आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग से बैक्टीरिया में resistance उत्पन्न नहीं होता है और यही इसका सबसे प्रभावी एंटीबायोटिक गुण है. आयुर्वेद विज्ञान में मनुष्य को स्वस्थ रखने के लिए अनेक औषधियों का वर्णन है. इन्हीं औषधियों से आजकल विदेशी कंपनियां उनके केमिकल निकाल कर दवा बनाती हैं और हमसे मुनाफ़ा कमाती हैं. प्राचीन काल से ही आयुर्वेद के चिकित्सकों ने ऐसे अनेक आयुर्वेदिक औषधियों पर कार्य करा है जिनसे गंभीर बीमारियों को दूर किया जा सकता है. परन्तु कालांतर में विदेशी आक्रमणों और अन्य पैथियों के प्रचार के कारण हम लोग अपने ज्ञान से दूर होते गए और विदेशी कंपनियों के जाल में फंसते चले गए.
आयुर्वेदिक औषधियों का सबसे प्रधान फायदा यह होता है कि यदि अच्छे चिकित्सक से इलाज़ करवाया जाय तो इनसे कोई भी नुक्सान नहीं हो सकता. एकल औषधि और कई द्रव्यों को मिलाकर बनायीं गयी औषधियां आजकल अनेक गंभीर बीमारियों में प्रयुक्त करी जा रही हैं और इन पर रिसर्च द्वारा इन्हें प्रमाणित किया जा रहा है. आज हम उन्हीं आयुर्वेदिक दवाओं की बात करने जा रहे हैं जिनके एंटीबायोटिक गुणों पर या तो रिसर्च हो चुकी है और या रिसर्च द्वारा उन्हें इन्फेक्शन कंट्रोल में उपयोगी बताया गया है. आयुर्वेद में बहुत पहले से बक्टेरिया और इन्फेक्शन्स की बात करी गयी है और अलग अलग सन्दर्भों में इनकी अपने ढंग से व्याख्या करी गयी है.
आयुर्वेद में इन्फेक्शन कंट्रोल करने के लिए जो उपाय बताए गए हैं उनको भी अब वैज्ञानिक प्रामाणिक मान चुके हैं. आयुर्वेद में सूर्योदय और सूर्यास्त को germicidal माना गया है. वातावरण के शुद्धिकरण को एक विशेष प्रक्रिया “होम विज्ञान” द्वारा करा जाता था. इस प्रक्रिया में जड़ी बूटियों को वातावरण में प्रज्वल्लित करके हवा को खतरनाक जीवाणुओं से शुद्ध किया जाता था. इन्फेक्शन को आयुर्वेद में “पित्त दुष्टि” या “रक्त दुष्टि” के समतुल्य मान सकते हैं. आयुर्वेदिक सिद्धांतों के अनुसार शारीरिक दोषों को सामान अवस्था में रखकर ही इन्फेक्शन से दूर रहा जा सकता है. पित्त वर्धक पदार्थों के सेवन से बचें और पित्त शामक भोजन लें.
Important Ayurvedic Herbs and medicines which have proved effective against infections-
सामान्य रूप से, infections की चिकित्सा में आयुर्वेद में तुलसी (Ocimum sanctum), मंजिष्ठा (Rubia cordifolia), कुटकी (Picrorrhiza kurroa), नीम (Azadiracta indica), गुग्गुल (Commiphora mukul) हल्दी(Curcuma longa, commonly known as turmeric), दारुहरिद्रा (Berberis spp., commonly known as barberry), अदरख, लहसुन, वचा , कूठ आदि औषधियों का प्रयोग वर्षों से होता आ रहा है. इनमें से अधिकाँश औषधियों का स्वाद कटु अर्थात कड़वा होता है. घृतकुमारी (Aloe vera) को आसव के रूप में लेने से यह लिवर को स्वस्थ रखती है और detoxification में मदद करती है.
महासुदर्शन चूर्ण-
जिन रोगियों में ज्वर, लिवर का बढ़ जाना, थकावट आदि लक्षण होते हैं उनमें महासुदर्शन चूर्ण को उपयोगी पाया गया है.टायफायड, आँतों, फेफड़ों और मूत्राशय के इन्फेक्शन में यह उपयोगी पाया गया है. महासुदर्शन चूर्ण में कुटज प्रमुख रूप से होता है और इसमें S. aureus, S. flexneri, S. typhosa, B. subtilis नामक bacterias के विरुद्ध मज़बूत Antibacterial activity पायी जाती है. अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि महासुदर्शन चूर्ण में S. typhi, S. epidermidis, E. coli, S. aureus, K. pneumoniae, P. vulgaris and P. aeruginosa के विरुद्ध antibacterial potential होता है.
अजमोदादि चूर्ण –
अजमोदादि चूर्णके Methanol और acetone extracts में E. coli, S. aureus and P. aeruginosa, S. aureus, S. epidermidis, S. typhi, B. subtilis, E. coli and P. vulgaris के विरुद्ध antibacterial potential होता है.
महासुदर्शन क्वाथ-
Malaria और बिना कारण के होने वाले बुखार में “महासुदर्शन क्वाथ” infection समाप्त करता हैं.
पञ्चवल्कल चूर्ण-
Surgical prophylaxis में “पञ्चवल्कल चूर्ण”या इसका पेस्ट प्रयोग करते हैं. इसमें antibacterial गुण और घाव भरने की क्षमता होती है.
त्रिफला –
त्रिफला के 90% ethanolic और aqueous extracts को Staphylococcus aureus, Klebsiella sp., Pseudomonas areoginosa और Escherichia coli बैक्टीरिया पर laboratory में टेस्ट किया गया.टेस्ट के बाद यह पाया गया कि त्रिफला में इन खतरनाक बैक्टीरिया से लड़ने के लिए antimicrobial क्षमता है.
त्रिफला के औषधीय योग: त्रिफला चूर्ण, त्रिफला वटी, त्रिफलादि क्वाथ.
हल्दी -
हल्दी की पत्तियों से निकाले
हल्दी Curcuma longa व रास्ना Alpinia galanga में fungus Trichophyton longifusus को मारने की क्षमता होती है.
औषध योग –हरिद्रा चूर्ण, महारास्नादि क्वाथ
नीम –
Leptospirosis दुनिया के अनेक देशों में जानवरों से फैलने वाला घातक इन्फेक्शन है. गर्म दशों में यह एक महामारी के रूप में भी फैलता है. साथ ही जो लोग पानी से भरे स्थानों में काम करते हैं उनको इस रोग के होने की अधिक सम्भावना होती है. नीम के तेल में antibacterial और antidermatophytic गुण होने के कारण Leptospiricidal activity को शरीर में होने से रोका जा सकता है. नीम का तेल हमारी त्वचा पर antibacterial film बना देता है और शरीर में bacteria को अन्दर आने से रोक देता है.
नीम का औषध योग- पारिभद्र तेल, पञ्चनिम्बादि चूर्ण.
ब्राह्मी -
ब्राह्मी के तेल का extract gram positive Bacillus subtilis, Staphylococus aureus और gram negative Escherichia coli, Pseudomonas aeruginosa, Shigella somnei organisms के विरुद्ध Antibacterial गुण वाला होता है. ब्राह्मी (Bacopa monneri) के aerial part के Petroleum ether (60-80 Celsius) और ethanolic extracts को indian earth worms (Pheretima posthuma) पर कृमि नाशक गुणों के लिए सफलता पूर्वक प्रयोग किया जा चुका है. इस प्रयोग में albendazole और piperizine citrate को reference standards के रूप में प्रयोग किया गया था.
ब्राह्मी का औषध योग- सारस्वतारिष्ट, ब्राह्मी घृत. ब्राह्मी तेल
तुलसी –
तुलसी में पाए जाने वाले केमिकल्स के अध्ययन से पता चलता है की यह pseudomonas, staphylococcus (gram positive), Escherichia coli (gram negative) bacteria और Candida albicans fungus के विरुद्ध प्रभावशाली है.
तुलसी का औषध योग- तुलसी चूर्ण, तुलसी क्वाथ.
गिलोय/गुडूची -
गिलोय/गुडूची में anti-inflammatory, analgesic, antipyretic और immunosuppressive गुणों की खोज करी जा चुकी है. गुडूची की पत्तियों के extract में Proteus vulgaris, Staphylococcus aureus, Streptococcus pyogenes, Bacillus subtilis और Escherichia coli के विरुद्ध Antibacterial गुण होता है.
गुडूची का औषध योग-अमृतारिष्ट, अमृतादि गुग्गुल
करमर्द-
करमर्द (Carissa carandas) की पत्ती के Benzene extract में भी antibacterial गुण होते हैं.
औषध योग- करमर्द चूर्ण
त्रिफला-
त्रिफला चूर्ण में Staphylococcus epidermidis, S.aureus, Proteus vulgaris, Pseudomonas aeruginosa, Salmonella typhi के विरुद्ध Antibacterial activity पायी जाती है.
हरीतकी –
हरीतकी चूर्ण में S. epidermidis, S. aureus, B.subtilis, P.vulgaris, S.typhi, P.aeruginosa के विरुद्ध मज़बूत Antibacterial activity पायी जाती है.
बहेड़ा –
बहेड़ा चूर्ण में E.coli, S.aureus, P.aeruginosa, P.vulgaris, S.epidermidis, S.typhi, S.typhimurium के विरुद्ध मज़बूत Antibacterial activity पायी जाती है.
स्वर्ण भस्म-
Pulmonary tuberculosis में स्वर्ण भस्म का प्रयोग किया जाता है .स्वर्ण भस्म को एक अच्छा antiseptic माना जाता है और इसमें रसायन गुण यानि शरीर से व्याधि नाशक गुण होने के कारण इसका प्रयोग अनेक रोगों में किया जाता है.
सुदर्शन चूर्ण-
सुदर्शन चूर्ण में रक्त शोधक और उदर रोगों को ठीक करने की क्षमता होती है. अध्ययनों से यह साबित हुआ है की यह S.aureus, S. epidermidis, B.subtilis, S.typhimurium, E.coli, K.pneumoniae, S.typhi and P.vulgaris नामक बैक्टेरिया के विरुद्ध antibacterial कार्य करता है.
स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण –
स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण के Methanolic extract में S.aureus, B. subtilis, P. vulgaris और P. aeruginosa के विरुद्ध antibacterial गुण होते हैं.
मंजिष्ठादि चूर्ण –
मंजिष्ठादि चूर्ण आयुर्वेद में रक्त शोधक और ज्वर नाशक के रूप में उपयोग किया जाता है. अध्ययनों से यह सिद्ध हुआ है की यह S.epidermidis, S.aureus, B.subtilis, S. typhimurium, E. coli, P. aeruginosa, K. pneumonia, P. vulgaris, S.typhi और E.aerogenes के विरुद्ध antibacterial कार्य करता है.
दशमूल –
दशमूल चूर्ण में S.aureus, S.epidermidis, P.vulgaris, S.typhi, B.subtilis, E.coli, K.pneumonia, E. aerogenes और P.aeruginosa के विरुद्ध antibacterial potential होता है.दशमूल चूर्ण के घटक बिल्व (Aegle marmelos) में V. cholerae, E. coli and Shigella sp. के विरुद्ध antibacterial गुण होते हैं.
पिप्पलीमूल चूर्ण –
पिप्पलीमूल चूर्ण में S. aureus, S. epidermidis, E. coli, B. subtilis and P. vulgaris के विरुद्ध antibacterial गुण देखे गए हैं.
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