मांस-भक्षण का आचार-विचार पर तो दुष्प्रभाव पड़ता ही है मनुष्य के स्वास्थय पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इस सम्बन्ध में विविध डाक्टरों की सम्मतियां ध्यान देने योग्य हैं―
(1) मांस में प्रोटीन अधिक बताई जाती है यद्यपि प्रोटीन की आवश्यकता है तथापि दो बातें ध्यान में रखनी चाहियें। प्रथम तो आवश्यक प्रोटीन शाकाहार से मिल सकती है, दूसरे आवश्यकता से अधिक प्रोटीन अत्यन्त हानिप्रद है। (अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी के डा० रसल, एच० चिर्टिठन पी.एच.डी. कृत फिजियोलोजीकल इकनमी पुस्तक।)
(2) शाकाहारियों में अपडीसाइटीज की बीमारी प्राय: नहीं होती। (फ्रांस के डा० लकसशैम फैनियर)
(3) जिन जातियों में जितना अधिक मांस खाया जाता है उनमें उतनी ही अधिक मात्रा में कैंसर की बीमारी होती है। (डा० लेफन बिल)
(4) जिन देशों में मांस कम मात्रा में या बिल्कुल नहीं खाया जाता उनमें कैंसर की बीमारी थोड़ी होती है। (डा० रसेलकृत 'सब जातियों की शक्ति और खुराक' पुस्तक)
(5) शाकाहारी को टायफाइड ज्वर बहुत कम होता है। (अमेरिका के डा० शिरमेट)
(6) पिछले ४० वर्षों में मेरा परिचय बहुत से शाकाहारियों से हुआ है और उनमें से एक को भी मैंने शराब का सेवन करते हुए नहीं पाया। (डा० हेग)
(7) यह सम्भव है कि कुछ व्यक्ति बिना किसी प्रकार की क्षति के मांस सेवन करते रहें परन्तु यह निश्चय है कि अमानुषिक भोजन का परिणाम जल्दी या देर से अवश्य प्रकट होगा। जिगर और किडनी दूषित होकर अपना काम छोड़ देगी और उसके फलस्वरुप क्षय, कैंसर, गठिया आदि रोग हो जायेंगे। (मेरी ऐस ब्राउन कृत 'शाकाहार के पक्ष में युक्तियां' पुस्तक से)
(8) मैंने मांस सेवन की मात्रा बहुत कम कर दी, जिसका परिणाम यह हुआ कि सिर दर्द, मानसिक थकावट तथा गठिया रोग, जिनसे मैं अनेक वर्षों से पीड़ित था, दूर हो गये। (डा० पार्कस)
(9) मैं ऐसे व्यक्तियों को जानता हूं, जो शाकाहारी होने से स्वस्थ हो गये और कब्ज, गठिया, फिट आदि रोगों से मुक्त हो गये। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि मांसाहारी की अपेक्षा शाकाहारी कम रोगग्रस्त रहता है। (डा० मेनरी पलड़ों)
(10) दूध, रोटी, मक्खन, शाक, दाल और दलिया बच्चों के लिए सब खानों में सर्वोत्तम है और अच्छी मात्रा में देना चाहिए। मांस खाने वाले बच्चे प्राय: शर्मीले और दुर्बल होते हैं। (डा० टी० यस० क्लाउस्टन एम० डी०)
(11) मांस से यूरिक एसिड गैस बहुत बनती है। इससे कई प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। एक प्रकार का सिर का दर्द मांस खाने से बढ़ जाता है और जो मांस छोड़ने से अच्छा हो जाता है।
(12) डाक्टर हेग अपनी पुस्तक 'डायट एण्ड फूड़' (खाद्य पदार्थ और भोजन) के १२९ वें पृष्ठ पर लिखते हैं:―
मांस भक्षण सुस्ती लाता है क्योंकि इसके कारण मस्तिष्क, मांसपेशियों, हड्डियों तथा सारे शरीर में रक्त का प्रवाह मन्द और न्यून हो जाता है। रक्त प्रवाह की यह मन्दता और न्यूनता यदि जारी रहे तो परिणाम में स्वार्थ-परता, लोलुपता, भीरुता, अध:पतन, ह्रास और अन्य में विनाश निश्चित है।
दिन प्रतिदिन उच्च कोटि के प्रसिद्ध डाक्टर भी अब मांस भक्षण के विरुद्ध अपना मत देने लग गए हैं। संक्षेप में मांस भक्षण से इतनी हानियां हैं:―
(1) मांसभक्षण अभक्ष्य है, इससे आयु घटती है। शाकाहारी अधिक आयु वाला होता है।
(2) निरामिष आहार की अपेक्षा मांसाहार मनुष्य में सहिष्णुता, शक्ति, स्फूर्ति तथा सामर्थ्य बहुत ही कम उत्पन्न करता है।
(3) दांतों की सफेदी पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
(4) मांसाहार आलस्य, भारीपन तथा शारीरिक श्रम में अरुचि उत्पन्न करता है।
(5) यह सौ में से ९९ मनुष्यों का सफाया कर देता है।
(6) मांसाहारी, ईश्वरभक्ति भी नहीं कर सकता क्योंकि उसमें तामसिक वृत्ति उत्पन्न हो जाती है।
(7) इसके कारण शराब पीने की बुरी और विनाशकारी आदत को प्रोत्साहन मिलता है, जिससे देश के लोगों का जीवन खर्चीला हो जाता है।
(8) मांसाहारी अपनी आध्यात्मिक उन्नति नहीं कर सकता।
(9) मांसाहारी ईश्वर के दण्ड से नहीं बच सकता क्योंकि दूसरे जीव का मांस खाना हिंसा में आता है और हिंसा बहुत बड़ा पाप है। महर्षि पतञ्जली ने योग के नियमों में सबसे पहले 'यम' में अहिंसा को ही स्थान दिया है।
(10) मांसाहारी का लोक भी बिगड़ता है और परलोक भी।
(11) मांसाहारी अधिक देर तक शारीरिक परिश्रम नहीं कर सकता, शाकाहारी की अपेक्षा जल्दी ही थक जायेगा।
(12) मांसाहार जीवन के विनाश की आधारशिला तैयार करता है क्योंकि यह शरीर परमात्मा ने ईश्वर भक्ति व शुभ कर्म करने के लिए दिया है न कि मांस आदि खाने के लिये।
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