डिप्रेशन या अवसाद एक ऐसी मनो स्थिति जो हर इंसान ने अपने जीवन काल में किसी ना किसी रूप में कभी ना कभी अनुभव की है. और आज के इस तेज़-तर्रार युग में यह रोग सर्दी/ज़ुकाम की तरह हो रहा है. लगभग 10 % जनसंख्या में अवसाद रोग के रूप में पाया जाता है. विपरीत परिस्थितियों में मानसिक तनाव और विषाद महसूस करना तो प्राकृतिक ही है परंतु जब यह मानसिक स्थिति अनियंत्रित एवं दीर्घकालीन बन जाए और मानसिक विकृति बनकर रोज़मर्रा के जीवन को प्रभावित करने लगे तब इसका इलाज करना आवश्यक हो जाता है.
यह रोग सभी उम्र अथवा श्रेणियों ( working, non-working, healthy, diseased) के व्यक्ति में उत्पन्न हो सकता है. और प्रसन्नता का विषय यह है की ये सुसाध्य रोग है. प्रभावशाली उपचार तथा मनोविशलेषन द्वारा यह रोगआसानी से ठीक हो जाता है.
अवसाद के कारण
हालाँकि यह रोग अब जनसंख्या में अत्यधिक व्याप्त होता जा रहा है परंतु अभी तक इसके मुख्य कारण के बारे में स्पष्टता नही मिल पाई है. वैज्ञानिक यही मानते हैं की यह रोग मनोवैज्ञानिक, आनुवांशिक और पर्यावरण संबंधी कारणों से उत्पन्न होता है.
कुछ लोगों में जन्म से ही अवसाद का रोग पाया जाता है. उनके मस्तिष्क में प्राकृतिक रसायनों का असंतुलन रहता है. इसके अलावा दीर्घ रूप से बीमार लोग, वीडियो गेम्स या इंटरनेट का अधिक प्रयोग करने वाले, वे लोग जिनके प्रिय जनो की मृत्यु अथवा उनसे वियोग हो गया है इत्यादि व्यवहारिक कारणों से भी ग्रस्त व्यक्ति में अवसाद का रोग उत्पन्न हो जाता है.
प्रकृति के करीब रहने से इस रोग के होने की संभावना कम हो जाती है.
डिप्रेशन के लक्षण
आत्महत्या के विचार आनाआत्मविश्वास की कमी ख़ालीपन की भावनाअपराध भाव से ग्रस्त होना सामाजिक अलगाव और चिड़चिड़ा स्वाभाव निर्णय लेने में असमर्थता बहुत अधिक अथवा बहुत कम सोना
डिप्रेशन का उपचार
इस रोग के इलाज में psychotherapy और दवाई दोनो का ही उपयोग किया जाता है. मामूली अवसाद केवल मनोविशलेषन द्वारा निवृत्त हो जाता है. परंतु गहरे अवसाद का उपचार दवाइयों से किया जाता है. अवसाद-विरोधी दवाइयाँ मस्तिष्क में रसायनिक आसनतुलन को ठीक करती हैं तथा माना जात है इस प्रकार ये अवसाद को डोर कर देती हैं. परंतु आपको जानकार हैरानी होगी की इन दवाइयों के दुष्प्रभाव से रोगी में आत्महत्या के विचार आने लगते हैं या फेर घबराहत के दौरे पद सकते हैं . अन्य भी बहुत से साइड-एफेक्ट्स इन दवाइयों से होते हैं.
परंतु यदि आप आत्मबल को मज़बूत करने की चेष्टा करें तथा आयुर्वेदीय चिकित्सा के मूलभूत सिद्धांतों को समझकर उपचार करें, तो इस रोग से मुक्ति प्राप्त कर स्वास्थ की ओर उन्मुख हुआ जा सकता है.
आयुर्वेद में इस रोग को विषाद रोग के नाम से जाना जाता है. इस अवस्था को रोग-उत्तेजक कारक भी कहा जाता है. यह मनोरोग धीरे धीरे शरीर में प्रविष्ट हो व्यक्ति की स्वस्थ, संवेदना, अनुभूति, ग्रहनशीलता, इन सबको प्रभावी करता है. जब विषाद रोग का रूप ले लेता है, तब इसका उपचार करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है.
अवसाद से मुक्त करने वाली आयुर्वेदीय औषधियाँ
अश्वगंधा (Withania somnifera): इस औषधि के प्रभाव से मन में नकारत्मक विचार आने बंद हो जाते हैं. यह तनाव, और शारीरिक कमज़ोरी को दूर करने वाली औषधि है.
ब्राहमी (Bacopa monnieri): इसके औषधीय गुणों द्वारा तनाव, अवसाद जैसे मानसिक रोग डोर हो जाते हैं तथा समरन शक्ति का विकास भी होता है. यह औषधि मस्तिष्क के तंतूयों में नवीन उर्जा उत्पन्न कर मानसिक शांति और मनोबल वृद्धि दोनो को बढ़ती है.
हल्दी (Curcuma longa): शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों के निवारण हेतु हल्दी एक अद्भुत उपयोगी औषधि है. ख़ास तौर पर इसका प्रयोग ऋतु बदलने के समी पर होने वेल अवसाद में महत्वपूर्ण है.
गुदुची (Tinospora cordifolia): यह नवीन उर्जादायक एवं रोग प्रतिकारक क्षमता को बढ़ने वाला औषध जी समरन शक्ति, धृति शक्ति का विकास करता है. यह मंबुद्धिता का निवारण करता है
जटामंसी (Nardostachys jatamansi): इस जड़ी-बूई के सेवन से मासिक विश्रान्ति की अनुभूति मिलती है. यह मान में सकारात्मक विचार उत्पन्न कर सही दिशा में इन्हें निर्देशित करता है और अवसाद का निवारण करता है.
विषाद रोग से मुक्ति पाने के कुछ घरेलू नुस्खे
४-५ बेर के फल लेकर उनमें से बीज निकल दें तथा गुदा का पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को निचोड़ कर २ चम्मच रस निकाल लें. इसमें आधा चम्मच जयफल मिल लें. इस मिश्रण को आक्ची तरह घोल लें और दिन में दो बार इसका सेवन करें.कुछ काजू लेकर उनका पाउडर बना लें. १ चम्मच पाउडर को ई कप दूध में डालकर इसका सेवन करना चाहिए.२ बड़े चम्मच ब्राहमी और अश्वगंधा के पाउडर को १ गिलास पानी में मिलकर रोज़ इसका सेवन करें.
रोगी को हर समय किसी सकारात्मक कार्य में व्यस्त रहना चाहिए. इससे मन व्यर्थ की सोच-विचार से बचता है. व्यक्ति को अनेक प्रकार के सरल कार्य करने को दें. पर्याप्त विश्राम और ध्यान की विधियों द्वारा सकारत्मक उर्जा का निर्माण करें
यह रोग सभी उम्र अथवा श्रेणियों ( working, non-working, healthy, diseased) के व्यक्ति में उत्पन्न हो सकता है. और प्रसन्नता का विषय यह है की ये सुसाध्य रोग है. प्रभावशाली उपचार तथा मनोविशलेषन द्वारा यह रोगआसानी से ठीक हो जाता है.
अवसाद के कारण
हालाँकि यह रोग अब जनसंख्या में अत्यधिक व्याप्त होता जा रहा है परंतु अभी तक इसके मुख्य कारण के बारे में स्पष्टता नही मिल पाई है. वैज्ञानिक यही मानते हैं की यह रोग मनोवैज्ञानिक, आनुवांशिक और पर्यावरण संबंधी कारणों से उत्पन्न होता है.
कुछ लोगों में जन्म से ही अवसाद का रोग पाया जाता है. उनके मस्तिष्क में प्राकृतिक रसायनों का असंतुलन रहता है. इसके अलावा दीर्घ रूप से बीमार लोग, वीडियो गेम्स या इंटरनेट का अधिक प्रयोग करने वाले, वे लोग जिनके प्रिय जनो की मृत्यु अथवा उनसे वियोग हो गया है इत्यादि व्यवहारिक कारणों से भी ग्रस्त व्यक्ति में अवसाद का रोग उत्पन्न हो जाता है.
प्रकृति के करीब रहने से इस रोग के होने की संभावना कम हो जाती है.
डिप्रेशन के लक्षण
आत्महत्या के विचार आनाआत्मविश्वास की कमी ख़ालीपन की भावनाअपराध भाव से ग्रस्त होना सामाजिक अलगाव और चिड़चिड़ा स्वाभाव निर्णय लेने में असमर्थता बहुत अधिक अथवा बहुत कम सोना
डिप्रेशन का उपचार
इस रोग के इलाज में psychotherapy और दवाई दोनो का ही उपयोग किया जाता है. मामूली अवसाद केवल मनोविशलेषन द्वारा निवृत्त हो जाता है. परंतु गहरे अवसाद का उपचार दवाइयों से किया जाता है. अवसाद-विरोधी दवाइयाँ मस्तिष्क में रसायनिक आसनतुलन को ठीक करती हैं तथा माना जात है इस प्रकार ये अवसाद को डोर कर देती हैं. परंतु आपको जानकार हैरानी होगी की इन दवाइयों के दुष्प्रभाव से रोगी में आत्महत्या के विचार आने लगते हैं या फेर घबराहत के दौरे पद सकते हैं . अन्य भी बहुत से साइड-एफेक्ट्स इन दवाइयों से होते हैं.
परंतु यदि आप आत्मबल को मज़बूत करने की चेष्टा करें तथा आयुर्वेदीय चिकित्सा के मूलभूत सिद्धांतों को समझकर उपचार करें, तो इस रोग से मुक्ति प्राप्त कर स्वास्थ की ओर उन्मुख हुआ जा सकता है.
आयुर्वेद में इस रोग को विषाद रोग के नाम से जाना जाता है. इस अवस्था को रोग-उत्तेजक कारक भी कहा जाता है. यह मनोरोग धीरे धीरे शरीर में प्रविष्ट हो व्यक्ति की स्वस्थ, संवेदना, अनुभूति, ग्रहनशीलता, इन सबको प्रभावी करता है. जब विषाद रोग का रूप ले लेता है, तब इसका उपचार करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है.
अवसाद से मुक्त करने वाली आयुर्वेदीय औषधियाँ
अश्वगंधा (Withania somnifera): इस औषधि के प्रभाव से मन में नकारत्मक विचार आने बंद हो जाते हैं. यह तनाव, और शारीरिक कमज़ोरी को दूर करने वाली औषधि है.
ब्राहमी (Bacopa monnieri): इसके औषधीय गुणों द्वारा तनाव, अवसाद जैसे मानसिक रोग डोर हो जाते हैं तथा समरन शक्ति का विकास भी होता है. यह औषधि मस्तिष्क के तंतूयों में नवीन उर्जा उत्पन्न कर मानसिक शांति और मनोबल वृद्धि दोनो को बढ़ती है.
हल्दी (Curcuma longa): शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों के निवारण हेतु हल्दी एक अद्भुत उपयोगी औषधि है. ख़ास तौर पर इसका प्रयोग ऋतु बदलने के समी पर होने वेल अवसाद में महत्वपूर्ण है.
गुदुची (Tinospora cordifolia): यह नवीन उर्जादायक एवं रोग प्रतिकारक क्षमता को बढ़ने वाला औषध जी समरन शक्ति, धृति शक्ति का विकास करता है. यह मंबुद्धिता का निवारण करता है
जटामंसी (Nardostachys jatamansi): इस जड़ी-बूई के सेवन से मासिक विश्रान्ति की अनुभूति मिलती है. यह मान में सकारात्मक विचार उत्पन्न कर सही दिशा में इन्हें निर्देशित करता है और अवसाद का निवारण करता है.
विषाद रोग से मुक्ति पाने के कुछ घरेलू नुस्खे
४-५ बेर के फल लेकर उनमें से बीज निकल दें तथा गुदा का पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को निचोड़ कर २ चम्मच रस निकाल लें. इसमें आधा चम्मच जयफल मिल लें. इस मिश्रण को आक्ची तरह घोल लें और दिन में दो बार इसका सेवन करें.कुछ काजू लेकर उनका पाउडर बना लें. १ चम्मच पाउडर को ई कप दूध में डालकर इसका सेवन करना चाहिए.२ बड़े चम्मच ब्राहमी और अश्वगंधा के पाउडर को १ गिलास पानी में मिलकर रोज़ इसका सेवन करें.
रोगी को हर समय किसी सकारात्मक कार्य में व्यस्त रहना चाहिए. इससे मन व्यर्थ की सोच-विचार से बचता है. व्यक्ति को अनेक प्रकार के सरल कार्य करने को दें. पर्याप्त विश्राम और ध्यान की विधियों द्वारा सकारत्मक उर्जा का निर्माण करें
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