१. बालकों का भूखा रहना महान खतरनाक है। बालकों के भूख की परवाह न कर माता का गृह काम में लगे रहना उन्हें दुबले, मरियल, और कमजोर करने के सिवाय कुछ नहीं।
२. बालक जागने पर रोने लग जाए एवं मुँह में मुट्ठी देना, यह अपनी भूख का ऐलान करता है। अत: माता को दूध पिलाना चाहिए।
३. माता को क्रोध में बालक को दूध नहीं पिलाना चाहिए।
४. दूध पिलाने के पूर्व माता एक गिलास पानी पीकर दूध पिलाती है तो श्रेष्ठ होता है ऐसा करने से माता की थकान आदि दूर होकर दूध शुद्ध पहुँचता है।
५. माँ के दूध के समान गुणकारी अन्य दूध नहीं अत: बच्चे को माँ का दूध ही पिलायें।
६. माँ का दूध कम निकलता है तो पका पपीता एवं दलिया दूध के साथ खिलाने से माता के दूध में वृद्धि होती है।
७. यदि किसी की माँ बहुत बीमार हो जाती है तो बीमारी में बालक को दूध ही पिलायें। ऐसी स्थिति में—
(१) बकरी का दूध सर्वोत्तम है।
(२) गाय का दूध मध्यम है।
(३) भैंसे का दूध सुपाध्य नहीं होता एवं बालक को आलसी बनायेगा और उदर विकार हो सकते हैं। इसकी मलाई निकाल ले आधा जल मिलायें।
(४) बच्चों को पेट भर दूध पिलाना जरूरी हैं।
(५) किसी भी रोगी पशु का दूध ना पिलाएँ।
(६) जिस पशु का बछड़ा मर गया है और इन्जेक्शन लगाकर दूध निकाला जाता है वह दूध बहुत हानिका—कारक है बच्चों को क्या किसी को नही लेना चाहिये।
(७) दूध पाउडर सत्व रहित होता है।
(८) बच्चों को भोजन (अन्य आहार) की मात्रा कम देकर फल, नीबू रस, नारंगी, सन्तरा, मौसम्मी, अंगूर,नाशपाती , सेव आदि का जूस उम्र अनुसार देना अधिक लाभकारी है।
(९) शक्कर की जगह भीगी किसमिस पीसकर दूध को मीठा करना अधिक लाभकारी है।
(१०) हिचकी— बच्चो को हिचकी आती हो तो उसे १—१ चम्मच गरम जल पिलाने से तत्काल आराम होता है।
(११) प्राण वायु और जल के अभाव में यह रोग होता है।
(१२) २—३ माह के बाद बालक को पपीता, सेव, पालक का थोड़ा—थोड़ा जूस देना लाभकारी है इससे पाचन सही होता है।
(१३) ५०० ग्राम चूने को ५ किलो पानी में बुझा दें उसे लगातार ५—६ बार हिलाते रहे १ बार दिन में हिलाने के बाद ७वें दिन सब चूना नीचे जम जाता है तथा शुद्ध छना पानी रहता है इसके ऊपर की पपड़ी धीरे से अलग कर लें। पश्चात् शुद्ध पानी (घड़े के बिना हिलाएँ) एक शीशी में भर लें। इस पानी को दिन में ३—४ बार बालक को १—१ चम्मच पिलाने से बालक का अजीर्ण , हरे पीले दस्त, अफरा, आदि ठीक हो जाता है, यह केल्सीयम की पूर्ति कर बालक को स्वस्थ बनाता है। गर्मी में पानी डालते रहें।
२. बालक जागने पर रोने लग जाए एवं मुँह में मुट्ठी देना, यह अपनी भूख का ऐलान करता है। अत: माता को दूध पिलाना चाहिए।
३. माता को क्रोध में बालक को दूध नहीं पिलाना चाहिए।
४. दूध पिलाने के पूर्व माता एक गिलास पानी पीकर दूध पिलाती है तो श्रेष्ठ होता है ऐसा करने से माता की थकान आदि दूर होकर दूध शुद्ध पहुँचता है।
५. माँ के दूध के समान गुणकारी अन्य दूध नहीं अत: बच्चे को माँ का दूध ही पिलायें।
६. माँ का दूध कम निकलता है तो पका पपीता एवं दलिया दूध के साथ खिलाने से माता के दूध में वृद्धि होती है।
७. यदि किसी की माँ बहुत बीमार हो जाती है तो बीमारी में बालक को दूध ही पिलायें। ऐसी स्थिति में—
(१) बकरी का दूध सर्वोत्तम है।
(२) गाय का दूध मध्यम है।
(३) भैंसे का दूध सुपाध्य नहीं होता एवं बालक को आलसी बनायेगा और उदर विकार हो सकते हैं। इसकी मलाई निकाल ले आधा जल मिलायें।
(४) बच्चों को पेट भर दूध पिलाना जरूरी हैं।
(५) किसी भी रोगी पशु का दूध ना पिलाएँ।
(६) जिस पशु का बछड़ा मर गया है और इन्जेक्शन लगाकर दूध निकाला जाता है वह दूध बहुत हानिका—कारक है बच्चों को क्या किसी को नही लेना चाहिये।
(७) दूध पाउडर सत्व रहित होता है।
(८) बच्चों को भोजन (अन्य आहार) की मात्रा कम देकर फल, नीबू रस, नारंगी, सन्तरा, मौसम्मी, अंगूर,नाशपाती , सेव आदि का जूस उम्र अनुसार देना अधिक लाभकारी है।
(९) शक्कर की जगह भीगी किसमिस पीसकर दूध को मीठा करना अधिक लाभकारी है।
(१०) हिचकी— बच्चो को हिचकी आती हो तो उसे १—१ चम्मच गरम जल पिलाने से तत्काल आराम होता है।
(११) प्राण वायु और जल के अभाव में यह रोग होता है।
(१२) २—३ माह के बाद बालक को पपीता, सेव, पालक का थोड़ा—थोड़ा जूस देना लाभकारी है इससे पाचन सही होता है।
(१३) ५०० ग्राम चूने को ५ किलो पानी में बुझा दें उसे लगातार ५—६ बार हिलाते रहे १ बार दिन में हिलाने के बाद ७वें दिन सब चूना नीचे जम जाता है तथा शुद्ध छना पानी रहता है इसके ऊपर की पपड़ी धीरे से अलग कर लें। पश्चात् शुद्ध पानी (घड़े के बिना हिलाएँ) एक शीशी में भर लें। इस पानी को दिन में ३—४ बार बालक को १—१ चम्मच पिलाने से बालक का अजीर्ण , हरे पीले दस्त, अफरा, आदि ठीक हो जाता है, यह केल्सीयम की पूर्ति कर बालक को स्वस्थ बनाता है। गर्मी में पानी डालते रहें।
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