विटामिन-डी शरीर के विकास, हड्डियों के विकास और स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। धूप के संपर्क में आने पर त्वचा इसका निर्माण करने लगती है। सिर्फ यह एक ऐसा विटामिन है, जो हमें मुफ्त में उपलब्ध है। विटामिन डी का सबसे अच्छा स्त्रोत सूर्य की किरणें हैं।
यह शरीर में कैल्शियम के स्तर को नियंत्रित करता है, जो तंत्रिका तंत्र की कार्य प्रणाली और हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। शरीर में विटामिन डी की उचित मात्रा उच्च रक्तचाप के खतरे को कम करता है।
हालांकि यह विटामिन खाने की कुछ चीजों से भी प्राप्त होता है, लेकिन इनमें यह बहुत ही कम मात्रा में होता है। केवल इनसे विटामिन-डी की जरूरत पूरी नहीं हो जाती है। नए अध्ययनों से सामने आया है कि विटामिन डी की कमी से दिल संबंधी बीमारियां होने का खतरा है और अन्य कई गंभीर बीमारियां हो सकती है। विटामिन डी शरीर के कई महत्वपूर्ण अंगों को ठीक तरह से संचालित करने में मदद करता है। इसकी कमी से कई गंभीर विकार जैसे कि इम्यूनिटी, ऑटो इम्यूनिटी का बढऩा, मायोपेथी, डायबिटीज मैलीटिस और कोलन, स्तन व प्रोस्टेट कैंसर हो सकते है।
महिलाओं के लिए बहुत आवश्यक :
विटामिन डी की कमी महिलाओं में उन दिनों में
काफी परेशान करता है। इसलिए इसकी पूर्ति से
महिलाओं को उन दिनों के दौरान होने वाले
प्रीमेन्सट्रअल सिंड्रोम में भी सहायता मिलती है।
जिन औरतों में विटामिन डी की कमी होती है, उनके बच्चों को विटामिन डी और कम मात्रा में मिल पाता है। ऐसे में बच्चे में रिकेट्स होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए महिलाओं को स्तनपान के दौरान शुरुआती तीन माह में विटामिन डी के सप्लीमेंट्स सावधानीपूर्वक लेने चाहिए, क्योंकि इससे यूरेनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन का खतरा बढ़ सकता है। इसकी कमी से मेनोपॉज के बाद महिलाओं में आस्टियोपोरेसिस का खतरा बढ़ जाता है।
कमी के लक्षण -
दर्द या तेज दर्द, कमजोरी एवं ओस्टियोमेलेशिया और हड्डियों का दर्द (आमतौर पर कूल्हों, पसलियों और पैरों आदि की हड्डियों में) साथ ही खून में विटामिन-डी की कमी होने पर कार्डियोवेस्क्युलर रोगों से मृत्यु, याददाश्त कमजोर होना आदि की आशंकाएं प्रबल होती हैं।
स्त्रोत :
विटामिन डी का सबसे अच्छा स्त्रोत सूर्य की किरणें हैं। जब हमारे शरीर की खुली त्वचा सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में आती है तो ये किरणें त्वचा में अवशोषित होकर विटामिन डी का निर्माण करती हैं।
अगर सप्ताह में दो बार दस से पंद्रह मिनट तक शरीर की खुली त्वचा पर सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणें पड़ती हैं तो शरीर की विटामिन डी की 80-90 प्रतिशत तक आवश्यकता पूरी हो जाती है। सूर्य की किरणों के बाद काड लीवर ऑयल विटामिन डी का सबसे अच्छा स्त्रोत है। इसके अलावा दूध, अंडे, चिकन, मछलियां , भी विटामिन डी के अच्छे स्त्रोत हैं। विटामिन डी को सप्लीमेंट के रूप में भी लिया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार ज्यादातर भारतीयों की डाइट में विटामिन डी की कमी ही पाई गई है क्योंकि खाने के स्त्रोत कम है, लोग शाकाहारी है। बहुत कम लोगों को विटामिन डी से होने वाले फायदों की जानकारी है। विटामिन डी केवल प्राणिज्य पदार्थों में ही पाया जाता है। वनस्पति जगत में यह बिल्कुल नहीं प्राप्त होता है। इसके मुख्य स्राोत मछली का तेल, वेसीय मछली, अण्डा, मक्खन पनीर, वसायुक्त दूध तथा घी हैं।
विटामिन डी के स्तर को जानने के लिए रूटीन सीरम काफी महंगा है, इसलिए सभी को कराने का परामर्श नहीं दिया जाता लेकिन विटामिन डी की कमी के बढ़ते मामलों को देखते हुए समय रहते टेस्ट करवा लेना चाहिए।
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