Wednesday, 16 November 2016

बाल रोगों की चिकित्सा !!


पेट दर्द व वमन - दो तीन बार तीन चार शहद की बूंदें सौंफ या पौदीने के अर्क में मिलाकर आध-आध घंटे में देते रहें, तीन चार बार देने से पेट की पीड़ा शान्त हो जाती है । पोदीने की सूखी पत्ती व हरी पत्ती छः माशे अजवायन व छः माशे सौंफ आध पाव पानी में डालकर उबालें । ठंडा होने पर मल छानकर इसी पानी की कुछ बूंदें लेकर थोड़ा मधु मिलाकर बच्चे को देना चाहिये ।
कब्ज - बच्चे को कब्ज रहता हो तो सन्तरे के रस में मधु की चार-पांच बूंद मिलाकर दिन में तीन बार दें । यह कब्ज की अनुपम औषध है ।
खांसी-जुकाम - सर्दी या किसी कारण से भी खाँसी-जुकाम का कष्ट हो तो माँ के दूध में आधा चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन-चार बार देवें । बड़े बच्चों को गाय के दूध में दो चम्मच मधु मिलाकर दिन में तीन-चार बार देवें । शहद को निम्बू के रस में बराबर मात्रा मिलाकर थोड़ा गर्म करें और ठंडा करके रख लें और जल में मिलाकर बच्चों को चटाने से खाँसी के रोग दूर होते हैं । दिन में कई बार चटाना चाहिये ।
अदरक का रस आधा ग्राम और मधु दो ग्राम मिलाकर बालक को कई बार चटाने से खाँसी-जुकाम व सर्दी का बुखार भी चला जाता है ।
बढ़े हुए गंठू (टांसिल) - मीठे सेब के रस में बराबर का शहद मिलाकर दिन में चार-पाँच बार चटावें और बढ़ी हुई गांठों पर शहद का लेप करें ।
सभी कण्ठ रोगों की औषध - सितोपलादि चूर्ण या वृहत् सितोपलादि चूर्ण एक दो रत्ती लेकर शहद मिलाकर दिन में तीन-चार बार चटावें । इससे खांसी-जुकाम, शीत ज्वर और निमोनिया में भी लाभ होता है । कण्ठ के सभी रोग दूर होते हैं ।
निमोनिया - मोम देसी को पिघलाकर उस में शहद मिला लें और गर्म-गर्म से छाती पर सेक करें । निमोनिया में सितोपलादि चूर्ण चार रत्ती में एक रत्ती शृंगभस्म मिलावें और उसे एक तोला शहद में मिला लें । आध-आध घंटे पश्चात् इसे थोड़ा-थोड़ा बालक को चटाते रहें !!

!! बालकों के सब रोगों की रामबाण औषध !!
काकड़ासिंगी, अतीस मीठा, छोटा पीपल, छोटी इलायची के दाने, नागरमोथा, जायफल, शंख भस्म, जवित्री, मस्तगीरूमी इन सबको मिलकर कपड़छान कर लें । इन सबके ब्राबर मिश्री वा खाण्ड को बारीक पीसकर मिला लें । यह बालकों मे सभी रोगों की रामबाण औषध है । जिस के बच्चे सूख-सूखकर मर जाते हैं, इसके सेवन से वे भी बच जाते हैं ।
मात्रा - इसकी मात्रा एक वर्ष के बाद तक एक रत्ती है । इसे दिन में तीन-चार बार देना चाहिए । जब दें तो मधु (शहद) में मिलाकर दें । एक वर्ष के पीछे प्रति वर्ष एक रत्ती की मात्रा बढ़ाते चले जायें अर्थात् एक वर्ष के बालक को एक रत्ती से दो वर्ष के बालक को दो रत्ती, चार वर्ष के बालक को चार रत्ती, इस प्रकार सदैव मधु में मिलाकर चटाना चाहिए । अगर बच्चे को सूखनेवाला रोग हो तो महालाक्षादि तैल की मालिश भी करनी चाहिए और गर्म पानी से स्नान कराना चाहिए । बच्चों के सब प्रकार के रोगों पर शहद के साथ इसका प्रयोग करने से सभी रोग ठीक होते हैं ।
दाँत निकलना - जब बच्चों के दाँत निकलते हों तो उन्हें बहुत कष्ट होता है । मसूडे सूज जाते हैं । ऐसी अवस्था में मसूडों पर चार-पांच बार नियमपूर्वक शहद लगाने से लाभ होगा ।
कनफेड़ - इस रोग में कान के पास से एक तरफ का या दोनों तरफ का सारा मुंह सख्त होता है । पीड़ा भी बहुत होती है, रोगी को ज्वर तक आ जाता है । दिन में पाँच-छ: बार शहद की नौ-दस बूंदें हलके गर्म जल में मिलाकर पिलावें और काला जीरा छ: माशे शिल पर पीसकर शहद में मिलाकर कनफेड़ों पर लेप करें और इसकी सिकाई करें ।
इरिमेद वृक्ष जिसे हरयाणे में रोंझ कहते हैं, उसके काली-काली सख्त गांठ वाला फल लगता है, उसे तोड़कर गर्म पानी में घिसकर शहद मिलाकर लेप करें । इससे भी लाभ होता है ।
काली खांसी - एक या दो बादाम पानी में भिगोयें और बाद में उसका छिलका उतारकर घिसें और शहद में मिलाकर बच्चे को चटावें । गाय के दूध की शुद्ध मलाई में शहद मिलाकर बच्चे को चटायें । इसके बार-बार खिलाने से काली खांसी में लाभ होता है । बच्चों को कोई भी रोग हो, गाय के ताजा दूध में शुद्ध शहद मिलाकर दिन में दो-तीन बार पिलावें । बालक को दुर्बलता का रोग हो, मसूड़ों में छिद्र हों और चर्म के भीतर रक्तस्राव होता हो तो निम्बू का रस एक चम्मच एक कटोरी पानी में घोलें और उसमें एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन-चार बार पिलावें ।
दाद - नीम के पत्तों को उबालकर उनका पानी लें । उससे जख्म को साफ करें व शुद्ध शहद लगाकर पट्टी बांध दें । दिन में तीन बार मधु को पानी में घोलकर पिलाते रहें ।
दौरा (विक्षेप) - इसमें रोगी के हाथ-पाँव अकड़ते हैं और वह बेहोश होकर गिर जाता है और शरीर भी सारा अकड़ जाता है । मिर्गी, मूर्च्छा और हिस्टीरिया रोग में ऐसा होता है । दिन में कई बार छः माशे से लेकर एक तोला तक शहद जल में मिलाकर प्रातः-सायं नियमित रूप से सेवन करें । इस प्रकार निरन्तर कई मास सेवन करने से यह रोग नष्ट हो जाता है ।
निद्रा में मूत्र त्याग - जिन बच्चों को माता का दूध या गऊ, बकरी का दूध आरम्भ में नहीं मिलता वे शीघ्र ही अन्न-फल आदि का भोजन करने लगते हैं । इन्हीं बच्चों को बहुधा यह रोग होता है । इस रोग में मधु के प्रयोग से बहुत लाभ होता है क्योंकि मधु में जल के सुखाने की बड़ी शक्ति होती है । अत: शहद के सेवन से बच्चों के रात्रि समय सोते हुए को पेशाब करने का स्वभाव शीघ्र नष्ट हो जाता है । दो-तीन वर्ष की आयु के बाद बच्चों को यह रोग हो तो बच्चे की माता को बड़ा कष्ट होता है । अत: बालक को रात्रि में सोने से पूर्व एक चम्मच शहद चटा दें । इस बात का ध्यान भी रखें कि सायंकाल बच्चे को पानी या दूध का पिलाना बंद रखना चाहिये । सोने से दो-तीन घंटे पहले खाने की चीज देनी चाहिये । छ: माशे से एक तोला शहद थोड़े से जल में मिलाकर दिन में दो-तीन बार देना चाहिये । मधु के प्रयोग से यह रोग ठीक हो जाता है !!

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