गोमूत्र मनुष्य जाति तथा चिकित्सा जगत् को प्राप्त होने वाला अनुदान है। यह धर्मानुमोदित, प्राकृतिक, सहज, प्राप्य, हानिरहित, कल्याणकारी एवं आरोग्यवर्ध्दक रसायन है। गोमूत्र योगियों का दिव्य पान रहा है, वे इससे दिव्य शक्ति पाते थे।
गोमूत्र में गंगा का वास है। यह सर्वपापनाशक है। अमेरिका में अनुसंधान से सिध्द हुआ है कि विटामिन बी गाय के पेट में सदा ही रहता है। यह सतोगुणी रस है, विचारों में सात्विकता लाता है।
छह मास लगातार पीने से आदमी की प्रकृति सतोगुणी हो जाती है। यह रजोगुण, तमोगुण का नाशक है। शरीरगत विष भी पूर्ण से मूत्र, पसीना, मलांश के द्वारा बाहर निकलता है। यह मनोरोग नाशक है। विष को शमन करने में गोमूत्र पूर्ण समर्थ है। आयुर्वेद की बहुत सी विषैली जड़ी-बूटियां व विष के पदार्थ गोमूत्र से ही शुध्द किये जाते हैं।
गौ में सब देवताओं का वास है। यह कामधेनु का स्वरूप है। सभी नक्षत्र की किरणों का यह रिसीवर है, अतएव सबका प्रभाव इसी में है। जहां गौ है, वहां सब नक्षत्रों का प्रभाव रहता है। गौ ही ऐसा दिव्य प्राणी है, जिसकी रीढ़ की हड्डी में अंदर सूर्यकेतु नाड़ी होती है। इसलिए दूध, मक्खन, घी स्वर्ण आभा वाला होता है, क्योंकि सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य की किरणों के द्वारा रक्त में स्वर्णक्षार बनाती है। यही स्वर्णक्षार गौमूत्र में विद्यमान है।
गोमूत्र हमारे लिए निम्न प्रकार उपयोगी है-
1. कीटाणुओं से होने वाली सभी प्रकार की बीमारियां नष्ट होती हैं।
2. शरीर में यकृत को सही कर स्वच्छ खून बनाकर किसी भी रोग का विरोध करने की शक्ति प्रदान करता है।
3. गोमूत्र में ऐसे तत्व हैं, जो हमारे शरीर के आरोग्यदायक तत्वों की कमी को पूरा करते हैं।
4. मस्तिष्क एवं हृदय को शक्ति प्रदान करता है। मानसिक कारणों से होने वाले आघात से हृदय की रक्षा होती है।
5. शरीर में किसी भी औषधि का अति प्रयोग हो जाने से जो तत्व शरीर में रहकर किसी प्रकार से उपद्रव करते हैं, उनको गोमूत्र अपनी विषनाशक शख्ति से नष्ट कर रोगी को निरोग करता है।
6. रसायन है। यह बुढ़ापा रोकता है।
7. शरीर में पोषक तत्वों की कमी होने पर उसकी पूर्ति करता है।
8. मानव शरीर की रोग प्रतिरोधी शक्ति को बढ़ा कर रोगों को नाश करने की शक्ति प्रदान करता है।
गोमूत्र में रसायन विज्ञान के मतानुसार निम्न रासायनिक तत्व पाये जाते हैं-
नाइट्रोजन, सल्फर, गंधक, अमोनिया, कॉपर, यूरिया, यूरिक एसिड, फॉस्फेट, सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीज, कार्बोलिक एसिड, कैल्शियम, साल्ट, विटामिन ए, बी, डी, ई, स्वर्णाक्षर।
श्रीगोपाल गौशाला, चित्तोड़गढ़ के राजवैद्य श्री रेवाशंकर शर्मा के अनुसार 20 मि.ली. गोमूत्र प्रातः-सायं पीने से निम्न रोगों में लाभ होता है।
भूख की कमी, अजीर्ण, हार्निया, मिर्घी, चक्कर आना, बवासीर, प्रमेह, मधुमेह, कब्ज, उदररोग, गैस, लू लगना, पीलिया, खुजली, मुखरोग, ब्लड प्रेशर, कुष्ठ रोग, पीलिया, भगंदर, दंत रोग, धातु क्षीणता, नेत्र रोग, जुकाम, बुखार, त्वचा रोग, घाव, सिरदर्द, दमा, स्त्री रोग, स्तन रोग, हिस्टीरिया, अनिद्रा।
गोमूत्र प्रयोग करने का ढंग-
1. यथासंभव उसी गाय का मूत्र प्रयोग करें, जो वन की घास चरती हो और स्वच्छ जल पीती हो।
2. देसी गाय का ही गमूत्र लें, जरसी गाय का नहीं।
3. रोगी, गर्भवती गाय का मूत्र प्रयोग न करें।
4. बिना ब्याही गाय का मूत्र अधिक अच्छा है।
5. ताजा गोमूत्र प्रयोग करें।
6. मिट्टी, कांच, स्टील के बर्तन में ही गोमूत्र रखें।
7. पीने से पहले बारीक कपड़े से दो बार छानकर प्रयोग करें।
8. प्रातः और सायं 50 मि.ली. से अधिक गोमूत्र नहीं लेना चाहिए।
गोमूत्र में गंगा का वास है। यह सर्वपापनाशक है। अमेरिका में अनुसंधान से सिध्द हुआ है कि विटामिन बी गाय के पेट में सदा ही रहता है। यह सतोगुणी रस है, विचारों में सात्विकता लाता है।
छह मास लगातार पीने से आदमी की प्रकृति सतोगुणी हो जाती है। यह रजोगुण, तमोगुण का नाशक है। शरीरगत विष भी पूर्ण से मूत्र, पसीना, मलांश के द्वारा बाहर निकलता है। यह मनोरोग नाशक है। विष को शमन करने में गोमूत्र पूर्ण समर्थ है। आयुर्वेद की बहुत सी विषैली जड़ी-बूटियां व विष के पदार्थ गोमूत्र से ही शुध्द किये जाते हैं।
गौ में सब देवताओं का वास है। यह कामधेनु का स्वरूप है। सभी नक्षत्र की किरणों का यह रिसीवर है, अतएव सबका प्रभाव इसी में है। जहां गौ है, वहां सब नक्षत्रों का प्रभाव रहता है। गौ ही ऐसा दिव्य प्राणी है, जिसकी रीढ़ की हड्डी में अंदर सूर्यकेतु नाड़ी होती है। इसलिए दूध, मक्खन, घी स्वर्ण आभा वाला होता है, क्योंकि सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य की किरणों के द्वारा रक्त में स्वर्णक्षार बनाती है। यही स्वर्णक्षार गौमूत्र में विद्यमान है।
गोमूत्र हमारे लिए निम्न प्रकार उपयोगी है-
1. कीटाणुओं से होने वाली सभी प्रकार की बीमारियां नष्ट होती हैं।
2. शरीर में यकृत को सही कर स्वच्छ खून बनाकर किसी भी रोग का विरोध करने की शक्ति प्रदान करता है।
3. गोमूत्र में ऐसे तत्व हैं, जो हमारे शरीर के आरोग्यदायक तत्वों की कमी को पूरा करते हैं।
4. मस्तिष्क एवं हृदय को शक्ति प्रदान करता है। मानसिक कारणों से होने वाले आघात से हृदय की रक्षा होती है।
5. शरीर में किसी भी औषधि का अति प्रयोग हो जाने से जो तत्व शरीर में रहकर किसी प्रकार से उपद्रव करते हैं, उनको गोमूत्र अपनी विषनाशक शख्ति से नष्ट कर रोगी को निरोग करता है।
6. रसायन है। यह बुढ़ापा रोकता है।
7. शरीर में पोषक तत्वों की कमी होने पर उसकी पूर्ति करता है।
8. मानव शरीर की रोग प्रतिरोधी शक्ति को बढ़ा कर रोगों को नाश करने की शक्ति प्रदान करता है।
गोमूत्र में रसायन विज्ञान के मतानुसार निम्न रासायनिक तत्व पाये जाते हैं-
नाइट्रोजन, सल्फर, गंधक, अमोनिया, कॉपर, यूरिया, यूरिक एसिड, फॉस्फेट, सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीज, कार्बोलिक एसिड, कैल्शियम, साल्ट, विटामिन ए, बी, डी, ई, स्वर्णाक्षर।
श्रीगोपाल गौशाला, चित्तोड़गढ़ के राजवैद्य श्री रेवाशंकर शर्मा के अनुसार 20 मि.ली. गोमूत्र प्रातः-सायं पीने से निम्न रोगों में लाभ होता है।
भूख की कमी, अजीर्ण, हार्निया, मिर्घी, चक्कर आना, बवासीर, प्रमेह, मधुमेह, कब्ज, उदररोग, गैस, लू लगना, पीलिया, खुजली, मुखरोग, ब्लड प्रेशर, कुष्ठ रोग, पीलिया, भगंदर, दंत रोग, धातु क्षीणता, नेत्र रोग, जुकाम, बुखार, त्वचा रोग, घाव, सिरदर्द, दमा, स्त्री रोग, स्तन रोग, हिस्टीरिया, अनिद्रा।
गोमूत्र प्रयोग करने का ढंग-
1. यथासंभव उसी गाय का मूत्र प्रयोग करें, जो वन की घास चरती हो और स्वच्छ जल पीती हो।
2. देसी गाय का ही गमूत्र लें, जरसी गाय का नहीं।
3. रोगी, गर्भवती गाय का मूत्र प्रयोग न करें।
4. बिना ब्याही गाय का मूत्र अधिक अच्छा है।
5. ताजा गोमूत्र प्रयोग करें।
6. मिट्टी, कांच, स्टील के बर्तन में ही गोमूत्र रखें।
7. पीने से पहले बारीक कपड़े से दो बार छानकर प्रयोग करें।
8. प्रातः और सायं 50 मि.ली. से अधिक गोमूत्र नहीं लेना चाहिए।
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