आयुर्वेदिक चिकित्सा में पारद को बड़ा ही महत्व दिया गया है और शिव को प्रिय होने के कारण इसे रसेन्द्र नाम से भी जाना गया है। क्या आपने कभी सोचा है, कि ऐसी कोई वनस्पति है, जिसे भगवान् शिव ने उसके औषधीय गुणों के कारण पारे के समान माना है। जानना चाहेंगे आप तो हम बताते हैं ,आपको उस दिव्य वनस्पति के बारे में जिसका नाम मदार.(आकं)है। आपने मदार मालाय जय गौरी शंकराय नाम से लोगों को मंत्रउच्चारित करते भी सुना होगा हाँ इसमें भी मदार के महिमा का बखान किया गया है। इस पौधे की पहचान और गुणों की संक्षिप्त चर्चा की जा रही है जिससे आप इसके गूढ़ उपयोगों से साक्षात रूबरू होंगे।
मदार के पौधे प्राय: जनसामान्य में विषैले पौधे के रूप में जाने जाते हैं। हाँ, आयुर्वेद में भी इसे उपविष की संज्ञा दी गई है। आइए अब आपको परिचित कराते हैं इस पौधे के औषधीय गुणों से जिसे जानकर आप अचरज में पड़ जाएंगे।
-यदि आप सिर में फंगल संक्रमण के कारण होने वाली खुजली से परेशान हैं तो आप इसका अर्क (दुग्ध ) का स्थानिक प्रयोग करें और लाभ देखें। -मदार के पीले पके पत्तों पर घी चुपड़ कर धीमी आंच में गर्म कर उससे रस निकालकर दो से तीन बूँद कान में डालने से कान के रोगों में बड़ा ही लाभ मिलता है।
-दांत के किसी भी प्रकार के दर्द में मदार के दूध में हल्का सैंधा नमक मिलाकर पीड़ा वाले स्थान पर लगा देने मात्र से दंतशूल में लाभ मिलता है।
-आक के आठ से दस पत्तों में पांच से दस ग्राम काली मिर्च मिलाकर अच्छी तरह पीसकर ,थोड़ी हल्दी मिलाकर मंजन करने से दांत को मजबूती मिलती है।
-आधे सिर के दर्द में पीले पड़े हुए मदार के एक से दो पत्तों के रस को नाक में टपका देने से लाभ मिलता है।
-दमा के रोगियों में मदार के फूल एवं लौंग 10 से 20 ग्राम क़ी मात्रा में काली मिर्च के पाउडर 2.5 ग्राम की मात्रा के साथ अच्छी तरह पीसकर सुबह शाम 250 मिलीग्राम की मात्रा की एक एक गोली देने से भी लाभ मिलता है।
-मदार की जड़ को सुखाकर जलाकर भस्मीकृत कर प्राप्त राख को शहद के साथ 2.5 से 5 ग्राम की मात्रा में लेने खांसी और सांस की तकलीफ में लाभ मिलता है।
-मदार के फूल को सुखाकर त्रिकटु (सौंठ ,मरीच और पिप्पली ) और यवक्षार के साथ मिलाकर बारिक पीस लें।अदरक स्वरस के साथ पीस लें और इसकी छोटी-छोटी गोलियां बना लें। बस तैयार हो गई गले की खरास के लिए चूसने वाली दवा इससे आपका गला ठीक रहता है और सूखी खांसी में भी लाभ मिलता है।
-यदि भोजन नहीं पच रहा हो अर्थात अजीर्ण जैसी समस्या उत्पन्न हो रही हो तो मदार के पत्तों का स्वरस निकाल लें और इसमें बराबर मात्रा में एलोवेरा (घृतकुमारी ) के रस को शक्कर के साथ मिलाकर पका लें। जब चीनी की चासनी बन जाए तो इसे ठंडा कर किसी साफ सी कांच की बोतल में भर लें।
-जौंडिस (कामला ) पीलीया के रोगियों में मदार की एक कोपल को खाली पेट पान के पत्ते में रखकर चबाने से लाभ मिलता है।
-यदि पुराना घाव जो ठीक न हो रहा हो या नाडी व्रण/भगंदर जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई हो तो मदार का दूध 5 से 10 मिली की मात्रा में 2.5 ग्राम दारुहरिद्रा के साथ मिलाकर रूई के बत्ती बनाकर घाव या नासूर पर लगाने मात्र से लाभ मिलता है।
-मदार के दूध में शुद्ध शहद और गाय का घी बराबर मात्रा में मिलाकर इसे खरल में चार से पांच घंटे तक घोटकर 2.5 से 5 ग्राम की मात्रा में खाने से नपुंसकता दूर होती है। -
पसलियों या मांसपेशियों की दर्द में मदार के दूध में थोड़ा काला तिल मिलाकर जब लेप सा तैयार हो जाए तो इसे हल्का गर्म कर दर्द वाले स्थान पर लेप कर दें और ठीक इसके ऊपर आक के पत्तों को तिल या सरसों के तेल में चुपड़कर तवे पर हल्का सा गर्म कर प्रभावित स्थान पर बाँध दे।दर्द में फौरन आराम मिलेगा।
-यदि आप जोड़ों की दर्द से हों परेशान तो बस मदार के फूल को सौंठ,काली मिर्च ,हरिद्रा और नागरमोथा के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें और इसे एक से दो गोली सुबह-शाम चिकित्सक के निर्देशन में लें इससे आपको निश्चित लाभ मिलेगा।
-मदार के पत्तों को कूटकर पोटली बनाकर ,घी लगाकर तवे पर गर्म कर (पोटली स्वेदन ) करने से भी दर्द में आराम मिलता है।
-कहीं भी खुजली या दाद जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही हो तो मदार के फूलों के गुच्छों को तोडऩे से निकले दूध में नारियल का तेल मिलाकर लगाने से खुजली दूर हो जाती है। -
त्वचा के रोगों जैसे एक्जीमा आदि में मदार के दूध को 50 मिली की मात्रा में लेकर इससे दुगनी मात्रा में सरसों का तेल ( 100 मिली ) लेकर ,हल्दी के पाउडर 100 ग्राम और मैनसिल 10 ग्राम क़ी मात्रा में एक साथ खरल में दूध के साथ मिलाकर लेप सा बनाकर ,पुन: इसमें तिल तेल एक लीटर और इतना ही पानी मिलाकर पकायें, जब पानी उड़ जाय और तेल सिद्ध हो जाय तो इसे प्रभावित स्थान पर लगाने से चर्म रोगों में बड़ा लाभ मिलता है।
-मदार के पत्तों के रस को लगभग 1000 मिली की मात्रा में लेकर कच्ची हल्दी का रस निकालकर 250 मिली की मात्रा में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं ,जब तेल शेष रहे तो इसे छान कर पुराने से पुराने घाव जिससे मवाद आ रहा हो में लगायें और लाभ देखें -आग से जले हुए घाव में भी लगभग तीन ग्राम मदार के पत्तों की राख को तिल के तेल के साथ मिलाकर खरल में पीसकर इसमें 2.5 ग्राम चूने का पानी मिलाकर जले हुए स्थान पर लेपित करें इससे अग्निदग्ध व्रण में लाभ मिलता है।
-मदार के दूध की 5 बूँद .कच्चे पपीते का रस 10 बूँद और चिरायता का रस 15 बूँद एक साथ गौमूत्र के साथ मिलाकर पुराने बुखार से पीड़ित रोगी में देने से लाभ मिलता है।
नोट- सावधानी से चिकित्सक के निर्देशन में हो तो बेहतर होगा।
मदार के पौधे प्राय: जनसामान्य में विषैले पौधे के रूप में जाने जाते हैं। हाँ, आयुर्वेद में भी इसे उपविष की संज्ञा दी गई है। आइए अब आपको परिचित कराते हैं इस पौधे के औषधीय गुणों से जिसे जानकर आप अचरज में पड़ जाएंगे।
-यदि आप सिर में फंगल संक्रमण के कारण होने वाली खुजली से परेशान हैं तो आप इसका अर्क (दुग्ध ) का स्थानिक प्रयोग करें और लाभ देखें। -मदार के पीले पके पत्तों पर घी चुपड़ कर धीमी आंच में गर्म कर उससे रस निकालकर दो से तीन बूँद कान में डालने से कान के रोगों में बड़ा ही लाभ मिलता है।
-दांत के किसी भी प्रकार के दर्द में मदार के दूध में हल्का सैंधा नमक मिलाकर पीड़ा वाले स्थान पर लगा देने मात्र से दंतशूल में लाभ मिलता है।
-आक के आठ से दस पत्तों में पांच से दस ग्राम काली मिर्च मिलाकर अच्छी तरह पीसकर ,थोड़ी हल्दी मिलाकर मंजन करने से दांत को मजबूती मिलती है।
-आधे सिर के दर्द में पीले पड़े हुए मदार के एक से दो पत्तों के रस को नाक में टपका देने से लाभ मिलता है।
-दमा के रोगियों में मदार के फूल एवं लौंग 10 से 20 ग्राम क़ी मात्रा में काली मिर्च के पाउडर 2.5 ग्राम की मात्रा के साथ अच्छी तरह पीसकर सुबह शाम 250 मिलीग्राम की मात्रा की एक एक गोली देने से भी लाभ मिलता है।
-मदार की जड़ को सुखाकर जलाकर भस्मीकृत कर प्राप्त राख को शहद के साथ 2.5 से 5 ग्राम की मात्रा में लेने खांसी और सांस की तकलीफ में लाभ मिलता है।
-मदार के फूल को सुखाकर त्रिकटु (सौंठ ,मरीच और पिप्पली ) और यवक्षार के साथ मिलाकर बारिक पीस लें।अदरक स्वरस के साथ पीस लें और इसकी छोटी-छोटी गोलियां बना लें। बस तैयार हो गई गले की खरास के लिए चूसने वाली दवा इससे आपका गला ठीक रहता है और सूखी खांसी में भी लाभ मिलता है।
-यदि भोजन नहीं पच रहा हो अर्थात अजीर्ण जैसी समस्या उत्पन्न हो रही हो तो मदार के पत्तों का स्वरस निकाल लें और इसमें बराबर मात्रा में एलोवेरा (घृतकुमारी ) के रस को शक्कर के साथ मिलाकर पका लें। जब चीनी की चासनी बन जाए तो इसे ठंडा कर किसी साफ सी कांच की बोतल में भर लें।
-जौंडिस (कामला ) पीलीया के रोगियों में मदार की एक कोपल को खाली पेट पान के पत्ते में रखकर चबाने से लाभ मिलता है।
-यदि पुराना घाव जो ठीक न हो रहा हो या नाडी व्रण/भगंदर जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई हो तो मदार का दूध 5 से 10 मिली की मात्रा में 2.5 ग्राम दारुहरिद्रा के साथ मिलाकर रूई के बत्ती बनाकर घाव या नासूर पर लगाने मात्र से लाभ मिलता है।
-मदार के दूध में शुद्ध शहद और गाय का घी बराबर मात्रा में मिलाकर इसे खरल में चार से पांच घंटे तक घोटकर 2.5 से 5 ग्राम की मात्रा में खाने से नपुंसकता दूर होती है। -
पसलियों या मांसपेशियों की दर्द में मदार के दूध में थोड़ा काला तिल मिलाकर जब लेप सा तैयार हो जाए तो इसे हल्का गर्म कर दर्द वाले स्थान पर लेप कर दें और ठीक इसके ऊपर आक के पत्तों को तिल या सरसों के तेल में चुपड़कर तवे पर हल्का सा गर्म कर प्रभावित स्थान पर बाँध दे।दर्द में फौरन आराम मिलेगा।
-यदि आप जोड़ों की दर्द से हों परेशान तो बस मदार के फूल को सौंठ,काली मिर्च ,हरिद्रा और नागरमोथा के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें और इसे एक से दो गोली सुबह-शाम चिकित्सक के निर्देशन में लें इससे आपको निश्चित लाभ मिलेगा।
-मदार के पत्तों को कूटकर पोटली बनाकर ,घी लगाकर तवे पर गर्म कर (पोटली स्वेदन ) करने से भी दर्द में आराम मिलता है।
-कहीं भी खुजली या दाद जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही हो तो मदार के फूलों के गुच्छों को तोडऩे से निकले दूध में नारियल का तेल मिलाकर लगाने से खुजली दूर हो जाती है। -
त्वचा के रोगों जैसे एक्जीमा आदि में मदार के दूध को 50 मिली की मात्रा में लेकर इससे दुगनी मात्रा में सरसों का तेल ( 100 मिली ) लेकर ,हल्दी के पाउडर 100 ग्राम और मैनसिल 10 ग्राम क़ी मात्रा में एक साथ खरल में दूध के साथ मिलाकर लेप सा बनाकर ,पुन: इसमें तिल तेल एक लीटर और इतना ही पानी मिलाकर पकायें, जब पानी उड़ जाय और तेल सिद्ध हो जाय तो इसे प्रभावित स्थान पर लगाने से चर्म रोगों में बड़ा लाभ मिलता है।
-मदार के पत्तों के रस को लगभग 1000 मिली की मात्रा में लेकर कच्ची हल्दी का रस निकालकर 250 मिली की मात्रा में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं ,जब तेल शेष रहे तो इसे छान कर पुराने से पुराने घाव जिससे मवाद आ रहा हो में लगायें और लाभ देखें -आग से जले हुए घाव में भी लगभग तीन ग्राम मदार के पत्तों की राख को तिल के तेल के साथ मिलाकर खरल में पीसकर इसमें 2.5 ग्राम चूने का पानी मिलाकर जले हुए स्थान पर लेपित करें इससे अग्निदग्ध व्रण में लाभ मिलता है।
-मदार के दूध की 5 बूँद .कच्चे पपीते का रस 10 बूँद और चिरायता का रस 15 बूँद एक साथ गौमूत्र के साथ मिलाकर पुराने बुखार से पीड़ित रोगी में देने से लाभ मिलता है।
नोट- सावधानी से चिकित्सक के निर्देशन में हो तो बेहतर होगा।
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