             मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
       "सब सुखी हों, सब निरोग हों, सब कल्याणमयी दृष्टि वाले हों और कोई भी दुःखी न हो।"