Wednesday, 2 November 2016

उज्जायी..प्रणायाम....

उज्जायी का परिचय : 'उज्जायी' शब्द का अर्थ होता है- विजयी या जीतने वाला। इस प्राणायाम के अभ्यास से वायु को जीता जाता है। योग में उज्जायी क्रिया और प्राणायाम के माध्यम से बहुत से गंभीर रोगों से बचा जा सकता है बशर्तें की उक्त प्राणायाम और क्रिया को किसी योग्य योग शिक्षक से सीखकर नियमित किया जाए। इसका अभ्यास तीन प्रकार से किया जा सकता है- खड़े होकर, लेटकर तथा बैठकर।

उज्जायी प्राणायाम की विधी :ujjayi Pranayama Yoga/ ujjayee Pranayama

पहली विधि- सुखासन में बैठ कर मुंह को बंद करके नाक के दोनों छिद्रों से वायु को तब तक अन्दर खींचें (पूरक करें) जब तक वायु फेफड़े में भर न जाए। फिर कुछ देर आंतरिक कुंभक (वायु को अंदर ही रोकना) करें।

फिर नाक के दाएं छिद्र को बंद करके बाएं छिद्र से वायु को धीरे-धीरे बाहर निकाल दें (रेचन करें)। वायु को अंदर खींचते व बाहर छोड़ते समय गले से खर्राटें की आवाज निकलनी चाहिए। इस तरह इस क्रिया का पहले 5 बार अभ्यास करें और धीरे-धीरे अभ्यास की संख्या बढ़ाते हुए 20 बार तक ले जाएं।

दूसरी विधि : कंठ को सिकुड़ कर श्वास इस प्रकार लें व छोड़ें की श्वास नलिका से घर्षण करते हुए आए और जाए। इसको करने से उसी प्रकार की आवाज उत्पन्न होगी जैसे कबूतर गुटुर-गूं करते हैं। उस दौरान मूलबंध भी लगाएं।

पांच से दस बार श्वास इसी प्रकार लें और छोड़ें। फिर इसी प्रकार से श्वास अंदर भरकर जालंधर बंध (कंठ का संकुचन) शिथिल करें और फिर धीरे-धीरे रेचन करें अर्थात श्वास छोड़ दें। अंत में मूलबंध शिथिल करें। ध्यान विशुद्धि चक्र (कंठ के पीछे रीढ़ में) पर रखें।

सावधानी : इस प्राणायाम को करते समय कंठ में अंदर खुजलाहट एवं खांसी हो सकती है, बलगम निकल सकता है, लेकिन यदि इससे अधिक कोई समस्या हो तो इस प्राणायाम को न करें।

इसके लाभ : श्वास नलिका, थॉयराइड, पेराथायराइड, स्वर तंत्र आदि को स्वस्थ व संतुलित करती है। कुंडलिनी का पंचम सोपान है। जल तत्व पर नियंत्रण लाती है।

उज्जायी क्रिया : यह क्रिया दो प्रकार से की जाती है (1)खड़े रहकर (2)लेटकर। यहां प्रस्तुत है लेटकर की जाने वाली क्रिया। पीठ के सहारे जमीन पर लेट जाएं शरीर सीधा रखें। हथेलियों को जमीन पर शरीर से सटाकर रखें। एड़ियों को सटा लें तथा पैरों को ढीला रखें। सीधा ऊपर देखें तथा स्वाभाविक श्वास लें।

1.मुंह के द्वारा लगातार तेजी से शरीर की पूरी हवा निकाल दें। हवा निकालने की गति वैसी ही रहनी चाहिए जैसी सीटी बजाने के समय होती है। चेहरे पर से तनाव को हटाते हुए होठों के बीच से हवा निकाल दी जाती है।

2.नाक के दोनों छीद्रों से धीरे-धीरे श्वास खींचना चाहिए। शरीर ढीला रखें, जितना सुखपूर्वक श्वास खींचकर भर सकें, उसे भर लें।

3.तब हवा को भीतर ही रोके और दोनों पैरों के अंगूठे को सटाकर उन्हें आगे की ओर फैला लें, प्रथम सप्ताह केवल तीन चार सेंकड करें। इसे बढ़ाकर आठ सेकंड तक करें या जितनी देर हम आसानी से श्वास रोक सकें, रोकें।

4.फिर मुंह से ठीक उसी प्रकार श्वास निकालें, जैसे प्रथम चरण में किया गया, जल्दबाजी न करें, श्वास छोड़ने के समय मांसपेशियों को ऊपर से नीचे तक ढीला करें अर्थात पहले सीने को तब पेट को जांघों, पैरों और हाथों को पूरी श्वास छोड़ने के बाद, पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। 5-10 सेकंड विश्राम करें।

सावधानी : प्रथम दिन 3 बार, द्वितीय दिन 4 बार, तृतीय दिन 5 बार इसे करें, इससे अधिक नहीं। इस प्राणायाम का अभ्यास साफ-स्वच्छ हवा बहाव वाले स्थान पर करें।

इसके लाभ : हृदय रोगी, उच्च-निम्न रक्तचाप वाले व्यक्तियों के लिए बहुत ही उपयुक्त। श्वास रोग और साइनस में लाभदायक। यह कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने में सहयोग करता है

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