रसोली एक नज़र में
रसोली , प्राय: महिलाओं में उनके गर्भवती होने का भ्रम पैदा करता है , कि " उनके पेट में बच्चा तो नहीं ठहर गया ? " , इसी प्रकार की महिलाएं बच्चा नहीं होने के कारण मानसिक रूप से काफी परेशान होती हैं , समाज की सबसे बड़ी त्रासदी , ये ही , है कि वह समाज में हेय निगाहों से देखी जाती है , इस पुरुष प्रधान समाज में , किस किस तरह से पीरीत नहीं होती , यह मात्र एक नारी ही बता सकती है ? इस बीमारी से गर्शित नारी के मासिक धर्म में रक्त स्त्राव अधिक होता है , इसी स्थिति में पति और पत्नी , दोनों को , समाज का त्रिष्कार कर तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए , यह रसोली जिसे डोक्टोरी भाषा में बच्चे दानी में फैब्रोइड कहते हैं , इसे पनपने देने से पहले ही इसका इलाज़ करवा कर सुखी जीवन जिया जा सकता है , यह रसोली २० से ४० वर्ष की महिलाओं में से १० प्रतिशत में ही पाई जाती है , संतान हीनता ही इसका मुख्य लक्षण है , ४५-५० उम्र के बाद इस रसोली की बढ़ोतरी रूक जाती है , और मासिक धर्म में रक्त स्त्राव भी कम मात्रा में होता है , यह रसोली साधारणतया संतरे के आकार की होती है , और इसकी संख्या २० से २०० तक हो सकती है , परन्तु घबराने की कोई बात नहीं है , समय रहते इसका उपचार अति आवश्यक है , अन्यथा रसोली किसी और प्रकार के रोग को जन्म दे सकती है, मसलन कैंसर इत्यादि , मासिक धर्म में रक्त स्त्राव ज्यादा होने से इस प्रकार की स्त्रियों
में खून की कमी भी हो जाती है , इसके अलावा कब्ज़ और बार बार पिशाब की हाज़त रहना , इसके मुख्य लक्षण हैं
यह कभी भी यह नहीं सोचना है की इस बीमारी के साथ साथ महिला गर्भ धारण भी कर सकती है , इसी लिए तुरंत से तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए , इस बीमारी के कारण यदि बाँझपन रहता है तो चिंता न कर गर्भ धारण के दुसरे तरीके अपनाये जा सकते हैं , और यदि चिकित्सक शल्य क्रिया की सलाह दे तो भी ऑपरेशन से डरना नहीं चाहिए , शल्य क्रिया के बाद गर्भ धारण करने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं , यदि केवल मासिक धर्म में रक्त स्त्राव अधिक होता है और उम्र ४५-५० वर्ष हो तो बच्चे दानी को निकला देना चाहिए , वैसे आजकल दवाइयों से भी इसका इलाज़ संभव है , जिससे अन्य कोई बीमारी न होने पाए और हम अपने जीवन को खुश हाल बना सकें . ध्यान रहे ,
लापरवाही न बरतें और सपत्निक विचार कर जल्द से जल्द उपचार करवा लेवें , जिस से हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा।
रसोली , प्राय: महिलाओं में उनके गर्भवती होने का भ्रम पैदा करता है , कि " उनके पेट में बच्चा तो नहीं ठहर गया ? " , इसी प्रकार की महिलाएं बच्चा नहीं होने के कारण मानसिक रूप से काफी परेशान होती हैं , समाज की सबसे बड़ी त्रासदी , ये ही , है कि वह समाज में हेय निगाहों से देखी जाती है , इस पुरुष प्रधान समाज में , किस किस तरह से पीरीत नहीं होती , यह मात्र एक नारी ही बता सकती है ? इस बीमारी से गर्शित नारी के मासिक धर्म में रक्त स्त्राव अधिक होता है , इसी स्थिति में पति और पत्नी , दोनों को , समाज का त्रिष्कार कर तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए , यह रसोली जिसे डोक्टोरी भाषा में बच्चे दानी में फैब्रोइड कहते हैं , इसे पनपने देने से पहले ही इसका इलाज़ करवा कर सुखी जीवन जिया जा सकता है , यह रसोली २० से ४० वर्ष की महिलाओं में से १० प्रतिशत में ही पाई जाती है , संतान हीनता ही इसका मुख्य लक्षण है , ४५-५० उम्र के बाद इस रसोली की बढ़ोतरी रूक जाती है , और मासिक धर्म में रक्त स्त्राव भी कम मात्रा में होता है , यह रसोली साधारणतया संतरे के आकार की होती है , और इसकी संख्या २० से २०० तक हो सकती है , परन्तु घबराने की कोई बात नहीं है , समय रहते इसका उपचार अति आवश्यक है , अन्यथा रसोली किसी और प्रकार के रोग को जन्म दे सकती है, मसलन कैंसर इत्यादि , मासिक धर्म में रक्त स्त्राव ज्यादा होने से इस प्रकार की स्त्रियों
में खून की कमी भी हो जाती है , इसके अलावा कब्ज़ और बार बार पिशाब की हाज़त रहना , इसके मुख्य लक्षण हैं
यह कभी भी यह नहीं सोचना है की इस बीमारी के साथ साथ महिला गर्भ धारण भी कर सकती है , इसी लिए तुरंत से तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए , इस बीमारी के कारण यदि बाँझपन रहता है तो चिंता न कर गर्भ धारण के दुसरे तरीके अपनाये जा सकते हैं , और यदि चिकित्सक शल्य क्रिया की सलाह दे तो भी ऑपरेशन से डरना नहीं चाहिए , शल्य क्रिया के बाद गर्भ धारण करने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं , यदि केवल मासिक धर्म में रक्त स्त्राव अधिक होता है और उम्र ४५-५० वर्ष हो तो बच्चे दानी को निकला देना चाहिए , वैसे आजकल दवाइयों से भी इसका इलाज़ संभव है , जिससे अन्य कोई बीमारी न होने पाए और हम अपने जीवन को खुश हाल बना सकें . ध्यान रहे ,
लापरवाही न बरतें और सपत्निक विचार कर जल्द से जल्द उपचार करवा लेवें , जिस से हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा।
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