Tuesday, 28 February 2017

कुलंजन

परिचय :

          कुलंजन का पौधा 6 से 7 फुट ऊंचा होता है। इसकी डालियों में बहुत अधिक पत्ते होते हैं। इसके पत्ते 1 से 2 फुट लम्बे, 4 से 6 इंच चौडे़ एवं ऊपर से नोकदार होते हैं। इसके पत्ते ऊपर से चिकने व नीचे से रोएंदार होते हैं। इसके फूल छोटे-छोटे, थोडे़ मुड़े हुए, हरापन लिए, सफेद, गुच्छों में लगे होते हैं। कुलंजन के फूल गर्मी के मौसम में लगते हैं। इसके फल गोल नींबू की तरह होते हैं। इसकी जड़ सुगंधित होती है और इसकी जड़ में आलू की तरह गांठे होती है। इसकी जड़ ऊपर से लाल और अन्दर से पीले रंग की होती है।

आयुर्वेद के अनुसार : कुलंजन का रस कटु, रूखा, तीखा व गर्म होता है। कुलंजन के फल कडुवा होता है। यह कफ-वात को नष्ट करने वाला होता है। यह खांसी, ‘वास, स्वर विकार, हकलाहट, नाड़ी दुर्बलता, वात रोग, पेट का दर्द, मंदाग्नि, अरुचि, मुंह की बदबू, प्रमेह, नपुंसकता, सिर दर्द आदि में लाभकारी होता है।

यूनानी चिकित्सकों के अनुसार : कुलंजन तेज, गंधयुक्त व जायकेदार होता है। यह नाड़ियों की कमजोरी को दूर करता है, पाचनशक्ति को तेज करता है, नपुंसकता को दूर करता है एवं कफ को नष्ट करता है। यह कामोत्तेजक होता है है। इसके उपयोग से कमर दर्द, सिर दर्द, छाती के रोग,गले का दर्द आदि को दूर करता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार : कुलंजन का रासायनिक विश्लेषण करने पर पता चला है कि इसकी जड़ में एलपिनिन, गेलंगिन और केम्फेराइड नामक तत्त्व होते हैं। इसके तने में सुगंधित व उडनशील तेल, कर्पूर, सिनिओल, डी-पाइनिन एवं मेथिल सिनेमेंट थोड़ी मात्रा में होता है। इन तत्त्वों के कारण कुलंजन सांस व मूत्र रोगों को दूर करता है।

विभिन्न

मात्रा : यह 1 से 3 ग्राम की मात्रा में उपयोग किया जाता है।

विभिन्न रोगों के उपचार :

1. छींके अधिक आना: कुलंजन के चूर्ण को कपड़े में रखकर सूंघने से छींके आनी बंद होती है।

2. पेशाब रुक जाना: कुलंजन के जड़ का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में नारियल के पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।

3. बच्चों के दस्त रोग: कुलंजन जड़ की गांठ को छाछ के साथ घिसकर थोड़ा-सा हींग मिलाकर हल्का गर्म करके बच्चे को आधा चम्मच की मात्रा में चटाने से दस्त का बार-बार आना ठीक होता है।

4. नंपुसकता:

कुलंजन की जड़ के टुकड़े मुंह में रखकर चूसने से नपुंसकता दूर होती है।
एक कप दूध में एक चम्मच कुलंजन के चूर्ण को मिलाकर सुबह-शाम पीने से नपुंसकता दूर होती है।
डेढ़ ग्राम कुलीजन के चूर्ण को 10 ग्राम शहद में मिलाकर खाने से और ऊपर से गाय के दूध में शहद मिलाकर पीने से कामशक्ति बढ़ती है।
5. हकलाहट: कुलंजन, बच, ब्राही व शंखपुष्पी का चूर्ण बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 1-1 चम्मच सुबह-शाम सेवन करने से कुछ सप्ताहों में ही हकलाहट दूर होती है।

6. आवाज बैठना या गला बैठना:

मुलेठी, कुलंजन, अकरकरा एवं सेंधानमक मिलाकर चूर्ण बनाकर जीभ पर रगड़ने से गला साफ होता है।
कुलंजन के टुकड़े को मुंह में रखकर चूसने से बैठा हुआ गला ठीक हो जाता है।
एक ग्राम कुलंजन को पान मे रखकर खाने से स्वरभंग में आराम मिलता है।
7. जोड़ों का दर्द: कुलंजन व सोंठ का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर एरण्ड के तेल में मिलाकर लेप बना लें। यह लेप प्रतिदिन जोड़ों पर लगाने से दर्द ठीक होता है।

8. सिर दर्द: कुलंजन की जड़ का पिसा पाउडर पोटली में बांधकर सूंघने से सिर दर्द में आराम मिलता है।

9. मूत्राघात (पेशाब में वीर्य आना): कुलींजन को पानी में पीसकर पिलाने से मूत्राघात दूर होता है।

10. दांतों का दर्द:

कुलंजन के चूर्ण को दांतों पर प्रतिदिन सुबह-शाम मलने से दान्त मजबूत होते हैं। इससे दांतों का दर्द ठीक होता है।
कुलंजन की जड़ का बारीक चूर्ण मंजन की तरह इस्तेमाल करने से दांतों का दर्द ठीक होता है।
11. दमा या श्वास रोग: कुलंजन का चूर्ण लगभग 240 से 480 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शहद के साथ खाने से श्वास व दमा रोग में आराम मिलता है।

12. काली खांसी: कुलंजन का चूर्ण शहद के साथ 240 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से काली खांसी (कुकुर खांसी) दूर होती है।

13. खांसी:

2 ग्राम कुलंजन के चूर्ण को 3 ग्राम अदरक के रस में मिलाकर शहद के साथ चाटने से खांसी खत्म होती है।
240 से 480 मिलीग्राम कुलंजन का चूर्ण शहद के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम चटाने से खांसी में लाभ मिलता है।
14. अफारा (पेट का फुलना): कुलंजन का चूर्ण 2 ग्राम एवं गुड़ 10 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से अफारा (पेट का फूलना) ठीक होता है।

15. डकारे आना: 240 से 480 मिलीग्राम कुलंजन मुंह में रखकर चूसने अपच दूर होता है और डकारें आनी बंद होती है। इससे मुंह की सुगन्ध भी समाप्त होती है।

16. मुंह की दुर्गंन्ध:

कुलंजन को मुंह में रखकर चूसते रहने से मुंह व शरीर की दुर्गन्ध दूर होती है।
कुलंजन की जड़ का चूर्ण चुटकी मुंह में रखकर चूसते रहने से मुंह की बदबू आनी बंद हो जाती है।
17. कान के बाहर की फुंसियां: कुलंजन को पकाने से जो तेल निकलता है उस तेल को कान की फुंसियों पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।

18. गले की जलन: कुलंजन के टुकड़े 240 से 480 मिलीग्राम की मात्रा में दिन में 2 से 3 बार चूसने से गले की जलन शांत होती है।

19. आमाशय की जलन: कुलंजन के 240 से 480 मिलीग्राम तक के टुकड़े चबाकर चूसते रहने से आमाशय की जलन दूर होती है। यह पाचन क्रिया का खराब होना तथा अम्लपित्त के रोग में भी लाभकारी होता है।

20. अम्लपित्त (खट्टी डकारें): यदि खट्टी डकारे अधिक आती हो तो कुलंजन 240 से 480 मिलीग्राम की मात्रा में मुंह में रखकर चूसें।

21. पेट में दर्द:

कुलंजन, सेंधानमक, धनिया, जीरा एवं किशमिश को बराबर की मात्रा में लेकर नींबू के रस के साथ पीसकर पीने से पेट का दर्द ठीक होता है।
कुलंजन 10 ग्राम, अजवाइन 10 ग्राम एवं कालानमक 10 ग्राम को पीसकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। इससे पेट के दर्द में जल्दी आराम मिलता है।
22. बच्चे को बिस्तर पर पेशाब करने की आदत: 50 ग्राम कुलंजन को पीसकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण शहद में मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम बच्चे को चटाए। इससे बिस्तर में पेशाब करने की आदत छूट जाती है।

23. बहूमूत्र रोग (पेशाब का बार-बार आना): 25 ग्राम कुलंजन को पीसकर 3-3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ लेने से पेशाब का बार-बार आना बंद होता है।

24. मुंहासे, झांईयां:

कुलंजन से बने तेल को मुंहासे पर लगाने से मुंहासे ठीक होते हैं।
कुलंजन के जड़ को पानी में घिसकर दिन में 2 से 3 बार चेहरे पर लगाने से चेहरे के मुंहासे व झांइयां नष्ट होती हैं।
25. अधिक पसीना आना: ज्यादा पसीना आने पर कुलंजन का चूर्ण शरीर पर रगड़ने से पसीना आना कम होता है।

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