Tuesday 31 October 2017

मोटापा कम करने में रामबाण गुगल


हम मोटापा की दवा गूगल से बना रहे हैं जो आप को मोटापा की  बहुत सी बीमारियों से राहत दिलाएगी।

               गूगल बारे जाने आज----

          ★दवा कोरियर से मंगवा सकते हैं आप★

आयुर्वेद में गुग्गुल को कफ, वात, कृमि और अर्श नाशक माना गया हैं। 

गुग्गुल को कई रोगों का नाश करने वाला माना गया हैं। 

गुग्गुल के फायदे

★★★
कब्ज़ से राहत दिलाये

कब्ज़ को दूर करने में गुग्गल चूर्ण लेने से काफी लाभ मिलता हैं। 5 ग्राम गुग्गल चूर्ण को 5 ग्राम त्रिफला पाउडर के साथ मिला कर गुनगुने पानी के साथ लेने से पुरानी से पुरानी कब्ज़ को दूर किया जा सकता हैं और इससे शरीर में होने वाली सूजन से भी राहत मिलती हैं।

★★★
जोड़ो का दर्द दूर करे

जब जोड़ो में ज़हरीले अवशेष जमा हो जाते हैं तो इस कारण जोड़ो में दर्द होने लगता हैं। जोड़ो के दर्द से राहत पाने में गुग्गुल का सेवन फायदा पहुचाता हैं। यह जोड़ो से अवशेषों को निकाल देता हैं और जोड़ो के मूवमेंट को भी ठीक करता हैं।

★★★
गंजापन दूर भगाए

भाग दौर भरी जिंदगी के चलते खराब खानपान और गलत लाइफस्टाइल के चलते न सिर्फ बढ़ती उम्र के लोग बल्कि युवा भी गंजेपन की समस्या का सामना कर रहे हैं। अगर आप भी गंजेपन से परेशान हैं तो गुग्गुल को सिरके में मिला कर सुबह-शाम गंजेपन वाली जगह पर नियमित रूप से लगाने से फायदा मिलता हैं। इससे आप गंजेपन की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं। इस उपाय को अपनाने से सिर में नए बाल उगने लगते हैं।

★★★
कोलेस्ट्रॉल लेवल कम करे

यह कोलेस्ट्रॉल और tryglescride को कम करने में उपयोगी हैं। गुग्गुल के सेवन से 3 महीनो में 30% तक कोलेस्ट्रॉल कम हो जाता हैं।

★★★
स्किन के लिए फायदेमंद

खून की खराबी की वजह से शरीर पर फोड़े-फुंसी और चकत्ते निकाल आते हैं, इन्हें दूर करने में गुग्गल बहुत ही फायदेमंद होता हैं। क्योंकि गुग्गुल के सेवन से यह रक्त शोधक का काम करते हैं और इससे खून साफ़ होता हैं। स्किन से सम्बंधित समस्याओं को दूर करने के लिए गुग्गुल के पाउडर को सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लेने से फायदा होता हैं।

★★★
दिल के लिए अच्छा

यह रक्त में प्लेट्स को चिपकने से रोकता हैं और दिल की बीमारी और स्ट्रोक होने से आपको बचाता हैं।

★★★
खट्टी डकार से राहत दिलाये

कभी कभी उल्टा-सीधा खा लेने या ज्यादा मिर्च मसाले वाली चीज़े खाने से अमल्पित्त यानि की खट्टी डकार आने लगती हैं। इस समस्या को दूर करने में गुग्गुल ज्यादा लाभकारी होता हैं। 1 चम्मच गुग्गुल को पानी में मिलाये और इसे 1 घंटे तक रख दे। 1 घंटे बाद इस पानी को छान कर खाना खाने के बाद पिए। इससे खट्टी डकारों से छुटकारा मिल जाता हैं।

★★★
हड्डियों के लिए फायदेमंद

हड्डियों की समस्या को दूर करने में गुग्गुल लाभकारी होता हैं। हड्डियों में सूजन, चोट लगने के होने वाला दर्द और टूटी हड्डियों को जोड़ने और खून के जमाव को दूर करने में गुग्गुल बहुत ही ज्यादा फायदेमंद होता हैं।

★★★
थायराइड से राहत दिलाये

यह थायराइड ग्रन्थि के कार्य करने में सुधार करता हैं। बॉडी की फैट जलाने में मदद करता हैं और शरीर में गर्मी पैदा करता हैं।

★★★
मूंह के लिए फायदेमंद

मूंह से सम्बंधित समस्याओं को दूर करने में गुग्गुल बहुत ही लाभकारी माना जाता हैं। गुग्गुल को मूंह में रखने या गर्म पानी में घोलकर दिन में 2 से 3 बार कुल्ला करने से मूंह के छालें, घाव और जलन को ठीक किया जा सकता हैं। यह मूंह के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद होता हैं।

★★★
मोटापा दूर करे

गुग्गुल का इस्तेमाल मोटापा दूर करने के लिए भी किया जाता हैं। इसके सेवन से मेटाबोलिज्म तेज़ बनता हैं और मोटापे से छुटकारा मिलता हैं। पुराने ज़माने से ही गुग्गुल को मोटापा कम करने की औषिधि मानी जाती हैं। शुद्ध गूग्गल की 1 से 2 ग्राम मात्रा गर्म पानी के साथ दिन में 3 बार लेने से मोटापे से निजात मिलती हैं। गुग्गुल शुद्ध करने के लिए इसे त्रिफला के काढ़े और दूध में पका ले। इसके उपयोग से पेट में बनने वाली गैस भी ठीक हो जाती हैं।

★★★★
सूजन और दर्द दूर करे

गूग्गल में इन्फ्लामेशन गुण पाए जाते हैं जो सूजन से राहत दिलाते हैं। इसके अलावा यह शरीर के नर्वस सिस्टम को भी मजबूत बनाता हैं।

★★★
गर्भाशय के रोग दूर करे

गर्भाशय के रोग दूर करने के लिए गूग्गल फायदेमंद होता हैं। गुग्गल को गुड़ के साथ सुबह-शाम लेने से कई तरह के गर्भाशय रोग दूर हो जाते हैं। अगर बहुत ज्यादा जटिल रोग हैं तो 4 से 6 घंटे के बीच में इसका सेवन करते रहे।

★★★★
हाई ब्लड प्रेशर कम करे

ब्लड प्रेशर को नार्मल बनाये रखने में गुग्गुल बहुत ही फायदेमंद होता हैं। अगर आप हाई ब्लड प्रेशर के मरीज़ हैं तो इसका सेवन जरूर करे। यह दिल के लिए टॉनिक की तरह काम करता है ।

Saturday 28 October 2017

Shilajit Uses

There is no curable disease in the universe which is not effectively cured by Shilajit – Master Charaka. Shilajit is one of the sought after Ayurvedic product in the market. From body building, to treating disorders such as diabetes, asthma etc, shilajat is very commonly used.
Sanskrit Synonyms of Sijajeet:
Shailodbhava, Shaileya, Shaila, Girijaatu, Adrija, Shailadhatuja – procured from hills and mountains
Shilamaya, Shilasweda, Shila Niryasa, Ashma Laksha and Gaireya – resembles black stone in shape and size.
Introduction to Silajit:
It is known to Indians since thousands of years. Silajit is mentioned in Ancient Ayurvedic text books  – Charaka Samhita, Sushruta Samhita etc, which were written 3000 years ago.
Traditional belief:
In ancient times, the mountains getting heated due to strong sun rays of Jeshta and ashada months (Summer) melt the layers of the mountain, yielding a resin kind of semisolid liquid, Shilajathu. This resembles coal tar in consistency and upon drying it gains shine. It readily dissolves in water.
It is considered as Fulvic acid.
Fulvic acid: 
Fulvic acid is a semisolid substance that is created as organic matter decomposes.
Fulvic acids is a mxiture of organic acids, herbal, metallic compounds, and components of the humus (which is a fraction of soil organic matter).
Research has also found that Shilajit is the resin obtained from an herb called Asphaltum punjabinum.
Hence Silajitu is called Asphaltum in Sanskrit.
So, asphaltum and fulvic acid – both these are used in the name of Shilajit.
Availability: It is available in hilly areas Kashmir,  Japan, Bhutan, Tibet and Gilgit.
Types of Shilajeeth:
2 types:
Gomutra Shilajitu (Mineral pitch) and
Karpura Shilajatu (Potassium nitrate)
It is also classified as
Sasatwa Shilajatu and
Nisatwa shilajatu.
Acharya Charaka has mentioned about 4 types –
Swarnagarbha Silajatu – Obtained from the mountains and areas where gold ores are found
Rajatagarbha Shilajathu – Obtained from the mountains and areas where silver ores are found
Tamragarbha Shilajatu – Obtained from the mountains and areas where copper ores are found
Lohagarbha Shilajatu  – Obtained from the mountains and areas where iron ores are found
Acharya Sushruta has added two more types to the above to explain 6 – those two are –
Naga garbha Shilajatu and
Vangagarbha Shilajatu.
Test for Shilajatu –
Shilajit kept over burning coal, should not produce fume and it gains the shape of Linga.
Tastes bitter and hot.
Shilajatu kept in water, yields white spreading streaks.
1 gram of Shilajatu causes urination within 15 to 20 minutes after consumption.
Shilajit Shodhan:
Dry Shilajatu is powdered, taken in a big iron vessel, added with 2 -4 times of hot water, stirred well. Next day it is filtered to  separate solid waste particles. The water solution of Shilajit is collected. It is heated till the water reaches boiling point.
Again 2 parts of water is added and heated till boiling point, allowed to cool down. While cooling down, Shilajit is forms a foamy layer on top of the vessel. It is carefully collected.
This process is repeated till the foam is formed.
Then, the obtained mass of Shilajatu is made into a bolus and daily dried in sunlight.
The process is stopped after the foam formation is stopped.
Thus obtained product is called Agnitapi Shilajit.
If heating is done under direct sunlight, then it is called Suryatapi Shilajit.
Shilajitu purification using herbal products:
In the above procedure, in the place of water, Triphala kwatha, Gomutra, Goksheera, Bhringaraja swarasa can also be used.
This helps in adding additional benefits of Triphala, cow urine and Bhringaraja (Eclipta alba) to the Shilajit.
Shilajit  Marana – incineration:
Nowadays, Marana of Shilajatu is not in practice. Shuddha Shilajatu is in use. But there are classical reference of its Marana, hence it is mentioned here.  –
Equal parts of Manashila, gandhaka and Haratala is added with Shilajatu and triturated with beejapura Nimbu (Bijora lemon)  and cakes are prepared, kept in Sharva samputa and 8 Upala Puta is given to get its Bhasma.
Satwapatana:
Shilajatu is added with Dravaka gana and Amladrava and made into bolus, dried taken in Musha and subjected to immense heat, to get Satwa similar to Loha. But it is possible only in Sasatwa Shilajatu.
Dosage –
2-8 Ratti = 250 mg to 1 gram, once or twice a day, or as directed by Ayurvedic doctor. 
Dose of Shilajit capsule or tablet –
250 – 500 mg tablet or capsule – once or twice a day after food is consumed.
How long can Shilajeet be taken?
It can be taken for a period of 6 – 8 weeks at a stretch.
If you are considering taking it for a very long period of time, then better to take it for 2 months, then give a gap of 1 month and continue again.
Better to avoid it during summer.
As per Charaka Samhita:
1 Pala (48 g) – highest potency
1/2 Pala (24g) – Moderate potency
1 Karsha (12 g) – lowest potency
In practice, 1 – 2 grams per day is used in divided doses.
Shilajeet  qualities: (Charaka Samhita Chikitsa Sthana 1st chapter 3rd section)
Anamla – not very sour
Kashaya – astringent taste
Katu Paka – Undergoes pungent taste conversion after digestion
Na Ati ushna – neither too hot, nor too cold
It exudes from the stones  / ores of four types of metals viz, gold, silver copper and black iron.
The Shilajeet from the black iron ore is the best.
If administered with proper procedure, it produces rejuvenating and aphrodisiac effects and cures diseases.
Its potency increases by impregnating it with the kashayha of herbs which alleviate Vayu, Pitta and Kapha.
Impregnation can be done by these drugs individually or by all of them taken together. [48-50]
There is no curable disease in the universe which is not effectively cured by Shilajatu when administered at the appropriate time, in combination with suitable drugs and by adopting the prescribed method.
When administered to a healthy person, with similar conditions it produces immense energy.[62-65]
Diseases in which shilajit is commonly used: 
Shilajit for obesity and weight loss:
Usually cow urine, hot water, Triphala etc are used along with Shilajit for this purpose.
Shilajit – 500 mg along with Triphala churna – 3 grams – once or twice a day is an excellent
Genito  urinary tract diseases:
For urinary tract infection and difficulty in urination, Shilajit is usually administered along with Punarnava kashaya, Gokshura (tribulus).
Body building: Usually Shilajit is administered along with Ashwagandha or Tribulus.
Ashwagandha is used when muscle bulk and stamina are to be increased and
Tribulus is used when muscle shaping, and improving on muscle cuts is desired.
Shilajit for sexual disorders:
Usually it is administered along with Ashwagandha, Kapikacchu, Gokshura, Shatavari etc herbs for the treatment of
Premature ejaculation
Erectile dysfunction
Decreased hardness
Decreased mood.
Damaged sperms, Low sperm count (Oligospermia): For this, it is used along with Putrajiva, Kapikacchu etc.
Shilajit is also used for the treatment of
Diabetes, Gallstones, Jaundice.

Shilajeet Rasayanam:
  • Shilajatu is immersed into the hot decoction of the drugs that are prescribed for alleviating the aggravation of Doshas and
  • After it has absorbed the decoction, it should be immersed again.
  • This process should be repeated for seven days.
  • This processed Shilajatu mixed with the powder of iron should be administered with milk.
Benefits:
This is an elixir for long life and happiness.
It prevents ageing and diseases.
It is an excellent drug for producing sturdiness of the body.
It also promotes Medha ( intellect), Smrti(memory) and Dhana (wealth).
Pathya: the person should live on milk.
Duration:
7 weeks – excellent effect
3 weeks – moderate effect and
1 week – very little effect
Shilajit types and their uses:
Stones of metals like gold etc, in the mountains get heated up by the sun and the exudate that comes out of them in the form of smooth and clean gum is called Silajatu.

Shilajeet from the stones containing gold,
Sweet and is bitter after taste,
like the flower of Japa (Hibiscus flower) in appearance,
pungent in Vipaka (taste conversion after digestion)
From the stone containing silver,
pungent in taste
white, cooling and
Sweet in Vipaka.
From the stone containing copper,
is like the peacock throat,
bitter in taste
Hot and pungent in Vipaka.
The exudates which looks like the gum of Guggulu (Commifora mukul Engl.)
Is bitter and Saline
pungent in Vipaka, and cooling
Is derived from the stone containing iron. This is the best among all.
All these types of Shilajeet having the smell of cow’s urine are useful in all types of therapies. However, for rejuvenation therapy, the last variety (i.e the one derived from the stone contain iron) in more useful.
In diseases caused by
  • Vayu- Pitta – gold
  • Kapha- Pitta – silver
  • Kapha – copper and
  • all the three Dosas – iron containing stones are useful
Contra indicated foods while taking recipe of Silajatu,
Foods that cause burning sensation(vidahi) – excessive spices
Guru( heavy) – heavy to digest foods.
Kulattha (horse gram) should be avoided forever (or till such time as the person has the effects of Silajatu in his body)
Reason for avoiding horse gram:
It is commonly seen that horse gram is an excellent drug for breaking stones.
By taking Shilajatu, the body of the person becomes like a stone to effect sturdiness in it.
Therefore, horse gram and Shilajatu have mutually contradicting effects, and is prohibited for a person who is using or who has used Shilajatu.
Ingredients which can be used with Shilajatu:
Milk, Butter milk
Meat soup, Vegetable soup
Water, decoction of different types of herbs
Side effects and precautions:
Seek your doctor’s advice for its usage during pregnancy.
This product can be safely used during lactation period and in children for a limited period of few weeks time.
Keep out of reach and sight of children.
Store in a cool dry place.
Ayurvedic medicines with Shilajit as ingredient:
Shilajitwadi Lauh Bati: 
Used in the treatment of chronic respiratory disorders.
Shiva Gutika: It is used for a variety of diseases like liver and spleen disorders, respiratory conditions, neuro-psychiatric conditions etc.
Chandraprabha Vati: Used in Ayurvedic treatment of diabetes, diseases of urinary track, and many other disease conditions.
Research on Shilajit:
Procognitive activity:

Recent investigations point to an interesting medical application toward the control of cognitive disorders associated with aging, and cognitive stimulation. Thus, fulvic acid, the main active principle, blocks tau self-aggregation, opening an avenue toward the study of Alzheimer’s therapy. 

Effect on testosterone level:
Purified Shilajeet, was evaluated in healthy volunteers of age between 45 and 55 years for its effect on male androgenic hormone viz. testosterone in a randomized, double-blind, placebo-controlled clinical study at a dose of 250 mg twice a day. Treatment with Shilajit for consecutive 90 days revealed that it has significantly (P < 0.05) increased total testosterone, free testosterone and dehydro-epiandrosterone (DHEAS) compared with placebo. Gonadotropic hormones (LH and FSH) levels were well maintained.
Names in different languages:
English name – mineral pitch, mineral wax, black asphaltum,
Latin name – Asphaltum punjabianum
Local names – Shargai, dorobi, barahshin, baragshun
Farsi name – Mumlai
Russian name – Mumiyo, Mumijo
Persian name – Mumiya

Saturday 21 October 2017

कफ क्या होता है

कफ का असर शरीर के सर से लेकर सीने तक होता है जैसे : 

सिर, नाक, गले, छाती, फेफड़े, नसों, मुख । 

कफ दोष को जैविक जल कहा जा सकता है।

 यह दोष पृथ्वी और जल इन दो महाभूतों द्वारा उत्पन्न होता है। 

पृथ्वी तत्व किसी भी पदार्थ की संरचना के लिए आवश्यक है अथार्त शरीर का आकार और संरचना कफ दोष पर आधारित होते है।

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कफ दोष के लक्षण :- 

जब कफ का संतुलन बिगड़ता है तो ऐसे लक्षण व्यक्ति के समाने नजर आते हैं जैसे- मोटापा बढ़ना, आलस्य, भूख- प्यास कम लगना, मुंह से बलगम का आना, नाखून चिकने रहते हैं, गुस्सा कम आता है, घने, घुंघराले, काले केश(बाल) होना, आखों का सफ़ेद होना, जीभ का सफेद रेग के लेप की तरह का होना, कभी-कभी कभी लार भी बहती है, मूत्र सफेद सा, मूत्र की मात्रा अधिक होना, गाढ़ा व चिकना होना नींद अधिक आना इत्यादि।

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                        ◆कफ विकार◆

           बलगम आसानी से निकालने के लिए।

बहेड़ा की छाल का टुकड़ा मुख में रखकर चूसते रहने से खांसी मिटती हैं और कफ आसानी से निकल जाता हैं। खांसी की गुदगुदी बंद होकर नींद आ जाती हैं।

अगर ये ना कर सकते हो तो अदरक को छीलकर मटर के बराबर उसका टुकड़ा मुख में रखकर चूसने से कफ सुगमता से निकल आता हैं।

◆◆◆

            ●बलगम साफ़ करने के लिए●

आंवला सूखा और मुलहठी को अलग अलग बारीक करके चूर्ण बना ले। और मिलाकर रख ले।

 इसमें से एक चम्मच चूर्ण दिन मे दो बार खाली पेट प्रात : सांय दो सप्ताह आवश्यकतानुसार ले।

 छाती में जमा हुआ बलगम साफ़ हो जायेगा।

विशेष – उपरोक्त चूर्ण में बराबर वजन की मिश्री का चूर्ण डालकर मिला ले। 6 ग्राम चूर्ण 250 ग्राम दूध में डालकर पिए तो गले के छालो में शीघ्र आराम होगा।

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         ★यदि कफ छाती पर सूख गया हो तो★

25 ग्राम अलसी (तीसी) को कुचलकर 375 ग्राम पानी में औटाये। जब पानी एक तिहाई 125 ग्राम रह जाए, तो उसे मल छानकर १२ ग्राम मिश्री मिलाकर रख ले। उसमे से एक चम्मच भर काढ़ा एक एक घंटे के अंतर से दिन में कई बार पिलाये। इससे बलगम छूट जाता हैं। जब तक छाती साफ़ न हो, इसे पिलाते रहे।

विशेष – खांसी से बिना कफ निकले ही, कोई गर्म दवा खिलाई जाती हैं तो कफ सूखकर छाती पर जम जाता हैं। सूखा हुआ कफ बड़ी कठिनाई से निकलता हैं और खांसने में कफ निकलते समय बड़ी पीड़ा होती हैं। छाती पर कफ का घर्र घर्र शब्द होता हैं। उपरोक्त नुस्खे से सूखा कफ छूट जाता हैं। सूखी और पुरानी खांसी में निश्चय ही लाभ होता हैं।

◆◆◆

         खांसी की सभी अवस्थाओ के लिए 
विशेष लाभदायक ‘सुहागा और मुलहठी का चूर्ण‘

सुहागे का फूला और मुलहठी को अलग अलग खरल कर या कूटपीसकर कपड़छान कर, मैदे की तरह बारीक चूर्ण बना ले। फिर इन दोनों औषिधियो को बराबर वजन मिलाकर किसी शीशी में सुरक्षित रख ले। बस श्वांस, खांसी, जुकाम की सफल दवा तैयार हैं।

सेवन विधि –

साधारण मात्र आधा ग्राम से एक ग्राम तक दवा दिन में दो तीन बार शहद के साथ चाटे या गर्म जल के साथ ले। बच्चो के लिए एक रत्ती (चुटकी भर) की मात्रा या आयु के अनुसार कुछ अधिक दे।

परहेज – दही, केला, चावल, ठन्डे पदार्थो का सेवन ना करे। 

अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी हो तो अपने मित्रो के साथ ज़रूर शेयर करे। 

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कफ दोष से होने वाले रोग :- 

जब कफ का संतुलन बिगड़ता है तो ऐसे रोग हमको लग जातें हैं जैसे सिर का दर्द, खांसी, जुकाम, आधासीसी दर्द, शरीर में आलस्य बढ़ जाता है इत्यादि।

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कफ का संतुलन बिगड़ने के कारण :- 

कफ बिगड़ने के कई कारण हो सकते हैं जैसे- कफ स्वरूप वाले सेवन से फल जैसे बादाम , केले, आम, खरबूजा, पपीता इत्यादि,

 और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे अधिक मात्रा में वसायुक्त पदार्थ का सेवन करना जैसे मांस, ढूध मक्खन, पनीर, क्रीम, इत्यादि।

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कफ का संतुलन कैसे बनायें :- 

कफ संतुलन बनाने के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा जैसे सुबह का नास्ता थोडा हल्का करें और सुबह गुनगुने पानी का प्रयोग करें।

त्रिफ़ला चूर्ण का प्रयोग करे क्यूंकि कफ का प्रभाव सबसे ज्यादा सुबह के समय होता है ।
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         ★सुखी और तर खांसी★

भुनी हुई फिटकरी दस ग्राम और देशी खांड 100 ग्राम, दोनों को बारीक़ पीसकर आपस में मिला ले और बराबर मात्रा में चौदह पुड़िया बना ले। सुखी खांसी में 125 ग्राम गर्म दूध के साथ एक पुड़िया नित्य सोते समय ले। गीली खांसी में 125 ग्राम गर्म पानी के साथ एक पुड़िया नित्य सोते समय ले।

◆◆◆

     ◆पुरानी खांसी के लिए फिटकरी का फुला ◆

फिटकरी को पीसकर लोहे की कड़ाही में या तवे पर रखकर आग पर चढ़ा दे। फूलकर पानी हो जाएगी। जब सब फिटकरी पानी होकर नीचे की तरफ से खुश्क होने लगे तब उसी समय आंच तनिक कम करके किसी छुरी आदि से उल्टा दे। अब फिर दोबारा आंच थोड़ी
अब फिर दोबारा आंच थोड़ी तेज करे तांकि इस तरफ भी नीचे से खुश्क होने लगे। फिर इस खुश्क फूली फिटकरी का चूर्ण बनाकर रख ले। इस तरह फिटकरी का कई रोगो में सफलतापूर्वक बिना किसी हानि के में व्यवहार में लायी जाती हैं।

विशेष- इससे पुरानी से पुरानी खांसी दो सफ्तह के अंदर दुर हो जाती है। साधारण दमा भी दूर हो जाता है। गर्मियों की खांसी के लिए विशेष लाभप्रद है। बिलकुल हानिरहित सफल प्रयोग है।

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अगर आप इन सूत्रों का अच्छे से पालन करेंगे तो आपके ये तीनो दोष वात, पित्त, कफ हमेसा संतुलित रहंगे और आप कभी भी बीमार नहीं पड़ेंगे।

Thursday 5 October 2017

जिगर का रोग (LIVER DISEASES)

परिचय :

          जिगर शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि होती है जिसमें शरीर के लिए गुणकारी पाचक रस (एन्जाइम) पित्त की उत्पत्ति होती है। जब किसी कारण से जिगर में कोई बीमारी हो जाती है तो शरीर में कई प्रकार के रोग उत्पन्न होने लगते हैं। 

जिगर के रोग से पीड़ित रोगी की चिकित्सा समय पर न होने और भोजन में लापरवाही रखने से मुत्यु भी हो सकती है।

कारण :

          जिगर के रोग होने के कई कारण होते हैं जैसे- अनियमित और अधिक घी, तेल, मिर्च-मसालेदार भोजन करना, अम्ल रसों का सेवन करना आदि। 

जो व्यक्ति अधिक शराब और सिगरेट पीता है वह यकृत (जिगर) रोग से अधिक पीड़ित होते हैं। आइसक्रीम, चॉकलेट, मिठाई आदि खाने से बच्चों का जिगर जल्दी खराब हो जाता है।

 बासी भोजन भी यकृत को बहुत हानि पहुंचाती है। अधिक मात्रा में खाने और शारीरिक कार्य न करने वाले किशोर में भी यकृत की बिमारी होती है। 

आन्तों में कृमि होने पर भी किशोर यकृत की बीमारी से पीड़ित हो जाते हैं। कुछ संक्रमक रोगों के होने पर भी यकृत बढ़ जाता है। बच्चों को मलेरिया होने पर भी यकृत बढ़ जाता है।

लक्षण :

          यकृत रोग से बहुत से लोग पीड़ित हैं। इस रोग में कई प्रकार के लक्षण उत्पन्न होते हैं, जैसे- 

यकृत कड़ा होना, आकार में कुछ बड़ा हो जाना, दबाने से दर्द होना, दस्त का रुक जाना, जीभ पर सफेदी और मैल जमा होना, सिर में दर्द होना, अरूचि, अपच, मदाग्नि, दस्त के साथ आंव आना, पेट फूलना और पेट में दर्द होना आदि।

 यह रोग बच्चों के लिए अधिक परेशानी युक्त होता है। 2 से 5 वर्ष तक के बच्चे इस रोग से अधिक परेशान होते हैं।

 कुछ लोगों को यकृत, प्लीहा रोग के कारण पीलिया रोग भी हो जाता है और आंखों में पीलापन आ जाता है।

          जिगर में सूजन पेट की खराबी या कब्ज से होती है। इस रोग में भूख कम हो जाती है, खून भी बनना कम हो जाता है, रोगी का शरीर पीला होने लगता है, सुस्ती आना लगती है तथा काम में मन नहीं लगता है। 

रोगी की ऐसी स्थिति में खान-पान पर पूरा ध्यान देना चाहिए। रोगी अधिक दुर्बल न हो पाए इसके लिए सबसे पहले कब्ज दूर करने का उपाय करना चाहिए।

विभिन्न औषधियों से उपचार :

1. गोमूत्र : 20 मिलीलीटर ताजे गोमूत्र को कपड़े से छानकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से यकृत (जिगर) की सूजन दूर होती है।

2. सोंठ : सोंठ, पीपल, चित्रक मूल, बायविडंग और दंतीमूल 10-10 ग्राम एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में 50 ग्राम हरड़ का चूर्ण मिलाकर 3-3 ग्राम सुबह-शाम गर्म पानी के साथ सेवन करने से यकृत रोग में लाभ मिलता है।

3. केला : एक पके केले में कच्चे पपीते का दूध 7-8 बूंद डालकर खाना-खाने के बाद सेवन करने से यकृत का बढ़ना ठीक होता है।

4. अपरजिता : अपरजिता के बीजों को भूनकर पीसकर चूर्ण बनाकर 3-3 ग्राम चूर्ण हल्के गर्म पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से यकृत वृद्धि ठीक होती है।

5. जंगली गूलर : जंगली गूलर की जड़ की छाल 10 ग्राम पीसकर गाय के मूत्र में मिलाकर 25 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से यकृत का बढ़ना ठीक होता है।

6. भांगरा : 10 मिलीलीटर भांगरे का रस और 2 ग्राम अजवायन का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से जिगर का बढ़ना ठीक होता है।

7. मकोय : मकोय के 25 मिलीलीटर रस को हल्का गर्म करके यकृत के ऊपर लेप करने से यकृत की सूजन दूर होती है।

8. जामुन :

जामुन के पत्तों का रस निकालकर 5 मिलीलीटर की मात्रा में कुछ दिनों तक सेवन करने से यकृत वृद्धि ठीक होती है।
200-300 ग्राम बढ़िया पके जामुन प्रतिदिन खाली पेट खाने से जिगर की खराबी दूर होती है।

9. आंवला : 4 ग्राम सूखे आंवले का चूर्ण या 25 ग्राम आंवले का रस 150 मिलीलीटर पानी में अच्छी तरह मिलाकर दिन में 4 बार सेवन करने से जिगर का रोग समाप्त होता है।

9. आंवला : 4 ग्राम सूखे आंवले का चूर्ण या 25 ग्राम आंवले का रस 150 मिलीलीटर पानी में अच्छी तरह मिलाकर दिन में 4 बार सेवन करने से जिगर का रोग समाप्त होता है।

10. हरड़ : बड़ी हरड़ को पीसकर पुराने गुड़ में मिलाकर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर सुखा लें। यह 1-1 गोली सुबह-शाम सेवन करने से 30-40 दिनों में यकृत की सूजन दूर हो जाती है।

11. पपीता : पपीते के बीजों को सुखाकर बारीक चूर्ण बना लें और इसमें से 3 ग्राम चूर्ण आधे नीबू के रस में मिलाकर सेवन करें। दिन में 2 बार इस चूर्ण का सेवन करने से यकृत की बीमारी ठीक होती है।

12. चित्रकमूल : चित्रकमूल और सोंठ 3-3 ग्राम लेकर रात को पानी में भिगो दें और सुबह इसे पीसकर इसी पानी में मिलाकर सेवन करें। इससे जिगर (यकृत) का रोग दूर होता है।

13. छोटी पीपल :

छोटी पीपल, चित्रकमूल की छाल, शालपर्णी, गिलोय, वासा (अडूसा) की जड़, ताल वृक्ष की जटा का क्षार, अपामार्ग का क्षार और

Tuesday 3 October 2017

काला पीलिया का देसी इलाज

1. दो छुहारे, बादाम की 10 गिरी और छोटी इलायची के कुछ दाने ले और रात को इन सबको मिलाकर मिट्टी के किसी बर्तन में भिगो कर रख दे और सुबह पानी में से इस मिश्रण को निकाल कर मिश्री और थोड़ा ताजा मक्खन मिलाकर एक मिश्रण तैयार कर ले। कुछ दिन लगातार इस मिश्रण का सेवन करने पर पीलिया ठीक होने लगता है और इस उपाय से पेट की गर्मी का इलाज भी होता है। इस देशी नुस्खे को करते वक़्त कोई गरम चीज़ खाने से बचे।

2. थोड़ी कच्ची ईमली रात को पानी में रखे और सुबह भीगी हुई ईमली को उसी पानी में पीस ले और पानी छान ले। इस पानी में काला नमक और थोड़ी काली मिर्च मिला कर पिए। इस उपाय से एक से दो हफ्ते में पीलिया ठीक होने लगेगा।

3. नीम के पत्तों का एक चम्मच रस दिन में दो बार मरीज को पिलाने से लिवर की कमजोरी खत्म होती है। इस देशी नुस्खे से काले पीलिया में भी सुधार आता है।

4. फूली हुई फिटकरी 10 ग्राम और दही 250 ग्राम मिलाकर प्रतिदिन दो बार खाए। छाछ और दही का सेवन अधिक करे।

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पीलिया की आयुर्वेदिक दवा और उपचार

पंसारी से पीपल की जड़ मिल जाएगी। इस जड़ के तीन नग पूरे दिन के लिए पानी में भीगने के लिए रखे और जब ये फूल जाए तब पानी से इसे निकाल कर इसमें पीसी हुई काली मिर्च, काला नमक सुर नींबू का रस मिलाकर हर रोज सेवन करे। इस जड़ का एक नग हर रोज बढ़ाये और दस होने पर इसे बंद कर दे।  इस उपाय को निरंतर करने पर एक हफ्ते में ही ही पीलिया से आपको राहत मिलने लगेगी। पीलिया का उपचार करने के साथ साथ इस आयुर्वेदिक नुस्खे से पुराना बुखार और पुरानी क़ब्ज़ से भी छुटकारा मिलता है।

सफेद मूसली के चूर्ण की सेवन विधि

सफेद मूसली आयुर्वेद में एक बृहण और बल्य औषधि है जिसका  मतलब है यह शरीर को बल और ऊर्जा प्रदान करती है यह शरीर के सामर्थ्य को बढ़ाती है और शरीर के लिए उत्तम पोषक औषधि है ।

यह पचने में भारी और शीतवीर्य आयुर्वेदिक हर्ब है यह 
 शक्ति की वृद्धि करती है और रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ाती है इस का प्रयोग पुरुषों में अधिक किया जाता है क्योंकि यह मुख्यतः पुरुषों की शक्ति और आंतरिक बल को स्थिर करने वाली व बढ़ाने वाली जड़ी बूटी है  यह शुक्रजनन, बाजीकर और रसायन है यह शुक्र की वृद्धि करती है और इस को गाढ़ा बनाती है। इसके अतिरिक्त यह मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करने के लिए प्रभावी है।

सफ़ेद मुसली का उपयोग :मुख्य रूप से सफेद मूसली की मूल का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है इसके बीजों का भी प्रयोग होता है आयुर्वेदिक में मुख्य रूप से बल्य और बाजीकरण के लिए जड़ों का ही व्यवहार प्रचलित है यह मूसली पाक का मुख्य घटक है जो इसी मकसद के लिए प्रयोग किया जाता है।

★★★★

रासायनिक संरचना : 

मूसली जड़ी बूटी की गांठ वाली जड़ों में ये तत्व पाए जाते हैं जेसे अल्कालोइड्स कार्बोहाईड्रेट प्रोटीन फाइबर सैपोनिन्स मूसली की जड़ों विटामिनयो और खनिजो से भरपूर है  इस में कैल्शियम पोटेशियम और मैग्नीशियम होते है।

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मात्रा : 

सफेद मूसली चूर्ण की औषधीय मात्रा हर व्यक्ति में उम्र शरीर की ताकत और भूख आदि पर निर्भर करती है सफेद मूसली की सामान्य औषधीय मात्रा व खुराक इस प्रकार है बच्चे 25 से 50 मिलीग्राम प्रति किलो वजन अनुसार लेकिन एक बार में 1 ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए किशोर 13 से वर्ष 1.5 से 2 ग्राम वयस्क 19 से 60 वर्ष 3 से 6 ग्राम वृद्धावस्था 60 वर्ष से ऊपर 2 से 3 ग्राम अधिकतम ।

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सेवन विधि: 

सुबह और शाम भोजन के 2 घंटे बाद दिन में कितनी बार लें 2 बार अनुपान गुनगुने दूध के साथ उपचार की अवधि कम से कम 3 महीने चिकित्सक की सलाह लें यदि बतायी गयी औषधीय मात्रा से भूख में कमी हो तो इसकी मात्रा और कम कर लेनी चाहिए इसकी उतनी मात्रा ले जो आसानी से पच जाये।

★★★★

दुष्प्रभाव : 

यदि सफेद मूसली का प्रयोग व सेवन निर्धारित मात्रा में चिकित्सा पर्यवेक्षक के अंतर्गत किया जाए तो सफेद मूसली के कोई दुष्परिणाम नहीं मिलते। यह पचने में भारी है और अधिक मात्रा में यह भूख मार सकती है। सफेद मूसली मुख्य रूप से वात और पित्त दोष पर काम करता है और कफ दोष को यह बढ़ाता है इसलिए इसका प्रयोग कफज विकारो और मोटापे में नहीं करना चाहिए।

Sunday 1 October 2017

शरीर के ल‍िए बहुउपयोगी चूर्ण -


250 ग्राम मैथीदाना
100 ग्राम अजवाईन
50 ग्राम काली जीरी

  उपरोक्त तीनो चीजों को साफ-सुथरा करके हल्का-हल्का सेंकना(ज्यादा सेंकना नहीं) तीनों को अच्छी तरह मिक्स करके मिक्सर में पावडर बनाकर डिब्बा-शीशी या बरनी में भर लेवें ।
रात्रि को सोते समय चम्मच पावडर एक गिलास पूरा कुन-कुना पानी के साथ लेना है। 
गरम पानी के साथ ही लेना अत्यंत आवश्यक है लेने के बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है। 
यह चूर्ण सभी उम्र के व्यक्ति ले सकतें है।
चूर्ण रोज-रोज लेने से शरीर के कोने-कोने में जमा पडी गंदगी(कचरा) मल और पेशाब द्वारा बाहर निकल जाएगी । 
पूरा फायदा तो 80-90 दिन में महसूस करेगें, जब फालतू चरबी गल जाएगी, नया शुद्ध खून का संचार होगा । चमड़ी की झुर्रियाॅ अपने आप दूर हो जाएगी। शरीर तेजस्वी, स्फूर्तिवाला व सुंदर बन जायेगा ।
‘‘फायदे’’
1. गठिया दूर होगा और गठिया जैसा जिद्दी रोग दूर हो जायेगा ।
2. हड्डियाँ मजबूत होगी ।
3. आॅख का तेज बढ़ेगा ।
4. बालों का विकास होगा।
5. पुरानी कब्जियत से हमेशा के लिए मुक्ति।
6. शरीर में खुन दौड़ने लगेगा ।
7. कफ से मुक्ति ।
8. हृदय की कार्य क्षमता बढ़ेगी ।
9. थकान नहीं रहेगी, घोड़े की तहर दौड़ते जाएगें।
10. स्मरण शक्ति बढ़ेगी ।
11. स्त्री का शारीर शादी के बाद बेडोल की जगह सुंदर बनेगा ।
12. कान का बहरापन दूर होगा ।
13. भूतकाल में जो एलाॅपेथी दवा का साईड इफेक्ट से मुक्त होगें।
14. खून में सफाई और शुद्धता बढ़ेगी ।
15. शरीर की सभी खून की नलिकाएॅ शुद्ध हो जाएगी ।
16. दांत मजबूत बनेगा, इनेमल जींवत रहेगा ।
17. नपुसंकता दूर होगी।
18. डायबिटिज काबू में रहेगी, डायबिटीज की जो दवा लेते है वह चालू रखना है। इस चूर्ण का असर दो माह लेने के बाद से दिखने लगेगा । 
जीवन निरोग,आनंददायक, चिंता रहित स्फूर्ति दायक और आयुष्ययवर्धक बनेगा 
जीवन जीने योग्य बनेगा ।

परहेज- तम्‍बाकू, गुटखा,धुम्रपान,अध‍िक म‍िठाई ,मांसाहार तली वस्‍तुऍ आद‍ि

प्रयोग विधी- रात्रि को सोते समय एक चम्मच पाउडर एक गिलास पूरा गुनगुने  पानी के साथ लेना है। गरम पानी के साथ ही लेना अत्यंत आवश्यक है लेने के बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है।

इसके अलावा मोहनजी पंसारी हर्बल प्रोडक्ट कं का "संजिवनी चूर्ण " का प्रयोग कर सकते है जो  कि मेथीदाना, काला‍ज‍ीरी और अंजवायन से बना हुआ है,  यह पूर्णतः आयुर्वेद‍िक औषधी है ,इसका कोई साइड इफेक्‍ट नहीं है ।