मस्तिष्क की रक्त संचारण नाड़ियों में किसी कारण से अवरोध उत्पन्न होता है तो उन नाड़ियों में रक्त जमा हो जाता है जिसके कारण कई कमजोर नाड़ियां एकाएक फट जाती हैं और उनमें से रक्त निकलने लगता है। इस रोग को अंग्रेजी में एपोप्लैक्सी कहते हैं।
मस्तिष्क की नाड़ी फट जाने का लक्षण:-
जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उस व्यक्ति को अपना सिर भारी लगने लगता है तथा उसके सिर में दर्द होने लगता है। रोगी को चक्कर आने लगते हैं, उसकी आंखों के आगे अन्धेरा छा जाता है तथा कानों से कम सुनाई देने लगता है। रोगी व्यक्ति की नाक से खून निकलने लगता है तथा उसे बेचैनी होने लगती है। इस रोग से पीड़ित रोगी क्रोधित तथा चिड़चिड़ा हो जाता है। उसके मुंह से झाग निकलने लगता है। इस रोग से पीड़ित रोगी में कभी-कभी लकवे के लक्षण भी नज़र आते हैं।
मस्तिष्क की नाड़ी फट जाने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
इस रोग से पीड़ित रोगी को तुरन्त ही खुली जगह में किसी चारपाई पर लिटाना चाहिए तथा उसके सिर के नीचे एक तकिया रखना चाहिए तथा। रोगी व्यक्ति के वस्त्रों को खोल देना चाहिए। इसके बाद रोगी के चेहरे तथा गर्दन पर ठंडे पानी का छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद रोगी के सिर और गर्दन पर बर्फ के पानी से भीगा तौलिया लपेट देनी चाहिए। तौलिये को थोड़ी-थोड़ी देर के बाद बदलते रहना चाहिए। इसके बाद रोगी के हाथ तथा पैरों को गर्म कपड़े में लपेटना चाहिए तथा गर्म पानी से भरी बोतलों से उसके हाथ-पैरों को गर्म करना चाहिए।जब रोगी व्यक्ति होश में आ जाए तो उससे एनिमा क्रिया करानी चाहिए ताकि उसका पेट साफ हो सके। इसके बाद रोगी व्यक्ति को कटिस्नान और फिर मेहनस्नान कराना चाहिए।जब रोगी व्यक्ति सोने लगे तो उस समय उसकी कमर पर पानी से गीले कपड़े की गीली पट्टी लगानी चाहिए....
मस्तिष्क की नाड़ी फट जाने का लक्षण:-
जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उस व्यक्ति को अपना सिर भारी लगने लगता है तथा उसके सिर में दर्द होने लगता है। रोगी को चक्कर आने लगते हैं, उसकी आंखों के आगे अन्धेरा छा जाता है तथा कानों से कम सुनाई देने लगता है। रोगी व्यक्ति की नाक से खून निकलने लगता है तथा उसे बेचैनी होने लगती है। इस रोग से पीड़ित रोगी क्रोधित तथा चिड़चिड़ा हो जाता है। उसके मुंह से झाग निकलने लगता है। इस रोग से पीड़ित रोगी में कभी-कभी लकवे के लक्षण भी नज़र आते हैं।
मस्तिष्क की नाड़ी फट जाने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
इस रोग से पीड़ित रोगी को तुरन्त ही खुली जगह में किसी चारपाई पर लिटाना चाहिए तथा उसके सिर के नीचे एक तकिया रखना चाहिए तथा। रोगी व्यक्ति के वस्त्रों को खोल देना चाहिए। इसके बाद रोगी के चेहरे तथा गर्दन पर ठंडे पानी का छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद रोगी के सिर और गर्दन पर बर्फ के पानी से भीगा तौलिया लपेट देनी चाहिए। तौलिये को थोड़ी-थोड़ी देर के बाद बदलते रहना चाहिए। इसके बाद रोगी के हाथ तथा पैरों को गर्म कपड़े में लपेटना चाहिए तथा गर्म पानी से भरी बोतलों से उसके हाथ-पैरों को गर्म करना चाहिए।जब रोगी व्यक्ति होश में आ जाए तो उससे एनिमा क्रिया करानी चाहिए ताकि उसका पेट साफ हो सके। इसके बाद रोगी व्यक्ति को कटिस्नान और फिर मेहनस्नान कराना चाहिए।जब रोगी व्यक्ति सोने लगे तो उस समय उसकी कमर पर पानी से गीले कपड़े की गीली पट्टी लगानी चाहिए....
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