Friday 23 October 2015

कमजोर पाचन तंत्र के कारण

कमजोर पाचन तंत्र के कारण न सिर्फ भोजन पचने में परेशानी आती है, बल्कि शरीर का प्रतिरोध सिस्टम भी गड़बड़ा जाता है। शरीर में विषैले तत्वों की मात्रा बढ़ने से शरीर कई अनियमितताओं का शिकार होने लगता है। पाचन तंत्र की विभिन्न गड़बड़ियों और उनसे दूर रहने के उपाय बता रहे है अतीत लड्ढा

गैस्ट्रो इसोफैगल रिफ्लक्स डिजीज (जीईआरडी)
पेट की अंदरूनी परत भोजन को पचाने के लिए कई पाचक उत्पाद बनाती है, जिसमें से एक स्टमक एसिड है। कई लोगों में लोअर इसोफैगियल स्फिंक्टर (एलईएस) ठीक से बंद नहीं होता, जिससे पेट का एसिड बह कर वापस इसोफैगस में चला जाता है। इससे छाती में दर्द और तेज जलन होती है। इसे ही जीईआरडी कहते हैं। हार्ट बर्न जीईआरडी का सबसे सामान्य लक्षण है।
इसमें छाती की हड्डियों के पीछे जलन होती है और वहां से ऊपर गले तक उठती है। मुंह का स्वाद कड़वा हो जाता है। कई बार खाना खाने के बाद यह समस्या और बढ़ जाती है।

कारण: -शारीरिक रूप से सक्रिय न रहना, नियत समय पर खाना न खाना और मोटापा -गर्भावस्था और तंग कपड़े पहनने से पेट पर पड़ने वाला दबाव -मसालेदार भोजन, जूस, सॉस, खट्टे फल, लहसुन, टमाटर आदि का अधिक मात्रा में सेवन -धूम्रपान और तनाव -हर्निया, स्क्लेरोडर्मा के अलावा कुछ दवाएं जैसे एस्प्रिन, नींद की गोलियां और दर्द निवारक दवाओं का सेवन।

कैसे बचें: प्रतिदिन सुबह एक गिलास कुनकुना पानी अवश्य पिएं। भोजन के बीच लंबा अंतराल न रखें। तंग कपड़े न पहनें। रात में सोने से 2 घंटे पहले भोजन कर लें।
क्या खाएं: फलियां, कद्दू, गोभी, गाजर और लौकी जैसी सब्जियों का सेवन करें। भोजन में केला और तरबूज जरूर शामिल करें। तरबूज का रस एसिडिटी दूर करने में कारगर है। गुड़, नींबू, केला, बादाम और दही इसमें राहत देते हैं।

गैस की समस्या
जिनका पाचन अक्सर खराब रहता है और जो कब्ज के शिकार रहते हैं, उनमें गैस की समस्या अधिक होती है। आरामतलब जीवनशैली व खान-पान की गलत आदतों के कारण यह समस्या अधिक बढ़ रही है। इसके अलावा उम्र बढ़ने के साथ भी शरीर में उन एंजाइम का स्तर कम हो जाता है, जो भोजन पचाने में मदद करते हैं। लंबे समय तक एसिडिटी से अल्सर का खतरा बढ़ता है।

कारण: वसा और प्रोटीनयुक्त भोजन की तुलना में काबरेहाइड्रेटयुक्त भोजन ज्यादा गैस बनाता है। कब्ज होने पर चूंकि भोजन अधिक देर तक बड़ी आंत में रहता है, इसलिए एसिड इसोफैगस में चला जाता है। तनाव भी एसिडिटी का एक बड़ा कारण है।

कैसे बचें: -शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। नियमित रूप से व्यायाम करें। -खाने को धीरे-धीरे और चबा कर खाएं। -दिन में तीन बार अधिक खाने की बजाए कुछ-कुछ घंटों के अंतराल पर खाएं।
क्या खाएं: -मौसमी फल और सब्जियां। -ऐसा भोजन जिसमें फाइबर की मात्रा अधिक हो। -संतुलित और ताजा भोजन। रात्रि में गरिष्ठ व कम वसायुक्त आहार करें।

घरेलू उपचार : -लहसुन की तीन कलियों और अदरक के कुछ टुकड़ो को खाली पेट खाएं। -प्रतिदिन खाने के साथ टमाटर खाएं। टमाटर सेंधा नमक के साथ खाएं।
-खाना खाने के तुरंत बाद ठंडा पानी न पिएं। खासतौर पर जिन्हें कब्ज रहता है, वे गुनगना पानी पिएं। -इलायची के पाउडर को एक गिलास पानी में उबालें। इसे खाना खाने से पहले गुनगुना पिएं।

कब्ज
कब्ज यानी बड़ी आंत से शरीर के बाहर मल निकालने में कठिनाई आना। यह समस्या गंभीर होकर बड़ी आंत को अवरुद्ध कर जीवन के लिए घातक हो सकती है। कब्ज एक लक्षण है, जिसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे खानपान की गलत आदतें, हार्मोन संबंधी गड़बड़ियां, कुछ दवाओं के साइड इफेक्ट आदि। उपचार के लिए जरूरी है पहले कारण जानें। लगातार तीन महीने तक कब्ज को इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) कहते हैं।

कारण: -डाइटिंग -शरीर द्वारा मल त्यागने के संकेत को नजरअंदाज करना -हार्मोन संबंधी गड़बड़ियां -थाइरॉयड हार्मोन की कमी या अधिकता से रक्त में कैल्शियम का बढ़ना -पीरियड्स या गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन का स्तर बढ़ना -मधुमेह, स्क्लेरोडर्मा और कई कैंसर -आंत की मांसपेशियों का कमजोर पड़ना।

कैसे बचें: सर्वागासन, उत्तानपादासन, भुजंगासन जैसे आसन पाचन संबंधी विकारों को दूर करते हैं। प्रतिदिन आहार में नीबू का रस शामिल करें। इससे लिवर स्वस्थ रहता है। बायोलॉजिकल क्लॉक को दुरुस्त रखने के लिए निश्चित समय पर खाना खाएं। तनावमुक्त रहें।

क्या खाएं: ज्यादा पानी पिएं। खाने में फाइबर अधिक लें। प्रोबायोटिक भोजन जैसे दही नियमित खाएं। लहसुन, केला अमरूद, अंगूर व पपीता खाएं।

घरेलू उपचार : -20 किशमिश रात भर के लिए पानी में भिगो दें और सुबह खाली पेट किशमिशों को चबा कर खाएं। उस पानी को भी पी लें। -सोने से पूर्व एक गिलास गर्म पानी में 1 चम्मच ईसबगोल घोल कर पिएं। कब्ज अधिक होने पर गुनगुने दूध में दो चम्मच अरंडी का तेल मिला कर पिएं।

पेट फूलना
पेट फूलने के कई कारण हैं। गैस, बड़ी आंत का कैंसर, हर्निया पेट को फुलाते हैं। ज्यादा वसायुक्त भोजन करने से पेट देर से खाली होता है, जो बेचैनी भी उत्पन्न करता है। कई बार गर्म मौसम और शारीरिक सक्रियता की कमी के कारण भी पेट में तरल रुक जाता है, जो पेट फुलाता है। नमक और कई दवाएं भी तरल पदार्थो को रोक कर रखती हैं, जो पेट को फुलाता है।

कैसे बचें: पोषक भोजन खाएं, जिसमें चीनी की मात्रा कम हो। ढेर सारा पानी पिएं। नमक का सेवन कम करें। खाने के तुरंत बाद न सोएं।

हमारा अच्छा स्वास्थ्य केवल पौष्टिक भोजन खाने पर निर्भर नहीं करता। यह इस पर भी निर्भर करता है कि हमारा शरीर उस भोजन को कितना पचा पाता है। अच्छी सेहत के लिए चुस्त-दुरुस्त पाचन तंत्र का होना जरूरी है। पाचन वह प्रकिया है, जिसके द्वारा शरीर ग्रहण किए गए भोजन और पेय पदार्थ को ऊर्जा में बदलता है। पाचन तंत्र के ठीक काम न करने पर भोजन बिना पचा रह जाता है, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर असर डालता है।

तथ्यों पर एक नजर
-एक अनुमान के अनुसार महानगरों में आरामतलबी की जिंदगी बिताने के कारण करीब 30 प्रतिशत लोगों का पेट साफ नहीं रहता।
-कब्ज की समस्या महिलाओं में अधिक होती है।
-हाल ही में हुए एक अनुसंधान में यह बात सामने आई है कि जो लोग लगातार एसिडिटी कम करने वाली दवाएं लेते हैं, उनमें कूल्हे में फ्रैक्चर की आशंका 25% बढ़ जाती है।
-भारत में करीब 32% लोग एसिडिटी से पीड़ित हैं।
-जीईआरडी के लगभग 10% मामले ही गंभीर होते हैं, बाकी 90% से जीवनशैली में परिवर्तन लाकर छुटकारा पाया जा सकता है।
-मानव शरीर को अधिक वसायुक्त भोजन पचाने में 6 घंटे और काबरेहाइड्रेट को पचाने में 2 घंटे लगते हैं।
-उम्रदराज लोगों में युवाओं के मुकाबले कब्ज की समस्या पांच गुना होती है। बैक्टीरिया का संतुलन ना गड़बड़ाने दें हमारे पाचन तंत्र में 500 से अधिक तरह के बैक्टीरिया होते हैं, जो आहारनाल को स्वस्थ रखते हैं। तनाव, विभिन्न बीमारियां, एंटिबायोटिक दवाओं
का अधिक इस्तेमाल, अस्वस्थ जीवनशैली, उम्र का बढ़ना, अधिक यात्रा करना व नींद की कमी आदि कई
कारण ऐसे हैं, जो शरीर में बैक्टीरिया के संतुलन को बिगाड़ते हैं, जिससे शरीर में बुरे बैक्टीरिया बढ़ जाते हैं।

अच्छे पाचन के लिए इन्हें कहें ना
-अधिक मसालेदार, खट्टे फल, चॉकलेट, पुदीना, टमाटर, सॉस, अचार, चटनी, सिरका आदि।
-अत्यधिक कॉफी, काबरेनेटेड ड्रिंक्स, चाय और अल्कोहल का सेवन कम करें। ये शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड गैस बनाते हैं।
-अधिक तले-भुने व मसालेदार भोजन का सेवन कम करें। जंक फूड व स्ट्रीट फूड आसानी से पचता नहीं है। इन्हें ढंग से चबा कर नहीं खाया जाता, जिससे पेट पर दबाव बना रहता है।
-अधिक धूम्रपान भी पाचन तंत्र में गड़बड़ी करता है।

स्वस्थ रहे ।मस्त रहे ।व्यस्त रहे ।

Wednesday 14 October 2015

6 Common Mistakes To Avoid With Herbal Tea




Weight loss, cholesterol balance, reduction in asthma, fever, cold attacks are the few major benefits of herbal tea. Avoid these mistakes to enjoy optimal health benefits of green tea.

Herbal tea – mistakes to avoid:
1. Adding milk to herbal tea:
a. If your herbal tea is very spicy and you want to give it to children, it makes sense to add a little milk (5 – 7 teaspoons to a cup) to calm down the extra spice.
b. If your herbal tea mix contains Tulsi as an ingredient, then it is best to avoid adding milk. Milk and Tulsi are incompatible with each other..If it contains Holy Basil, Basil, Ocimum sanctum, Tulasi etc terms, then it contains Tulsi.
c. If you are taking herbal tea for reducing weight, then do not add any milk to it.  Milk is rich in nutrition. It is administered to gain weight. Hence, it does not serve your purpose of losing weight.

2. Adding sugar:
One of the purpose of herbal tea is to nullify the effects of sugar on your health. Hence it does not make sense to add sugar to it.
Substitutes for sugar: Honey – not more than a teaspoon is a good choice. Honey helps you to lose weight, so also the herbal tea. So, there is a good function match. But you cannot add honey to a very hot herbal tea. This is because honey with very hot food stuffs is contra indicated. If you wish to add honey, wait for the herbal tea to cool down a bit. Then add honey and enjoy.
Tip: Do not add more than a teaspoon of honey.
If not honey, you can add a little jaggery (Gur, Gud) to it. But excess of jaggery is meant for weight gain. So, honey is better.

3. Re-heating
If you prepare herbal tea, it is best to finish it when it is freshly made. Do not store it for the later time, re heat and drink it. Re-heating herbal tea is very against to Ayurvedic principles of medicine/ food preparation. It burns out all the active ingredients of the herb.

4. Having too hot or cold tea –
If you are of Pitta body type, or Pitta aggravated symptoms like excess burning sensation, excess bleeding, etc, then allow the tea to cool down to lukewarm before drinking.
If you have Vata or Kapha body type, then you can drink it when it is hot.

5. Closing the lid of the vessel while making herbal tea – As per Ayurveda, the vessel should be open so that water evaporates.
Stirring the ingredients while you are making the herbal tea makes the tea richer with herbal active ingredients.

6. Taking herbal tea without consulting a health expert.
Lean diabetic patients, people who have recently undergone Panchakarma treatment ( within 2 months of time), people who are already taking many herbal medicines, who are excessively tired, might not require herbal tea. It may cause worsening of the symptoms. So, consult your doctor.

Saturday 10 October 2015

|||| एलर्जी नाशक औषधि ||||




औषधि :
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गुड़ २५० ग्राम , अदरक २५ ग्राम , हल्दी १५ ग्राम , कालीमिर्च पाँच दाने //
बनाने की विधी :
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सर्व प्रथम हल्दी और काली मिर्च (गोल्की) को अलग-अलग पीस लें , अदरक को काटकर छोटे-छोटे टुकड़े कर लें , फिर सबको गुड़ में मिलाकर अग्नि पर पकाएँ और जब अवलेह जैसा बन जाए तब आग से उतार लें ; अब दवा तैयार है |
सेवन विधी :
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प्रतिदिन १-१ चम्मच तीन बार खाना है | इसे दो माह सेवन कर लें |
\\ इसके साथ एक दुसरा दवा //
२.६० ग्राम चिरयता लेकर १ लीटर पानी में उबाल लें और छानकर रख लें |
सेवन :- एक कप प्रात: और एक कप सायंकाल पिना है , इस प्रकार इसे एक सप्ताह सेवन अवश्य कर लें |
यह औषधि अन्य दवाओं का प्रभाव भी समाप्त कर देता है |
औषधि नित्य समय समय पर अवश्य लें !!!!

रोगप्रतिकारक शक्ति बनाये रखने के उपाय व सावधानियाँ


1- 90 प्रतिशत रोग केवल पेट से होते हैं। पेट में कब्ज नहीं रहना चाहिए। अन्यथा रोगों की कभी कमी नहीं रहेगी।
2- कुल 13 असाधारणीय शारीरिक वेग होते हैं । उन्हें रोकना नहीं चाहिए ।।
3-160 रोग केवल मांसाहार से होते है
4- 103 रोग भोजन के बाद जल पीने से होते हैं। भोजन के 1 घंटे बाद ही जल पीना चाहिये।
5- 80 रोग चाय पीने से होते हैं।
6- 48 रोग ऐलुमिनियम के बर्तन या कुकर के खाने से होते हैं।
7- शराब, कोल्डड्रिंक और चाय के सेवन से हृदय रोग होता है।
8- अण्डा खाने से हृदयरोग, पथरी और गुर्दे खराब होते हैं।
9- ठंडेजल (फ्रिज)और आइसक्रीम से बड़ीआंत सिकुड़ जाती है।
10- मैगी, गुटका, शराब, सूअर का माँस, पिज्जा, बर्गर, बीड़ी, सिगरेट, पेप्सी, कोक से बड़ी आंत सड़ती है।
11- भोजन के पश्चात् स्नान करने से पाचनशक्ति मन्द हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है।
12- बाल रंगने वाले द्रव्यों(हेयरकलर) से आँखों को हानि (अंधापन भी) होती है।
13- दूध(चाय) के साथ नमक (नमकीन पदार्थ) खाने से चर्म रोग हो जाता है।
14- शैम्पू, कंडीशनर और विभिन्न प्रकार के तेलों से बाल पकने, झड़ने और दोमुहें होने लगते हैं।
15- गर्म जल से स्नान से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है। गर्म जल सिर पर डालने से आँखें कमजोर हो जाती हैं।

Thursday 8 October 2015

जनिये "खीर" का वैज्ञानिक कारण और महत्व......

" श्राद्ध में खीर क्यों"     
जनिये "खीर" का वैज्ञानिक कारण और महत्व......
हमारी हर प्राचीन परंपरा में वैज्ञानिकता का दर्शन होता हैं । अज्ञानता का नहीं......

हम सब जानते है की मच्छर काटने से मलेरिया होता है वर्ष मे कम से कम 700-800 बार तो मच्छर काटते ही होंगे अर्थात 70 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते लाख बार मच्छर काट लेते होंगे । लेकिन अधिकांश लोगो को जीवनभर में एक दो बार ही मलेरिया होता है ।सारांश यह है की मच्छर के काटने से मलेरिया होता है, यह 1% ही सही है ।

ध्यान दीजिये ....
खीर खाओ मलेरिया भगाओ :-

लेकिन यहाँ ऐसे विज्ञापनो की कमी नहीं है, जो कहते है की एक भी मच्छर ‘डेंजरस’ है, हिट लाओगे तो एक भी मच्छर नहीं बचेगा। अब ऐसे विज्ञापनो के बहकावे मे आकर करोड़ो लोग इस मच्छर बाजार मे अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हो जाते है । सभी जानते है बैक्टीरिया बिना उपयुक्त वातावरण के नहीं पनप सकते । जैसे दूध मे दही डालने मात्र से दही नहीं बनाता, दूध हल्का गरम होना चाहिए। उसे ढककर गरम वातावरण मे रखना होता है । बार बार हिलाने से भी दही नहीं जमता । ऐसे ही मलेरिया के बैक्टीरिया को जब पित्त का वातावरण मिलता है, तभी वह 4 दिन में पूरे शरीर में फैलता है, नहीं तो थोड़े समय में समाप्त हो जाता है । इतने सारे प्रयासो के बाद भी मच्छर और रोगवाहक सूक्ष्म कीट नहीं काटेंगे यह हमारे हाथ में नहीं । लेकिन पित्त को नियंत्रित रखना तो हमारे हाथ में है। अब हमारी परम्पराओं का चमत्कार देखिये जिन्हे अल्पज्ञानी, दक़ियानूसी, और पिछड़ेपन की सोच करके षड्यंत्र फैलाया जाता है।

वर्षा ऋतु के बाद जब शरद ऋतु आती है तो आसमान में बादल व धूल के न होने से कडक धूप पड़ती है। जिससे शरीर में पित्त कुपित होता है । इस समय गड्ढो आदि मे जमा पानी के कारण बहुत बड़ी मात्रा मे मच्छर पैदा होते है इससे मलेरिया होने का खतरा सबसे अधिक होता है ।

खीर खाने से पित्त का शमन होता है । शरद में ही पितृ पक्ष (श्राद्ध) आता है पितरों का मुख्य भोजन है खीर । इस दौरान 5-7 बार खीर खाना हो जाता है । इसके बाद शरद पुर्णिमा को रातभर चाँदनी के नीचे चाँदी के पात्र में रखी खीर सुबह खाई जाती है (चाँदी का पात्र न हो तो चाँदी का चम्मच खीर मे डाल दे, लेकिन बर्तन मिट्टी, काँसा या पीतल का हो। क्योंकि स्टील जहर और एल्यूमिनियम, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी महा-जहर है)
यह खीर विशेष ठंडक पहुंचाती है । गाय के दूध की हो तो अतिउत्तम, विशेष गुणकारी (आयुर्वेद मे घी से अर्थात गौ घी और दूध गौ का) इससे मलेरिया होने की संभावना नहीं के बराबर हो जाती है ।

ध्यान रहे :-- इस ऋतु में बनाई खीर में केसर और मेंवों का प्रयोग न करे । ये गर्म प्रवृत्ति के होने से पित्त बढ़ा सकते है। सिर्फ इलायची डाले ।।। इसे सोचो और समझो फिर प्रयोग करो।

          नारायण नारायण