क्या बुखार ने तोड़ कर रख दिया
मित्रों नमस्कार🙏 शरद ऋतु(मध्य सितंबर से मध्य नवंबर)में विभिन्न प्रकार के रोग पनपते हैं, उनमें से बुखार होना एक आम बात है,ऐसा आयुर्वेद ग्रंथो में पहले से ही नीहित है
♦ इस मौसम में होने वाले ज्वर को ग्रंथो अनुसार वात श्लैषमिक ज्वर कहा जाता है जिसे आजकल डेंगू,चिकनगुनिया कहा जाता है और आधुनिक चिकित्सा इस आसान से ज्वर प्रबंधन तक में आजकल फ़ेल दिखता है और दु:ख की बात तो ये कि जिस ज्वर के लिये आज तक यें कहते थे कि "इससे कोई मरता नही,आजकल केवल आधुनिक चिकित्सा का सहारा लेने वाले इस बुखार के कारण खूब मर रहे हैं,यह इन चिकित्सको की बहुत बडी नाकामी है
♦ बुखार ठीक होने के बाद भी यह अनेक रोग जैसे जोड़ के दर्द,पेट के रोग अपने पीछे छोड़ देता है,इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि व्यक्ति हैवी एंटीबायोटिक और पेरासिटामोल आदि खाकर बुखार से निजात पाना चाहता हैl आज मैं आपसे निवेदन करना चाहूंगा कि डेंगू,चिकनगुनिया बुखार पर काबू पाने के लिए आप केवल आधुनिक चिकित्सा का सहारा न ले बल्कि साथ ही साथ आयुष चिकित्सा से बुखार का प्रबंधन करें क्योंकि यह बुखार उतरने के बाद आपको किसी अन्य बीमारी से बचा कर रखेगा व किसी भी प्रकार के साइड इफेक्ट से दूर रखेगाl
♦ ऐसे ज्वर के रोगी को चाहिए कि वह एक जगह मिली हुई बराबर मात्रा में पीपल (जो गरम मसाले में डाली जाती है)पीपला मूल,चव्य,चित्रक और सोंठ के काढे को पीता रहेl भूख लगने पर मूंग की दाल की खिचड़ी,फलों का स्वरस आदि लेता रहे, दूध हल्दी डाले बिना न पियेंl
💊 औषधि के रूप में गोदंती भस्म 250-250मिलीग्राम, चौसठ प्रहरी पीपल-250 मिलिग्राम ,लक्ष्मी विलास रस एक गोली अदरक रस के साथ शहद मिलाकर चाटते रहेl बुखार के पांचवे,छठे और सातवे दिन महाज्वरांकुश की 2-2 गोली चीनी के एक कप शरबत के साथ सुबह खाली पेट देंl
🍵 औषधि देने के बाद नित्य चार-पांच बार तक हल्के मरोड़ के साथ दस्त लग सकते हैं घबरायें नही व दस्त बंद होने पर भूख लगने पर मूंग की दाल का पानी और फलों का रस देंl सातवे दिन से परवल की सब्जी और मूंग की दाल की चावल की खिचड़ी सेवन करें,यही पथ्य कम से कम 5 दिन तक निभायेंl
😀रोगी पूर्ण आराम करें तथा शारीरिक मानसिक परिश्रम मैथून, पैदल चलना,स्नान का तब तक त्याग रखें जब तक की पूर्ववत्त बल न आ जाए l
😀 इस प्रकार की चिकित्सा से रोगी का ज्वर भी मिटता है तथा भूख भी अच्छी लगने लगती है तथा निर्बलता दूर हो जाती है और सबसे बड़ी बात यह होती है कि वर्ष भर उन्हें ज्वर नहीं लौटताlसाथ ही अन्य रोगों की जड़ कट जाती है, प्लेटलेट काउंट घटने जैसी समस्या का तो सवाल ही नहींl
ईश्वर आपको स्वस्थ रखे
मित्रों नमस्कार🙏 शरद ऋतु(मध्य सितंबर से मध्य नवंबर)में विभिन्न प्रकार के रोग पनपते हैं, उनमें से बुखार होना एक आम बात है,ऐसा आयुर्वेद ग्रंथो में पहले से ही नीहित है
♦ इस मौसम में होने वाले ज्वर को ग्रंथो अनुसार वात श्लैषमिक ज्वर कहा जाता है जिसे आजकल डेंगू,चिकनगुनिया कहा जाता है और आधुनिक चिकित्सा इस आसान से ज्वर प्रबंधन तक में आजकल फ़ेल दिखता है और दु:ख की बात तो ये कि जिस ज्वर के लिये आज तक यें कहते थे कि "इससे कोई मरता नही,आजकल केवल आधुनिक चिकित्सा का सहारा लेने वाले इस बुखार के कारण खूब मर रहे हैं,यह इन चिकित्सको की बहुत बडी नाकामी है
♦ बुखार ठीक होने के बाद भी यह अनेक रोग जैसे जोड़ के दर्द,पेट के रोग अपने पीछे छोड़ देता है,इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि व्यक्ति हैवी एंटीबायोटिक और पेरासिटामोल आदि खाकर बुखार से निजात पाना चाहता हैl आज मैं आपसे निवेदन करना चाहूंगा कि डेंगू,चिकनगुनिया बुखार पर काबू पाने के लिए आप केवल आधुनिक चिकित्सा का सहारा न ले बल्कि साथ ही साथ आयुष चिकित्सा से बुखार का प्रबंधन करें क्योंकि यह बुखार उतरने के बाद आपको किसी अन्य बीमारी से बचा कर रखेगा व किसी भी प्रकार के साइड इफेक्ट से दूर रखेगाl
♦ ऐसे ज्वर के रोगी को चाहिए कि वह एक जगह मिली हुई बराबर मात्रा में पीपल (जो गरम मसाले में डाली जाती है)पीपला मूल,चव्य,चित्रक और सोंठ के काढे को पीता रहेl भूख लगने पर मूंग की दाल की खिचड़ी,फलों का स्वरस आदि लेता रहे, दूध हल्दी डाले बिना न पियेंl
💊 औषधि के रूप में गोदंती भस्म 250-250मिलीग्राम, चौसठ प्रहरी पीपल-250 मिलिग्राम ,लक्ष्मी विलास रस एक गोली अदरक रस के साथ शहद मिलाकर चाटते रहेl बुखार के पांचवे,छठे और सातवे दिन महाज्वरांकुश की 2-2 गोली चीनी के एक कप शरबत के साथ सुबह खाली पेट देंl
🍵 औषधि देने के बाद नित्य चार-पांच बार तक हल्के मरोड़ के साथ दस्त लग सकते हैं घबरायें नही व दस्त बंद होने पर भूख लगने पर मूंग की दाल का पानी और फलों का रस देंl सातवे दिन से परवल की सब्जी और मूंग की दाल की चावल की खिचड़ी सेवन करें,यही पथ्य कम से कम 5 दिन तक निभायेंl
😀रोगी पूर्ण आराम करें तथा शारीरिक मानसिक परिश्रम मैथून, पैदल चलना,स्नान का तब तक त्याग रखें जब तक की पूर्ववत्त बल न आ जाए l
😀 इस प्रकार की चिकित्सा से रोगी का ज्वर भी मिटता है तथा भूख भी अच्छी लगने लगती है तथा निर्बलता दूर हो जाती है और सबसे बड़ी बात यह होती है कि वर्ष भर उन्हें ज्वर नहीं लौटताlसाथ ही अन्य रोगों की जड़ कट जाती है, प्लेटलेट काउंट घटने जैसी समस्या का तो सवाल ही नहींl
ईश्वर आपको स्वस्थ रखे
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