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आयुर्वेद जीवन अपनाये और रोगों से मुक्ति पाये...
सिर्फ 7 दीन में श्वेत कुष्ठ खत्म होगी खत्म
दिवान हकीम परमानन्द जी के द्वारा अनभूत प्रयोग
१- २५ ग्राम देशी कीकर (बबूल) के सूखे पते
२- २५ ग्राम पान की सुपारी (बड़े आकार की)
३- २५ ग्राम काबली हरड का छिलका
उपरोक्त तीन बस्तुवे लेकर दवा बनाये | कही से देशी कीकर(काटे वाला पेड़ जिसमे पीले फुल लगते है ) के ताजे पत्ते (डंठल रहित ) लाकर छाया में सुखाले कुछ घंटो में पत्ते सुख जायेगे बबूल के इन सूखे पत्तो को काम में ले पान वाली सुपारी बढिया ले इसका पावडर बना ले कबाली हरड को भी जौ कुट कर ले
और इन सभी चीजो को यानि बबूल , सुपारी , काबली हरड का छिलका (बड़ी हरड) सभी को २५ -२५ ग्राम की अनुपात में ले कुल योग ७५ ग्राम और ५०० मिली पानी में उबाले पानी जब १२५ मिली बचे तब उतर कर ठंडा होने दे और छान कर पी ले ये दवा एक दिन छोड़ कर दुसरे दिन पीनी है अर्थात मान लीजिये आज आप ने दवा ली तो कल नहीं लेनी है और इस काढ़े में २ चमच खांड या मिश्री मिला ले (10 ग्राम ) और ये निहार मुह सुबह –सुबह पी ले और २ घंटे तक कुछ भी खाना नहीं है दवा के प्रभाव से शरीर शुद्धि हो और उलटी या दस्त आने लगे परन्तु दवा बन्द नहीं करे १४ दीन में ७ दिन लेनी है और फीर दवा बन्द कर दे कुछ महीने में घिरे –घिरे त्वचा काली होने लगेगी हकीम साहब का दावा है की ये साल भर में सिर्फ एक बार ही लेने से रोग निर्मूल (ख़त्म ) हो जाता है अगर कुछ रह जाये तो दुसरे साल ये प्रयोग एक बार और कर ले नहीं तो दुबारा इसकी जरूरत नहीं पडती
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