१. कपूर की चकतियों की माला गले में धारण कराने से शिशु के दांत सरलता से निकल आते हैं।
२. पीपल, आवलें का रास व धाय के पुष्प-इनको पीसकर यह मिश्रण मसूड़ों पर लगाने से दांत सहजता से जैम जाते हैं।
३. कुत्ते के दांत को ताबीज में रखकर बच्चे के गले में पहनाने से दांत सरलता से निकलते हैं।
४. बच्चे के दांत सरलता से निकालें, इसके लिए संभालू की जड़ का ताबीज बनाकर गले में लटकाएं।
५. तांबे या लौह का कड़ा बच्चे के हाथ-पैरों में पहनाने से उसके दांत सरलता से निकल आते हैं। साथ ही दृष्टिदोष भी नहीं होता।
६. जिस स्त्री के बच्चों के दांत सरलता से न निकलते हों, तो बच्चे के गले में कड़वी तुम्बी के बीज का ताबीज दाल दें। बच्चे को आभास भी नहीं होगा की कब दांत निकल आए।
७. पत्थरचूर की जड़ को ताम्बे के ताबीज में भरवाकर, लाल सूती डोरे की सहायता से बच्चे के गले में लटका दें। इस प्रयोग से दांत निकलते समय कोई कष्ट नहीं होता और हरे-पीले रंग के होने वाले दस्त भी बंद हो जाते हैं।
८. यदि शिशु माँ के स्तनपान करने के तुतंत बाद ही वमन कर दे, तो उसके समीप तभी कांसे का कोई भी बर्तन बजा दें। इस प्रयोग से वमन का वेग शांत हो जाएगा।
९. यदि बच्चे की नाभि पाक गई हो, तो बकरी की मैंगनी जलाकर उसकी राख को ठंडी करके नाभि पर बुरक दें। इससे नाभि की सूजन भी दूर हो जाएगी। ऐसे बच्चे की कमर में कला धागा बांधणा चाहिए।
१०. पीपल के पत्ते व छाल को बारीक पीसकर तथा उसमे शहद मिलाकर लेप करने से बच्चों के मुह के छले ठीक हो जाते हैं।
११. यदि कफ-विकृति के कारण बच्चे की पसली चल रही हो और इस कारण उसे ज्वर भी हो गया हो तो रैंडी का तेल सीने पर मलकर ऊपर से बकायन की पत्ती हलकी गरम करके बाँध देनी चाहिए। इससे पसली का चलना बंद होगा तथा ज्वर भी उत्तर जाएगा। रैंडी के तेल के स्थान पर तारपीन का तेल भी मला जा सकता है।
१२. बकरे के दाढ़ी के बाल किसी ताबीज में भरकर, गंधक की धूनी देकर, काले सूती धागे की सहायता से बच्चे के गले में लटका दें। इस क्रिया से चौथैया ज्वर चढ़ना बंद हो जाएगा।
१३. यदि सुख रोग के कारण बच्चा पीला पद गया हो तो मजीठ की लकड़ी में छिद्र करके और सूती धागा पिराकर उसके गले में डाल दें। इस प्रयोग से सुख रोग समाप्त हो जाएगा तथा बच्चा नीरोग होकर हष्ट-पुष्ट व स्वस्थ हो जाएगा।
१४. पूरब दिशा में उत्पन्न सम्भालू की जड़ को बच्चे के गले में सूती धागे की सहायता से पहना दें। इस टोटके से अंडकोष-सम्बन्धी कोई रोग नहीं होता है।
१५. सूती कपडे की थैली में काले कोवे की बीत बांधकर, बच्चे के गले में सूती धागे की सहायता से लटका दें। इस टोटके के प्रयोग से बच्चे का गिरा हुआ काग यानी कौआ बैठ जाता है। यदि इसके कारण बच्चे को खांसी हो गई हो, तो वो भी टोटके के इस प्रयोग से ठीक हो जाती है। यह प्रयोग किसी रविवार या मंगलवार के दिन करना चाहिए।
१६. बच्चे के एकत्रित किये गए मूत्र से (मॉल-त्याग के पश्चात) बच्चे की कांच धोएं और बाद में ताजा पानी से गुदा को भी धो डालें। कुछ सप्ताह के प्रयोग से ही कांच निकलना बंद हो जाएगी। इस रोग को गुदाभ्रंश के नाम से भी जाना जाता है।
१७. सफ़ेद कबूतर का जोड़ा घर में रखने (पालने) से बच्चे को जापोगा रोग की बाधा का भय नहीं रहता। इस रोग को ‘जम्हुआ’ के नाम से भी जाना जाता है।
१८. जिन छोटे बच्चों के सिर पर बाल न हों या कवर नाममात्र को हों तो किसी रविवार के दिन से रसौत व हाथीदांत की राख सिर पर नित्य मलने से बाल उग आते हैं।
१९. यदि दुधमुंहे (माँ का दूध पीने वाले) छोटे शिशु को बहुत तीव्रता से हिचकी आ रही हो तो उसके सिर व कलेजे पर कड़वे तेल की हलके हाथ से मालिश करने के उपरान्त एक तिनका लेकर और बच्चे के सिर के ऊपर हाथ करके, तोड़ते हुए, उस टुकड़े को बच्चे के पीछे की ओर फ़ेंक दें। इस क्रिया से तुरंत हिचकी आना बंद हो जाएगी।
२. पीपल, आवलें का रास व धाय के पुष्प-इनको पीसकर यह मिश्रण मसूड़ों पर लगाने से दांत सहजता से जैम जाते हैं।
३. कुत्ते के दांत को ताबीज में रखकर बच्चे के गले में पहनाने से दांत सरलता से निकलते हैं।
४. बच्चे के दांत सरलता से निकालें, इसके लिए संभालू की जड़ का ताबीज बनाकर गले में लटकाएं।
५. तांबे या लौह का कड़ा बच्चे के हाथ-पैरों में पहनाने से उसके दांत सरलता से निकल आते हैं। साथ ही दृष्टिदोष भी नहीं होता।
६. जिस स्त्री के बच्चों के दांत सरलता से न निकलते हों, तो बच्चे के गले में कड़वी तुम्बी के बीज का ताबीज दाल दें। बच्चे को आभास भी नहीं होगा की कब दांत निकल आए।
७. पत्थरचूर की जड़ को ताम्बे के ताबीज में भरवाकर, लाल सूती डोरे की सहायता से बच्चे के गले में लटका दें। इस प्रयोग से दांत निकलते समय कोई कष्ट नहीं होता और हरे-पीले रंग के होने वाले दस्त भी बंद हो जाते हैं।
८. यदि शिशु माँ के स्तनपान करने के तुतंत बाद ही वमन कर दे, तो उसके समीप तभी कांसे का कोई भी बर्तन बजा दें। इस प्रयोग से वमन का वेग शांत हो जाएगा।
९. यदि बच्चे की नाभि पाक गई हो, तो बकरी की मैंगनी जलाकर उसकी राख को ठंडी करके नाभि पर बुरक दें। इससे नाभि की सूजन भी दूर हो जाएगी। ऐसे बच्चे की कमर में कला धागा बांधणा चाहिए।
१०. पीपल के पत्ते व छाल को बारीक पीसकर तथा उसमे शहद मिलाकर लेप करने से बच्चों के मुह के छले ठीक हो जाते हैं।
११. यदि कफ-विकृति के कारण बच्चे की पसली चल रही हो और इस कारण उसे ज्वर भी हो गया हो तो रैंडी का तेल सीने पर मलकर ऊपर से बकायन की पत्ती हलकी गरम करके बाँध देनी चाहिए। इससे पसली का चलना बंद होगा तथा ज्वर भी उत्तर जाएगा। रैंडी के तेल के स्थान पर तारपीन का तेल भी मला जा सकता है।
१२. बकरे के दाढ़ी के बाल किसी ताबीज में भरकर, गंधक की धूनी देकर, काले सूती धागे की सहायता से बच्चे के गले में लटका दें। इस क्रिया से चौथैया ज्वर चढ़ना बंद हो जाएगा।
१३. यदि सुख रोग के कारण बच्चा पीला पद गया हो तो मजीठ की लकड़ी में छिद्र करके और सूती धागा पिराकर उसके गले में डाल दें। इस प्रयोग से सुख रोग समाप्त हो जाएगा तथा बच्चा नीरोग होकर हष्ट-पुष्ट व स्वस्थ हो जाएगा।
१४. पूरब दिशा में उत्पन्न सम्भालू की जड़ को बच्चे के गले में सूती धागे की सहायता से पहना दें। इस टोटके से अंडकोष-सम्बन्धी कोई रोग नहीं होता है।
१५. सूती कपडे की थैली में काले कोवे की बीत बांधकर, बच्चे के गले में सूती धागे की सहायता से लटका दें। इस टोटके के प्रयोग से बच्चे का गिरा हुआ काग यानी कौआ बैठ जाता है। यदि इसके कारण बच्चे को खांसी हो गई हो, तो वो भी टोटके के इस प्रयोग से ठीक हो जाती है। यह प्रयोग किसी रविवार या मंगलवार के दिन करना चाहिए।
१६. बच्चे के एकत्रित किये गए मूत्र से (मॉल-त्याग के पश्चात) बच्चे की कांच धोएं और बाद में ताजा पानी से गुदा को भी धो डालें। कुछ सप्ताह के प्रयोग से ही कांच निकलना बंद हो जाएगी। इस रोग को गुदाभ्रंश के नाम से भी जाना जाता है।
१७. सफ़ेद कबूतर का जोड़ा घर में रखने (पालने) से बच्चे को जापोगा रोग की बाधा का भय नहीं रहता। इस रोग को ‘जम्हुआ’ के नाम से भी जाना जाता है।
१८. जिन छोटे बच्चों के सिर पर बाल न हों या कवर नाममात्र को हों तो किसी रविवार के दिन से रसौत व हाथीदांत की राख सिर पर नित्य मलने से बाल उग आते हैं।
१९. यदि दुधमुंहे (माँ का दूध पीने वाले) छोटे शिशु को बहुत तीव्रता से हिचकी आ रही हो तो उसके सिर व कलेजे पर कड़वे तेल की हलके हाथ से मालिश करने के उपरान्त एक तिनका लेकर और बच्चे के सिर के ऊपर हाथ करके, तोड़ते हुए, उस टुकड़े को बच्चे के पीछे की ओर फ़ेंक दें। इस क्रिया से तुरंत हिचकी आना बंद हो जाएगी।
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