शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए अनेक प्रकार की क्रियाएं की जाती है| आज हम आपको ऐसी ही एक क्रिया के बारे में बताने वाले है| जो खासकर पेट के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होती है| हम आपको आज Kunjal Kriya के बारे में जानकारी देने वाले है|
जल नेति या कुंजल क्रिया अनेक बीमारियों की अचूक दवा है| षट्कर्म में शामिल इस क्रिया के कारण ही हाथी न केवल शक्तिशाली होता है बल्कि उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी इतनी प्रबल हो जाती है कि लगातार प्रहार के बाद भी कोई घाव नहीं होता है|
यह पाचन क्रिया को भी मजबूत करती है| अगर व्यक्ति नियमित रूप से कुंजल क्रिया करता है तो बुढ़ापे की स्थिति बहुत देर से आती है साथ ही शरीर चुस्त -दुरुस्त और ऊर्जावान बना रहता है| भक्ति सागर में ऋषि-मुनियों ने बाह्य एवं आंतरिक शरीर की शुद्धि के लिए छः प्रकार की क्रियाएं बताई है, जिन्हे षट्कर्म कहा जाता है| इसमें धौति, वस्ति, नेति, कुंजल, नौलि और त्राटक क्रिया है| आइये जानते है कुंजल क्रिया की विधि और लाभ|
कुंजल क्रिया वैसे तो कठिन नहीं है लेकिन इसे करने के तरीके को हर व्यक्ति नहीं कर पाता है, क्योंकि यह एक अजीब सी क्रिया है| जो भी व्यक्ति इसमें पारंगत हो जाता है उसके जीवन में कोई भी रोग और शोक नहीं रह जाता है| यह क्रिया बहुत ही शक्तिशाली है। पानी से पेट को साफ किए जाने की क्रिया को कुंजल क्रिया कहते हैं। इस क्रिया से पेट व आहार नली पूर्ण रूप से साफ हो जाती है। मूलत: यह क्रिया वे लोग कर सकते हैं जो धौति क्रिया नहीं कर सकते हों। इस क्रिया को किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही करना चाहिए।
कुंजल क्रिया करने की विधि
इस क्रिया को सुबह के समय शौच आदि से निवृत्त होकर करना चाहिए| आइये जानते Kunjal Kriya
इस क्रिया के अभ्यास के लिए पहले एक बर्तन में शुद्ध पानी को हल्का गर्म करें। अब कागासन में बैठकर पेट भर पानी पीएं। पेट भर जाने के बाद खड़े होकर नाभि से 90 डिग्री का कोण बनाते हुए आगे की तरफ झुके। अब हाथ को पेट पर रखें और दाएं हाथ की 2-3 अंगुलियों को मिलाकर मुंह के अन्दर जीभ के पिछले हिस्से तक ले जाएं। अब अंगुली को जीभ के पिछले भाग पर तेजी से घुमाएं। ऐसा करने से उल्टी होने लगेगी और जब पानी ऊपर आने लगे तो अंगुली को मुंह से बाहर निकालकर पानी को बाहर निकलने दें। जब अन्दर का पिया हुआ सारा पानी बाहर निकल जाए तो पुनः तीनों अंगुलियों को जीभ के पिछले भाग पर घुमाएं और पानी को बाहर निकलने दें। जब पानी निकलना बन्द हो जाए तो अंगुली को बाहर निकाल दें। इस क्रिया में पानी के साथ भोजन का बिना पचा हुआ खटटा् व कड़वा पानी भी निकल जाता है। जब अन्दर से साफ पानी बाहर निकलने लगे तो अंत में एक गिलास गर्म पानी पी लें और अंगुली डालकर उल्टी करें।
कुंजल क्रिया के लाभ
इस क्रिया के नियमित अभ्यास शारीर के तीन अंगो लिवर, ह्रदय और पेट की आंतो को काफी लाभ मिलता है| इस क्रिया को करने से शरीर और मन में बहुत ही अच्छा महसूस करता है। व्यक्ति में हमेशा प्रसंन्न और स्फूति बनी रहती है।
इस क्रिया को करने से वात, पित्त व कफ से होने वाले सभी रोग दूर हो जाते हैं। बदहजमी, गैस विकार और कब्ज आदि पेट संबंधी रोग समाप्त होकर पेट साफ रहता है तथा पाचन शक्ति बढ़ती है।
यह सर्दी, जुकाम, नजला, खांसी, दमा, कफ आदि रोगों को दूर करता है। इस क्रिया से मुंह, जीभ और दांतों के रोग दूर होते हैं। कपोल दोष, रूधिर विकार, छाती के रोग, ग्रीवा, कण्ठमाला, रतोंधी, आदि रोगों में भी यह लाभदायी है।
ध्यान रखने योग्य बातें
ध्यान रखें कि कुंजल क्रिया में पानी न अधिक गर्म हो न अधिक ठंडा और पानी मे नमक नही मिलाना है।इसे करते समय शारीरिक स्थिति सही रखें। इसे करने के लिए आगे की ओर झुककर ही खड़े हो| इससे पानी अन्दर से आसानी से निकल जाता है.
जल नेति या कुंजल क्रिया अनेक बीमारियों की अचूक दवा है| षट्कर्म में शामिल इस क्रिया के कारण ही हाथी न केवल शक्तिशाली होता है बल्कि उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी इतनी प्रबल हो जाती है कि लगातार प्रहार के बाद भी कोई घाव नहीं होता है|
यह पाचन क्रिया को भी मजबूत करती है| अगर व्यक्ति नियमित रूप से कुंजल क्रिया करता है तो बुढ़ापे की स्थिति बहुत देर से आती है साथ ही शरीर चुस्त -दुरुस्त और ऊर्जावान बना रहता है| भक्ति सागर में ऋषि-मुनियों ने बाह्य एवं आंतरिक शरीर की शुद्धि के लिए छः प्रकार की क्रियाएं बताई है, जिन्हे षट्कर्म कहा जाता है| इसमें धौति, वस्ति, नेति, कुंजल, नौलि और त्राटक क्रिया है| आइये जानते है कुंजल क्रिया की विधि और लाभ|
कुंजल क्रिया वैसे तो कठिन नहीं है लेकिन इसे करने के तरीके को हर व्यक्ति नहीं कर पाता है, क्योंकि यह एक अजीब सी क्रिया है| जो भी व्यक्ति इसमें पारंगत हो जाता है उसके जीवन में कोई भी रोग और शोक नहीं रह जाता है| यह क्रिया बहुत ही शक्तिशाली है। पानी से पेट को साफ किए जाने की क्रिया को कुंजल क्रिया कहते हैं। इस क्रिया से पेट व आहार नली पूर्ण रूप से साफ हो जाती है। मूलत: यह क्रिया वे लोग कर सकते हैं जो धौति क्रिया नहीं कर सकते हों। इस क्रिया को किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही करना चाहिए।
कुंजल क्रिया करने की विधि
इस क्रिया को सुबह के समय शौच आदि से निवृत्त होकर करना चाहिए| आइये जानते Kunjal Kriya
इस क्रिया के अभ्यास के लिए पहले एक बर्तन में शुद्ध पानी को हल्का गर्म करें। अब कागासन में बैठकर पेट भर पानी पीएं। पेट भर जाने के बाद खड़े होकर नाभि से 90 डिग्री का कोण बनाते हुए आगे की तरफ झुके। अब हाथ को पेट पर रखें और दाएं हाथ की 2-3 अंगुलियों को मिलाकर मुंह के अन्दर जीभ के पिछले हिस्से तक ले जाएं। अब अंगुली को जीभ के पिछले भाग पर तेजी से घुमाएं। ऐसा करने से उल्टी होने लगेगी और जब पानी ऊपर आने लगे तो अंगुली को मुंह से बाहर निकालकर पानी को बाहर निकलने दें। जब अन्दर का पिया हुआ सारा पानी बाहर निकल जाए तो पुनः तीनों अंगुलियों को जीभ के पिछले भाग पर घुमाएं और पानी को बाहर निकलने दें। जब पानी निकलना बन्द हो जाए तो अंगुली को बाहर निकाल दें। इस क्रिया में पानी के साथ भोजन का बिना पचा हुआ खटटा् व कड़वा पानी भी निकल जाता है। जब अन्दर से साफ पानी बाहर निकलने लगे तो अंत में एक गिलास गर्म पानी पी लें और अंगुली डालकर उल्टी करें।
कुंजल क्रिया के लाभ
इस क्रिया के नियमित अभ्यास शारीर के तीन अंगो लिवर, ह्रदय और पेट की आंतो को काफी लाभ मिलता है| इस क्रिया को करने से शरीर और मन में बहुत ही अच्छा महसूस करता है। व्यक्ति में हमेशा प्रसंन्न और स्फूति बनी रहती है।
इस क्रिया को करने से वात, पित्त व कफ से होने वाले सभी रोग दूर हो जाते हैं। बदहजमी, गैस विकार और कब्ज आदि पेट संबंधी रोग समाप्त होकर पेट साफ रहता है तथा पाचन शक्ति बढ़ती है।
यह सर्दी, जुकाम, नजला, खांसी, दमा, कफ आदि रोगों को दूर करता है। इस क्रिया से मुंह, जीभ और दांतों के रोग दूर होते हैं। कपोल दोष, रूधिर विकार, छाती के रोग, ग्रीवा, कण्ठमाला, रतोंधी, आदि रोगों में भी यह लाभदायी है।
ध्यान रखने योग्य बातें
ध्यान रखें कि कुंजल क्रिया में पानी न अधिक गर्म हो न अधिक ठंडा और पानी मे नमक नही मिलाना है।इसे करते समय शारीरिक स्थिति सही रखें। इसे करने के लिए आगे की ओर झुककर ही खड़े हो| इससे पानी अन्दर से आसानी से निकल जाता है.
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