Tuesday 13 September 2016

आइये समाज में फैले कु्छ षड्यंत्रों पर प्रकाश डालें :-




अर्धसत्य ---फलां फलां तेल में कोलेस्ट्रोल नहीं होता है!
पूर्णसत्य --- किसी भी तेल में कोलेस्ट्रोल नहीं होता ये केवल यकृत में बनता है ।
अर्धसत्य ---सोयाबीन में भरपूर प्रोटीन होता है !
पूर्णसत्य---सोयाबीन सूअर का आहार है मनुष्य के खाने लायक नहीं है! भारत में अन्न की कमी नहीं है, इसे सूअर आसानी से पचा सकता है, मनुष्य नही ! जिन देशों में 8 -9 महीने ठण्ड रहती है वहां सोयाबीन जैसे आहार चलते है ।
अर्धसत्य---घी पचने में भारी होता है
पूर्णसत्य---बुढ़ापे में मस्तिष्क, आँतों और संधियों (joints) में रूखापन आने लगता है, इसलिए घी खाना बहुत जरुरी होता है !और भारत में घी का अर्थ देशी गाय के घी से ही होता है ।
अर्धसत्य---घी खाने से मोटापा बढ़ता है !
पूर्णसत्य---(षड्यंत्र प्रचार ) ताकि लोग घी खाना बंद कर दें और अधिक से अधिक गाय मांस की मंडियों तक पहुंचे, जो व्यक्ति पहले पतला हो और बाद में मोटा हो जाये वह घी खाने से पतला हो जाता है
अर्धसत्य---घी ह्रदय के लिए हानिकारक है !
पूर्णसत्य---देशी गाय का घी हृदय के लिए अमृत है, पंचगव्य में इसका स्थान है ।
अर्धसत्य---डेयरी उद्योग दुग्ध उद्योग है !
पूर्णसत्य---डेयरी उद्योग -मांस उद्योग है! यंहा बछड़ो और बैलों को, कमजोर और बीमार गायों को, और दूध देना बंद करने पर स्वस्थ गायों को कत्लखानों में भेज दिया जाता है! दूध डेयरी का गौण उत्पाद है ।
अर्धसत्य---आयोडाईज नमक से आयोडीन की कमी पूरी होती है !
पूर्णसत्य---आयोडाईज नमक का कोई इतिहास नहीं है, ये पश्चिम का कंपनी षड्यंत्र है आयोडाईज नमक में आयोडीन नहीं पोटेशियम आयोडेट होता है जो भोजन पकाने पर गर्म करते समय उड़ जाता है स्वदेशी जागरण मंच के विरोध के फलस्वरूप सन्2000 में भाजपा सरकार ने ये प्रतिबन्ध हटा लिया था, लेकिन कांग्रेस ने सत्ता में आते ही इसे फिर से लगा दिया ताकि लूट तंत्र चलता रहे और विदेशी कम्पनियाँ पनपती रहे ।
अर्धसत्य--- शक्कर (चीनी ) का कारखाना !
पूर्णसत्य--- शक्कर (चीनी ) का कारखाना इस नाम की आड़ में चलने वाला शराब का कारखाना शक्कर इसका गौण उत्पाद है ।
अर्धसत्य---शक्कर (चीनी ) सफ़ेद जहर है !
पूर्णसत्य--- रासायनिक प्रक्रिया के कारण कारखानों में बनी सफ़ेद शक्कर(चीनी) जहर है ! पम्परागत शक्कर एकदम सफ़ेद नहीं होती ! थोडा हल्का भूरा रंग लिए होती है !
अर्धसत्य--- फ्रिज में आहार ताज़ा होता है !
पूर्णसत्य--- फ्रिज में आहार ताज़ा दिखता है पर होता नहीं है जब फ्रिज का अविष्कार नहीं हुआ था तो इतनी देर रखे हुए खाने को बासा / सडा हुआ खाना कहते थे ।
अर्धसत्य--- चाय से ताजगी आती है!
पूर्णसत्य--- ताजगी गरम पानी से आती है! चाय तो केवल नशा(निकोटिन) है ।
अर्धसत्य---एलोपैथी स्वास्थ्य विज्ञान है !
पूर्णसत्य---एलोपैथी स्वास्थ्य विज्ञानं नहीं चिकित्सा विज्ञान है!
अर्धसत्य---एलोपैथी विज्ञानं ने बहुत तरक्की की है !
पूर्णसत्य--- दवाई कंपनियों ने बहुत तरक्की की है! एलोपैथी में मूल दवाइयां 480-520 है जबकि बाज़ार में 1 लाख से अधिक दवाइयां बिक रही है ।
अर्धसत्य--- बैक्टीरिया वायरस के कारण रोग होते हैं !
पूर्णसत्य--- शरीर में बैक्टीरिया वायरस के लायक वातावरण तैयार होने पर रोग होते हैं !
अर्धसत्य--- भारत में लोकतंत्र है ! जनता के हितों का ध्यान रखने वाली जनता द्वारा चुनी हुई सरकार है !
पूर्णसत्य--- भारत में लोकतंत्र नहीं कंपनी तन्त्र है बहुत से सांसद, मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी कंपनियों के दलाल हैं उनकी भी नौकरियां करते हैं उनके अनुसार नीतियाँ बनाते हैं, वे जनहित में नहीं कंपनी हित में निर्णय लेते हैं ! भोपाल गैस कांड से बड़ा उदहारण क्या हो सकता है !जंहा एक अपराधी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के आदेशानुसार फरार हो सका ! लोकतंत्र होता तो उसे पकड के वापस लोटाते ।
अर्धसत्य--- आज के युग में मार्केटिंग का बहुत विकास हो गया है !
पूर्णसत्य--- मार्केटिंग का नहीं ठगी का विकास हो गया है ! माल गुणवत्ता के आधार पर नहीं विभिन्न प्रलोभनों व जुए के द्वारा बेचा जाता है ! जैसे क्रीम गोरा बनाती है!भाई कोई भैंस को गोरा बना के दिखाओ !
अर्धसत्य--- टीवी मनोरंजन के लिए घर घर तक पहुँचाया गया है !
पूर्णसत्य--- जब टी वी नहीं था तब लोगों का जीवन देखो और आज देखो जो आज इन्टरनेट पर बैठे सुलभता से जीवन जी रहे हैं !उन्हें अहसास नहीं होगा कंपनियों का माल बिकवाने और परिवार व्यवस्था को तोड़ने के लिए टी वी घर घर तक पहुँचाया जाता है !
अर्धसत्य--- टूथपेस्ट से दांत साफ होते हैं !
पूर्णसत्य--- टूथपेस्ट करने वाले यूरोप में हर तीन में से एक के दांत ख़राब हैं दंतमंजन करने से दांत साफ होते हैं मंजन -मांजना, क्या बर्तन ब्रश से साफ होते हैं ?
मसूड़ों की मालिश करने से दांतों की जड़ें मजबूत भी होती हैं !
अर्धसत्य--- साबुन मैल साफ कर त्वचा की रक्षा करता है !
पूर्णसत्य--- साबुन में स्थित केमिकल (कास्टिक सोडा, एस. एल. एस.) और चर्बी त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं, और डाक्टर इसीलिए चर्म रोग होने पर साबुन लगाने से मना करते हैं ! साबुन में गौ की चर्बी पाए जाने पर विरोध होने से पहले हिंदुस्तान लीवर हर साबुन में गाय की चर्बी का उपयोग करती थी।


Saturday 10 September 2016

रैकी

 भारत के कुछ लोग रैकी के पीछे भाग कर अपना पैसा बर्बाद कर रहे है भारत के प्राचीन स्पर्श चिकित्सा अलग अलग प्रकार की है उस में एक नीचे लिख रहा हु। कृपया धयान दे

मेथी स्पर्श द्वारा असाध्य रोगों का उपचार

मेथी के औषधिय गुण- दाणा मेथी हमारे रसोइघरों में दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तु है, जो अनेक औषधिय-गुणों से भरपूर होती है। प्राचीन काल से ही इसका प्रयोग खाद्य और औषधि के रूप में हमारे घरों में होता आ रहा है।

आयुर्वेद के ग्रन्थ भावप्रकाश में कहा गया है कि मेथी वात को शान्त करती है, कफ और ज्वर का नाश करती है। राज निघन्टु में मेथी को पित्त नाशक, भूख बढ़ाने वाली, रक्त शोधक, कफ और वात का शमन करने वाली बतलाया गया है। मेथी में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेटस, खनिज, विटामिन, केल्शियम, फासफोरस, लोह तत्त्व, केरोटीन, थायमिन, रिवाफलेबिन, विटामिन सी आदि प्रचुर मात्रा में होते हैं। लोह तत्त्व की अधिकता के कारण मेथी रक्त की कमी वालों के लिये विशेष लाभप्रद होती है।

मेथी दानों से शरीर की आन्तरिक सफाई होती है। मेथी का उबला पानी बुखार को कम करने में बहुत ही लाभप्रद होता है। मेथी सेवन से पाचन तंत्र सुधरता है। पेट में कर्मियों की उत्पत्ति नहीं होती। आंतों में भोजन का पाचन बराबर होता है। बड़ी आंत में, मल में कुछ गाढ़ापन आता है और मल आसानी से बड़ी आंत में गमन करने लगता हैं। मेथी खाने से भूख अच्छी लगती है। मेथी सेवन से गंध और स्वाद इन्द्रियाँ अधिक संवेदनशील होती हैं। यह शरीर का आन्तरिक शोधन करती है। शलेष्मा को घोलती है तथा पेट और आंतों की सूजन ठीक करने में सहायक होती है। मेथी सेवन से मुंह की दुर्गन्ध दूर होती है। कफ, खांसी, इनफ्लेन्जा, निमोनिया, दमा आदि श्वसन संबंधी रोगों में लाभ होता है। गले की खराश में मेथी दाने के पानी से गरारे करने से बहुत लाभ होता है।

मेथी सेवन की विभिन्न विधियाँ- अलग-अलग रोगों के उपचार हेतु मेथी का प्रयोग अनेक प्रकार से किया जाता है। जैसे- मेथी दाणा भिगोंकर उसका पानी पीना, उसे अंकुरित कर खाना, उबालकर उसका पानी पीना, सब्जी बनाकर खाना, विभिन्न अचारों, सब्जियों अथवा अन्य खाद्य पदार्थों के साथ पकाकर सेवन करना, मेथी दानों को चूसना, चबाना अथवा पानी के साथ निगलना, मेथी की चाय अथवा काढ़ा बनाकर पीना, उसका पाउडर बना पानी के साथ लेना, अथवा लेप करना, मेथी की पुडि़ये बनाकर खाना अथवा पकवान बनाकर उपयोग करना इत्यादि, कई तरीकों से मेथी का प्रयोग हमारे घरों में होता रहता है।

स्वयं करें मेथी स्पन्दन का अनुभव- कागज की चिपकाने वाली टेप पर मेथी दानों को चिपका कर हथेली के अंगूठें के नाखून वाले ऊपरी पोरवे में उस टेप को लगा दें जिससे अंगूठे को मेथी का स्पर्श होता रहे। कुछ ही क्षणों में हमें उस स्थान पर स्पंदन की अनुभूति होनी प्रारम्भ हो जाती है। इससे प्रमाणित होता है कि मेथी का उसके गुणों के अनुरूप बाह्य उपयोग भी लाभप्रद हो सकता है।

मेथी स्पर्श चिकित्सा का सिद्धान्त- शरीर में अधिकांश दर्द और अंगों की कमजोरी का कारण आयुर्वेद के सिद्धान्तानुसार प्रायः वात और कफ संबंधी विकार होते हैं। मेथी वात और कफ का शमन करती है।

अतः जिस स्थान पर मेथी का स्पर्श किया जाता है, वहाँ वात और कफ विरोधी कोशिकाओं का सृजन होने लगता हैं, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगती है। दर्द वाले अथवा कमजोर भाग में विजातीय तत्त्वों की अधिकता के कारण शरीर के उस भाग का आभा मंडल विकृत हो जाता है। मेथी अपने गुणों वाली तरंगें शरीर के उस भाग के माध्यम से अन्दर में भेजती है। जिसके कारण शरीर में उपस्थित विजातीय तत्त्व अपना स्थान छोड़ने लगते हैं, प्राण ऊर्जा का प्रवाह संतुलित होने लगता है। फलतः रोगी स्वस्थ होने लगता है। मेथी रक्त शोधक है, रोगग्रस्त भाग का रक्त प्रायः पूर्ण शुद्ध नहीं होता। जिस प्रकार सोडा कपड़े की गंदगी अलग कर देता है, मेथी की तरंगे रोग ग्रस्त अथवा कमजोर भाग में शुद्ध रक्त का संचार करने में सहयोग करती है जिससे उपचार अत्यधिक प्रभावशाली हो जाता है।

ईन्स्युलिन मुक्त

 मै भारत को ईन्स्युलिन मुक्त करनां चाहता हू , आप लोग ईस प्रयोग को अपना कर ईन्स्युलिन से मुक्त हो सकते हैडा.प्रयाग डाभी
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🌏 नमस्कार , मै,डा.प्रयाग  डाभी आज आपको सुगर के बारे मे महत्वपुणँ जानकारी देना चाहता हू.., यह तय है की आप अगर शुगर के लिऐ ऐलोपैथी दवाई जिन्दगी भर लेंगे तो कभी ना कभी आपकी किडनी फैल जरुर हो सकती है. नीचे जो उपाय बता रहा हू ,उसको आप अपनाकर ईन्स्युलिन ऐवं लंबे समय सेवन करने से ऐलोपैथिक दवाईयो से छुटकारा पा सकते है.

🎯 स्वदेशी ईलाज न.1 🎯
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☯ कडवा जौ  100 gms
☯ बादाम.      100 gms
☯ भुने चने     100 gms

दोस्तो सभी चिजौ को मिक्स करके सुबह शाम १-१ चम्मच खाने के 30 मिनिट बाद लिजिये , जिससे आपका शुगर  जरुर कन्ट्रोल हो जायेगा. पर हा अपनी जो दवाई चल रही है .वो केवल अपने चिकित्सक की अनुमती पर ही कम या बंद करे.

🎯 स्वदेशी ईलाज न.2 🎯
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☯ करेला             100 gms
☯ जांमुन बिज      150 gms
☯ मैथीदाना         100 gms
☯ बैलपञ           250 gms

🎯🎯 सभी चिजो को सुखाकर पावडर बनाकर मिक्स कर लिजीये , बादमे आप इसको खाने से १ धंटे पुवॅ सुबह शाम १-१ चम्मच लिजिएे .

🎯 स्वदेशी ईलाज न.3 🎯
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☯ गौमुञ अकॅ सुबह 10 मिली लेकर १ ग्लास पानी मिलाकर खालि पेट ( खाने से 30 मिनिट पुवॅ) लिजिऐ. शाम को खानां खाने के 30 मिनिट बाद लिजिऐ.

☯ बैलपञ.        30 gms
☯ निमके पत्ते    30 gms
☯ सौंठ.           20 gms
☯ कढी पत्ता     20 gms
☯ लहसुन.       30 GMs

उपर बताइ गई चिजो को लाकर सुखा करके फीर उसका चूरन बना लिजिऐ आैर मिक्स कर दिजिऐ. बादमे आप २ चम्मच चूरन + २ ग्लास पानी लेकर उबालिऐ जब ऐक ग्लास पानी बचे तब छानकर ठंडा होने पर पीऐ. यह प्रयोग के 1 धंटे तक कुछ भी ना खाऐ. यह प्रयोग खाली पेट करनां है

🎯 स्वदेशी ईलाज न.4 🎯
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☯ अलसी २ चम्मच लेकर 3 ग्लास पानी मे उबाले . करिबन पांच मिनिट उबाले .आैर छानकर ठंडा होने पर पिऐ. यह ऐक ही खुराक मे पानी पिना है. यह प्रयोग खाने से पुवॅ करे. ऐवं सुबह शाम तक करे.

मै ईस प्रयोग को भारत के हरऐक नागरीक तक पहोंचा कर पुरे भारत को सुगर मुक्त बनानां चाहता हू.

कृपया मेरे ईस को भारत के सभी लोगो तक पहोंचाये जो सुगर से पिडीत है.

मै भारत को स्वदेशी चिकित्सा के आधार पर खडा करके , स्वस्थ भारत का सपनां पुरा करना चाहता हू

क्षय रोग (टी.बी.) का उपचार

टी.बी. का रोग शुरू-शुरू में तो साधारण ही लगता है। मगर इसका उपचार समय पर नहीं कराया जाता है तो यह एक बड़ी बीमारी का रूप ले लेता है। इस बीमारी से ग्रस्त रोगी का शरीर धीरे-धीरे कमजोर हो जाता है क्योकि यह रोग व्यक्ति के शरीर से धातुओं और बल को खत्म कर देता है। इस बीमारी मे रोगी के शरीर में छोटे-छोटे कीटाणु पैदा हो जाते हैं जो रोगी के खांसने, थूकने, छींकने और पूरा मुंह खोलकर बोलने से दूसरे लोगों में भी जा सकता है जिससें यह रोग उन्हे भी हो सकता है। टी.बी. एक ऐसा रोग है जो सिर से लेकर पांव तक के किसी भी अंग में हो सकता है। चाहे वो दिमाग की टी.बी. हो, गले की टी.बी हो, फेफड़ों की टी.बी. हो या फिर हडि्डयों की हो। अंग्रेजी में इसका पूरा नाम ट्यूबरक्लोसिस तथा थाइसिस होता है।
टी.बी. रोग तीन अवस्थाओं में पैदा होता है।

पहली अवस्था :
          टी.बी. रोग की पहली अवस्था मे पसलियों में दर्द, हाथ-पांव में अड़कन, पूरे शरीर में हल्की सी टूटन और बुखार बना रहता है। ऐसे में टी.बी. रोग का अहसास या उसका ठीक तरह से होना पता नहीं लगाया जा सकता।
दूसरी अवस्था :
          टी.बी. रोग की दूसरी अवस्था में रोगी की आवाज मोटी, गैस से पेट में दर्द, कमरदर्द, बुखार, पतला पित्त आदि लक्षण प्रकट होते हैं। आरम्भ में तो इनका उपचार सहज रूप से अथवा सामान्य औषधि आदि से हो जाता है मगर किसी कारणवश रोग में वृद्धि हो जाती है, तो कठिनाई उपस्थित होती है। किसी-किसी रोगी को अन्य उपसर्गों की प्राप्ति हो जाती है, तब उन उपसर्गों के शमन का उपाय भी आवश्यक होता है।
तीसरी अवस्था :
          टी.बी. रोग की तीसरी अवस्था में रोगी को तेज बुखार होता है और तेज खांसी होती है जो रोगी को बहुत ही परेशान करती है। कफ के साथ, खांसी अथवा सामान्य खांसी में भी खून आ जाने के कारण आवाज भी मोटी होती है।

कारण :
  टी.बी. रोग होने का कारण जीवाणु यक्ष्मा बैसीलस (माइकोबैक्टीरियम ट्युबरकुलोसिस) होता है। यह कीटाणु उस धूल व मिट्टी में भी पायें जाते हैं जिसमें टी.बी के रोगी ने थूका हो या लार व कुल्ला किया पानी डाला हो। बीमार गाय, भैंस व बकरी के दूध को भी पीने से टी.बी. के कीटाणु व्यक्ति के शरीर में घुस जाते है। कई बार यह रोग वंशानुगत हो जाता हैं। ज्यादा वसायुक्त भोजन करना, ज्यादा मेहनत करना, धूम्रपान, शराब पीने तथा अधिक मैथुन से भी यह रोग हो जाता है। वैसे तो यह किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन बूढ़े व्यक्तियों मे इसके होने की संभावना अधिक होती है

लक्षण :
टी.बी. रोग की शुरुआत में रोगी के शरीर में कमजोरी तथा थकावट सी महसूस होती है। रोगी के कंधे, पसलियों में दर्द होता है, हाथ पैरो में जलन और बुखार बना रहता है, धीरे-धीरे मुंह सूखता जाता है। रोगी का काम करने में मन नहीं लगता है। रोगी के मुंह से थूक व लार भी ज्यादा गिरता है। बार-बार सिर दर्द और जुकाम तथा छोटी-मोटी अन्य बीमारियां शरीर में पैदा हो जाती है। रोगी की सांसे जल्दी-जल्दी चलने लगती हैं। नाड़ी की गति तेज और ढीली पड़ जाती है। कफ के साथ खून आने की शिकायत भी हो जाती है। शरीर की गर्मी कम होने लगती है और कमजोरी काफी बढ़ जाती है। ठंड़ हो या गर्मी रात को सोते समय पसीने का ज्यादा आना, दोपहर के बाद बुखार 99 से 103 डिग्री तक होना, खाना खाने में मन न लगना, खांसी के संग बलगम और खून की छींटे आना भी टी.बी. रोग के लक्षण है। शरीर कितना भी बलवान लगे अगर उसे टी.बी. है तो उसकी पसली की हड्डी नीचे जरूर घुस जाती है।
फेफड़ों की टी.बी. के लक्षण :

 इसकी शुरूआत मन्द गति से होती है। कभी-कभी यह बीमारी तेजी से बढती है। इस स्थिति को विल्गत टी.बी. कहते हैं। ज्यादातर स्थितियों मे शुरू में यह सामान्य और अविशिष्ट होते हैं जिनके आधार पर रोग को पहचान पाना कठिन होता है, लेकिन जब कभी ऐसी किसी स्थिति में अकस्मात बलगम से खून आने लगता है या फेफड़ों में सूजन हो जाती है। तब इसकी पहचान आसानी से की जा सकती है।
आंतों की टी.बी. के लक्षण :-
           इस रोग के लक्षण 15 या 10 दिन के अन्दर में देखे जा सकते हैं। जिसमें रोगी का मल ढीला होकर आना, पेट में कब्ज, गुड़गुड़ाहट, भोजन का पूर्ण रूप से ना पचना, कमरदर्द, सांस लेने में कठिनाई और थकावट आदि लक्षण पाये जाते हैं।
विभिन्न औषधियों से उपचार-

 पेठा :
•पेठे का सेवन टी.बी. रोग में अत्यन्त लाभकारी होता है। पेठे का रस शहद में मिलाकर दिन में 3-4 बार लेना चाहियें। बाजार में बिकने वाली पेठे की मिठाई भी टी.बी. रोग के लिए लाभदायक होती है।
•पेठे का रस पीने से टी.बी. रोग से पीड़ित रोगियों के फेफड़ों की जलन में आराम होता है।

 शिलाजीत : शिलाजीत टी.बी. को दूर करने में बहुत उपयोगी है। इसका सेवन शहद के साथ, दूध के साथ अथवा औषधि योगों के साथ किया जा सकता है।

 अड़ूसा :
•अड़ूसा (वासा) टी.बी. रोग में बहुत लाभ करता है। अड़ूसा किसी भी रूप में नियमित सेवन करने वाले को खांसी से छुटकारा मिलता है। इसको खाने से कफ में खून नहीं आता, बुखार में भी आराम मिलता है। इसका रस और भी लाभकारी होता है। अड़ूसे के रस में शहद मिलाकर दिन में 2-3 बार लेना चाहिए।
•अड़ूसे के 3 लीटर रस में 320 ग्राम मिश्री मिलाकर धीमी आंच पर पकायें। जब यह गाढ़ा होने को हो, तब उसमें 80 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण मिलायें। जब यह ठीक प्रकार से चाटने योग्य पक जाये तब इसमें गाय का 160 ग्राम घी मिलाकर पर्याप्त चलायें तथा ठंड़ा होने पर उसमें 320 ग्राम शहद मिलायें। यह काढ़ा 5 ग्राम से 10 ग्राम तक टी.बी. के रोगी को दे सकते हैं। यह खांसी, सांस के रोग, कमर दर्द, हृदय का दर्द, रक्तपित्त (खूनी पित्त) और बुखार को भी दूर करता है।

 गाय का पेशाब : काली स्वस्थ गाय का मूत्र प्रतिदिन 10 बार 2-2 ग्राम की मात्रा में पीने से 21 दिन में ही टी.बी. रोग मिट जाता है।
शहद : मक्खन, शहद और शक्कर को एकसाथ मिलाकर खाने से क्षय-रोग (टी.बी.) का रोगी ठीक हो जाता है।

 गधी का दूध : सुबह-शाम लगभग 100-100 मिलीलीटर गधी का दूध पीने से टी.बी. रोग मिट जाता है।
 कोयले की राख : यदि टी.बी. के रोगी के मुंह से खून आता हो तो आधा ग्राम पत्थर के कोयले की सफेद राख को मक्खन-मलाई या दूध के साथ खाने से खून आना बन्द हो जाता है।

आक : आक की कली पहले दिन एक निगलें, दूसरे दिन 2 तथा तीसरे दिन 3 इसके बाद प्रतिदिन 15-20 दिन तक 3-3 कली खाते रहे तो टी.बी. रोग नष्ट हो जाता है।

 पीपल :

500 मिलीलीटर बकरी के दूध में 500 मिलीलीटर पानी को मिलाकर इसमें 3 पीपल डालकर उबालें। पानी जल जाने पर पीपल निकालकर खा लें। ऊपर से कम गर्म दूध पी लें। 10 दिन तक 1-1 पीपल बढ़ाकर दूध में डालें तथा ग्यारहवें दिन से 1-1 पीपल घटाते जाए। 3 पीपल पर लाकर खत्म कर बन्द कर दें। इस प्रयोग को नियमित रूप से करने से टी.बी. रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
पीपल की लाख का चूर्ण बनाकर, घी और शहद में मिलाकर रोगी को पिलाने से टी.बी का रोग ठीक हो जाता है।

पित्ताशय की पथरी

पित्ताशय की पथरी ( गॉल ब्लैडर स्टोंस ) का आयुर्वेदिक उपचार
- कपालभाती प्राणायाम करे .
- गाजर और ककड़ी का १०-१०० मि.ली . रस मिलाकर दिन में दो बार पिए .
- 50 मि. ली. निम्बू का रस खाली पेट ले .
- सूरजमुखी या ओलिव आयल ३० मि. ली . खाली पेट ले . इसके ऊपर तुरंत १२० मि. ली . अंगूर या निम्बू का रस ले .
- खूब नाशपाती खाए .
- खूब विटामिन सी ले .
- एक बार में अधिक भोजन ना करे .
- पथ्य - जौ, मूंग की छिलके वाली दाल, चावल, परवल, तुरई, लौकी, करेला, मौसमी, अनार, आंवला, मुनक्का ग्वारपाठा, जैतून का तेल आदि।
भोजन सादा बिना घी-तेल वाला तथा आसानी से पचने वाला करें और योगाभ्यास करें।
- अपथ्य मांसाहार शराब, आदि नशीले पदार्थों का सेवन, उड़द, गेहूं, पनीर, दूध की मिठाईयां नमकीन, तीखे-मसालेदार तले हुए, खट्टे, खमीर उठाकर बनाएं गये खाद्य पदार्थ जैसे इडली-डोसा ढोकला आदि। अधिक चर्बी, मसाले एवं प्रोटीन के सेवन से यकृत व प्लीहा के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है और फलस्वरूप रक्त की शुद्धि नहीं हो पाती।
- पाचन में भारी, खासकर तली हुई और अम्ल बढ़ाने वाली चीजों सतावर का रस और दूध, बराबर मात्रा में मिलाकर प्रातःकाल पीने से बहुत दिन की पथरी भी नष्ट होकर निकल जाती है। इसका उपयोग 30 दिन तक करें।
- अदरक, जवाखार, हरड़ और दारू हल्दी चूर्ण को बराबर मात्रा में पीस लें फिर इसे दही या लस्सी के साथ पिएं। इससे भयंकर पथरी भी नष्ट हो जाती है।
- पेठें के रस में हींग और 5 ग्राम अजवाइन मिलाकर पीने से पथरी रोग नष्ट होता है।
- आमले के नरम पत्ते के 10 ग्राम स्वरस में 10 ग्राम तिल का तेल मिलाकर पीने से भयंकर पथरी रोग नष्ट हो जाता है।
- हल्दी की जड़ में मिलाकर तुषोदक के साथ पीने से बहुत पुरानी शर्करा पथरी नष्ट हो जाती है।
- दो तोला अंगूर के पत्ते को 250 ग्राम पानी में उबाले। जब पानी आधा रह जाए, तो उसमें दो तोले मिश्री मिलाकर पिए। पथरी और मूत्र के सभी रोग नष्ट हो जाएंगे।
- 20 ग्राम प्याज के रस में मिश्री 15 दिन तक सुबह पीने से पथरी निकल जाती है।
- 20 ग्राम मूली के रस में 1 ग्राम जवाखार मिला कर सुबह-शाम पीने से पथरी नष्ट हो जाती है। चैलाई का साग खाने से पथरी नष्ट  होती है।
- पथरी के रोगियों को नियमित रूप से कुछ अधिक पानी पीना चाहिए। विशेषकर गर्मियों के मौसम में कम से कम 4 लीटर पानी प्रतिदिन पीने से पथरी में लाभ होता है। भारी भोजन के सेवन से परहेज रखें और भूख के बिना भोजन न करें तो पथरी से होने का डर नहीं रहता।

जायफल के 33 उपयोग जो आपने नहीं सुने होंगे।

रसोई का मसाला जायफल गुणकारी औषधि भी है। आयुर्वेद में जायफल को वात एवं कफ नाशक बताया गया है।

आमाशय के लिए उत्तेजक होने से आमाशय में पाचक रस बढ़ता है, जिससे भूख लगती है। आंतों में पहुंचकर वहां से गैस हटाता है। ज्यादा मात्रा में यह मादक प्रभाव करता है। इसका प्रभाव मस्तिष्क पर कपूर के समान होता है, जिससे चक्कर आना, प्रलाप आदि लक्षण प्रकट होते हैं। इससे कई बीमारियों में लाभ मिलता है तथा सौन्दर्य सम्बन्धी कई समस्याओं से भी निजात मिलती है।

1. सुबह-सुबह खाली पेट आधा चम्मच जायफल चाटने से गैस्ट्रिक, सर्दी-खांसी की समस्या नहीं सताती है। पेट में दर्द होने पर चार से पांच बूंद जायफल का तेल चीनी के साथ लेने से आराम मिलता है।

2. सर में बहुत तेज दर्द हो रहा हो तो बस जायफल को पानी में घिस कर लगाएं।

3. सर्दी के मौसम के दुष्प्रभाव से बचने के लिए जायफल को थोड़ा सा खुरचिये, चुटकी भर कतरन को मुंह में रखकर चूसते रहिये। यह काम आप पूरे जाड़े भर एक या दो दिन के अंतराल पर करते रहिये। यह शरीर की स्वाभाविक गरमी की रक्षा करता है, इसलिए ठंड के मौसम में इसे जरूर प्रयोग करना चाहिए।

4. आपको किन्हीं कारणों से भूख न लग रही हो तो चुटकी भर जायफल की कतरन चूसिये इससे पाचक रसों की वृद्धि होगी और भूख बढ़ेगी, भोजन भी अच्छे तरीके से पचेगा।

5. दस्तआ रहे हों या पेट दर्द कर रहा हो तो जायफल को भून लीजिये और उसके चार हिस्से कर लीजिये एक हिस्सा मरीज को चूस कर खाने को कह दीजिये। सुबह शाम एक-एक हिस्सा खिलाएं।

6. फालिज का प्रकोप जिन अंगों पर हो उन अंगों पर जायफल को पानी में घिसकर रोज लेप करना चाहिए, दो माह तक ऐसा करने से अंगों में जान आ जाने की संभावना देखी गयी है।

7. प्रसव के बाद अगर कमर दर्द नहीं ख़त्म हो रहा है तो जायफल पानी में घिसकर कमर पे सुबह शाम लगाएं, एक सप्ताह में ही दर्द गायब हो जाएगा।

8. फटी एडियों के लिए इसे महीन पीसकर बीवाइयों में भर दीजिये। 12-15 दिन में ही पैर भर जायेंगे।

9. जायफल के चूर्ण को शहद के साथ खाने से ह्रदय मज़बूत होता है। पेट भी ठीक रहता है।

10. अगर कान के पीछे कुछ ऎसी गांठ बन गयी हो जो छूने पर दर्द करती हो तो जायफल को पीस कर वहां लेप कीजिए जब तक गाठ ख़त्म न हो जाए, करते रहिये।

11.अगर हैजे के रोगी को बार-बार प्यास लग रही है, तो जायफल को पानी में घिसकर उसे पिला दीजिये।

- जी मिचलाने की बीमारी भी जायफल को थोड़ा सा घिस कर पानी में मिला कर पीने से नष्ट हो जाती है।

12. इसे थोडा सा घिसकर काजल की तरह आँख में लगाने से आँखों की ज्योति बढ़ जाती है और आँख की खुजली और धुंधलापन ख़त्म हो जाता है।

13. यह शक्ति भी बढाता है।

14. जायफल आवाज में सम्मोहन भी पैदा करता है।

15. जायफल और काली मिर्च और लाल चन्दन को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की चमक बढ़ती है, मुहांसे ख़त्म होते हैं।

16. किसी को अगर बार-बार पेशाब जाना पड़ता है तो उसे जायफल और सफ़ेद मूसली 2-2 ग्राम की मात्र में मिलाकर पानी से निगलवा दीजिये, दिन में एक बार, खाली पेट, 10 दिन लगातार।

17. बच्चों को सर्दी-जुकाम हो जाए तो जायफल का चूर्ण और सोंठ का चूर्ण बराबर मात्रा में लीजिये फिर 3 चुटकी इस मिश्रण को गाय के घी में मिलाकर बच्चे को सुबह शाम चटायें।

18. चेहरे पर या फिर त्वचा पर पड़ी झाईयों को हटाने के लिए आपको जायफल को पानी के साथ पत्थर पर घिसना चाहिए। घिसने के बाद इसका लेप बना लें और इस लेप का झाईयों की जगह पर इस्तेमाल करें, इससे आपकी त्वचा में निखार भी आएगा और झाईयों से भी निजात मिलेगी।

19. चेहरे की झुर्रियां मिटाने के लिए आप जायफल को पीस कर उसका लेप बनाकर झुर्रियों पर एक महीने तक लगाएंगे तो आपको जल्द ही झुर्रियों से निजात मिलेगी।

20 आंखों के नीचे काले घेरे हटाने के लिए रात को सोते समय रोजाना जायफल का लेप लगाएं और सूखने पर इसे धो लें। कुछ समय बाद काले घेरे हट जाएंगे।

21. अनिंद्रा का स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और इसका त्वचा पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। त्वचा को तरोताजा रखने के लिए भी जायफल का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए आपको रोजाना जायफल का लेप मस्तिक और अपनी त्वचा पर लगाना होगा। इससे अनिंद्रा की शिकायत भी दूर होगी और त्वचा भी तरोजाता रहेगी।

22. कई बार त्वचा पर कुछ चोट के निशान रह जाते हैं तो कई बार त्वचा पर नील और इसी तरह के घाव पड़ जाते हैं। जायफल में सरसों का तेल मिलाकर मालिश करें। जहां भी आपकी त्वचा पर पुराने निशान हैं रोजाना मालिश से कुछ ही समय में वे हल्के होने लगेंगे। जायफल से मालिश से रक्त का संचार भी होगा और शरीर में चुस्ती-फुर्ती भी बनी रहेगी।

23. जायफल के लेप के बजाय जायफल के तेल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

24. दांत में दर्द होने पर जायफल का तेल रुई पर लगाकर दर्द वाले दांत या दाढ़ पर रखें, दर्द तुरंत ठीक हो जाएगा। अगर दांत में कीड़े लगे हैं तो वे भी मर जाएंगे।

25. पेट में दर्द हो तो जायफल के तेल की 2-3 बूंदें एक बताशे में टपकाएं और खा लें। जल्द ही आराम आ जाएगा।

26. जायफल को पानी में पकाकर उस पानी से गरारे करें। मुंह के छाले ठीक होंगे, गले की सूजन भी जाती रहेगी।

27. जायफल को कच्चे दूध में घिसकर चेहरें पर सुबह और रात में लगाएं। मुंहासे ठीक हो जाएंगे और चेहरे निखारेगा।

28. एक चुटकी जायफल पाउडर दूध में मिला कर लेने से सर्दी का असर ठीक हो जाता है। इसे सर्दी में प्रयोग करने से सर्दी नहीं लगती है।

29. सरसों का तेल और जायफल का तेल 4:1 की मात्रा में मिलाकर रख लें। इस तेल से दिन में 2-3 बार शरीर की मालिश करें। जोड़ों का दर्द, सूजन, मोच आदि में राहत मिलेगी। इसकी मालिश से शरीर में गर्मी आती है, चुस्ती फुर्ती आती है और पसीने के रूप में विकार निकल जाता है।

30. जायफल, सौंठ और जीरे को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को भोजन करने से पहले पानी के साथ लें। गैस और अफारा की परेशानी नहीं होगी।

31. दस जायफल लेकर देशी घी में अच्छी तरह सेंक लें। उसे पीसकर छान लें। अब इसमें दो कप गेहूं का आटा मिलाकर घी में फिर सेकें।

इसमें शक्कर मिलाकर रख लें। रोजाना सुबह खाली पेट इस मिश्रण को एक चम्मच खाएं, बवासीर से छुटकारा मिल जाएगा।

32. नीबू के रस में जायफल घिसकर सुबह-शाम भोजन के बाद सेवन करने से गैस और कब्ज की तकलीफ दूर होती है।

33. दूध पाचन : शिशु का दूध छुड़ाकर ऊपर का दूध पिलाने पर यदि दूध पचता न हो तो दूध में आधा पानी मिलाकर, इसमें एक जायफल डालकर उबालें। इस दूध को थोडा ठण्डा करके कुनकुना गर्म, चम्मच कटोरी से शिशु को पिलाएँ, यह दूध शिशु को हजम हो जाएगा।

कुंजल क्रिया

                  बीमारियों और पेट को साफ़ करने की प्रक्रिया है कुंजल क्रिया

  ##     शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए अनेक प्रकार की क्रियाएं की जाती है| आज हम आपको ऐसी ही एक क्रिया के बारे में बताने वाले है| जो खासकर पेट के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होती है| हम आपको आज Kunjal Kriya के बारे में जानकारी देने वाले है|

  ##     जल नेति या कुंजल क्रिया अनेक बीमारियों की अचूक दवा है| षट्कर्म में शामिल इस क्रिया के कारण ही हाथी न केवल शक्तिशाली होता है बल्कि उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी इतनी प्रबल हो जाती है कि लगातार प्रहार के बाद भी कोई घाव नहीं होता है|

 ##   यह पाचन क्रिया को भी मजबूत करती है| अगर व्यक्ति नियमित रूप से कुंजल क्रिया करता है तो बुढ़ापे की स्थिति बहुत देर से आती है साथ ही शरीर चुस्त -दुरुस्त और ऊर्जावान बना रहता है| भक्ति सागर में ऋषि-मुनियों ने बाह्य एवं आंतरिक शरीर की शुद्धि के लिए छः प्रकार की क्रियाएं बताई है, जिन्हे षट्कर्म कहा जाता है| इसमें धौति, वस्ति, नेति, कुंजल, नौलि और त्राटक क्रिया है| आइये जानते है कुंजल क्रिया की विधि और लाभ|

  ##    कुंजल क्रिया वैसे तो कठिन नहीं है लेकिन इसे करने के तरीके को हर व्यक्ति नहीं कर पाता है, क्योंकि यह एक अजीब सी क्रिया है| जो भी व्यक्ति इसमें पारंगत हो जाता है उसके जीवन में कोई भी रोग और शोक नहीं रह जाता है| यह क्रिया बहुत ही शक्तिशाली है। पानी से पेट को साफ किए जाने की क्रिया को कुंजल क्रिया कहते हैं। इस क्रिया से पेट व आहार नली पूर्ण रूप से साफ हो जाती है। मूलत: यह क्रिया वे लोग कर सकते हैं जो धौति क्रिया नहीं कर सकते हों। इस क्रिया को किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही करना चाहिए।

☑  कुंजल क्रिया करने की विधि

       इस क्रिया को सुबह के समय शौच आदि से निवृत्त होकर करना चाहिए| आइये जानते Kunjal Kriya

     इस क्रिया के अभ्यास के लिए पहले एक बर्तन में शुद्ध पानी को हल्का गर्म करें। अब कागासन में बैठकर पेट  भर पानी पीएं। पेट भर जाने के बाद खड़े होकर नाभि से 90 डिग्री का कोण बनाते हुए आगे की तरफ झुके। अब हाथ को पेट पर रखें और दाएं हाथ की 2-3 अंगुलियों को मिलाकर मुंह के अन्दर जीभ के पिछले हिस्से तक ले जाएं। अब अंगुली को जीभ के पिछले भाग पर तेजी से घुमाएं। ऐसा करने से उल्टी होने लगेगी और जब पानी ऊपर आने लगे तो अंगुली को मुंह से बाहर निकालकर पानी को बाहर निकलने दें। जब अन्दर का पिया हुआ सारा पानी बाहर निकल जाए तो पुनः तीनों अंगुलियों को जीभ के पिछले भाग पर घुमाएं और पानी को बाहर निकलने दें। जब पानी निकलना बन्द हो जाए तो अंगुली को बाहर निकाल दें। इस क्रिया में पानी के साथ भोजन का बिना पचा हुआ खटटा् व कड़वा पानी भी निकल जाता है। जब अन्दर से साफ पानी बाहर निकलने लगे तो अंत में एक गिलास गर्म पानी पी लें और अंगुली डालकर उल्टी करें।

✅  कुंजल क्रिया के लाभ

      इस क्रिया के नियमित अभ्यास शारीर के तीन अंगो लिवर, ह्रदय और पेट की आंतो को काफी लाभ मिलता है| इस क्रिया को करने से शरीर और मन में बहुत ही अच्छा महसूस करता है। व्यक्ति में हमेशा प्रसंन्न और स्फूति बनी रहती है।

     इस क्रिया को करने से वात, पित्त व कफ से होने वाले सभी रोग दूर हो जाते हैं। बदहजमी, गैस विकार और कब्ज आदि पेट संबंधी रोग समाप्त होकर पेट साफ रहता है तथा पाचन शक्ति बढ़ती है।

     यह सर्दी, जुकाम, नजला, खांसी, दमा, कफ आदि रोगों को दूर करता है। इस क्रिया से मुंह, जीभ और दांतों के रोग दूर होते हैं। कपोल दोष, रूधिर विकार, छाती के रोग, ग्रीवा, कण्ठमाला, रतोंधी, आदि रोगों में भी यह लाभदायी है।

➡  ध्यान रखने योग्य बातें

      ध्यान रखें कि कुंजल क्रिया में पानी न अधिक गर्म हो न अधिक ठंडा और पानी मे नमक नही मिलाना है।इसे करते समय शारीरिक स्थिति सही रखें। इसे करने के लिए आगे की ओर झुककर ही खड़े हो| इससे पानी अन्दर से आसानी से निकल जाता है

सफ़ेद दाग(ल्युकोडर्मा) की सरल चिकित्सा

सफ़ेद दाग निवारक सरल उपचार ल्युकोडर्मा चमडी का भयावह रोग है,जो रोगी की शक्ल सूरत प्रभावित कर शारीरिक के बजाय मानसिक कष्ट ज्यादा देता है। इस रोग में चमडे में रंजक पदार्थ जिसे पिग्मेन्ट मेलानिन कहते हैं,की कमी हो जाती है।चमडी को प्राकृतिक रंग प्रदान करने वाले इस पिग्मेन्ट की कमी से सफ़ेद दाग पैदा होता है।इसे ही श्वेत कुष्ठ कहते हैं।यह चर्म विकृति पुरुषों की बजाय स्त्रियों में ज्यादा देखने में आती है।
ल्युकोडर्मा के दाग हाथ,गर्दन,पीठ और कलाई पर विशेष तौर पर पाये जाते हैं। अभी तक इस रोग की मुख्य वजह का पता नहीं चल पाया है। लेकिन चिकित्सा के विद्वानों ने इस रोग के कारणों का अनुमान लगाया है।पेट के रोग,लिवर का ठीक से काम नहीं करना,दिमागी चिंता ,छोटी और बडी आंर्त में कीडे होना,टायफ़ाईड बुखार, शरीर में पसीना होने के सिस्टम में खराबी होने आदि कारणों से यह रोग पैदा हो सकता है।
शरीर का कोई भाग जल जाने अथवा आनुवांशिक करणों से यह रोग पीढी दर पीढी चलता रहता है।इस रोग को नियंत्रित करने और चमडी के स्वाभाविक रंग को पुन: लौटाने हेतु कुछ घरेलू उपचार कारगर साबित हुए हैं जिनका विवेचन निम्न पंक्तियों में किया जा रहा है--
१) आठ लीटर पानी में आधा किलो हल्दी का पावडर मिलाकर तेज आंच पर उबालें, जब ४ लीटर के करीब रह जाय तब उतारकर ठंडा करलें फ़िर इसमें आधा किलो सरसों का तैल मिलाकर पुन: आंच पर रखें। जब केवल तैलीय मिश्रण ही बचा रहे, आंच से उतारकर बडी शीशी में भरले। ,यह दवा सफ़ेद दाग पर दिन में दो बार लगावें। ४-५ माह तक ईलाज चलाने पर आश्चर्यजनक अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं।
२.) बाबची के बीज इस बीमारी की प्रभावी औषधि मानी गई है।५० ग्राम बीज पानी में ३ दिन तक भिगोवें। पानी रोज बदलते रहें।बीजों को मसलकर छिलका उतारकर छाया में सूखालें।
पीस कर पावडर बनालें।यह दवा डेढ ग्राम प्रतिदिन पाव भर दूध के साथ पियें। इसी चूर्णको पानी में घिसकर पेस्ट बना लें। यह पेस्ट सफ़ेद दाग पर दिन में दो बार लगावें। अवश्य लाभहोगा। दो माह तक ईलाज चलावें।
3) बाबची के बीज और ईमली के बीज बराबर मात्रा में लेकर चार दिन तक पानी में भिगोवें।
बाद में बीजों को मसलकर छिलका उतारकर सूखा लें। पीसकर महीन पावडर बनावें। इस पावडर की थोडी सी मात्रा लेकर पानी के साथ पेस्ट बनावें। यह पेस्ट सफ़ेद दाग पर एक सप्ताह तक लगाते रहें। बहुत ही कारगर उपचार है।लेकिन यदि इस पेस्ट के इस्तेमाल करने से सफ़ेद दाग की जगह लाल हो जाय और उसमें से तरल द्रव निकलने लगे तो ईलाज कुछ रोज के लिये रोक देना उचित रहेगा।
4) एक और कारगर ईलाज बताता हुं--लाल मिट्टी लावें। यह मिट्टी बरडे- ठरडे और पहाडियों के ढलान पर अक्सर मिल जाती है।
अब यह लाल मिट्टी और अदरख का रस बराबर मात्रा में लेकर घोटकर पेस्ट बनालें। यह दवा प्रतिदिन ल्युकोडेर्मा के पेचेज पर लगावें। लाल मिट्टी में तांबे का अंश होता है जो चमडी के स्वाभाविक रंग को लौटाने में सहायता करता है। और अदरख का रस सफ़ेद दाग की चमडी में खून का प्रवाह बढा देता है।
५) श्वेत कुष्ठ रोगी के लिये रात भर तांबे के पात्र में रखा पानी प्रात:काल पीना फ़ायदेमंद है।
6) मूली के बीज भी सफ़ेद दाग की बीमारी में हितकर हैं। करीब ३० ग्राम बीज सिरका में घोटकर पेस्ट बनावें और दाग पर लगाते रहने से लाभ होता है।
७) एक अनुसंधान के नतीजे में बताया गया है कि काली मिर्च में एक तत्व होता है --पीपराईन।
यह तत्व काली मिर्च को तीक्ष्ण मसाले का स्वाद देता है। काली मिर्च के उपयोग से चमडी का रंग वापस लौटाने में मदद मिलती है।
८) चिकित्सा वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सफ़ेद दाग रोगी में कतिपय विटामिन कम हो जाते हैं। विशेषत: विटामिन बी १२ और फ़ोलिक एसीड की कमी पाई जाती है। अत: ये विटामिन सप्लीमेंट लेना आवश्यक है। कॉपर और ज़िन्क तत्व के सप्लीमेंट की भी सिफ़ारिश की जाती है।
बच्चों पर ईलाज का असर जल्दी होता है| चेहरे के सफ़ेद दाग जल्दी ठीक हो जाते हैं। हाथ और पैरो के सफ़ेद दाग ठीक होने में ज्यादा समय लेते है। ईलाज की अवधि ६ माह से २ वर्ष तक की हो सकती है।
उक्त सरल उपचार अपनाकर ल्युकोडर्मा रोग को नियंत्रित किया जा सकता है| हर्बल चिकित्सा इस रोग में जड से असर करती है| ।

Thursday 8 September 2016

खाँसी के घरेलू उपाय

खाँसी रोग कई कारणों से पैदा होता है और यदि जल्दी दूर न किया जाए तो विकट रूप धारण कर लेता है। एक कहावत है, रोग का घर खाँसी।

खाँसी यूँ तो एक मामूली-सी व्याधि मालूम पड़ती है, पर यदि चिकित्सा करने पर भी जल्दी ठीक न हो तो इसे मामूली नहीं समझना चाहिए, क्योंकि ऐसी खाँसी किसी अन्य व्याधि की सूचक होती है।

आयुर्वेद ने खाँसी के 5 भेद बताए हैं अर्थात वातज, पित्तज, कफज ये तीन और क्षतज व क्षयज से मिलाकर 5 प्रकार के रोग मनुष्यों को होते हैं।

खाँसी को आयुर्वेद में कास रोग भी कहते हैं। इसका प्रभाव होने पर सबसे पहले रोगी को गले (कंठ) में खरखरापन, खराश, खुजली आदि की अनुभूति होती है, गले में कुछ भरा हुआ-सा महसूस होता है, मुख का स्वाद बिगड़ जाता है और भोजन के प्रति अरुचि हो जाती है।

ये पाँच प्रकार का कास कई कारणों से होता है और वे कारण शरीर में अन्य व्याधियाँ उत्पन्न कर शरीर को कई रोगों से ग्रस्त कर देते हैं। इसी कारण से कहावत में 'रोग का घर खाँसी' कहा गया है।

खाँसी के 5 प्रकार

1. वातज खाँसी : वात प्रकोप के कारण उत्पन्न हुई खाँसी में कफ सूख जाता है, इसलिए बहुत कम निकलता है या निकलता ही नहीं है। कफ न निकल पाने के कारण, लगातार खाँसी वेग के साथ चलती रहती है, ताकि कफ निकल जाए। इस खाँसी में पेट, पसली, आँतों, छाती, कनपटी, गले और सिर में दर्द होने लगता है।

2. पित्तज खाँसी : पित्त प्रकोप के कारण उत्पन्न हुई खाँसी में कफ पीला और कड़वा निकलता है। वमन द्वारा पीला व कड़वा पित्त निकलना, मुँह से गर्म बफारे निकलना, गले, छाती व पेट में जलन मालूम देना, मुँह सूखना, मुँह का स्वाद कड़वा रहना, प्यास लगती रहना, शरीर में दाह का अनुभव होना और खाँसी चलना, ये पित्तज खाँसी के प्रमुख लक्षण हैं।

3. कफज खाँसी : कफ प्रकोप के कारण उत्पन्न हुई खाँसी में कफ बहुत निकलता है और जरा-सा खाँसते ही सरलता से निकल आता है। कफज खाँसी के रोगी का गला व मुँह कफ से बार-बार भर जाता है, सिर में भारीपन व दर्द रहता है, शरीर में भारीपन व आलस्य छाया रहता है, मुँह का स्वाद खराब रहता है, भोजन में अरुचि और भूख में कमी हो जाती है, गले में खराश व खुजली होती है और खाँसने पर बार-बार गाढ़ा व चीठा कफ निकलता है।

4. क्षतज खाँसी : यह खाँसी उपर्युक्त तीनों कारणों वात, पित्त, कफ से अलग कारणों से उत्पन्न होती है और तीनों से अधिक गंभीर भी। अत्यन्त भोग-विलास (मैथुन) करने, भारी-भरकम बोझा उठाने, बहुत ज्यादा चलने, लड़ाई-झगड़ा करते रहने और बलपूर्वक किसी वेग को रोकने आदि कामों से रूक्ष शरीर वाले व्यक्ति के उरप्रदेश में घाव हो जाते हैं और कुपित वायु खाँसी उत्पन्न कर देती है।

क्षतज खाँसी का रोगी पहले सूखी खाँसी खाँसता है, फिर रक्तयुक्त कफ थूकता है। गला हमेशा ध्वनि करता रहता है और उरप्रदेश फटता हुआ-सा मालूम देता है।

5. क्षयज खाँसी : यह खाँसी क्षतज खाँसी से भी अधिक गंभीर, कष्ट साध्य और हानिकारक होती है। विषम तथा असात्म्य आहार करना, अत्यन्त भोग-विलास करना, वेगों को रोकना, घृणा और शोक के प्रभाव से जठराग्नि का मंद हो जाना तथा कुपित त्रिदोषों द्वारा शरीर का क्षय करना। इन कारणों से क्षयज खाँसी होती है और यह खाँसी शरीर का क्षय करने लगती है।

क्षयज खाँसी के रोगी के शरीर में दर्द, ज्वार, मोह और दाह होता है, प्राणशक्ति क्षीण होती जाती है, सूखी खाँसी चलती है, शरीर का बल व मांस क्षीण होता जाता है, खाँसी के साथ पूय (पस) और रक्तयुक्त बलगम थूकता है।

यह क्षयज खाँसी, टीबी (तपेदिक) रोग की प्रारंभिक अवस्था होती है अतः इसे ठीक करने में विलम्ब और उपेक्षा नहीं करना चाहिए।

एलोपैथिक चिकित्सा के अनुसार खाँसी होने के कारण इस प्रकार हैं-

श्वसन संस्थान की विकृतियाँ

  1. श्वसन मार्ग के ऊपरी भाग में टांसिलाइटिस, लेरिन्जाइटिस, फेरिन्जाइटिस, सायनस का संक्रमण, ट्रेकियाइटिस तथा यूव्यूला का लम्बा हो जाना आदि से खाँसी होती है।
  2. श्वसनी (ब्रोंकाई) में ब्रोंकाइटिस, ब्रोंकियेक्टेसिस आदि होने से खाँसी होती है।
  3. फुफुक्स के रोग, जैसे तपेदिक (टीबी), निमोनिया, ट्रॉपिकल एओसिनोफीलिया आदि से खाँसी होती है।
  4. प्लूरा के रोग, प्लूरिसी, एमपायमा आदि रोग होने से खाँसी होती है।
खाँसी गीली और सूखी दो प्रकार की होती है। सूखी खाँसी होने के कारणों में एक्यूट ब्रोंकाइटिस, फेरिनजाइटिस, प्लूरिसी, सायनस का संक्रमण तथा टीबी की प्रारम्भिक अवस्था का होना है।

कागले के बढ़ जाने से, टांसिलाइटिस से और नाक का पानी कंठ में पहुँचने से क्षोभ पैदा होता है। गीली खाँसी होने के कारणों में क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, ब्रोंकियेक्टेसिस और फुक्फुसीय गुहा (केविटी) में कफ हो जाना होता है। इसे गीली खाँसी कहते हैं। अंदर फुफुस में घाव या सड़न हो तो कफ दुर्गंधयुक्त होता है।

सामान्य खाँसी : दिनचर्या और दैनिक आहार में गड़बड़ होने से भी खाँसी चलने लगती है। इसे सामान्य खाँसी कहते हैं। गले में संक्रमण होने पर खराश और शोथ होने पर खाँसी चलने लगती है, खराब तेल से बना व्यंजन खाने, खटाई खाने, चिकनाईयुक्त व्यंजन खाकर तुरंत ठंडा पानी पीने आदि कारणों से खाँसी चलने लगती है। यह सामान्य खाँसी उचित परहेज करने और सामान्य सरल चिकित्सा से ठीक हो जाती है।

यदि खाँसी 8-10 दिन तक उचित परहेज और दवा लेने पर भी ठीक न होती हो तो समझ लें कि यह 'रोग का घर खाँसी' वाली श्रेणी की खाँसी है और सावधान होकर तुरन्त उचित चिकित्सा करें।

सावधानी : खाँसी के रोगी को कुनकुना गर्म पानी पीना चाहिए और स्नान भी कुनकुने गर्म पानी से करना चाहिए। कफ ज्यादा से ज्यादा निकल जाए इसके लिए जब-जब गले में कफ आए तब-तब थूकते रहना चाहिए।

मधुर, क्षारीय, कटु और उष्ण पदार्थों का सामान्य सेवन करना चाहिए। मधुर द्रव्यों में मिश्री, पुराना गुड़, मुलहठी और शहद का, क्षारीय पदार्थों में यवक्षार, नवसादर और टंकण (सोहागे का फूला), कटु द्रव्यों में सोंठ, पीपल और काली मिर्च तथा उष्ण पदार्थों में गर्म पानी, लहसुन, अदरक आदि-आदि पदार्थों का सेवन करना पथ्य है।

खटाई, चिकनाई, ज्यादा मिठाई, तेल के तले पदार्थों का सेवन करना अपथ्य है। ठंड, ठंडी हवा और ठंडी प्रकृति के पदार्थों का सेवन अपथ्य है अतः इनसे परहेज करना चाहिए।

घरेलू इलाज

1. सूखी खाँसी में दो कप पानी में आधा चम्मच मुलहठी चूर्ण डालकर उबालें। जब पानी आधा कप बचे तब उतारकर ठंडा करके छान लें। इसे सोते समय पीने से 4-5 दिन में अंदर जमा हुआ कफ ढीला होकर निकल जाता है और खाँसी में आराम हो जाता है।

2. गीली खाँसी के रोगी गिलोय, पीपल व कण्टकारी, तीनों को जौकुट (मोटा-मोटा) कूटकर शीशी में भर लें। एक गिलास पानी में तीन चम्मच जौकुट चूर्ण डालकर उबालें। जब पानी आधा रह जाए तब उतारकर बिलकुल ठंडा कर लें और 1-2 चम्मच शहद या मिश्री पीसकर डाल दें। इसे दिन में दो बार सुबह-शाम आराम होने तक पीना चाहिए।

आयुर्वेदिक चिकित्सा

श्रंगराभ्र रस, लक्ष्मी विलास रस अभ्रकयुक्त और चन्द्रामृत रस, तीनों 10-10 ग्राम तथा सितोपलादि चूर्ण 50 ग्राम। सबको पीसकर एक जान कर लें और इसकी 30 पुड़िया बना लें। सुबह-शाम 1-1 पुड़िया, एक चम्मच वासावलेह में मिलाकर चाट लें। दिन में तीन बार, सुबह, दोपहर व शाम को, 'हर्बल वसाका कफ सीरप' या 'वासा कफ सायरप' आधा कप कुनकुने गर्म पानी में डालकर पिएँ। साथ में खदिरादिवटी 2-2 गोली चूस लिया करें। छोटे बच्चों को सभी दवाएँ आधी मात्रा में दें। प्रतिदिन दिन में कम से कम 4 बार, एक गिलास कुनकुने गर्म पानी में एक चम्मच नमक डालकर आवाज करते हुए गरारे करें।

शाकाहारी तरीके से घर पर विटामिन B-12 --------------

बनाने की विधि

➡एक कटोरी पके हुए चावल लै (Take a bowl of cooked or boiled rice).
➡ चावलों को ठंडा होने दें।
➡ ठंडा होने पर इन चावलों को एक कटोरी दही में अच्छी तरह mix कर दें।
➡ इन mix किये चावलों को रात भर या कम से कम 3-4 घण्टों के लिए fridge में या किसी ठंडी जगह पर रख दें।
➡ बस प्रचुर मात्रा में विटामिन B-12 युक्त 'Fermented Curd-Rice ' खाने के लिए तैयार हैं।
➡ Fermentation की वजह से Vitamin B-12 के अलावा इसमें अन्य B-Complex विटामिन भी पैदा हो जाते हैं।
➡ दही में Lactobacillus नामक Bacteria मौजूद होता है। यह हमारा मित्र bacteria है। यह bacteria जब चावलों के ऊपर action करता है तो B-Complex vitamins पैदा होते हैं और इस विधी को Fermentation कहते हैं।
➡ इन fermented Curd-Rice को और अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए इनमें इमली की चटनी मिला कर भी खा सकते हैं। चटनी मिलाने पर यह इतने अधिक स्वादिष्ट हो जाते हैं कि बच्चे भी इन्हें दही -भल्लों की चाट की तरह बड़े चाव से खाते खा जाते हैं।
➡ इस विधी से बने Fermented food को pre- digested food भी कहते हैं क्योंकि friendly bacteria के action से यह आधे हजम तो पहले ही हो जाते हैं।
➡ यह इतने अधिक सुपाच्य होते हैं कि जिसको कुछ भी हजम न होता हो उसे भी हजम हो जाते हैं।
➡ पेट की लगभग हर बिमारी का रामबाण इलाज हैं fermented Curd-Rice.
➡ जिन्हें कुछ भी हजम न होता हो या जिनमें विटामिन B-12 की बहुत अधिक कमी हो वह प्रतिदिन तीनों समय भी इन्हें खा सकते हैं। एक महीने में ही अच्छे परिणाम सामने आएंगे।
➡ दही में चावल की बजाये रोटी से भी Fermentation कर सकते हैं। बस चावल की बजाये दही में रोटी डालकर fridge में कम से कम 3-4 घंटों के लिए रखना है , बाकी विधी वही है।

आपके दिमाग को क्षति पहुचाँ देंगे

हमारा दिमाग हमारे लिए विशेष महत्व रखता है। यह एक तरह का बायो-कम्प्यूटर है जो कि प्रकृति ने हमें दिया है। इसकी संरचना इतनी जटिल है कि आज तक वैज्ञानिक भी इसके कार्य करने के तरीकों का सही तरह पता नहीं लगा पाये हैं। यह एक असाधारण स्टोरेज मशीन है जो कि पूरी तरह कुशल है और बेकार व विपरीत स्थितियों में हमें बचाने के लिए शरीर को कमांड देती है। लेकिन इस आसाधारण मशीन को पूरी देखभाल की आवश्यकता है जैसे कि पोषक खाना, भरपूर ऑक्सीज़न और पर्याप्त आराम।

क्या आप जानते हो कि जब दिमाग की बारीक कोशिकाएं यानि कि नुरोन्स नष्ट हो जाते हैं तो इन्हें ठीक कर पाना मुश्किल है। दिमाग जितना जल्दी क्षतिग्रस्त हो सकता है, इसका इलाज उतना ही कठिन है। इसलिए हम आपको ऐसी स्वास्थ्य ही जीवन ग्रुप मे ऐसी हानिकारक चीजें बता रहे हैं जो कि आपके दिमाग को क्षतिग्रस्त कर सकती हैं।

  ये है वो खतरनाक आदते जो      
   दिमाग को क्षतिग्रस्त करते है

 नाश्ते को नजरंदाज करना
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चाहे आपको भूख नहीं हो लेकिन सुबह ब्रेकफ़ास्ट नहीं करना अच्छी आदत नहीं है। चूंकि रात का खाना खाये काफी समय हो चुका है इसलिए अगर सुबह समय पर नहीं खाया जाये तो दिमाग में ब्लड शुगर लेवल बहुत कम हो जाता है। और दिमाग शुगर से ही सुचारु कार्य करता है। इसलिए अपने शरीर को सुबह नाश्ते से चार्ज नहीं करना अपने दिमाग को मुश्किल में डालना है।

ज्यादा गर्मी दिमाग के लिए सही नहीं
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यदि हम ज्यादा देर तक गर्मी में रहते हैं तो हमें बेचैनी सी होने लगती है। ऐसे में हम ना सोच पाते हैं, ना काम कर पाते हैं। जैसा कि बताया गया है कि हमारे दिमाग को पर्याप्त वेंटिलेशन और पर्याप्त ऑक्सीज़न की आवश्यकता होती है। ज्यादा गर्मी में दिमाग तक ऑक्सीज़न पहुंचाने वाली रक्त वाहनियाँ ठोस हो जाती हैं जिससे रक्त का संचार धीमा हो जाता है। जिससे हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है जब तक कि सही तापमान ना हो जाये।



      स्मोकिंग की आदत
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स्मोकिंग के जहरीले धुए से हमारा दिमाग सिकुड़ जाता है और सही कार्य नहीं करता है। इसके जहरीले तत्व फेफड़ों में इकट्ठे होते हैं और ये रक्त के माध्यम से दिमाग में पहुँचते हैं जिससे अल्जाइमर और अन्य कई दिमाग से संबन्धित खतरनाक बीमारियाँ होती हैं।


   शुगर का ज्यादा सेवन खराब है
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यह सही है कि हमारा दिमाग शुगर से ही काम करता है लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि आप दिमाग को ज्यादा चलाने के लिए ज्यादा चीनी खाने लग जाएँ। यह सही तरीका नहीं है। हर चीज के अति बेकार होती है। शुगर की मात्रा ज्यादा होने पर प्रोटीन जैसे आवश्यक पोषक तत्व अवशोषित नहीं हो पाते हैं जिससे शरीर और दिमाग दोनों क्षतिग्रस्त होते हैं।


     प्रदूषित हवा में सांस लेना
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जैसा कि बताया गया है दिमाग के सही कार्य करने के लिए ऑक्सीज़न आवश्यक है। लेकिन जब हवा प्रदूषित होती है तो हम सही मात्रा में ऑक्सीज़न नहीं ले पाते हैं और सांस के साथ कई बेकार केमिकल्स शरीर में प्रवेश करते हैं। इससे ऑक्सीज़न कम और ऐसे तत्व शरीर और दिमाग में ज्यादा प्रवेश करते हैं। समय के साथ-साथ ये हमारे दिमाग को नुकसान पहुंचाते हैं। यदि ज्यादा समय तक ऐसा होता रहा तो खतरनाक बीमारियाँ भी हो सकती हैं।

       पूरी नींद ना ले पाना
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दिमाग के लिए सोना और आराम करना बहुत आवश्यक है ताकि वह अगले दिन सही तरह काम कर सके। इसलिए यह सलाह दी जाती है कि रात को समय पर सोएँ। यदि आप नहीं सोएँगे तो दिमाग की नसें थक जाएंगी और मृत हो जाएंगी, जिससे कि दिमाग क्षतिग्रस्त हो सकता है और साथ ही दिमाग की कार्य क्षमता भी कम होती है।



   सोते समय सिर को ढंकना
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ऐसा करना आरामदायक है और शरीर को अच्छा लगता है, लेकिन यह सही नहीं है। रात को जब आप सिर ढ़क कर सोते हैं तो आपके शरीर से निकालने वाली कार्बन-डाई-ऑक्साइड शरीर और दिमाग में प्रवेश करती है। इसकी ज्यादा मात्रा दिमाग को नुकसान पहुंचा सकती है।

बीमार होने पर भी दिमागी काम करते
                    रहना
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आपने देखा होगा कि जब भी आपको किसी प्रकार की कोई बीमारी होती है तो आप काम पर और पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। ऐसी हालत में आपका दिमाग आपको उस बीमारी से ठीक करने और फिर से कार्य करने योग्य बनाना चाहता है। लेकिन आप उस पर काम का बोझ डाल देते हैं जिससे उसकी कार्य क्षमता पहले से भी ज्यादा कम हो जाती है। इसलिए बीमारी की हालत में डॉक्टर आपको आराम करने की सलाह देते हैं।

      सोच-विचार की कमी
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अपने दिमाग को ठीक करने का तरीका है इसको काम में लेना। यानि किसी विषय पर सोचना। नई सोच और आइडियाज पैदा करना दिमाग के लिए अच्छा है।

 बातचीत की कमी और अकेलापन


अकेले रहना आपकी सोशियल लाइफ के लिए ही  ही नहीं बल्कि आपके दिमाग के लिए भी सही नहीं है। इसलिए जरूरी है कि आप लोगों के बीच बैठें और विभिन्न विषयों पर चर्चा करें। किसी विषय पर बौद्धिक चर्चा करने से दिमाग में नए विचार, नई राय और नए समाधान आएंगे जिससे कि दिमाग स्वस्थ रहेगा।

बालों को घने काले और लम्बे बनाने के चमत्कारी 29सूत्र।।

1- घी खाएं और बालों के जड़ों में घी मालिश करें।

2- गेहूं के जवारे का रस पीने से भी बाल कुछ समय बाद काले हो जाते हैं।

3- तुरई या तरोई के टुकड़े कर उसे धूप मे सूखा कर कूट लें। फिर कूटे हुए मिश्रण में इतना नारियल तेल डालें कि वह डूब जाएं। इस तरह चार दिन तक उसे तेल में डूबोकर रखें फिर उबालें और छान कर बोतल भर लें। इस तेल की मालिश करें। बाल काले होंगे।

4- नींबू के रस से सिर में मालिश करने से बालों का पकना, गिरना दूर हो जाता है। नींबू के रस में पिसा हुआ सूखा आंवला मिलाकर सफेद बालों पर लेप करने से बाल काले होते हैं।

5- बर्रे(पीली) का वह छत्ता जिसकी मक्खियाँ उड़ चुकी हो 25 ग्राम, 10-15 देसी गुड़हल के पत्ते,1/2 लीटर नारियल तेल में मंद मंद आग पर उबालें सिकते-सिकते जब छत्ता काला हो जाये तो तेल को अग्नि से हटा दें. ठंडा हो जाने पर छान कर तेल को शीशी में भर लें. प्रतिदिन सिर पर इसकी हल्के हाथ से मालिश करने से बाल उग जाते हैं और गंजापन दूर होता है.

6- कुछ दिनों तक, नहाने से पहले रोजाना सिर में प्याज का पेस्ट लगाएं। बाल सफेद से काले होने लगेंगे।

 7- नीबू के रस में आंवला पाउडर मिलाकर सिर पर लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।

8- तिल का तेल भी बालों को काला करने में कारगर है।

9- आधा कप दही में चुटकी भर काली मिर्च और चम्मच भर नींबू रस मिलाकर बालों में लगाए। 15 मिनट बाद बाल धो लें। बाल सफेद से काले होने लगेंगे।

10- नीम का पेस्ट सिर में कुछ देर लगाए रखें। फिर बाल धो लें। बाल झड़ना बंद हो जाएगा।

11- चाय पत्ती के उबले पानी से बाल धोएं। बाल कम गिरेंगे।

12- बेसन मिला दूध या दही के घोल से बालों को धोएं। फायदा होगा।

13- दस मिनट का कच्चे पपीता का पेस्ट सिर में लगाएं। बाल नहीं झड़ेंगे और डेंड्रफ (रूसी) भी नहीं होगी।

14- 50 ग्राम कलौंजी 1 लीटर पानी में उबाल लें। इस उबले हुए पानी से बालों को धोएं। इससे बाल 1 महीने में ही काफी लंबे हो जाते हैं।

15- नीम और बेर के पत्तो को पानी के साथ पीसकर सिर पर लगा लें और इसके 2-3 घण्टों के बाद बालों को धो डालें। इससे बालों का झड़ना कम हो जाता है और बाल लंबे भी होते हैं।

16- लहसुन का रस निकालकर सिर में लगाने से बाल उग आते हैं।

17- सीताफल के बीज और बेर के बीज के पत्ते बराबर मात्रा में लेकर पीसकर बालों की जड़ों में लगाएं। ऐसा करने से बाल लंबे हो जाते हैं।

18- 10 ग्राम आम की गिरी को आंवले के रस में पीसकर बालों में लगाना चाहिए। इससे बाल लंबे और घुंघराले हो जाते हैं।

19- शिकाकाई और सूखे आंवले को 25-25 ग्राम लेकर थोड़ा-सा कूटकर इसके टुकड़े कर लें। इन टुकड़ों को 500 ग्राम पानी में रात को डालकर भिगो दें। सुबह इस पानी को कपड़े के साथ मसलकर छान लें और इससे सिर की मालिश करें। 10-20 मिनट बाद नहा लें। इस तरह शिकाकाई और आंवलों के पानी से सिर को धोकर और बालों के
सूखने पर नारियल का तेल लगाने से बाल लंबे, मुलायम और चमकदार बन जाते हैं।

20- ककड़ी में सिलिकन और सल्फर अधिक मात्रा में होता है जो बालों को बढ़ाते हैं। ककड़ी के रस से बालों को धोने से तथा ककड़ी, गाजर और पालक सबको मिलाकर रस पीने से बाल बढ़ते हैं। यदि यह सब उपलब्ध न हो तो जो भी मिले उसका रस मिलाकर पी लें। इस प्रयोग से नाखून गिरना भी बन्द हो जाता है।


21- कपूर कचरी 100 ग्राम, नागरमोथा 100 ग्राम, कपूर तथा रीठे के फल की गिरी 40-40ग्राम, शिकाकाई 250 ग्राम और आंवले 200 ग्राम की मात्रा में लेकर सभी का चूर्ण तैयार कर लें। इस मिश्रण के 50 ग्राम चूर्ण में पानी मिलाकर लुग्दी(लेप) बनाकर बालों में लगाना चाहिए। इसके पश्चात् बालों को गरम पानी से खूब साफ कर लें। इससे सिर के अन्दर की जूं-लींकें मर जाती हैं और बाल मुलायम हो जाते हैं।

22- गुड़हल के फूलों के रस को निकालकर सिर में डालने से बाल बढ़ते हैं।

 23- गुड़हल के ताजे फूलों के रस में जैतून का तेल बराबर मिलाकर आग पर पकायें, जब जल का अंश उड़ जाये तो इसे शीशी में भरकर रख लें। रोजाना नहाने के बाद इसे बालों की जड़ों में मल-मलकर लगाना चाहिए। इससे बाल चमकीले होकर लंबे हो जाते हैं।

24- बालों को छोटा करके उस स्थान पर जहां पर बाल न हों भांगरा के पत्तों के रस से मालिश करने से कुछ ही दिनों में अच्छे काले बाल निकलते हैं जिनके बाल टूटते हैं या दो मुंहे हो जाते हैं।

25- त्रिफला के चूर्ण को भांगरा के रस में 3 उबाल देकर अच्छी तरह से सुखाकर खरल यानी पीसकर रख लें। इसे प्रतिदिन सुबह के समय लगभग 2 ग्राम तक सेवन करने से बालों का सफेद होना बन्द जाता है तथा इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।

26- आंवलों का मोटा चूर्ण करके, चीनी के मिट्टी के प्याले में रखकर ऊपर से भांगरा का इतना डाले कि आंवले उसमें डूब जाएं। फिर इसे खरलकर सुखा लेते हैं। इसी प्रकार 7भावनाएं (उबाल) देकर सुखा लेते हैं। प्रतिदिन 3 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ सेवन से करने से असमय ही बालों का सफेद होना बन्द जाता
है। यह आंखों की रोशनी को बढ़ाने वाला, उम्र को बढ़ाने वाला लाभकारी योग है।

27- भांगरा, त्रिफला, अनन्तमूल और आम की गुठली का मिश्रण तथा 10 ग्राम मण्डूर कल्क व आधा किलो तेल को एक लीटर पानी के साथ पकायें। जब केवल तेल शेष बचे तो इसे छानकर रख लें। इसके प्रयोग से बालों के सभी प्रकार के रोग मिट जाते हैं।


 28- 250 ग्राम अमरबेल को लगभग 3 लीटर पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाये तो इसे उतार लें। सुबह इससे बालों को धोयें। इससे बाल लंबे होते हैं।


29- त्रिफला के 2 से 6 ग्राम चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग लौह भस्म मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बालों का झड़ना बन्द हो जाता है।