Tuesday, 14 February 2017

Know now -Prostate enlargement (BPH)-The problem of aging.

आज जाने -बुडापे की समस्या- पौरुष या प्रॉस्टेट ग्रंथि वृधि (BPH)
[ डॉ मधु सूदन व्यास]
बुडापे में हो सकने वाली कष्टकारी समस्या प्रोस्टेट वृद्धि  को यदि आज ही हम जान लें, तो बचने का प्रयत्न तो कर सकते हैं| 
यौवन प्राप्ति के बाद से ही पौरुष या प्रोस्टेट ग्रंथि बड़ना शुरूकर जीवन भर बढ़ती रहती है| आमतोर पर 40 से 85 वर्ष आयु तक 90% रोगियों में प्रोस्टेट बढ़ने के कोई लक्षण नहीं मिलते, परन्तु 85 वर्ष की आयु के बाद के 33 % लोग इससे प्रभावित मिलते है| कभी-कभी तो उन्हें अचानक मूत्र रुक जाने आदि की समस्या को लेकर जब रोगी चिकित्सक से संपर्क करता है, तब ही उसे ज्ञात होता है, उसकी प्रोस्टेट बड चुकी है| 
प्रोस्टेट के बारे में जानने योग्य बातें:-   
पुरुषों में वीर्य या शुक्र धातु उत्पन्न करें वाली यह ग्रंथि प्रोस्टेट जिसे पौरुष ग्रन्थि भी कहा जाता है, यह मूत्राशय (Bladder) के नीचे स्थित होती है|  इसके मध्य से ही मूत्र वाहनी (urethra) निकलती है| इस ग्रन्थि से उत्पन्न तरल अंडकोष से उत्पन्न शुक्राणु (sperm) को पोषित, जीवित और गति शील रखता हें| इस तरल को ही शुक्र[1] या वीर्य कहते हें| इस तरल के उत्पादन के साथ पौरुष ग्रन्थि एक वाल्व की तरह, मूत्र अनिच्छित रूप से निकलने से रोकने का काम भी करती है|  कई कारणों से 60 की उम्र के पुरुषों में यह प्रोस्टेट ग्रंथि अधिक बढ़ने लगती है, 80 वर्ष के आयु के बाद कष्ट देते आमतोर पर देखा जाता है| इस वृद्धि को ही पौरुष ग्रन्थि वृद्धि, सौम्य प्रोस्टेट वृद्धि, सौम्य प्रोस्टेटीक अतिवृद्धि या, Benign prostatic hyperplasia (BPH), Prostatic hyperplasia, कहा जाता है।  कभी कभी नजर अंदाज करने या समय पर चिकित्सा न लेने पर यह केंसर (Cancer) ग्रस्त हो सकता है|
आखिर क्यों होती है प्रोस्टेट वृद्धि?
आधुनिक चिकित्सा विज्ञानी अभी यह बात नहीं जानते कि प्रोस्टेट वृद्धि के क्या कारण हैं| उनका मानना है, की हार्मोन (टेस्टोस्टेरोन और डाई हाईड्रो- टेस्टोस्टेरोन, DHT), और एस्ट्रोजन इसका कारण हो सकते हैं।
शोध में पाया गया है की, कई पुरुषों में जिनकी नसबंदी हो गई थी या जिन्होंने शारीरिक और मानसिक रूप से यौन गतिविधि बंद कर दीं थी, उनमें प्रोस्टेट नहीं बढ़ा।
आयुर्वेद सहित कुछ आधुनिक विद्वान इसे वंशानुगत (Hereditary) भी मानते हें|
पौरुष वृधि त्रिदोषज (तीनो दोषों वात-पित्त-कफ से) होती है, अपान वायु की विकृति से वात प्रकोप होकर रोग होता है| वात की इस विकृति का कारण अति व्यवाई होना (अधिक सेक्स/मैथुन/भोग करना), हस्त मैथुन, आदि करना,  मूत्र वेग को रोकना (अर्थात हाजत होने पर न जाना), मिथ्याहार-विहार  (रहन- सहन, जीवन चर्या (life Style), शुष्क भोजन (dry food), बासा (Fermented) एवं असंतुलित मात्रा में खाना), अधिक आयु, शारीरिक कमजोरी और अपचन (Indigestion),  होता है|
व्यवाई होना(अधिक सेक्स/मैथुन/भोग हस्त मैथुन आदि करना), -  सामान्यत: योवन प्राप्ति से प्रारम्भ होकर यह पौरुष ग्रन्थि (प्रोस्टेट) जीवन भर बढती रहती है| विशेष कर उस काल में जब सेक्स अधिक किया जाता है, शरीर की स्वचालित प्रणाली (Automatic System) इसको अधिक सक्रिय रखते हुए बडाती है, ताकि अधिक शुक्र या वीर्य का उत्पादन हो| इसीलिए हस्तमैथुन, अश्लील सोच-विचार आदि अनावश्यक उत्तेजित करने वाली क्रिया-कलाप (Activities) पौरुष ग्रंथि (प्रोस्टेट) में  अधिक सक्रियता बनाती है, और यह गति से बडना भी जारी रखती है, अधिक आयु के कारण शरीर के अन्य बाह्य एवं अंत अंग (हारमोन आदि),  युवावस्था की तुलना में कम सक्रिय होने से प्रोस्टेट पर दबाव पड़ने से वे शोथ युक्त (Inflammatory) हो अनावश्यक बढ़ने लगती है|
वेग धारण (Prevent nature calls):- प्राकृतिक वेग मल-मूत्र (Urine & feces) त्यागने में देरी करने से मूत्राशय आदि अनावश्यक देर तक भरा रहता है, इससे मांसपेशियों पर दबाव रहने लगता है, शरीर कष्ट से बचाने के लिए मूत्राशय फेलाने लगता है,  इससे आस-पास के अन्य अंग जिनमें पौरुष (प्रोस्टेट) ग्रन्थि पर भी दवाव बड़ता है, और वे मूत्र निकालने के प्रयत्न में और अधिक बड़ने लगती है|
मिथ्याहार-विहार:- ठंडा-बासा, अपथ्य (न खाने योग्य), और अनावश्यक असंतुलित खाना खाते रहना वर्तमान में हमारे जीवन में सम्मलित हो चूका है, हम प्रतिदिन एक दिन पूर्व की बनी रोटी सब्जी से लेकर पाहिले से बने कथित सुरक्षित (protected)रखे हुए ब्रेड, बिस्किट, से लेकर खाने वाले सेकडों पदार्थ, प्रतिदिन खाते रहते है, अक्सर बाज़ार में भी खाते रहते हें, जो अधिकतर बासा (एक या कई दिन पूर्व बना) भी हो सकता है| यह खाना पाचन क्षमता को प्रभावित करता है, और कब्ज होने लगती है, मल से भरा मलाशय (Rectum) पास ही स्थित प्रोस्टेट को दबाता है इससे मूत्राशय (Bladder) का द्वार दब जाने से बंद होने  से मूत्र रुक कर कष्ट देता है|   
आराम तलब जीवन जीने के आदि हम हो चुके हें, और प्रात: भ्रमण (घूमना), व्यायाम, साइकलिंग, तैराकी अदि शारीरिक श्रम तो हम जैसे भूल ही गए हें, थोड़ी सी दूरी के लिए स्कूटर अदि वाहन का प्रयोग, सामान्य कार्य जैसे साफ-सफाई, बागवानी, और घर के छोटे-मोटे कार्य चाय-आदि बनाने के लिए भी हम पत्नी या नौकर पर आश्रित बन गए है| इसके कारण हम उर्जा का सही उपयोग न करके हार्मोनल संतुलन को ख़राब करते रहते है, यह भी इस समस्या का कारण बन जाती है|  व्यायाम आदि शारीरिक कार्य की कमी से मल-और मूत्राशय क्षेत्र में भी चर्बी जमा होकर प्रोस्टेट और अन्य अंगों को दवा कर उनके प्रकृतिक कार्य में बाधक बनती है|
अधिक आयु:- बुडापा भी अकेला इसका कारण होता तो है पर उपरोक्त रहन-सहन बुडापे को जल्दी बुलाते हैं| बुडापे के कारण मांसपेशी शिथिल और दुर्बल हो जातीं है, अनिद्रा (Insomnia) मानसिक तनाव (Mental stress), और पाचन क्षमता आदि के प्रभावित होने से भी जीवन भर सक्रीय रहने वाले यह पौरुष (प्रोस्टेट) ग्रंथि अन्य शारीरिक प्रक्रियाओं से ताल-मेल नहीं रख पातीं और शोथ ग्रस्त हो तकलीफ का कारण बन जाया करती है|
कैसे जाने की पौरुष ग्रंथि बड गई है?
प्रमुख लक्षण :-  प्रोस्टेट बड़ने पर कठिनाई से मूत्र  आता है, विशेष रूप से मूत्र त्याग के बाद भी बूंद-बूंद कर आता है, जैसे रिस रहा हो,  पूरी तरह से मूत्र त्याग नहीं होने की अनुभूति, अचानक विशेषकर रात मैं मूत्र त्याग की इच्छा होना, और रोक न पाना, और त्यागने में कठिनाई, जलन हों| यदि संक्रमण हो गया हो तो मूत्र के साथ रक्त भी आ सकता है|  
सामान्य अवस्था में मूत्राशय जब मूत्र से भर जाता है तब उसका दवाव प्रोस्टेट पर पड़ता है, और मूत्र त्याग की इच्छा (हाजत) होने लगती है| प्रोस्टेट बड जाने पर मूत्राशय पूरा न भी भर हो तब भी दवाव होने से बार-बार हाजत होती है, और व्यक्ति बार-बार मूत्र त्याग करना चाहता है|  इसलिए बार-बार मूत्र त्याग होना इसका प्रमुख लक्षण है| जितनी अधिक वृधि होगी उतना अधिक जल्दी जल्दी मूत्र त्याग की इच्छा होगी| देखें चित्र-1.
बढ़ी हुई प्रॉस्टेट ग्रंथि से मूत्राशय की मांसपेशियों पर भी दबाव अतिरिक्त भार बढता है और मूत्रमार्ग पर भी दवाव बड़ने से मूत्र प्रवाह कठिनाई से और मात्रा में कम होता है, रोगी को प्रतीत होता है, की मूत्र पूरा नहीं निकल रहा, इससे वह बार-बार जाता है|
यदि प्रोस्टेट अत्यधिक बढ़ जाता है, तो मूत्र मार्ग पूरी तरह बंद होने से मूत्र त्याग में रोगी असमर्थ पाने लगता है| इससे मूत्राशय में भरा हुआ मूत्र संक्रमित होने लगता है, मूत्राशय की मांस-पेशी अक्षम और कमजोर होने लगतीं है|
यह स्थिति आगे बढ़कर गुर्दे (Kidney) को भी हानि पहुचना शुरू कर देतीं है|
कभी कभी तो एसी परिस्थिति अचानक भी आती है, और आपातकालीन (emergency) चिकित्सा लेना जरुरी हो जाता है|
प्रॉस्टेट ग्रंथि बड रही है इसका शीघ्र निदान होना हित में है|
रोग निदान:- रोग निदान के लिए आधुनिक परिक्षण व्यवस्था का लाभ लिया जाना चाहिए|
सामान्यत: प्रारम्भिक रूप से इस वृधि को चिकित्सक गुदा में अंगुली डाल कर प्रोस्टेट की  आकार-प्रकार (size and shape) अनुभव कर के भी निश्चित कर लेता है 
प्रोस्टेट वृद्धि (BPH) के पूर्ण निदान के लिए रोगी के लक्षणों के पूर्ण इतिहास जानना होता है| इसके लिए वर्तमान अल्ट्रासाउंड परीक्षा (Ultrasound examination), प्रोस्टेट की बायोप्सी (Biopsy of the prostate), मूत्र प्रवाह का अध्ययन (Urine flow studies), और सिस्टोस्कोपिक (Cystoscopy) परिक्षण से देखकर और मूल्यांकन कर निदान किया जाता है|
आयुर्वेद निदान:-आयुर्वेदिक चिकित्सा आयुर्वेदिक निदान के आधार पर करने से, ओषधि चयन, बस्ती चयन, आदि व्यवस्था आसानी से की जा सकती है|  आयुर्वेद के अनुसार प्रकुपित वात और अपान बायु,  प्रोस्टेट बढ़ने का कारण है|  वृधि सामान्यत कफज होतीं है, वात के कारण इसमें अस्थिरता आती है, वह फेलने लगती है, पित्त के जुड़ जाने से जलन, दाह, आदि होते है| इस प्रकार पौरुष या प्रोस्टेट वृधि त्रिदोषज होती है|
रोगी का कोन सा दोष प्रधान है, जानकर चिकित्सा देना उचित होता है|  जैसे रोग प्रधान ओषधि वरुण का प्रयोग पित्त शांति होने पर ही करें, अन्यथा दाह बड सकती है, आदि|
आयुर्वेदिक चिकित्सा:-  संक्रमण की पुनरावृत्ति, मूत्र त्याग का प्रवाह और स्तिथी और वृक्क (किडनी) की क्षति, आदि और उनकी गंभीरता के आधार पर आयुर्वेदिक ओषधि और बस्ती चिकित्सा, अथवा अन्य शल्य आदि चिकित्सा निर्भर होती है|
अपान वायु के कारण वात दोष रोग प्रमुख होने से आयुर्वेदिक चिकित्सा में बस्ती चिकित्सा इस रोग के लिए श्रेष्ट चिकित्सा सिद्ध हुई है| आचार्य सुश्रुत अनुसार रोग, और दोष पर आधारित (ग्रन्थी हर बस्ति आदि) काल बस्ती -15 या कर्म बस्ती (30) (अनुवासन और अस्थापन बस्ती मिलकर) की योजना, एवं अन्य सहायक ओषधि व्यवस्था लाभदायक सिद्ध हुई है| 
इससे नव रोगी को जहाँ कष्ट से पूर्ण मुक्ति प्रदान की जा सकी है|  वहीँ अधिक प्रभावित रोगियों को भी राहत दी जा सकती है|  रोगयों को केथीटर से छुटकारा मिलता है, मल और मूत्र का प्रवाह समान्य होने लगता है| रोगी के रोग बढ़कर केंसर आदि से बचाया जा सका है| चिकित्सा में रोगी की जीवन चर्या आहार-विहार आदि में परिवर्तन किया जाता है, इससे तनाव मुक्त जीवन की प्राप्ति होने से रोगी का मनोबल बड जाता है, और शेष जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है|
 

 

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