✍ शरीर मे सारी बीमारियाँ वात-पित्त और कफ के बिगड़ने से ही होती हैं।
💐 सिर से लेकर छाती के बीच तक जितने रोग होते हैं वो सब कफ बिगड़ने के कारण होते हैं।
छाती के बीच से लेकर पेट और कमर के अंत तक जितने रोग होते हैं वो पित्त बिगड़ने के कारण होते हैं।
और कमर से लेकर घुटने और पैरों के अंत तक जितने रोग होते हैं वो सब वात बिगड़ने के कारण होते हैं।
✍ आयुर्वेद में नाड़ी के द्वारा यही पता लगाया जाता है कि रोग किस कारण से हुआ है।
✍ जब हमारा खानपान बिगड़ता है तब उसी के अनुरूप बीमारियां हमें घेरती हैं।
✍ कफ और पित्त लगभग एक जैसे होते हैं।
नाक से निकलने वाली बलगम को कफ कहते हैं। कफ थोड़ा गाढ़ा और चिपचिपा होता है।
मुंह मे से निकलने वाली बलगम को पित्त कहते हैं, ये कम चिपचिपा और द्रव्य जैसा होता है।
शरीर से निकले वाली वायु को वात कहते हैं, ये अदृश्य होती है।
✍ अक्सर लोग मुझसे कहते हैं मुझे फलां दिक्कत है लेकिन खानपान बिलकुल सही है कुछ भी गलत नही खाता/खाती, तो ये जान लें कि आपका शरीर आपका दुश्मन नही है, बिना गलती किये वो सजा नही देता।
✍कई बार पेट मे गैस बनने के कारण सिर दर्द होता है तो इसे आप कफ का रोग नहीं कहेंगे इसे पित्त का रोग कहेंगे, क्यूंकि पित्त बिगड़ने से गैस हो रही है और सिर दर्द हो रहा है, ये ज्ञान बहुत गहरा है, आप इतना याद रखें कि इस वात -पित्त और कफ के संतुलन के बिगड़ने से ही सभी रोग आते हैं।
✍ ये तीनों ही मनुष्य की आयु के साथ अलग अलग ढंग से बढ़ते हैं ! बच्चे के पैदा होने से 14 वर्ष की आयु तक कफ के रोग ज्यादा होते है ! बार बार खांसी ,सर्दी ,छींके आना आदि होगा। 14 वर्ष से 45 साल तक पित्त के रोग सबसे ज्यादा होते हैं बार बार पेट दर्द करना ,गैस बनना ,खट्टी खट्टी डकारे आना आदि। और उसके बाद बुढ़ापे मे वात के रोग सबसे ज्यादा होते हैं घुटने दुखना, मोटापा ,जोड़ो का दर्द इत्यादि।
इसलिए अपनी उम्र के साथ अपने खानपान पर विशेष ध्यान दें।
बढ़ती उम्र में बच्चों वाला भोजन न ही करें तो बेहतर है।
✍वात कफ पित के सन्तुलन के लिए भोजन में तिल का तेल समलित करें तथा गौ मुत्र देशी गाय का प्रतिदिन पीये।
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