हकलाने या तुतलाने का रोग अधिकतर नाड़ियों में किसी प्रकार से दोष उत्पन्न होने के कारण होता है। यह रोग उन व्यक्तियों को भी हो जाता है जो एक हकलाने वाले व्यक्ति की नकल करते रहते हैं।
हकलाने तथा तुतलाने के लक्षण:-
बोलते समय ठीक तरह से अक्षरों को न बोल पाना तथा रुक-रुककर बोलना, तुतलाने या हकलाने का रोग कहलाता है। कुछ रोगियों में तो हकलाहट जरा सी होती है, जो धीरे-धीरे अपने आप ठीक हो जाती है। लेकिन कुछ मामलों में जब यह रोग पुराना हो जाता है तो रोगी को बोलने में बहुत परेशानी होती है।
हकलाना तथा तुतलाने का कारण:-
जब किसी व्यक्ति की पेशियों तथा स्नायुओं का नियंत्रण दोषपूर्ण हो जाता है तो वह व्यक्ति बोलते समय शब्दों का उच्चारण ठीक तरह से नहीं कर पाता है और वह रुक-रुककर बोलने लगता है। इस रोग के हो जाने के कारण रोगी की जीभ और होठों की आवश्यक गतिशीलता जो बोलने में उपयोग होती है तथा कठिनाई से पूरी होती है। इसके साथ ही स्वर यंत्र में आवाज पैदा हो जाती है जिसके कारण व्यक्ति तुतलाने लगता है। हकलाने के रोग में व्यक्ति को हर शब्द में तो नहीं पर कुछ शब्दों को बोलने में परेशानी होती है।
हकलाने तथा तुतलाने का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-
•यदि कोई बच्चा हकलाने या तुतलाने के रोग से पीड़ित है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए, उसे कुछ दिनों तक आंवला चबाने के लिए देना चाहिए। जिसके फलस्वरूप रोगी की जीभ पतली होकर उसकी आवाज साफ निकलने लगती है।
•इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में 10 भिगोए हुए बादाम को छीलकर और पीसकर मक्खन, मिश्री के साथ सेवन करना चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति यदि प्रतिदिन 10 कालीमिर्च के दाने और बादाम की गिरी को पीसकर मिश्री में मिलाकर चाटे तो उसका तुतलाने तथा हकलाने का रोग ठीक हो जाता है।
रोजाना गाय के घी में आंवले का चूर्ण मिलाकर चाटने से भी तुतलाना तथा हकलाना दूर हो जाता है।
छुहारे को दूध में उबालकर और चबाकर खा ले तथा इसके बाद दूध पी लें। इसके बाद दो घंटे तक कुछ नहीं खाना चाहिए। इससे आवाज बिलकुल साफ हो जाती है। यह क्रिया कुछ दिनों तक प्रतिदिन करने से रोगी का तुतलाना तथा हकलाना ठीक हो जाता है।
तुतलाने तथा हकलाने का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक फलों का रस (गाजर, सेब, चुकन्दर, अनन्नास, संतरा) पीकर उपवास रखना चाहिए। इसके बाद कुछ दिनों तक रोगी को फल, सब्जी, अंकुरित दाल का सेवन करना चाहिए। इससे रोगी को बहुत लाभ मिलता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में कॉफी, चाय, मैदा, रिफाइण्ड, चीनी, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
सोयाबीन को दूध में डालकर उसमें शहद मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से स्नायु की सूजन ठीक हो जाती है। इससे हकलाने तथा तुतलाने का रोग बिल्कुल ठीक हो जाता है।
पानी में नमक डालकर प्रतिदिन स्नान करने से रोगी का तुतलाने तथा हकलाने का रोग दूर हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में प्रतिदिन नियमित रुप से कोई हल्का व्यायाम करना चाहिए, जिससे स्नायु को शक्ति मिल सके और वह सही तरीके से अपना कार्य कर सके। इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह तथा शाम के समय में खुली हवा में टहलने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को गहरी नींद लेनी चाहिए तथा कम से कम 7-8 घंटे तक सोना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार कराते समय अपनी सभी मानसिक परेशानियों, भय, चिंता आदि को दूर कर देना चाहिए।
यदि रोगी व्यक्ति किसी कार्य को करते समय जल्दी थक जाता हो तो उसे वह कार्य नही करना चाहिए।
प्रतिदिन शुष्कघर्षण आसन करने तथा इसके बाद साधारण स्नान करने से हकलाने तथा तुतलाने का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को झगड़ा-झंझट, वैवाहिक जीवन की असंगति, पारिवारिक क्लेश, आर्थिक कठिनाइयां, प्रेम सम्बन्धी निराशा, यौन सम्बन्धी कुसंयोजन तथा क्रोध, भय आदि मानसिक कारणों से दूर रहना चाहिए क्योंकि इन सभी कारणों से रोग की अवस्था और भी गम्भीर हो सकती है।
शहद में कालीमिर्च मिलाकर प्रतिदिन चाटने से हकलाना तथा तुतलाना ठीक हो जाता है।
रात को सोते समय भुनी हुई फिटकरी को मुंह में रखकर सो जाएं और सुबह के समय में उठकर कुल्ला कर लें। इस क्रिया को लगभग एक महीने तक करने से हकलाने तथा तुतलाने का रोग ठीक हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को खाना खाने के बाद अपने मुंह में छोटी इलायची तथा लौंग रखनी चाहिए तथा जीभ को प्रतिदिन साफ करना चाहिए और यदि कब्ज की शिकायत हो तो उसे दूर करना चाहिए।
हकलाने और तुतलाने के रोग से पीड़ित रोगी को मन से भय की भावना बिल्कुल निकाल देनी चाहिए तथा मन को सबल बनाना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में शंख में पानी भरकर फिर सुबह के समय में उठकर उस पानी को प्रतिदिन पीने से यह रोग ठीक हो जाता है।
प्रतिदिन एनिमा लेने से तथा इसके बाद गुनगुने पानी से गरारा करने से रोगी का गला साफ हो जाता है और उसका तुतलाना तथा हकलाना बंद हो जाता है।
जबड़ों की पेशियों के कड़ेपन और होठों की गतिमन्दता के कारण भी हकलाने तथा तुतलाने का रोग हो जाता है, इसलिए रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को अपने हाथ की तर्जनी उंगुली को मुंह में डालकर नीचे के जबड़े को धीरे-धीरे नीचे की ओर ले जाना चाहिए। इसके बाद पेशियों को ढीला छोड़ देना चाहिए, जिससे जबड़ा अपने ही भार से नीचे की ओर चला जाए। जब यह क्रिया कर रहे हो उस समय गले में कोई गति नहीं होनी चाहिए। इस प्रकार के व्यायाम प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
हकलाने तथा तुतलाने के रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को एक कुर्सी पर लिटाकर शरीर को सीधा तथा ढीला छोड़ देना चाहिए। उसके बाद चेहरे की पेशियों को ढीली करके जबड़े को नीचे गिरने देना चाहिए। इस अवस्था में रोगी व्यक्ति को अपनी जीभ मुंह की तली से सटाकर रखनी चाहिए। इस व्यायाम को प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति को अपने मुंह की पेशियों को ठीक करने के लिए प्रतिदिन शीशे के सामने 15 मिनट तक खड़े होकर या बैठकर जोर-जोर से कुछ पढ़ना चाहिए और उस समय गहरी सांस लेनी चाहिए। रोगी को पढ़ते समय प्रत्येक शब्द का उच्चारण सही करने की कोशिश करनी चाहिए। इस प्रकार से उपचार प्रतिदिन करने से कुछ ही दिनों में हकलाने तथा तुतलाने का रोग ठीक हो जाता है।
इस रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन हैं। इन आसनों के करने से हकलाना तथा तुतलाना ठीक हो जाता है। ये आसन इस प्रकार हैं- उष्ट्रासन, हलासन, मण्डूकासन, मत्स्यासन, सुप्तवज्रासन, जानुशीर्षासन, सिंहासन, धुनरासन तथा खेचरी मुद्रा आदि।
किसी भी ठीक व्यक्ति को हकलाने वाले व्यक्ति की नकल नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से उसे भी हकलाने की आदत पड़ सकती है।
हकलाने तथा तुतलाने के लक्षण:-
बोलते समय ठीक तरह से अक्षरों को न बोल पाना तथा रुक-रुककर बोलना, तुतलाने या हकलाने का रोग कहलाता है। कुछ रोगियों में तो हकलाहट जरा सी होती है, जो धीरे-धीरे अपने आप ठीक हो जाती है। लेकिन कुछ मामलों में जब यह रोग पुराना हो जाता है तो रोगी को बोलने में बहुत परेशानी होती है।
हकलाना तथा तुतलाने का कारण:-
जब किसी व्यक्ति की पेशियों तथा स्नायुओं का नियंत्रण दोषपूर्ण हो जाता है तो वह व्यक्ति बोलते समय शब्दों का उच्चारण ठीक तरह से नहीं कर पाता है और वह रुक-रुककर बोलने लगता है। इस रोग के हो जाने के कारण रोगी की जीभ और होठों की आवश्यक गतिशीलता जो बोलने में उपयोग होती है तथा कठिनाई से पूरी होती है। इसके साथ ही स्वर यंत्र में आवाज पैदा हो जाती है जिसके कारण व्यक्ति तुतलाने लगता है। हकलाने के रोग में व्यक्ति को हर शब्द में तो नहीं पर कुछ शब्दों को बोलने में परेशानी होती है।
हकलाने तथा तुतलाने का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-
•यदि कोई बच्चा हकलाने या तुतलाने के रोग से पीड़ित है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए, उसे कुछ दिनों तक आंवला चबाने के लिए देना चाहिए। जिसके फलस्वरूप रोगी की जीभ पतली होकर उसकी आवाज साफ निकलने लगती है।
•इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में 10 भिगोए हुए बादाम को छीलकर और पीसकर मक्खन, मिश्री के साथ सेवन करना चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति यदि प्रतिदिन 10 कालीमिर्च के दाने और बादाम की गिरी को पीसकर मिश्री में मिलाकर चाटे तो उसका तुतलाने तथा हकलाने का रोग ठीक हो जाता है।
रोजाना गाय के घी में आंवले का चूर्ण मिलाकर चाटने से भी तुतलाना तथा हकलाना दूर हो जाता है।
छुहारे को दूध में उबालकर और चबाकर खा ले तथा इसके बाद दूध पी लें। इसके बाद दो घंटे तक कुछ नहीं खाना चाहिए। इससे आवाज बिलकुल साफ हो जाती है। यह क्रिया कुछ दिनों तक प्रतिदिन करने से रोगी का तुतलाना तथा हकलाना ठीक हो जाता है।
तुतलाने तथा हकलाने का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक फलों का रस (गाजर, सेब, चुकन्दर, अनन्नास, संतरा) पीकर उपवास रखना चाहिए। इसके बाद कुछ दिनों तक रोगी को फल, सब्जी, अंकुरित दाल का सेवन करना चाहिए। इससे रोगी को बहुत लाभ मिलता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में कॉफी, चाय, मैदा, रिफाइण्ड, चीनी, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
सोयाबीन को दूध में डालकर उसमें शहद मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से स्नायु की सूजन ठीक हो जाती है। इससे हकलाने तथा तुतलाने का रोग बिल्कुल ठीक हो जाता है।
पानी में नमक डालकर प्रतिदिन स्नान करने से रोगी का तुतलाने तथा हकलाने का रोग दूर हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में प्रतिदिन नियमित रुप से कोई हल्का व्यायाम करना चाहिए, जिससे स्नायु को शक्ति मिल सके और वह सही तरीके से अपना कार्य कर सके। इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह तथा शाम के समय में खुली हवा में टहलने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को गहरी नींद लेनी चाहिए तथा कम से कम 7-8 घंटे तक सोना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार कराते समय अपनी सभी मानसिक परेशानियों, भय, चिंता आदि को दूर कर देना चाहिए।
यदि रोगी व्यक्ति किसी कार्य को करते समय जल्दी थक जाता हो तो उसे वह कार्य नही करना चाहिए।
प्रतिदिन शुष्कघर्षण आसन करने तथा इसके बाद साधारण स्नान करने से हकलाने तथा तुतलाने का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को झगड़ा-झंझट, वैवाहिक जीवन की असंगति, पारिवारिक क्लेश, आर्थिक कठिनाइयां, प्रेम सम्बन्धी निराशा, यौन सम्बन्धी कुसंयोजन तथा क्रोध, भय आदि मानसिक कारणों से दूर रहना चाहिए क्योंकि इन सभी कारणों से रोग की अवस्था और भी गम्भीर हो सकती है।
शहद में कालीमिर्च मिलाकर प्रतिदिन चाटने से हकलाना तथा तुतलाना ठीक हो जाता है।
रात को सोते समय भुनी हुई फिटकरी को मुंह में रखकर सो जाएं और सुबह के समय में उठकर कुल्ला कर लें। इस क्रिया को लगभग एक महीने तक करने से हकलाने तथा तुतलाने का रोग ठीक हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को खाना खाने के बाद अपने मुंह में छोटी इलायची तथा लौंग रखनी चाहिए तथा जीभ को प्रतिदिन साफ करना चाहिए और यदि कब्ज की शिकायत हो तो उसे दूर करना चाहिए।
हकलाने और तुतलाने के रोग से पीड़ित रोगी को मन से भय की भावना बिल्कुल निकाल देनी चाहिए तथा मन को सबल बनाना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में शंख में पानी भरकर फिर सुबह के समय में उठकर उस पानी को प्रतिदिन पीने से यह रोग ठीक हो जाता है।
प्रतिदिन एनिमा लेने से तथा इसके बाद गुनगुने पानी से गरारा करने से रोगी का गला साफ हो जाता है और उसका तुतलाना तथा हकलाना बंद हो जाता है।
जबड़ों की पेशियों के कड़ेपन और होठों की गतिमन्दता के कारण भी हकलाने तथा तुतलाने का रोग हो जाता है, इसलिए रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को अपने हाथ की तर्जनी उंगुली को मुंह में डालकर नीचे के जबड़े को धीरे-धीरे नीचे की ओर ले जाना चाहिए। इसके बाद पेशियों को ढीला छोड़ देना चाहिए, जिससे जबड़ा अपने ही भार से नीचे की ओर चला जाए। जब यह क्रिया कर रहे हो उस समय गले में कोई गति नहीं होनी चाहिए। इस प्रकार के व्यायाम प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
हकलाने तथा तुतलाने के रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को एक कुर्सी पर लिटाकर शरीर को सीधा तथा ढीला छोड़ देना चाहिए। उसके बाद चेहरे की पेशियों को ढीली करके जबड़े को नीचे गिरने देना चाहिए। इस अवस्था में रोगी व्यक्ति को अपनी जीभ मुंह की तली से सटाकर रखनी चाहिए। इस व्यायाम को प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति को अपने मुंह की पेशियों को ठीक करने के लिए प्रतिदिन शीशे के सामने 15 मिनट तक खड़े होकर या बैठकर जोर-जोर से कुछ पढ़ना चाहिए और उस समय गहरी सांस लेनी चाहिए। रोगी को पढ़ते समय प्रत्येक शब्द का उच्चारण सही करने की कोशिश करनी चाहिए। इस प्रकार से उपचार प्रतिदिन करने से कुछ ही दिनों में हकलाने तथा तुतलाने का रोग ठीक हो जाता है।
इस रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन हैं। इन आसनों के करने से हकलाना तथा तुतलाना ठीक हो जाता है। ये आसन इस प्रकार हैं- उष्ट्रासन, हलासन, मण्डूकासन, मत्स्यासन, सुप्तवज्रासन, जानुशीर्षासन, सिंहासन, धुनरासन तथा खेचरी मुद्रा आदि।
किसी भी ठीक व्यक्ति को हकलाने वाले व्यक्ति की नकल नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से उसे भी हकलाने की आदत पड़ सकती है।
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