Thursday, 28 July 2016

कड़ी पत्ता यानि मीठी नीम :-

कड़ी पत्‍ता या फिर जिसको हम मीठी नीम के नाम से भी जानते हैं, भोजन में डालने वाली सबसे अहम सामग्री मानी जाती है। यह खास तौर पर साउथ इंडिया में काफी पसंद किया जाता है। अक्‍सर लोग इसे अपनी सब्‍जियों और दाल में पड़ा देख, हाथों से उठा कर दूर कर देते हैं। पर आपको ऐसा नहीं करना चाहिये। कड़ी पत्‍ते में कई मेडिकल प्रोपर्टी छुपी हुई हैं। यह हमारे भोजन को आसानी से हजम करता है और अगर इसे मठ्ठे में हींग और कुडी़ पत्‍ते को मिला कर पीया जाए तो भोजन आसानी से हजम हो जाता है। चलिए जानते हैं इसके बारे में और भी महत्‍वपूर्ण बातें-

क्‍या है इसका उपयोग-

1. मतली और अपच जैसी समस्‍या के लिए कड़ी पत्‍ते का उपयोग बहुत लाभकारी होता है। इसको तैयार करने के लिए कड़ी पत्‍ते का रस ले कर उसमें नींबू निचोडें और उसमें थोड़ा सी चीनी मिलाकर प्रयोग करें।

2. अगर आप अपने बढ़ते हुए वजन से परेशान हैं और कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। तो रोज कुछ पत्‍तियां कड़ी नीम की चबाएं। इससे आपको अवश्‍य फायदा होगा।

3. कड़ी पत्‍ता हमारी आंखों की ज्‍योती बढाने में भी काफी फायदेमंद है। साथ ही यह भी माना जाता है कि यह कैटरैक्‍ट जैसी भंयकर बीमारी को भी दूर करती है।

4. अगर आपके बाल झड़ रहें हों या फिर अचानक सफेद होने लग गए हों तो कड़ी पत्‍ता जरुर खाएं। अगर आपको कड़ी पत्‍ता समूचा नहीं अच्‍छा लगता तो बाजार से उसका पाउडर खरीद लें और फिर उसे अपने भोजन में डाल कर खाएं।

5. इसके साथ ही आप चाहें तो अपने हेयर ऑयल में ही कड़ी के पत्‍ते को उबाल लें। इस हेयर टॉनिक को लगाने से आपके बालों की जितनी भी समस्‍या होगी वह सब दूर हो जाएगी।

6. अगर डायबी‍टीज रोगी कड़ी के पत्‍ते को रोज सुबह तीन महीने तक लगातार खाएं तो फायदा होगा। इसके अलावा अगर डायबीटीज मोटापे की वजह से हुआ है, तो कड़ी पत्‍ता मोटापे को कम कर के मधुमेह को भी दूर कर सकता है।

7. सिर्फ कड़ी पत्‍ता ही नहीं बल्कि इसकी जड़ भी काफी उपयोगी होती है। जिन लोगों की किड़नी में दर्द रहता है, वह अगर इसका रस पिएं तो उन्‍हें अवश्‍य फायदा होगा।

Tuesday, 26 July 2016

रोज काम आने वाले स्वास्थ्यवर्धक प्रयोग


(१) शरीर में कहीं भी नील पड़ जाये तो वहां कच्चा आलू मले |
(२)जले हुए अंग को फ़ौरन सरसों के तेल में डुबो दे इससे छाला नहीं पड़ता हे |
(३)आग से जले अंग पर तत्काल ग्लिसरीन लगाने से न दर्द होगा न ही चमड़ी ही लाल होती हे |
(४)सौ ग्राम दही और मेथी का चूर्ण दो से तीन ग्राम कि मात्रा में मिलाकर पीने से पेट का मरोड़ा बंद होता हे |
(५)एक tea स्पून निम्बू रस , एक tea स्पून अदरक का ताज़ा रस को शुद्ध शहद में मिलाकर पीने से पेटदर्द ठीक होता हे |
(६)धनिया और शक्कर का शरबत बनाकर पीने से पेट का जलन दूर हो जाती हे
(७)बीस ग्राम मुनक्का देसी घी में सेककर सेंधा नमक डालकर खाने से चक्कर आना बंद हो जाता हे |
(८)भुना हुआ चना पिसवाकर एक शीशी में रख ले | अब इसे नित्य ५० ग्राम की मात्रा में ( विशेषकर शुक्करवार की शाम ) सेवन करने से खून में बड़ा केलोस्ट्रोल घट जाता हे |
(९) बड़ी इलाइची का चूर्ण आधा ग्राम ( यह एक मात्रा हे ) में पानी से लेते रहने से लीवर के घाव मिट जाते हे |
(१०)पुदिने को काले नमक के साथ पीसकर उस चटनी को चाटने से हिचकी की शिकायत मिटती हे |
(११)चश्मा छुटे प्रयोग :- १५० ग्राम मामरा बादाम ,१५० ग्राम बड़ी हरी सौफ , और आवशकतानुसार कुंजा मिश्री को अलग – अलग पीसकर तीनो को एक साथ मिला ले | इसे एक शीशे के साफ़ जार में बंद करके रख ले | दवा तेयार हे |
अब रोजाना रात को दस ग्राम की मात्रा में २५० ग्राम दूध के साथ ले | इसके ऊपर पानी बिलकुल न पीवे | डेढ़ महीने के बाद हो सकता हे चश्मा छुट सकता हे
आप रोज सवेरे – सवेरे पार्क में जाकर नंगे पाँव घास में १५- ३० मिनट तक चले
आप खाने में गाजर का मुरब्बा , सेब , सफेद मिर्च , आदि चीजों का प्रयोग जरुर करते रहे |
(१२)बालतोड़ के प्रारंभ में गेहूं के पन्द्रह – बीस दाने अपने दांत से चबाकर इसकी लुग्धी ( पेस्ट ) बनावे | इस पेस्ट को बालतोड़ वाले स्थान पर लगाने से ठीक हो जाएगा | यह प्रयोग एक दिन में दो से तीन बार तक करे | जब तक बालतोड़ पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाता तब तक इस प्रयोग को करते रहे |

जामुन 51 रोगों की रामबाण औषिधि है

जामुन 51 रोगों की रामबाण औषिधि है चाहे मधुमेह, लिवर या कोई सा भी गुप्त रोग हो ये इन सब का काल है

जामुन का पेड़ आम के पेड़ की तरह काफी बड़ा लगभग 20 से 25 मीटर ऊंचा होता है और इसके पत्ते 2 से 6 इंच तक लम्बे व 2 से 3 इंच तक चौड़े होते हैं। जामुन के पेड़ की छाल का रंग सफेद भूरा होता है। इसके पत्ते आम और मौलसिरी के पत्तों के जैसे होते हैं। जामुन के फूल अप्रैल के महीने में लगते हैं और जुलाई से अगस्त तक जामुन (फल) पक जाते हैं। इसके कच्चे फल का रंग हरा और पका फल बैगनी, नीला, काला और अन्दर से गाढ़ा गुलाबी होता है। खाने में जामुन का स्वाद कषैला, मीठा व खट्टा होता है। इसमें एक बीज होता है। जामुन छोटी व बड़ी दो प्रकार की मिलती है।
बड़ी जामुन का पेड़ : यह मधुर, गर्म प्रकृति की, फीका और मलस्तम्भक होता है तथा श्वास, सूजन,थकान,अतिसार, कफ और ऊर्ध्वरस को नाश करता है।
जामुन का फल : यह मीठा, खट्टा, मीठा, रुचिकर, शीतल व वायु का नाश करने वाला होता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार : जामुन में लौह और फास्फोरस काफी मात्रा में होता है। जामुन में कोलीन तथा फोलिक एसिड भी होता है। जामुन के बीच में ग्लुकोसाइड, जम्बोलिन, फेनोलयुक्त पदार्थ, पीलापल लिए सुगन्धित तेल काफी मात्रा में उपलब्ध होता है। जामुन मधुमेह (डायबिटीज), पथरी, लीवर, तिल्ली और खून की गंदगी को दूर करता है। यह मूत्राशय में जमी पथरी को निकालता है। जामुन और उसके बीज पाचक और स्तम्भक होते हैं।
हानिकारक प्रभाव : जामुन का अधिक मात्रा में सेवन करने से गैस, बुखार, सीने का दर्द, कफवृद्धि व इससे उत्पन्न रोग, वात विकारों के रोग उत्पन्न हो सकते हैं। इसके रस को दूध के साथ सेवन न करें।
विशेष :
1. जामुन को हमेशा खाना खाने के बाद ही खाना चाहिए।
2. जामुन खाने के तुरन्त बाद दूध नहीं पीना  चाहिए।
दोषों को दूर करने वाला : कालानमक, कालीमिर्च औरसोंठ का चूर्ण छिड़ककर खाने से उसके सारे दोषों दूर हो जाते हैं। साथ ही आम खाने से वह शीघ्र पच जाता है।
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विभिन्न रोगों में उपयोग :

1. रक्तातिसार:

जामुन के पेड़ की छाल को दूध में पीसकर शहद के साथ पीना चाहिए या जामुन के पत्तों के रस में शहद, घी और दूध मिलाकर लेना चाहिए।
जामुन का रस गुलाब के रस में मिलाकर दिन में 2-3 बार पिलायें। इससे जल्द लाभ नज़र आयेगा।
2. गर्मी की फुंसियां: जामुन की गुठली को घिसकर लगाना चाहिए।
3. बिच्छू के दंश पर: जामुन के पत्तों का रस लगाना चाहिए। इससे बिच्छू का दंश ठीक हो जाता है।
4. पित्त पर: 10 मिलीलीटर जामुन के रस में 10 ग्राम गुड़ मिलाकर आग पर तपायें। तपाकर उसके भाप को पीना चाहिए।
5. गर्भवती स्त्री का दस्त: ऐसे समय में जामुन खिलाना चाहिए या जामुन की छाल के काढ़े में धान और जौ का 10-10 ग्राम आटा डालकर चटाना चाहिए।
6. मुंह के रोग:
जामुन, बबूल, बेर और मौलसिरी में से किसी भी पेड़ की छाल का ठण्डा पानी निकालकर कुल्ला करना चाहिए और इसकी दातून से रोज दांतों को साफ करना चाहिए इससे दांत मजबूत होते हैं और मुंह के रोग भी ठीक हो जाते हैं।
जामुन की गुठली को 1 ग्राम चूरन के पानी के साथ लेना चाहिए। चार-चार घंटे के बाद यह औषधि लेनी चाहिए। लगभग 3 दिन के बाद इसका असर दिखाई देने लगेगा।
7. वमन (उल्टी): जामुन के पेड़ की छाल को आग में जलाकर उसकी राख को शहद के साथ खिलाने से खट्टी उल्टी आना बंद हो जाती है।
8. विसूचिका (हैजा): हैजा से पीड़ित रोगी को 5 ग्राम जामुन के सिरके में चौगुना पानी डालकर 1-1 घण्टे के अन्तर से देना चाहिए। पेट के दर्द में भी सुबह-शाम इस सिरके का उपयोग करना चाहिए।
9. मुंहासे: जामुन की गुठली घिसकर लगाना चाहिए। इससे मुंहासे नष्ट हो जाते हैं।
10. पसीना ज्यादा आना: जामुन के पत्तों को पानी में उबालकर नहाने से पसीना अधिक आना बंद हो जायेगा।
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11. जलना: जामुन की छाल को नारियल के तेल में पीसकर जले हिस्से पर 2-3 बार लगाने से लाभ मिलता है।
12. पैरों के छाले: टाईट, नया जूता पहनने या ज्यादा चलने से पैरों में छाले और घाव बन जाते हैं। ऐसे में जामुन की गुठली पानी में घिसकर 2-3 बार बराबर लगायें। इससे पैरों के छाले मिट जाते हैं।
13. स्वप्नदोष: 4 जामुन की गुठली का चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ खाने से स्वप्नदोष ठीक हो जाता है।
14. वीर्य का पतलापन: वीर्य का पतलापन हो, जरा सी उत्तेजना से ही वीर्य निकल जाता हो तो ऐसे में 5 ग्राम जामुन की गुठली का चूर्ण रोज शाम को गर्म दूध से लें। इससे वीर्य का पतलापन दूर हो जाता है तथा वीर्य भी बढ़ जाता है।
15. पेशाब का बार-बार आना: 15 ग्राम जामुन की गुठली को पीसकर 1-1 ग्राम पानी से सुबह और शाम पानी से लेने से बहुमूत्र (बार-बार पेशाब आना) के रोग में लाभ होता है।
16. नपुंसकता: जामुन की गुठली का चूर्ण रोज गर्म दूध के साथ खाने से नपुंसकता दूर होती है।
17. दांतों का दर्द: जामुन, मौलश्री अथवा कचनार की लकड़ी को जलाकर उसके कोयले को बारीक पीसकर मंजन बना लें। इसे प्रतिदिन दांतों व मसूढ़ों पर मालिश करने से मसूढ़ों से खून का आना बंद हो जाता है।
18. बुखार: जामुन को सिरके में भिगोकर सुबह और शाम रोजाना खाने से पित्ती शांत हो जाती है।
19. दांत मजबूत करना: जामुन की छाल को पानी में डालकर उबाल लें तथा छानकर उसके पानी से रोजाना सुबह-शाम कुल्ला करें। इससे दांत मजबूत होते हैं।
20. पायरिया: जामुन के पेड़ की छाल को आग में जलाकर तथा उसमें थोड़ा-सा सेंधानमक व फिटकरी मिलाकर बारीक पीसकर मंजन बना लें। इससे रोजाना मंजन करने से पायरिया रोग ठीक होता है।
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21. कांच निकलना (गुदाभ्रंश): जामुन, पीपल, बड़ और बहेड़ा 20-20 ग्राम की मात्रा में लेकर 500 ग्राम जल में मिलाकर उबाल लें। रोजाना शौच के बाद मलद्वार को स्वच्छ (साफ) कर बनाये हुए काढ़ा को छानकर मलद्वार को धोएं। इससे गुदाभ्रंश ठीक होता है।
22. मुंह के छाले:
मुंह में घाव, छाले आदि होने पर जामुन की छाल का काढ़ा बनाकर गरारे करने से लाभ होता है।
जामुन के पत्ते 50 ग्राम को जल के साथ पीसकर 300 मिलीलीटर जल में मिला लें। फिर इसके पानी को छानकर कुल्ला करें। इससे छाले नष्ट होते हैं।
23. दस्त:
जामुन की गिरी को पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इसी बने चूर्ण को छाछ के साथ मिलाकर प्रयोग करने से टट्टी का लगातार आना बंद हो जाता है।
जामुन के ताजे रस को बकरी के दूध के साथ इस्तेमाल करने से दस्त में आराम मिलता है।
जामुन की गिरी (गुठली) और आम की गुठली को पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसे भुनी हुई हरड़ के साथ सेवन करने से दस्त में काफी लाभ मिलता है।
जामुन का सिरका 40 ग्राम से लेकर 80 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से अतिसार में लाभ मिलता है।
जामुन का शर्बत बनाकर पीने से दस्त का आना समाप्त हो जाता हैं।
जामुन के रस में कालानमक और थोड़ी-सी चीनी को मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।
जामुन को पीसने के बाद प्राप्त हुए रस को 2 चम्मच की मात्रा में थोड़ी-सी मिश्री मिलाकर पीने से दस्त का आना बंद हो जाता है।
जामुन की गुठलियों को पीसकर चूर्ण बनाकर चीनी के साथ मिलाकर सेवन करने से दस्त का आना बंद हो जाता है।
जामुन की 4 पत्तियां को पीसकर उसमें सेंधानमक मिलाकर चाटने से लाभ मिलता है।
जामुन के 3 पत्तियों को सेंधानमक के साथ पीसकर छोटी-छोटी सी गोलियां बना लें। इसे 1-1 गोली के रूप में रोजाना सुबह सेवन करने से लूज मोशन (दस्त) का आना ठीक हो जाता हैं।
जामुन के पेड़ की छाल का काढ़ा शहद के साथ पीने से दस्त और पेचिश दूर हो जाती है।
24. गर्भवती की उल्टी: जामुन और आम की छाल को बराबर की मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इसमें थोड़ा सा शहद मिलाकर पीने से पित्त के कारण होने वाली उल्टी बंद हो जाती है।
25. कान का दर्द: कान में दर्द होने पर जामुन का तेल डालने से लाभ होता है।
26. कान का बहना: जामुन और आम के मुलायम हरे पत्तों के रस में शहद मिलाकर बूंद-बूंद करके कान में डालने से कान में से मवाद बहना बंद हो जाता है।
27. कान के कीड़े: जामुन और कैथ के ताजे पत्तों और कपास के ताजे फलों को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर निचोड़ कर इसका रस निकाल लें। इस रस में इतना ही शहद मिलाकर कान में डालने से कान में से मवाद बहना और कान का दर्द ठीक हो जाता है।
28. मूत्ररोग: पकी हुई जामुन खाने से मूत्र की पथरी में लाभ होता है। इसकी गुठली को चूर्णकर दही के साथ खाना भी इस बीमारी में लाभदायक है। इसकी गुठली का चूर्ण 1-2 चम्मच ठण्डे पानी के साथ रोज खाने से पेशाब के धातु आना बंद हो जाता है।
29. बवासीर (अर्श):
जामुन की गुठली और आम की गुठली के भीतर का भाग सुखाकर इसको मिलाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को हल्के गर्म पानी या छाछ के साथ पीने से बवसीर ठीक होती है तथा बवासीर में खून का गिरना बंद हो जाता है।
जामुन के पेड़ की छाल का रस निकालकर उसके 10 ग्राम रस में शहद मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से अर्श (बवासीर) रोग ठीक होता है तथा खून साफ होता है।
जामुन के पेड़ की जड़ की छाल का रस 2 चम्मच और छोटी मधुमक्खी का शहद 2 चम्मच मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पीने से खूनी बवासीर में खून का गिरना रुक जाता है।
जामुन की कोमल पत्तियों का 20 ग्राम रस निकालकर उसमें थोड़ा बूरा मिलाकर पीयें। इससे खूनी बवासीर ठीक होती है।
30. खूनी अतिसार:
जामुन के पत्तों के रस का सेवन करने से रक्तातिसार के रोगी को लाभ मिलता है।
20 ग्राम जामुन की गुठली को पानी में पीसकर सुबह-शाम सेवन करने से खूनी दस्त (रक्तातिसार) के रोगी का रोग मिट जाता है।
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31. आंव रक्त (पेचिश होने पर): 10 ग्राम जामुन के रस को प्रतिदिन तीन बार सेवन करने से पेचिश के रोगी का रोग दूर हो जाता है।
32. प्रदर रोग:
जामुन की ताजी छाल को छाया में सुखाकर कूट-पीस छान लें। इसे 5-5 ग्राम की मात्रा में दूध या पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर में आराम मिलता है।
जामुन के पत्ते का रस 10 से 20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर नष्ट होता है। इसके बीजों का चूर्ण मधुमेह में लाभकारी होता है।
छाया में सुखाई जामुन की छाल का चूरन 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार पानी के साथ लेने से कुछ दिनों में ही श्वेतप्रदर का रोग नष्ट हो जाता है।
33. अपच: जामुन का सिरका 1 चम्मच को पानी में मिलाकर पीने से अपच में लाभ होता है।
34. जिगर का रोग:
जामुन के पत्तों का रस (अर्क) निकालकर 5 ग्राम की मात्रा में 4-5 दिन सेवन करने से यकृत वृद्धि मिट जाती है।
200-300 ग्राम बढ़िया पके जामुन रोजाना खाली पेट खाने से जिगर की खराबी दूर होती है।
35. घाव: जामुन की छाल के काढ़े से घाव को धोना फायदेमंद माना गया है।
36. पथरी:
जामुन की गुठलियों को सुखा लें तथा पीसकर चूर्ण बनाकर रखें। आधा चम्मच चूर्ण पानी के साथ सुबह-शाम लें। इससे गुर्दे की पथरी ठीक हो जाती है।
पका हुआ जामुन खाने से पथरी रोग में आराम होता है। गुठली का चूर्ण दही के साथ खाएं। इससे पथरी नष्ट हो जाती है।
रोज जामुन खाने से गुर्दे की पथरी धीरे-धीरे खत्म होती है।
37. अम्लपित्त: जामुन के 1 चम्मच रस को थोड़े-से गुड़ के साथ लेने से अम्लपित्त में लाभ मिलता है।
38. यकृत का बढ़ना:
5 ग्राम की मात्रा में जामुन के कोमल पत्तों का रस निकालकर उसको कुछ दिनों तक पीते रहने से यकृत वृद्धि से छुटकारा मिलता है।
आधा चम्मच जामुन का सिरका पानी में घोलकर देने से यकृत वृद्धि से आराम मिलता है।
39. प्यास अधिक लगना:
जामुन के पत्तों का रस निकालकर 7 से 14 मिलीलीटर पीने से प्यास का अधिक लगना बंद हो जाता है।
जामुन के सूखे पत्तों का काढ़ा बनाकर 14 से 28 मिलीलीटर काढ़े में 5 से 10 ग्राम चीनी मिलाकर दिन में 3 बार पीने से बुखार में प्यास का लगना कम हो जाता है।
जामुन का मीठा गूदा खाने से या उसका रस पीने से अधिक आराम मिलता है।
40. बच्चों का मधुमेह रोग: जामुन के मौसम में मधुमेह के रोगी बच्चे को जामुन खिलाने से मधुमेह में लाभ होता है।
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41. मधुमेह के रोग:
जामुन की सूखी गुठलियों को 5-6 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ दिन में दो या तीन बार सेवन करने से मधुमेह रोग में लाभ होता है।
30 ग्राम जामुन की नई कोपलें (पत्तियां) और 5 काली मिर्च, पानी के साथ पीसकर सुबह-शाम पीने से मधुमेह में लाभ होता है।
जामुन की गुठलियों को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को रोजाना सुबह-शाम 3-3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है।
जामुन की गुठली का चूर्ण और सूखे करेले का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर रख लें। 3 ग्राम चूर्ण रोजाना सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह के रोग में फायदा होता है।
जामुन की भीतरी छाल को जलाकर भस्म (राख) बनाकर रख लें। इसे रोजाना 2 ग्राम पानी के साथ सेवन करने से मूत्र में शर्करा कम होता है।
10-10 ग्राम जामुन का रस दिन में तीन बार लेने से मधुमेह मिट जाता है।
12 ग्राम जामुन की गुठली और 1 ग्राम अफीम को पानी के साथ मिलाकर 32 गोलियां बना लें। फिर इसे छाया में सुखाकर बोतल में भर लें। 2-2 गोली सुबह-शाम पानी के साथ खायें। खाने में जौ की रोटी और हरी सब्जी खाएं। चीनी बिल्कुल न खायें। इससे मधुमेह में लाभ होता है।
60 ग्राम जामुन की गुठली की गिरी पीस लें। इसे 3-3 ग्राम की मात्रा में पानी से सुबह-शाम सेवन करने से मधुमेह रोग में लाभ होता है।
8-10 जामुन के फलों को 1 कप पानी में उबालें। फिर पानी को ठण्डा करके उसमें जामुन को मथ लें। इस पानी को सुबह-शाम पीयें। यह मूत्र में शूगर को कम करता है।
1 चम्मच जामुन का रस और 1 चम्मच पके आम का रस मिलाकर रोजाना सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है।
जामुन के 4-5 पत्तों को सुबह के समय थोडे़-से सेंधा नमक के साथ चबाकर खाने से कुछ दिनों में ही मधुमेह का रोग मिट जाता है।
जामुन के 4 हरे और नर्म पत्ते खूब बारीक कर 60 मिलीलीटर पानी में मिलाकर छान लें। इसे सुबह के समय 10 दिनों तक लगातार पीयें। इसके बाद इसे हर दो महीने बाद 10 दिन तक लें। जामुन के पत्तों का यह रस मूत्र में शक्कर जाने की परेशानी से बचाता है।
मधुमेह रोग के शुरुआत में ही जामुन के 4-4 पत्ते सुबह-शाम चबाकर खाने से तीसरे ही दिन मधुमेह में लाभ होगा।
60 ग्राम अच्छे पके जामुन को लेकर 300 मिलीलीटर उबले पानी में डाल दें। आधा घंटे बाद मसलकर छान लें। इसके तीन भाग करके एक-एक मात्रा दिन में तीन बार पीने से मधुमेह के रोगी के मूत्र में शर्करा आना बहुत कम हो जाता है, नियमानुसार जामुन के फलों के मौसम में कुछ समय तक सेवन करने से रोगी सही हो जाता है।
जामुन की गुठली को छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर रोजाना सुबह-शाम 3 ग्राम ताजे पानी के साथ लेते रहने से मधुमेह दूर होता है और मूत्र घटता है। इसे करीब 21 दिनों तक लेने से लाभ होगा।
जामुन की गुठली और करेले को सुखाकर समान मात्रा में मिलाकर पीस लें। इसे एक चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ फंकी लें। इससे मधुमेह मिट जायेगा।
125 ग्राम जामुन रोजाना खाने से शुगर नियन्त्रित हो जाता है।
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42. पेट में दर्द:
जामुन का रस 10 मिलीलीटर, सिरके का रस 50 मिलीलीटर पानी में घोलकर पीने से पेट की पीड़ा में लाभ होता है।
जामुन के रस में सेंधानमक खाने से पेट का दर्द, दस्त लगना, अग्निमान्द्य (भूख का न लगना) आदि बीमारियों में लाभ होता है।
पके हुए जामुन के रस में थोड़ा-सी मात्रा में काला नमक मिलाकर पीने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
जामुन में सेंधानमक मिलाकर खाने से भी पेट की पीड़ा से राहत मिलती है।
पेट की बीमारियों में जामुन खाना लाभदायक है। इसमें दस्त बांधने की खास शक्ति है।
43. योनि का संकोचन: जामुन की जड़ की छाल, लोध्र और धाय के फूल को बराबर मात्रा में लेकर शहद में मिलाकर योनि की मालिश करने से योनि संकुचित हो जाती है।
44. बिस्तर पर पेशाब करना: जामुन की गुठलियों को छाया में सुखाकर पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। इस 2-2 ग्राम चूर्ण को दिन में 2 बार पानी के साथ खाने से बच्चे बिस्तर पर पेशाब करना बंद कर देते हैं।
45. त्वचा के रोग: जामुन के बीजों को पानी में घिसकर लगाने से चेहरे के मुंहासे मिट जाते हैं।
46. पीलिया का रोग: जामुन के रस में जितना सम्भव हो, उतना सेंधानमक डालकर एक मजबूत कार्क की शीशी में भरकर 40 दिन तक रखा रहने दें। इसके बाद आधा चम्मच पियें। इससे पीलिया में लाभ होगा।
47. फोड़े-फुंसियां: जामुन की गुठलियों को पीसकर फुंसियों पर लगाने से ये जल्दी ठीक हो जाती हैं।
48. बच्चों का अतिसार और रक्तातिसार:
आम्रातक, जामुन फल और आम के गूदे के चूर्ण को बराबर मात्रा में शहद के दिन में 3 बार लेना चाहिए।
बच्चों का अतिसार (दस्त) में जामुन की छाल का रस 10 से 20 ग्राम सुबह और शाम बकरी के दूध के साथ देने से लाभ होता है।
49. बच्चों की हिचकी: जामुन, तेन्दू के फल और फूल को पीसकर घी और शहद में मिलाकर चटाने से बच्चों की हिचकी बंद हो जाती है।
नोट: जहां घी और शहद एक साथ लेने हो, वहां इनको बराबर मात्रा में न लेकर एक की मात्रा कम और एक की ज्यादा होनी चाहिए।
50. गले की आवाज बैठना:
जामुन की गुठलियों को पीसकर शहद में मिलाकर गोलियां बना लें। रोजाना 4 बार 2-2 गोलियां चूसें। इससे बैठा हुआ गला खुल जाता है। भारी आवाज भी ठीक हो जाती है और ज्यादा दिन तक सेवन करने से बिगड़ी हुई आवाज भी ठीक हो जाती है जो लोग गाना गाते हैं उनके लिये यह बहुत ही उपयोगी है।
जामुन की गुठलियों को बिल्कुल बारीक पीसकर शहद के साथ खाने से गला खुल जाता है और आवाज का भारीपन भी दूर होता है।

51. गले की सूजन: जामुन की गुठलियों को सुखाकर बारीक-बारीक पीस लें। फिर इसमें से दो चुटकी चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करें। इससे गले की सूजन नष्ट हो जाती है।

एसिडिटी के लिए घरेलू उपचार


आजकल की भागदौड भरी और अनियमित जीवनशैली के कारण पेट की समस्या आम हो चली है। आमतौर पर तली-भुनी और मसालेदार खाने का सेवन करने के कारण एसिडिटी की समस्या होती है। खाने का एक समय निर्धारित भी नहीं होता है, जो एसिडिटी का कारण बनता है। पेट में जब सामान्य से अधिक मात्रा में एसिड निकलता है तो उसे एसिडिटी कहते हैं। आइए हम आपको कुछ ऐसे घरेलू उपाय बताते हैं जिनको अपनाकर आप एसिडिटी से छुटकारा पा सकते हैं।

एसिडिटी के लिए घरेलू नुस्खे –

एसिडिटी होने पर मुलेठी का चूर्ण या काढ़ा बनाकर उसका सेवन करना चाहिए। इससे एसिडिटी में फायदा होता है।
नीम की छाल का चूर्ण या रात में भिगोकर रखी छाल का पानी छानकर पीना चाहिए। ऐसा करने से अम्लापित्त या एसिडिटी ठीक हो जाता है।
एसिडिटी होने पर त्रिफला चूर्ण का प्रयोग करने से फायदा होता है। त्रिफला को दूध के साथ पीने से एसिडिटी समाप्त होती है।
दूध में मुनक्का डालकर उबालना चाहिए। उसके बाद दूध को ठंडा करके पीने से फायदा होता है और एसिडिटी ठीक होती है।
एसिडिटी के मरीजों को एक गिलास गुनगुने पानी में चुटकी भर काली मिर्च का चूर्ण तथा आधा नींबू निचोड़कर नियमित रूप से सुबह पीना चाहिए। ऐसा करने से पेट साफ रहता है और एसिडिटी में फायदा होता है।
सौंफ, आंवला व गुलाब के फूलों को बराबर हिस्से में लेकर चूर्ण बना लीजिए। इस चूर्ण को आधा-आधा चम्मच सुबह-शाम लेने से एसिडिटी में फायदा होता है।
एसिडिटी होने पर सलाद के रूप में मूली खाना चाहिए। मूली काटकर उसपर काला नमक तथा कालीमिर्च छिडककर खाने से फायदा होता है।
जायफल तथा सोंठ को मिलाकर चूर्ण बना लीजिए। इस चूर्ण को एक-एक चुटकी लेने से एसिडिटी समाप्त होती है।
कच्चे चावल के 8-10 दानों को पानी के साथ सुबह खाली पेट गटक लीजिए।

एसिडिटी होने पर कच्ची सौंफ चबानी चाहिए। सौंफ चबाने से एसिडिटी समाप्त हो जाती है।
अदरक और परवल को मिलाकर काढा बना लीजिए। इस काढे को सुबह-शाम पीने से एसिडिटी की समस्या समाप्त होती है।
सुबह-सुबह खाली पेट गुनगुना पानी पीने से एसिडिटी में फायदा होता है।
नारियल का पानी पीने से एसिडिटी की समस्या से छुटकारा मिलता है।
लौंग एसिडिटी के लिए बहुत फायदेमंद है। एसिडिटी होने पर लौंग चूसना चाहिए।
गुड़, केला, बादाम और नींबू खाने से एसिडिटी जल्दी ठीक हो जाती है।
पानी में पुदीने की कुछ पत्तियां डालकर उबाल लीजिए। हर रोज खाने के बाद इन इस पानी का सेवन कीजिए। एसिडिटी में फायदा होगा।



एसिडिटी की समस्या खान-पान के कारण ज्यादा होती है। इसलिए ज्यादा गरिष्ठ भोजन करने से परहेज करना चाहिए। एसिडिटी के समय रात को सोने से तीन घंटे पहले डिनर कर लेना चाहिए, जिससे खाना अच्छे से पचे। इन नुस्खों को अपनाने के बाद भी एसिडिटी अगर ठीक न हो रही हो तो चिकित्सक से संपर्क अवश्य कीजिए।

विरुद्ध आहार -

अनेक रोगों का मूल कारण: विरुद्ध आहार --------------
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 जो पदार्थ रस-रक्तादी धातुओं के विरुद्ध गुणधर्मवाले व वात-पित्त-कफ इन त्रिदोषों को प्रकुपित करनेवाले हैं, उनके सेवन से रोगों की उत्पत्ति होती है | इन पदार्थों में कुछ परस्पर गुणविरुद्ध, कुछ संयोगविरुद्ध, कुछ संस्कारविरुद्ध और कुछ देश, काल, मात्रा, स्वभाव आदि से विरुद्ध होते हैं | जैसे-दूध के साथ मूँग, उड़द, चना आदि सभी दालें, सभी प्रकार के खट्टे व मीठे फल, गाजर, शककंद, आलू, मूली जैसे कंदमूल, तेल, गुड़, शहद, दही, नारियल, लहसुन, कमलनाल, सभी नमकयुक्त व अम्लीय प्रदार्थ संयोगविरुध हैं | दूध व इनका सेवन एक साथ नहीं करना चाहिए | इनके बीच कम-से-कम २ घंटे का अंतर अवश्य रखें | ऐसे ही दही के साथ उड़द, गुड़, काली मिर्च, केला व शहद; शहद के साथ गुड़; घी के साथ तेल नहीं खाना चाहिए |

शहद, घी, तेल व पानी इन चार द्रव्यों में से दो अथवा तीन द्रव्यों को समभाग मिलाकर खाना हानिकारक हैं | गर्म व ठंडे पदार्थों को एक साथ खाने से जठराग्नि व पाचनक्रिया मंद हो जाती है | दही व शहद को गर्म करने से वे विकृत बन जाते हैं |

दूध को विकृत कर बनाया गया छेना, पनीर आदि व खमीरीकृत प्रदार्थ (जैसे-डोसा, इडली, खमण) स्वभाव से ही विरुद्ध हैं अर्थात इनके सेवन से लाभ की जगह हानि ही होती है | रासायनिक खाद व इंजेकशन द्वारा उगाये गये आनाज व सब्जियाँ तथा रसायनों द्वारा पकाये गये फल भी स्वभावविरुद्ध हैं |

हेमंत व शिशिर इन शीत ऋतुओं में ठंडे, रुखे-सूखे, वातवर्धक पदार्थों का सेवन, अल्प आहार तथा वसंत-ग्रीष्म-शरद इन उषण ऋतुओं में उषण पदार्थं व दही का सेवन कालविरुद्ध है | मरुभूमि में रुक्ष, उषण, तीक्षण पदार्थों (अधिक मिर्च, गर्म मसाले आदि) व समुद्रतटीय प्रदेशों में चिकने-ठंडे पदार्थों का सेवन, क्षारयुक्त भूमि के जल का सेवन देशविरुद्ध है |

अधिक परिश्रम करनेवाले व्यक्तियों के लिए रुखे-सूखे, वातवर्धक पदार्थ व कम भोजन तथा बैठे-बैठे काम करनेवाले व्यक्तियों के लिए चिकने, मीठे, कफवर्धक पदार्थ व अधिक भोजन अवस्थाविरुद्ध है |

 अधकच्चा, अधिक पका हुआ, जला हुआ, बार-बार गर्म किया गया, उच्च तापमान पर पकाया गया (जैसे-ओवन में बना व फास्टफूड), अति शीत तापमान में रखा गया (जैसे-फिर्ज में रखे पदार्थ) भोजन पाकविरुद्ध है |

मल, मूत्र का त्याग किये बिना, भूख के बिना अथवा बहुत अधिक भूख लगने पर भोजन करना क्रमविरुद्ध है |

जो आहार मनोनुकूल न हो वह ह्रदयविरुद्ध है क्योंकि अग्नि प्रदीप्त होने पर भी आहार मनोनुकूल न हो तो सम्यक पाचन नहीं होता |

इस प्रकार के विरोधी आहार के सेवन से बल, बुद्धि, वीर्य व आयु का नाश, नपुंसकता, अंधत्व, पागलपन, भगंदर, त्वचाविकार, पेट के रोग, सूजन, बवासीर, अम्लपित्त (एसीडिटी), सफेद दाग, ज्ञानेन्द्रियों में विकृति व अषटोमहागद अथार्त आठ प्रकार की असाध्य व्याधियाँ उत्पन होती हैं | विरुद्ध अन्न का सेवन मृत्यु का भी कारण हो सकता है |

अत: देश, काल, उम्र, प्रकृति, संस्कार, मात्रा आदि का विचार तथा पथ्य-अपथ्य का विवेक करके नित्य पथ्यकर पदार्थों का ही सेवन करें | अज्ञानवश विरुद्ध आहार के सेवन से हानि हो गयी हो तो वमन-विरेचनादी पंचकर्म से शारीर की शुद्धी एंव अन्य शास्त्रोक्त उपचार करने चाहिए | आपरेशन व अंग्रेजी दवाएँ रोगों को जड़-मूल से नहीं निकालते | अपना संयम और नि:सवार्थ एंव जानकार वैध की देख-रेख में किया गया पंचकर्म विशेष लाभ देता है | इससे रोग तो मिटते ही हैं, १०-१४ वर्ष आयुष्य भी बढ़ सकता है |

सबका हित चाहनेवाले पूज्य बापूजी हमें सावधान करते हैं: " नासमझी के कारण कुछ लोग दूध में सोडा या कोल्डड्रिंक डालकर पीते हैं | यह स्वाद की गुलामी आगे चलकर उन्हें कितनी भारी पड़ती है, इसका वर्णन करके विस्तार करने की जगह यहाँ नहीं है | विरुद्ध आहार कितनी बिमारियों का जनक है, उन्हें पता नहीं |

खीर के साथ नमकवाला भोजन, खिचड़ी के साथ आइसक्रीम, मिल्कशेक - ये सब विरुद्ध आहार हैं | इनसे पाशचात्य जगत के बाल, युवा, वृद्ध सभी बहुत सारी बिमारियों के शिकार बन रहे हैं | अत: हे बुद्धिमानो ! खट्टे-खारे के साथ भूलकर भी दूध की चीज न खायें- न खिलायें | "

ऋतु-परिवर्तन विशेष -

शीत व उष्ण ऋतुओं के बीच में आनेवाली वसंत ऋतु में न अति शीत, न अति उष्ण पदार्थों का सेवन करना चाहिए | सर्दियों के मेवे, पाक, दही, खजूर, नारियल, गुड आदि छोड़कर अब ज्वार की धानी, भुने चने, पुराने जों, मूँग, तिल का तेल, परवल, सूरन, सहिजन, सूआ, बथुआ, मेथी, कोमल बैंगन, ताजी नरम मूली तथा अदरक का सेवन करना चाहिए |

सुबह अनुकूल हो ऐसी किसी प्रकार का व्यायाम जरुर करें | वसंत में प्रकुपित होनेवाला कफ इससे पिघलता है | प्रणायाम विशेषत: सूर्यभेदी प्रणायाम (बायाँ नथुना बंद करके दाहिने से गहरा श्वास लेकर एक मिनट रोक दें फिर बायें से छोडें) व सूर्यनमस्कार कफ के शमन का उत्तम उपाय है | इन दिनों दिन में सोना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है |


कफजन्य रोगों में कफ सुखाने के लिए दवाइयों का उपयोग न करें | खानपान में उचित परिवर्तन, प्रणायाम, उपवास, तुलसी-पत्र व गोमूत्र के सेवन एवं सूर्येस्नान से कफ का शमन होता है |

दाँतों को चमकाये,,,,,,,,,,,,,,,,

1. मसूर की दाल : मसूर की दाल को आग पर जलाकर इसकी राख को बारीक पीसकर मंजन बना लें और इससे प्रतिदिन सुबह-शाम मंजन करने से दांत साफ होते हैं।

2. कोयला : कीकर या कोयला 50 ग्राम, भुनी फिटकरी 20 ग्राम तथा नमक लौहरी 10 ग्राम को बारीक पीस व छानकर मंजन बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम मंजन करने से दांत साफ व चमकदार बनते हैं।

3. तेजपत्ता : तेजपत्ता के सूखे पत्तों को बारीक पीसकर मंजन बनाकर रख लें और इस मंजन से हर 3 दिन में एक बार मंजन करें। यह दांतों पर जमे पीले और काले रंग के मैल को खत्म कर दांतों को साफ तथा चमकदार बनाता है।

4. हल्दी : 50 ग्राम पिसी हुई हल्दी तथा 5 ग्राम भुनी हुई फिटकरी को बारीक पीसकर मंजन करने से दांत साफ और चमकदार बनने लगते हैं।

5. नींबू :

नींबू के छिलके को सुखाकर बारीक पीसकर मंजन बनाकर प्रतिदिन दांत साफ करने से सांस की बदबू दूर होती है और दांत साफ होते हैं।
नींबू के रस निचोड़े हुए टुकड़े को दांतों पर रगड़ने से दांत साफ होते हैं।
दांतों में पीले व काले रंग के मैल को साफ करने के लिए सुबह दांत साफ करने से पहले आधा चम्मच नमक में नींबू का 4 से 5 बूंद रस मिलाकर दांत व मसूढ़ों पर मलें और 5 मिनट बाद कुल्ला करके मंजन करें। इससे दांत साफ व चमकदार बनते हैं।
दांतों में चमक लाने के लिए नमक, सरसों का तेल और नींबू का रस मिलाकर प्रतिदिन मंजन करें।

6. नीम : नीम की टहनी पत्तियों सहित छाया में सुखाकर आग में जला लें और इसकी राख में लौंग मिलाकर पीसकर मंजन बना लें। इससे प्रतिदिन मंजन करने से दांत साफ व चमकदार बनते हैं तथा दांतों में कीड़े नहीं लगते हैं।

7. हरड़ : हरड़ के चूर्ण से मंजन करने से दांत साफ व मजबूज होते हैं।

8. बादाम : बादाम का छिलका जलाकर किसी बर्तन से ढक दें। दूसरे दिन इसके राख में 5 गुना फिटकरी मिलाकर बारीक पीसकर मंजन बना लें और इससे मंजन करने से दांत साफ, चमकदार और मजबूत बनते हैं।

Friday, 22 July 2016

शीघ्र मोटापा कम करने के चमत्कारी उपाय

इस संसार में हर जातक पतला, छरछरा या सिडौल नज़र आना चाहता है मोटापे से तो हर कोई दूर ही रहना चाहता है , लेकिन कई बार गलत खान पान, जैसे अत्यधिक मीठा, तला भुना, मैदे के पदार्थो , कोल्ड्ड्रिंक्स , डिब्बाबंद पदार्थो के अधिक सेवन से, भूख से ज्यादा खाने के कारण, शारीरिक परिश्रम, व्यायाम बिलकुल भी ना करने , अनुवांशिक कारण अथवा किसी बीमारी के कारण व्यक्ति को मोटापा घेर लेता है ।
मोटापा एक अभिशाप है। मोटापा अर्थात अधिक वजन होने के कारण ना केवल व्यक्ति की शारीरिक क्षमता ही कम हो जाती है वरन उसे धीरे धीरे बहुत से रोग भी घेरने लगते है ।

यह सत्य है कि यदि एक बार व्यक्ति मोटापा का शिकार बन गया तो लाख चाहने के बाद भी वह पतला नहीं हो पाता है । वह कुछ दिन डाइटिंग, व्यायाम करता भी है लेकिन फिर थक हार कर बैठ जाता है और धीरे धीरे मोटापे को अपना भाग्य मानकर उससे समझोता कर लेता है। व्यक्ति की उम्र बढ़ने के साथ साथ उसका शरीरिक श्रम भी कम होता जाता है ।

हम यहाँ पर कुछ चमत्कारी उपाय बता रहे है जिन्हे यदि कोई भी व्यक्ति नियमपूर्वक करें तो वह निश्चित ही मोटापे को दूर भगा कर अपने को फिट और आकर्षक बना सकता है ।

* रात को सोने से पहले एक चाय का चम्मच त्रिफला का चूर्ण हल्के गर्म पानी में भिगोकर रख दें और सुबह इस पानी को छानकर इसमें शहद मिलाकर कुछ दिनों तक इसका सेवन करें। इससे मोटापा जल्दी दूर होता है। मधुमेह के शिकार जातक त्रिफला के जल का बिना शहद के ही सेवन करें ।

* वजन घटाने में अनन्नास बहुत सहायक होता है । नित्य अनन्नास खाने से मोटापा कम होता है । अनन्नास में क्लोरीन की पर्याप्त मात्रा होती है जिसकी वजह से यह शरीर के भीतरी विषैले तत्वों को बाहर निकलता है, इसके सेवन से शरीर की सूजन , चर्बी को नष्ट होती है।

* मिश्री, मोटी सौंफ और सुखा धनिया इन तीनो को बराबर मात्रा में पीसकर एक चम्मच सुबह और एक चम्मच शाम को गुनगुने पानी के साथ लेने से शरीर से चर्बी कम होकर मोटापा दूर होता है।

* अगर आप अपना वजन कम करना चाहते है तो नित्य छाछ का सेवन करें । छाछ में भुना जीरा, काला नमक और अजवायन मिलाकर पीने से मोटापा शीघ्र ही कम हो जाता है।

* लगभग आधा ग्राम पिप्पली के चूर्ण को प्रतिदिन सुबह-शाम शहद के साथ 1 महीने तक सेवन करने से शरीर से चर्बी कम हो जाती है , बाहर निकला हुआ पेट अंदर हो जाता है ।

* 150 ग्राम पिप्पली और 30 ग्राम सेंधानमक को अच्छी तरह पीसकर कूटकर मिलाकर रख लें। इस मिश्रण का सुबह खाली पेट छाछ के साथ सेवन करें। इससे गैस की समस्या दूर होती है और पेट की चर्बी भी तेजी से कम होती है।

* नित्य प्रात: करेले के रस में 1 नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से शरीर की चर्बी कम होती है।

* मिश्री, मोटी सौंफ और सुखा धनिया इन तीनो को बराबर मात्रा में पीसकर एक चम्मच सुबह और एक चम्मच शाम को गुनगुने पानी के साथ लेने से शरीर से चर्बी कम होकर मोटापा दूर होता है।

 वजन कम करने में ग्रीन टी को बड़ा सहायक माना गया है । ग्रीन टी में एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है, जो मोटापा घटाने के साथ-साथ चेहरे की झुर्रियों को भी समाप्त करता है। लेकिन ग्रीन टी को बिना चीनी के पीने से शीघ्र ही लाभ प्राप्त होता है। एप्पल साइडर वेनिगर को जूस या पानी किसी के भी साथ मिलाकर पीने से मोटापा और कोलेस्ट्रॉल दोनों में शीघ्र ही कमी आती है।* एक चम्मच पुदीना रस को 2 चम्मच शहद में मिलाकर नित्य लेने से भी मोटापा कम होता है।


* नींबू, अंगूर, बेर और संतरे आदि का नित्य सेवन करें इनमे विटामिन सी पाएं जाते हैं यह फैट को जल्‍द से बर्न करके शरीर को शेप में लाने में मदद करते हैं।

* बादाम में रेशा होता है जो शरीर से वसा को जला कर उसे स्‍वस्‍थ्‍य और एक्‍टिव बनाता है। अगर आप नित्य बादाम का सेवन करते है तो आपका पेट नहीं निकलेगा । शाम को नाश्‍ते के तौर पर आपको 15 -20 बादाम खाने चाहिए।

* अगर आप अपना वजन कम करना चाहते है तो 10 दिन सुबह शाम खाली पेट एक ताजे पान के पत्ते में 5 साबुत काली मिर्च रखकर खांए फिर 1 घंटे तक कुछ भी ना खाएं , 10 दिन के बाद इसका केवल सुबह ही सेवन करें। इसका लगभग 3 माह तक सेवन करें, इससे आपके पूरे शरीर की फालतू चर्बी निकलने लगेगी । इस बात का ध्यान रखे कि पान के पत्ते सूखे या काले ना हो ।

* वजन कम करने का एक बहुत ही बेहतरीन तरीका मिर्च खाना माना जाता है। मिर्च में पाए जाने वाले तत्व कैप्साइसिन से भूख कम होती है लेकिन ऊर्जा की खपत बढ़ जाती है, जिससे वजन कंट्रोल में रहता है।हरी या काली मिर्च दोनों ही फायदेमंद होती है ।

 अगर आप मोटापे से मुक्ति चाहते हैं तो अपनी अनामिका उंगली (रिंग फिंगर) में रांगे से बनी अंगूठी पहनिए । इसे किसी भी रविवार के दिन थोड़ा सा काला धागा अपनी अनामिका उंगली पर लपेट कर इसके बाद रांगे की धातु से बनी अंगूठी को उस धागे के ऊपर इस प्रकार पहन लें कि वह काला धागा दिखाई न दें। रांगे की अंगूठी सोना-चांदी आदि धातु का व्यापार करने वाली दुकान पर आसानी से उपलब्ध हो सकती है। मोटापा कम करने, सिल्म दिखने के लिए एक बर्तन में एक लीटर / 4 गिलास हल्का गर्म पानी लेकर उसमें एक बड़े नींबू को काटकर निचोड़ें। फिर उसमें 50 ग्राम हरे धनिया को साफ करके, पीसकर अच्छी तरह से मिक्स करें। ( इसमें स्वादनुसार काला नमक या सेंधा नमक भी डाल सकते है ) अब इस हेल्दी जूस को सुबह खाली पेट लगातार 15 दिन तक लें। इसके बाद 1 घंटे तक कुछ भी ना लें ।
इससे शरीर की सारी अशुद्दियाँ दूर होती है, पाचन शक्ति और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, खून भी साफ होता है, रक्तचाप नियंत्रित होता है । इस जूस को लगातार खाली पेट 15 दिन तक लेने से आप अपना वजन 5 किलो तक कम कर सकते है। ( ध्यान दे धनिया ताजा हरा हो कई दिन पुराना सुखा, मुरझाया हुआ ना हो )
* हथेली में अंगूठे के नीचे के हिस्से को दबाने से मोटापा कम होता है ।

* 1 गिलास मूली के रस में थोड़ा सा काला या सेंधा नमक और आधा चम्मच नीबूं का रस डालकर नित्य सेवन करने से एक माह में ही शरीर से चर्बी निकलने लगती है शरीर सुडौल होने लगता है ।

* खाने के तुरंत बाद एक कप गर्म पानी चाय के कप में लेकर चाय की तरह ही चुस्कियाँ लेकर पिया करें इससे मोटापा कम होता है और शरीर पर चर्बी भी नहीं चढ़ती है ।

* नित्य खाने के बाद काली हरड़ को चूसने की आदत डालें इससे पाचन सही रहता है, गैस नहीं बनती है और शरीर से चर्बी भी कम होती है ।

* नित्य खाने से 10 मिनट पहले ताजी अदरक को कूट / महीन महीन काट कर उसमें लाल मिर्च मिलाकर इसका सेवन करें। इन दोनों मसालो से फेफड़े साफ रहते है और मोटापा भी शीघ्र दूर होता है।

* पेट और कमर से अधिक चर्बी हटाने के लिए आंवले व हल्दी को बराबर मात्रा में पीसकर उसका चूर्ण बना लें। फिर इस चूर्ण को नित्य सुबह शाम एक चम्मच छाछ के साथ लेंं, ( छाछ में हींग और जीरा का तड़का अवश्य लगा लें ) । इससे 45 दिन में ही पेट अंदर और कमर पतली हो जाएगी।

* 2 चम्मच करेले का रस और 1 नींबू का रस मिलाकर सुबह सेवन करने से शरीर की चर्बी कम होती है और मोटापा भी तेजी से कम होता है।

Health Benefit- जीरे और गुड़ का पानी,

पीयें जीरे और गुड़ का पानी, दूर होंगी शरीर की सारी बीमारियां


1.पेट फूलने से आराम दिलाता है
जीरे और गुड़ का मिश्रण एसिड के प्रभाव को बेअसर कर देता है जिसके अकारण पेट में गैस बनना, पेट फूलना और एसिडिटी कम होती है।

2. शरीर के तापमान को कम करता है
यह प्राकृतिक पेय शरीर के तापमान को कम करता है और शरीर के तापमान को नियमित करता है जिससे बुखार, सिरदर्द और जलन आदि से राहत मिलती है।

3. शरीर के दर्द को कम करता है
जीरे और गुड़ के मिश्रण में प्रदाहनाशी गुण होते हैं अत: यह प्रभावित भाग में रक्त प्रवाह को बढाकर शरीर के दर्द को कुछ हद तक कम करता है।

4. मासिक धर्म को नियमित करता है
यह मिश्रण महिलाओं के शरीर में हार्मोंस के असंतुलन को नियमित करता है और इस प्रकार मासिक धर्म की अनियमितता को दूर करता है। यह मासिक धर्म के समय होने वाले दर्द से भी राहत दिलाता है।

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5. यह एक प्राकृतिक डिटॉक्स है
जीरे और गुड़ का यह मिश्रण प्राकृतिक बॉडी डिटॉक्स (विषैले पदार्थों को बाहर निकालना) की तरह कार्य करता है जो आपके संपूर्ण शरीर को स्वच्छ करता है तथा शरीर से विषैले पदार्थों को प्रभावी रूप से बाहर निकालता है तथा इस प्रकार आपके प्रतिरक्षा तंत्र को मज़बूत बनाता है।

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6. कब्ज़ को रोकता है
आयुर्वेद में भी यह बताया गया है कि यह मिश्रण कब्ज़ से आराम दिलाने तथा उसे रोकने में सहायक होता है क्योंकि यह मल त्याग की प्रक्रिया को नियमित करता है।

7. एनीमिया से बचाव
जीरा तथा गुड़ दोनों में पोषक तत्व तथा खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं जो लाल रक्त कोशिकाओं को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक होते हैं। इस प्रकार यह ड्रिंक एनीमिया से बचाव करता है।

सौ वर्ष जीने का आयुर्वेदिक मंत्र

सौ वर्ष जीने की कला:

(1) उषःपान से लाभ व आयु:-
उषःपान के अनेक लाभ आयुर्वेद के ग्रन्थों में लिखे हैं। धन्वन्तरि संहिता में लिखा है-

सवितुः समुदयकाले प्रसृतिः सलिलस्य पिबेदष्टौ ।
रोगजरापरिमुक्तो जीवेद्वत्सरशतं साग्रम् ।।

अर्थ:-जो मनुष्य सूर्योदय से पूर्व आठ अञ्जली जल पीता है वह रोग और बुढ़ापे से मुक्त होकर सदैव स्वस्थ और युवा रहता है।

भावप्रकाश में लिखा है-

बवासीर,सूजन,संग्रहणी,ज्वर,पेट के अन्य रोग,बुढ़ापा,कुष्ठ,मेदरोग अर्थात् बहुत मोटा होना,पेशाब का रुकना,रक्तपित्त,आँख,कान,नासिका,सिर,कमर,गले इत्यादि के सब शूल(पीड़ा) तथा वात,पित्त,कफ और व्रण(फोड़े) इत्यादि होने वाले अन्य सभी रोग उषःपान से दूर होते हैं।

इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर लिखा है-

नासिका द्वारा प्रतिदिन शुद्ध जल को तीन घूँट वा अञ्जलि प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में पीना चाहिये क्योंकि इससे विकलांग,झुर्रियाँ पड़ना,बुढ़ापा,बालों का सफेद होना,पीनस आदि नासिका रोग,जुकाम,स्वर का बिगड़ना,विरसता,कास व खाँसी,सूजनादि रोग नष्ट हो जाते हैं और बुढ़ापा दूर होकर पुनः युवावस्था प्राप्त होती है।चक्षु रोग दूर होते हैं।

अतः प्रत्येक स्त्री व पुरुष को मुख वा नासिका द्वारा उषःपान का अमृत-पान करके अमूल्य लाभ उठाना चाहिए।

प्रातःकाल उठकर पाव या आधापाव के लगभग जल का नासिका द्वारा पान करना,शरीर स्वास्थय के लिए अत्यन्त लाभकारी है।इसे ‘उषःपान’ कहते हैं।उषःपान की महिमा मुक्तकण्ठ से गायी है।
आयुर्वेद में लिखा है-

जो मनुष्य प्रातःकाल घना अंधेरा दूर होने पर उठकर नासिका द्वारा जलपान करता है।वह पूर्ण बुद्धिमान तथा नेत्र-ज्योति में गरुड़ के समान हो जाता है।उसके बाल जल्दी सफेद नहीं होते,तथा सारे रोगों से सदा मुक्त रहता है।

इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर लिखा है-
सर्व रोग विनाशाय निशांते तु पिबेज्जलम्।

अर्थात्-सब रोगों को नष्ट करने के लिए रात्रि के अन्त में अर्थात् प्रातःकाल जल पिये।

(2) स्नान द्वारा आयु:-
प्रतिदिन ताजे जल से स्नान करना चाहिए।
योगी याज्ञवल्क्य जी कहते हैं-

-हे सज्जनों ! सदैव स्नान करने वाले मनुष्य को रुप,तेज,बल,पवित्रता,आयुष्य,आरोग्यता,अलोलुपता,बुरे स्वप्नों का न आना,यश और मेधादि गुण प्राप्त होते हैं।

अतः प्रतिदिन ताजे जल से स्नान करना चाहिए।

नोट-बिमार व्यक्ति व जो स्त्री मासिक धर्म से हो-इनको स्नान नहीं करना चाहिए।

(3) पथ्य (परहेज) द्वारा आयु:-
आयुर्वेद में कहा है-

यदि मनुष्य पथ्य (परहेज) से रहे तो दवा की आवश्यकता ही न होगी और यदि पथ्य का पालन न करे तो दवाएं उसका क्या बना सकेंगी?
दवाएं व्यर्थ जाएँगी और उसका रोग छूटेगा नहीं।

(4) रात्रि शयन द्वारा आयु:-
रात्रि में सदा बाईं करवट से सोना चाहिए।इससे सायंकाल का किया हुआ भोजन भी शीघ्र पच जाता है।आयुर्वेद में कहा है-

-बाईं करवट से सोने वाला,दिन में दो बार भोजन करने वाला,सारे दिन में कम से कम छः बार मूत्र त्याग करने वाला,व्यायामशील और ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला व्यक्ति सौ वर्ष तक जीता है।

(5) रात्रि में दही कभी न खाएं।इससे शरीर की शोभा व कान्ति नष्ट होती है व आयु घटती है।

(6) गीले पैर भोजन करें परन्तु गीले पैर कभी सोये नहीं।

कमजाेर शरीर काे फिर से मजबूत बनाने वाले कुछ पुराने नुस्खे ।

माता-पिता के लिए बच्चों की सेहत में कमजोरी चिंता का विषय होती है। इसलिए अक्सर बच्चों की कमजोरी से परेशान लोगों को डॉक्टर के क्लिनिक के चक्कर लगाते देखा जा सकता है। इसका कारण ये है कि हम में से अधिकतर पारंपरिक अनमोल खजाने को टटोलने के बजाए बच्चों को कृत्रिम दवाओं के सहारे बलवान, ऊर्जावान और स्मरण शक्ति में तेज बनाने की अपेक्षा रखते हैं। दरअसल, हम ये भूल जाते हैं कि रासायनों के घातक प्रभाव को देर-सवेर बच्चा ही भोगता है। चलिए आज जिक्र करते हैं कुछ पारंपरिक हर्बल नुस्खों का जिनका उपयोग कर आप अपने बच्चों को सेहतमंद बना सकते हैं।

1. अपने बच्चों को भुने हुए चने को अच्छी तरह से चबाकर खाने की सलाह दें। ऊपर से 1-2 चम्मच शहद पीने के लिए कहें, यह शरीर को बहुत ही स्फूर्तिवान और शक्तिशाली बनाता है।
2. भिंडी के बीजों को एकत्र कर सुखाएं और बच्चों को इसका चूर्ण खिलाएं। माना जाता है कि ये बीज प्रोटीनयुक्त होते है और उत्तम स्वास्थ्य के लिए बेहतर हैं। दरअसल, ये बेहद गुणकारी और शक्तिवर्धक होते हैं।
3. डांग- गुजरात के आदिवासी मानते है कि बच्चों को रोजाना सुबह और शाम 4-4 चम्मच अंगूर के रस का भोजन के बाद सेवन कराया जाए तो बुद्धि और स्मरण शक्ति का विकास होता है। साथ ही, बच्चों को चुस्त दुरूस्त रखने में भी मदद करता है।
4. पातालकोट में आदिवासी बच्चों के शारीरिक विकास के लिए चौलाई या पालक की भाजी का सेवन करवाते हैं, साथ ही इसकी पत्तियों के रस का सेवन भी करवाते हैं। इन आदिवासियों की मानी जाए तो ये पौधे बहुत गुणकारी होने के साथ-साथ शरीर को शक्ति भी देते हैं।
5. प्याज और गुड़ का सेवन करने की सलाह गुजरात के डांगी आदिवासी देते है। इन आदिवासियों की मानी जाए तो बच्चों को खाने के साथ लगभग हर दिन प्याज और गुड़ दिया जाना चाहिए ताकि वे बलवान बनें।
6. सिंघाडा बच्चों के शरीर को शक्ति प्रदान करता है और खून बढ़ाता है। सिंघाड़े में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाईड्रेट, फास्फोरस, लोहा, खनिज तत्व, विटामिन, स्टार्च और मैंग्नीज जैसे महत्वपूर्ण तत्व पाए जाते हैं। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार कच्चे हरे सिंघाडा खाने से बच्चों के शरीर में तेजी से ऊर्जा मिलती है और स्मरण शक्ति में भी इजाफा होता है।
7. कहा जाता है कि फराशबीन बच्चों की दिमागी क्षमता व शारीरिक शक्ति को बढ़ाती है। लंबी बीमारी के बाद शरीर कमजोर हो जाने पर फलियों का आधा से एक गिलास रस नियमित रूप से सात दिनों तक पीने पर शरीर में शक्ति का पुन: संचार होने लगता है।

आइए जानते हैं ईसबगोल के फायदों के बारे में.


1. यदि आप बार बार लगे दस्त से परेशान हैं तो फ़िक्र मत कीजिए. बस खाने के बाद दही में दो चम्मच ईसबगोल मिलाइए और गटक जाइए. जल्द आराम मिलेगा.

2. इसके विपरीत यदि आपको कब्ज की समस्या हैं तो भी ईसबगोल ही आपको राहत दिलाएगी. रात को सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध में दो चम्मच ईसबगोल मिलकर पी ले. सुबह तक कब्ज से आजादी मिल जायेगी.

3. एसिडिटी की समस्या होने पर खाने के पश्चात आधे ग्लास दूध में ईसबगोल मिलाए और एसिडिटी से आजादी पाए.यह स्टोमक एसिड के उत्पादन को बड़ा कर खाना जल्द से जल्द हजम करवाता हैं.

4. ईसबगोल में फाइबर होता हैं. जो मल को नरम करता हैं. जिस से इसे त्यागने में आसानी होती हैं. इसलिए इसका उपयोग पाइल्स में भी किया जाता हैं. इसके इस्तेमाल केलिए हर रात गरम पानी के ग्लास में ईसबगोल की दो चम्मच डाल कर इसका सेवन करे.

5. ईसबगोल पेट ही नहीं दिल का भी ख्याल रखता हैं. इसमें फाइबर होने की वजह से यह कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करता हैं. जिस से दिल हेल्थी और फिट बना रहता हैं. इसे आप खाने के बाद या सुबह खाली पेट पानी के साथ ले सकते हैं.

6. ईसबगोल को रोजाना दूध के साथ लेने पर यह डायबिटीज का खतरा भी कम हो जाता हैं. ईसबगोल में मौजूद जेल जैसीचीज को निगलने से वह ग्लूकोज़ को तोड़ता है और सोखने की प्रक्रिया को स्लो करता है.

मखाना खाने के जबरदस्त फायदे

मखाना खाने के जबरदस्त फायदे, रोज बस एक मुठ्ठी खाएं
● मखाना पोषक तत्वों से भरपूर एक जलीय उत्पाद है। मखाना स्वास्थ्य के लिये भी काफी फायदेमंद है। मखाने के बीज किडनी और हृदय के लिये लाभप्रद हैं।
मखाने में 9.7 प्रतिशत आसानी से पचनेवाला प्रोटीन, 76 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेट , 12.8 प्रतिशत नमी, 0.1 प्रतिशत फैट, 0.5 प्रतिशत मिनरल लवण, 0.9 प्रतिशत
फॉस्फोरस एवं 1.4 मिलीग्राम आयरन पदार्थ मौजूद होता है। इसमें औषधीय गुण भी होते है। साथ ही मखाने में
कैल्शियम, अम्ल और विटामिन बी भी पाया जाता है।
यह शीघ्रपतन से बचाता है, वीर्य की गुणवत्ता और मात्रा को बढ़ाने में मदद करता है जिससे कामेच्छा बढ़ जाती है। इसके अलावा यह महिलाओं में बांझपन को भी दूर करने में मदद करता है।
1) डायबिटीज रोगियों के लिए फायदेमंद
डायबिटीज चयापचय विकार है, जो उच्च रक्त शर्करा के स्तर के साथ होता है। इससे इंसुलिन हार्मोंन का स्राव करने वाले अग्न्याशय के कार्य में बाधा उत्पन्न होती है। लेकिन मखाने मीठा और खट्टा बीज होता है। और इसके बीज में स्टार्च और प्रोटीन होने के कारण यह
डायबिटीज के लिए बहुत अच्छा होता है।
2) बढ़ती उम्र को रोकता है: एंटी-एजिंग गुण
मखाने में बढ़ती उम्र के प्रभाव को रोकने की क्षमता होती है। मखाना एंटी-एजिंग के साथ एंटी-आक्सीडेट से भी भरपूर होता हैं जो उम्र को रोकने में सहायता करता है। जिस वजह से आप लंबे समय तक जवां बने रहते हो।
झुर्रियां और बालों का सफेद होना भी मखाने से कम हो जाते हैं।
3) किडनी को मजबूत बनाये
मखाने का सेवल किडनी और दिल की सेहत के लिए फायदेमंद है। फूल मखाने में मीठा बहुत कम होने के कारण यह स्प्लीन को डिटॉक्सीफाइ करने, किडनी को मजबूत बनाने और ब्लड का पोषण करने में मदद करता है। साथ ही मखानों का नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और हमारा शरीर सेहतमंद रहता है।
4) दिल की बीमारी में मखाना
मखाने में एस्ट्रीजन गुण होते हैं जो आपको दिल के रोगों से बचाता है। मखाना दिल की सेहत के लिए किसी औषधि से कम नहीं है।
5) दर्द से छुटकारा दिलाय
मखाना कैल्शियम से भरपूर होता है इसलिए जोड़ों के दर्द, विशेषकर अर्थराइटिस के मरीजों के लिए इसका सेवन काफी फायदेमंद होता है। साथ ही इसके सेवन से शरीर के किसी भी अंग में हो रहे दर्द जैसे से कमर दर्द और घुटने में हो रहे दर्द से आसानी से राहत मिलती है।
6) पाचन में सुधार करे
मखाना एक एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होने के कारण, सभी आयु वर्ग के लोगों द्वारा आसानी से पच जाता है। बच्चों से लेकर बूढे लोग भी इसे आसानी से पचा लेते हैं। इसका पाचन आसान है इसलिए इसे सुपाच्य कह सकते हैं। इसके अलावा फूल मखाने में एस्ट्रीजन गुण भी होते हैं जिससे यह दस्त से राहत देता है और भूख में सुधार करने के लिए मदद करता है। मखानों को देसी घी में भूनकर खाने से दस्त जैसे रोग से छुटकारा पाया जा सकता है।
》 अन्य लाभ
मखाने के सेवन से तनाव कम होता है और नींद अच्छी आती है। रात में सोते समय दूध के साथ मखाने का सेवन करने से नींद न आने की समस्या दूर हो जाती है। इसके अलावा मखानों का नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और हमारा शरीर सेहतमंद रहता है। मखाने में मौजूद प्रोटीन के कारण यह मसल्स बनाने और फिट रखने में मदद करता है।

Natural Therapy For Headaches

 In about 5 minutes, your headache will go...

The nose has a left and a right side. We use both to inhale and exhale. Actually they are different. You'll be able to feel the difference.

The right side represents the sun. The left side represents the moon.

During a headache, try to close your right nose and use your left nose to breathe.
In about 5 mins, your headache will go.

If you feel tired, just reverse, close your left nose and breathe through your right nose. After a while, you will feel your mind is refreshed.

Right side belongs to 'hot', so it gets heated up easily. Left side belongs to 'cold'.

Most females breathe with their left noses, so they get "cooled off" faster.  Most of the guys breathe with their right noses, they get worked up.

Do you notice, the moment you awake, which side breathes better?
Left or right ?
If left is better, you will feel tired. So, close your left nose and use your right nose for breathing. You will feel refreshed quickly.

Do you suffer from continual headaches?
Try out this breathing therapy.

Close your right nose and breathe through your left nose. Your headaches will be gone. Continued the exercise for one month.

Why not give it a try.... a natural therapy without medication.

CURE FOR ACIDITY

Acidity, it is said, is worse than Cancer. It is one of the most common disease people encounter in their daily life. The home remedy for Acidity is Raw Grains of Rice.

The Process:
1. Take 8 - 10 grains of raw uncooked rice

2. Swallow it with water before having your breakfast or eating anything in the morning

3. Do this for 21 days to see effective results and continuously for 3 months to eliminate acidity from the body

The Cure:
Reduces acid levels in the body and makes you feel better by the day.

CURE FOR CHOLESTEROL
Cholesterol problem accompanies with Hypertension and Heart Problems. This is also one of the common problems in people who have High Blood Pressure and Diabetes. The home remedy for Cholesterol problem is RAW SUPARI.

The Process:
1. Take Raw Supari (Betel Nut that is not flavoured) and slice them or make pieces of the same.
2.  Chew it for about 20 - 40 minutes after every meal.
3. Spit it out.

The Cure:
When you chew the supari, the saliva takes in the juice that is generated and this acts like a Blood Thinner. Once your blood becomes free flowing, it brings down the pressure in the blood flow, thereby reducing Blood Pressure too. 

CURE FOR BLOOD PRESSURE:
One of the simple home remedy cure for Blood Pressure is Methi Seeds or Fenugreek Seeds.

The Process:
1. Take a pinch of Raw Fenugreek Seeds, about 8 - 10 seeds.
2. Swallow it with water before taking your breakfast, every morning.

The Cure:
The seeds of Fenugreek are considered good to reduce the blood pressure.

CURE FOR DIABETES
There are 2 home remedies for Diabetes. One is Ladies Finger and the other is Black Tea.

BLACK TEA: Due to high medication, the organ that is worst affeccted is the Kidney. It has been observed that Black Tea (tea without milk, sugar or lemon) is good for the Kidney. Hence a cup of black tea every morning is highly advisable.

The Process:
1. Boil water along with the tea leaves (any tea leaves will do).
2. Drink the concoction without addingmilk, sugar or lemon.

The Cure:
Black Tea will help in enhancing the function of the kidney, thereby not affecting it more.

LADIES FINGER or OKRA:
Ladies finger is considered to be a good home medicine for diabetes.

The Process:
1. Slit the ladies finger into 2 halves vertically and soak it in water overnight.
2. The next morning, remove the ladies fingers and drink the water, before eating your breakfast.

The Cure:
After the ladies fingers are soaked overnight in the water, you can observe that the water becomes sticky in the morning. This sticky water is considered to be good for people who suffer from Diabetes.

Pass it on...
Many people may benefit from this...

Thursday, 21 July 2016

कान का मवाद न करें अनदेखा


अंतःकर्ण की रचनाओं में विकार आने पर प्रमुखतः चक्कर आना, चलने में परेशानी एवं उल्‍टी होना या उल्‍टी होने की इच्छा होना तथा विभिन्न प्रकार की आवाजें कान में आना जैसे लक्षण सामने आते हैं। कान के प्रत्येक अंग की सामूहिक ठीक क्रिया के द्वारा मनुष्य ठीक प्रकार से सुनता है। इन अंगों में से कान के पर्दे से लेकर मध्य कर्ण एवं अंतःकर्ण के अंगों में विकार होने पर विभिन्न प्रकार की श्रवणहीनता की स्थिति उत्पन्न होती है।

सामान्यतः कान से मवाद आने को मरीज गंभीरता से नहीं लेता, इसे अत्यंत गंभीरता से लेकर विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श एवं चिकित्सा अवश्य लेना चाहिए अन्यथा यह कभी-कभी गंभीर व्याधियों जैसे मेनिनजाइटिस एवं मस्तिष्क के एक विशेष प्रकार के कैंसर को उत्पन्न कर सकता है। कान में मवाद किसी भी उम्र में आ सकता है, किंतु प्रायः यह एक वर्ष से छोटे बच्चों या ऐसे बच्चों में ज्यादा होता है जो माँ की गोद में ही रहते हैं। तात्पर्य स्पष्ट है जो बैठ नहीं सकते या करवट नहीं ले सकते। कान से मवाद आने का स्थान मध्य कर्ण का संक्रमण है। मध्य कर्ण में सूजन होकर, पककर पर्दा फटकर मवाद आने लगता है। मध्य कान में संक्रमण पहुँचने के तीन रास्ते हैं, जिसमें 80-90 प्रश कारण गले से कान जोड़ने वाली नली है। इसके द्वारा नाक एवं गले की सामान्य सर्दी-जुकाम, टांसिलाइटिस, खाँसी आदि कारणों से मध्य कर्ण में संक्रमण पहुँचता है।

बच्चों की गले से कान को जोड़ने वाली नली चूँकि छोटी एवं चौड़ी होती है, अतः दूध पिलाने वाली माताओं को हमेशा बच्चे को गोद में लेकर
अंतःकर्ण की रचनाओं में विकार आने पर प्रमुखतः चक्कर आना, चलने में परेशानी एवं उल्‍टी होना या उल्‍टी होने की इच्छा होना तथा विभिन्न प्रकार की आवाजें कान में आना जैसे लक्षण सामने आते हैं
सिर के नीचे हाथ लगाकर, सिर को थोड़ा ऊपर उठाकर ही बच्चे को दूध पिलाना चाहिए। ऐसी माताएँ जो लेटे-लेटे बच्चो को दूध पिलाती हैं उन बच्चों में भी कान बहने की समस्या उत्पन्न होने की ज्यादा आशंका रहती है।

आयुर्वेदीय दृष्टि से सर्दी-जुकाम आदि हों तो निम्न उपाय तत्काल प्रारंभ कर देना चाहिए। सरसों के तेल को गर्म कर पेट, पीठ, छाती, चेहरे, सिर पर सुबह-शाम मालिश कर दो-दो बूँद सरसों तेल नाक के दोनों छिद्रों में डालना चाहिए।

एक कप पानी उबालकर उसमें चुटकीभर नमक डालकर छानकर रखें तथा यह नमक मिला पानी ड्रॉपर से नाक में 2-2 बूँद 3-4 बार डालना चाहिए, जिससे नाक तत्काल खुल जाती है। संजीवनी वटी (125 मिग्रा), छः माह से छोटे बच्चों को चौथाई गोली सुबह-शाम तथा छः माह से एक वर्ष के बच्चों को आधी-आधी गोली सुबह-शाम शहद एवं अदरक के रस के साथ मिलाकर देने से सर्दी ठीक होती है। सर्दी-जुकाम ही बच्चों में कान बहने का एक प्रमुख कारण है, अतः उसकी चिकित्सा परम आवश्यक है।

यदि कान बहने ही लगें तो-साफ रुई लगी काड़ी से कान को दिन में तीन-चार बार साफ कर गुलाब जल या समुद्र फेन चूर्ण कान में डालते हुए सर्दी-जुकाम आदि हेतु वर्णित चिकित्सा भी अवश्य करना चाहिए। प्रायः 10-15 दिनों में कान बहना बंद होकर कान का पर्दा भी फिर सेजुड़ जाता है, किंतु बारम्बार जुकाम या अन्य कारणों से कान बहे तो कान के पर्दे का यदि अधिकतर भाग नष्ट हो जाए तो बच्चे की सुनाई देने की क्षमता प्रभावित होकर बहरापन भी उत्पन्न होता है, अतः छोटे बच्चे जो बैठ नहीं सकते, उनकी सर्दी-जुकाम आदि की चिकित्सा तुरंत कराते हुए सावधानी रखना चाहिए।

दाद और खुजली की घरेलू चिकित्सा


दाद और खुजली, यह त्वचा संबंधी रोग है जिसकी वजह से काफी परेशानी होती है। आइये आपको इन रोगों के लक्षणों और इनके कारगर घरेलू उपायों के बारे में बताते हैं जो इन बीमारीयों को दूर करेगा।
दाद के लक्षण
दाद यह त्वचा का रोग है जो आपकी त्वचा पर फफूंद के रूप में दिखता है और इसका आकार गोल व रंग लाल होता है जो धीरे-धीरे बढ़ने भी लगता है। दाद त्वचा, बालों और नाखूनों को प्रभावित करता है।
दाद के कारण
1. यह संक्रमित व्यक्ति को छूने से या उसके तौलिए का इस्तेमाल करने से भी हो सकता हैं।
2. कुत्ता, बिल्ली या अन्य पालतू जानवरों की संक्रमित त्वचा के संपर्क में आने से भी दाद फैल सकता है।
दाद का इलाज
तुलसी के पत्तों को पीसकर उसका पेस्ट बनाएं और इसे दाद वाले स्थान पर मलें।
दाद होने पर आप उसकी ठंठे पानी और गरम पानी दोनों की बारी-बारी से सिंकाई करें।
अपना बिस्तर हमेशा साफ रखें।
. साफ सुथरे कपड़े पहनें और भोजन सादा खायें।
. आप नीम के पत्तों को पीसकर उसका लेप तैयार करें और इस लेप को दाद वाले स्थान पर मलें।
नहाने के पानी में नीम की पत्तीयां डालकर स्नान करें और स्नान रोज करें।
कपड़े साफ और सूखे पहने क्योंकि गीला कपड़ा पहने से दाद का आकार बढ़ता है।
खुजली-
खुजली यह भी त्वचा संबंधी रोग है और त्वचा को ज्यादा रगड़ने से त्वचा पर जलन भी होती है। आइये जानते है इसके कारण और इलाज-
खुजली होने की वजह-
दवाई के गलत असर होने से।
गलत तरह से यौन संबंध बनाने से।
संक्रमित जानवर के संपर्क में आने से।
सिर पर जुंओं की वजह से।
पसीना आने की वजह से।
. तनाव की वजह से।
खुजली दूर करने के उपचार
टमाटर के मिश्रण में नारियल का पानी मिला कर खुजली वाली जगह पर लगाने से खुजली दूर होती है।
खुजली यदि पूरे शरीर में हो रही है तो आप दूध की मलाई को खुजली वाले स्थानों पर लगायें।
नीम के पत्तों का लेप लगाने से खुजली से निजात मिलता है।
खुजली वाली जगह पर नारियल का तेल लगाने से आराम मिलता है।
चर्म रोग का तेल बनाने की विधि : नीम की छाल, चिरायता, हल्दी, लाल चन्दन, हरड़, बहेड़ा, आँवला और अड़ूसे के पत्ते, सब समान मात्रा में। तिल्ली का तेल आवश्यक मात्रा में। सब आठों द्रव्यों को 5-6 घंटे तक पानी में भिगोकर निकाल लें और पीसकर कल्क बना लें।
पीठी से चार गुनी मात्रा में तिल का तेल और तेल से चार गुनी मात्रा में पानी लेकर मिलाकर एक बड़े बरतन में डाल दें। इसे मंदी आंच पर इतनी देर तक उबालें कि पानी जल जाए सिर्फ तेल बचे। इस तेल को शीशी में भरकर रख लें।
जहाँ भी खुजली चलती हो, दाद हो वहाँ या पूरे शरीर पर इस तेल की मलिश करें। यह तेल चमत्कारी प्रभाव करता है। लाभ होने तक यह मालिश जारी रखें, मालिश स्नान से पहले या सोते समय करें और चमत्कार देखें।

Saturday, 16 July 2016

कमर की चर्बी घटाने के लिये क्‍या खाएं और क्‍या नहीं?

कमर की चर्बी घटाने के लिये आपको सबसे पहले अपनी जुबान पर लगाम लगाना होगा। हम ये नहीं बोल रहे हैं कि आप खाना ही बंद कर दें, हमारा कहने का मतलब है कि आप जो कुछ भी खा रहे हैं उसमें से वो चीज़ें हट दें जिसमें ढेर सारा फैट और कैलोरी भरी हो।

उदाहरण के तौर पर अगर आप ब्रेड खाते हैं तो वाइट ब्रेड की जगह ब्राउन या वीट ब्रेड खाना शुरु कर दें। वहीं दूसरी ओर तली भुनी चीज़ की जगह पर सादी रोटी सब्‍जी खांए। इससे पेट लंबे समय तक भरा रहता है और शरीर में चर्बी भी नहीं जमती।

बिस्‍कुट की जगह पर घर का बना पराठा बिस्‍कुट में काफी शक्‍कर और मैदा होता है। मगर पराठे में गेहूं का आटा होता है जो कि आयरन और फाइबर से भरा होता है।

फ्रूट जूस की जगह पर दूध आपके शरीर का 99 प्रतिशत कैल्‍शियम हड्डियों और दांतों में रहता है। कैल्‍शियम से हड्डियां मजबूत बनती हैं इसलिये दूध पीना सबसे अच्‍छा ऑपशन है।


फ्राइड फूड की जगह रोटी-सब्‍जी फ्राइड फूड में खाने से पेट तो भर जाता है लेकिन उसमें फैट और कैलोरीज़ होती हैं। रोटी सब्‍जी में काफी सारा पोषण होता है और इसे खाने से पेट भी भर जाता है ।

वड़ा पाव की जगह इडली सांभर वड़ा पाव में काफी सारा मैदा, बटर और तेल होता है। वहीं इडली में ढेर सारी एनर्जी और सांभर में ढेर सारी दाल होती है जो कि प्रोटीन का अच्‍छा सोर्स होता है।

क्रीम वाले सूप की जगह वेजिटेबल सूप सूप पीने वालों को बिना क्रीम डाले मिक्‍स वेज सूप पीना चाहिये। इसमें ताजा टमाटर का प्रयोग करना चाहिये।

वाइट राइस की जगह ब्राउन राइस खाएं 1 कप पके हुए ब्राउन राइस में 4 ग्राम फाइबर की मात्रा होती है। लेकिन 1 कप पके हुए वाइट राइस में केवल 1 ग्राम फाइबर होता है।

वाइट पास्‍ता की जगह वीट पास्‍ता खाएं वीट पास्‍ता में हाई फाइबर और पोषण की मात्रा अधिक होती है। वाइट पास्‍ता में केवल मैदा होता है।

मिल्‍क चॉकलेट की जगह डार्क चॉकलेट डार्क चॉकलेट में मिल्‍क चॉकलेट के मुकाबले कम शक्‍कर होती है। इसके साथ डार्क चॉकलेट का स्‍वाद मुंह में ज्‍यादा देर तक टिका रहता है।

आलू के चिप्‍स की जगह पॉपकार्न खाएं पॉपकार्न में आलू के चिप्‍स के मुकाबले 80% कम वसा होता है और दोगुना फाइबर होता है ।

आइसक्रीम की जगह दही (बिना शक्‍कर) दही खाने से आपको प्रोटीन, विटामिन सी और विटामिन बी 12 मिलता है।

कोल्‍ड्रिंक की जगह लेमन वॉटर 300 एमएल कोल्‍ड्रिंक में 10 चम्‍मच शक्‍कर मिली होती है। वहीं लेमन वॉटर पीने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है, त्‍वचा साफ बनती है और मोटापा घटता है।

मिल्‍क शेक की जगह ताजे फलों की स्‍मूदी (बिना शक्‍कर) मिल्‍क शेक में काफी कैलोरी होती है इसलिये इसकी जगह पर घर की बनी फलों की स्‍मूदी पियें।

फ्रूट जूस की जगह साबुत फल खाएं जूस में फाइबर कम होता है और शक्‍कर अधिक होती है। वहीं फल में ढेर सारा फाइबर, रस और प्राकृतिक शक्‍कर होती है।

दालचीनी वाला दूध पीने के फायदे आपको हैरत में डाल देंगे

दालचीनी को वंडर स्पाइस भी कहते हैं. एक ओर जहां ये खाने का जायका बढ़ाने के काम आता है वहीं सेहत के लिहाज से भी इसके बहुत से फायदे हैं. सेहत और खूबसूरती दोनों ही चीजों के लिए दालचीनी का इस्तेमाल किया जाता है.

दालचीनी में मौजूद कंपाउंड कई औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं. जो सेहत और खूबसूरती दोनों के लिए फायदेमंद होते हैं. यूं तो दालचीनी अपने आप में ही एक अच्छी औषधि है लेकिन इसे दूध के साथ मिलाकर पीना और भी फायदेमंद है. दालचीनी वाला दूध कई बीमारियों में फायदेमंद है और कई बीमारियों से सुरक्षित भी रखता है.

दालचीनी वाला दूध बनाना बहुत ही आसान है. एक कप दूध में एक से दो चम्मच दालचीनी पाउडर डालकर अच्छी तरह मिला लें. वैसे तो इस दूध को पीने का कोई नुकसान नहीं है लेकिन फिर भी एकबार अपने डॉक्टर से सलाह जरूर ले लें.

दालचीनी वाला दूध पीने के फायदे:

1. अच्छे पाचन के लिए

अगर आपकी पाचन क्रिया अच्छी नहीं है तो दालचीनी वाला दूध पीना आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा. इसके साथ ही गैस की प्रॉब्लम में भी ये राहत देने का काम करता है.

2. ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल करने के लिए

कई अध्ययनों में इस बात की पुष्ट‍ि हो चुकी है कि दालचीनी में कई ऐसे कंपाउंड पाए जाते हैं जो ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में मदद करते हैं. दालचीनी वाला दूध खासतौर पर टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद होता है.

3. अच्छी नींद के लिए

अगर आपको अनिद्रा की प्रॉब्लम है या फिर आपको अच्छी नींद नहीं आती है तो दालचीनी वाला दूध पीना आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा. सोने से पहले एक गिलास दालचीनी वाला दूध लें, इससे आपको अच्छी नींद आएगी.

4. खूबसूरत बालों और त्वचा के लिए

दालचीनी वाला दूध पीने से बालों और स्क‍िन से जुड़ी लगभग हर समस्या दूर हो जाती है. इसका एंटी-बैक्टीरियल गुण स्क‍िन और बालों को इंफेक्शन से सुरक्षित रखता है.

5. मजबूत हड्ड‍ियों के लिए

हड्ड‍ियों की मजबूती के लिए लोग सालों से दालचीनी वाले दूध का इस्तेमाल करते आ रहे हैं. विशेषज्ञों की मानें तो इस दूध के नियमित सेवन से गठिया की समस्या नहीं होती है.

नंगे पैर चलने (Barefoot Walking) के स्वास्थ्य लाभ


*नंगे पाव चलने से होने वाले विविध स्वास्थ्य लाभ की जानकारी निचे दी गयी हैं
1. मानसिक लाभ / Mental:
आपको याद है पिछले दिनों आप कब नंगे पाव चले थे या आपने प्रकृति के स्पर्श का अनुभव कब किया था ? शायद अरसा हो गया होगा। थोड़ी देर भी जमीन पर नंगे पाव चलना दिमाग को सुकून देती हैं। घास पर एड़ी, ओस की बून्द और ठंडी रेत पैरों के जरिये सीधे मन को ठंडक देती हैं। इसके जरिये आपका शरीर सीधे प्रकृति के स्पर्श में आता हैं।
2. शारीरिक लाभ/ Physical:
जूतों की अपेक्षा नंगे पैर चलने से पैरों पर कम जोर पड़ता हैं और जॉइंट्स भी स्वस्थ/हेल्थी रहते हैं। इससे आपके स्नायु भी तरोताजा रहते हैं जो की अक्सर जुटे पहनने से नहीं होता हैं। इससे आप खुद को तरोताजा महसूस करते है और आपका दिमाग भी तेजी से काम करता हैं। जमीं के स्पर्श से सीधा दिमाग का बैलेंस सिस्टम जाग उठता हैं। इससे दिमाग को ताजगी मिलती हैं वह ज्यादा बेहतर तरीके से शरीर बैलेंस कर पाता हैं। गिरने से लगने वाली चोटों से बचने के लिए बुजुर्गों के लिए यह खासतौर से महत्वपूर्ण हैं। नंगे पाव चलने से जहाँ पैर के पोरों के छिद्र खुल जाते है और एक्यूप्रेशर सिस्टम भी काम करता हैं।
3. रक्त प्रवाह/Blood Circulation:
आप अपने शरीर को जितना ज्यादा इस्तेमाल करेंगे वह उतना ही अच्छा रहेंगा। जब आप नंगे पांव चलना शुरू करते हो तब आपके पैर फिर से ताजगी महसूस करते है और पैरों में रक्त प्रवाह बेहतरीन तरीके से होता हैं। जितना ज्यादा बेहतर रक्तप्रवाह उतना कम दर्द और कई बीमारियां दूर रहेंगी।
*4. तनाव / Stress
कई तरह के शोध और अध्ययन से यह पता चला है की पैरों की सबसे निचली तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करने से हम ब्लड प्रेशर और तनाव को कम कर सकते हैं। नंगे पाव चलने से सुख की अनुभूति होती हैं।
*5. नींद / Sleep
रोजाना केवल 5 मिनिट ही अगर आप नंगे पाव आप जमींन पर चलते है तो आप अनुभव करेंगे की आपको हमेशा की तुलना में एक बेहतर नींद आ रही हैं। जमीन या घास को स्पर्श करने से हमें पृथ्वी से पॉजिटिव एनर्जी मिलती है जिससे तनाव कम होकर बेहतर नींद आती हैं।
नंगे पैर चलते समय क्या एहतियात बरतने चाहिए ?
नंगे पैर चलना भले ही आसान और उपयोगी हो पर फिर भी नंगे पैर चलते समय हमें कुछ एहतियात बरतने चाहिए :
सुबह घास पर अोस में चलना अधिक फायदेमंद होता हैं।
आप अपने शारीरिक क्षमता के अनुसार 5 मिनिट से लेकर 1 घंटे तक भी चल सकते हैं।
चलने के गति आप अपने स्वास्थ्य के अनुसार रखे।
नंगे पैर चलने के पहले अच्छे से देख ले की वह जगह स्वच्छ और सुरक्षित है कि नहीं।
ऐसी जगह नंगे पैर न चले जहां कचरा, जिव-जंतु, नुकीली चीजे, गन्दगी और शरीर के लिए हानिकारक वस्तु हैं।
अगर आपको डायबिटीज है तो नंगे पैर चलने से पहले अच्छे से एहतियात बरते।
पैर को लगी छोटी से चोट गम्भीर परिणाम कर सकती हैं।
अगर पैर में कोई खुली चोट हैं तो नंगे पैर न चले।
नंगे पैर चलकर आने के बाद अपना पैर अच्छे से जरूर साफ़ करे।
"बाजार में भले ही महंगे स्पोर्ट शूज की भरमार हो, लेकिन नंगे पैर चलने के अपने ही फायदे हैं, अपना ही सुकून हैं।"
*जब भी मौका मिले नंगे पाव चलकर तो देखिये।

बरगद भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है।

बरगद को अक्षय वट भी कहा जाता है, क्योंकि यह पेड कभी नष्ट नहीं होता है। बरगद का वृक्ष घना एवं फैला हुआ होता है। इसकी शाखाओं से जड़े निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एंव स्तंभ बन जाती हैं। बरगद का वानस्पतिक नाम फाइकस बेंघालेंसिस है। बरगद के वृक्ष की शाखाएं और जड़ें एक बड़े हिस्से में एक नए पेड़ के समान लगने लगती हैं। इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस पेड़ को अनश्वंर माना जाता है।

1.बरगद की जड़ों में एंटीऑक्सीडेंट सबसे ज्यादा पाए जाते हैं। इसके इसी गुण के कारण वृद्धावस्था की ओर ले जाने वाले कारकों को दूर भगाया जा सकता है। ताजी जड़ों के सिरों को काटकर पानी में कुचला जाए और रस को चेहरे पर लेपित किया जाए तो चेहरे से झुर्रियां दूर हो जाती हैं।

2.लगभग 10 ग्राम बरगद की छाल, कत्था और 2 ग्राम काली मिर्च को बारीक पीसकर पाउडर बनाया जाए और मंजन किया जाए तो दांतों का हिलना, सड़न, बदबू आदि दूर होकर दांत साफ और सफ़ेद होते हैं। प्रति दिन कम से कम दो बार इस चूर्ण से मंजन करना चाहिए।

3.पेशाब में जलन होने पर बरगद की जड़ों (10 ग्राम) का बारीक चूर्ण, जीरा और इलायची (2-2ग्राम) का बारीक चूर्ण एक साथ गाय के ताजे दूध के साथ मिलाकर लिया जाए तो अति शीघ्र लाभ होता है। यही फार्मूला पेशाब से संबंधित अन्य विकारों में भी लाभकारी होता है।

4.पैरों की फटी पड़ी एड़ियों पर बरगद का दूध लगाया जाए तो कुछ ही दिनों फटी एड़ियां सामान्य हो जाती हैं और तालु नरम पड़ जाते हैं।

5.बरगद की ताजा कोमल पत्तियों को सुखा लिया जाए और पीसकर चूर्ण बनाया जाए। इस चूर्ण की लगभग 2 ग्राम मात्रा प्रति दिन एक बार शहद के साथ लेने से याददाश्त बेहतर होती है।


6.बरगद के ताजे पत्तों को गर्म करके घावों पर लेप किया जाए तो घाव जल्द सूख जाते हैं। कई इलाकों में आदिवासी ज्यादा गहरा घाव होने पर ताजी पत्तियों को गर्म करके थोडा ठंडा होने पर इन पत्तियों को घाव में भर देते हैं।


7.बवासीर , वीर्य का पतलापन , शीघ्रपतन , प्रमेह स्वप्नदोष आदि रोगों में बड़ का दूध अत्यंत लाभकारी है | प्रातः सूर्योदय के पूर्व वायुसेवन के लिए जाते समय २-३ बताशे साथ में ले जाये | बड़ की कलि को तोड़कर एक-एक बताशे में बड़ के दूध की ४-५ बूंद टपकाकर खा जायें | धीरे-धीरे बड़ के दूध की मात्रा बढातें जायें | ८ – १० दिन के बाद मात्रा कम करते-करते चालीस दिन यह प्रयोग करें |

8· बड़ का दूध दिल , दिमाग व जिगर को शक्ति प्रदान करता है एवं मूत्र रुकावट ( मूत्रकृच्छ ) में भी आराम होता है | इसके सेवन से रक्तप्रदर व खुनी बवासीर का रक्तस्राव बंद होता है | पैरों की एडियों में बड़ का दूध लगाने से वे नहीं फटती | चोट , मोच और गठिया रोग में इसकी सुजन पर इस दूध का लेप करने से बहुत आराम होता है |

9· वीर्य विकार व कमजोरी के शिकार रोगियों को धैर्य के साथ लगातार ऊपर बताई विधि के अनुसार इसका सेवन करना चाहिए |

10· बड़ की छाल का काढा बनाकर प्रतिदिन एक कप मात्रा में पीने से मधुमेह ( डायबिटीज ) में फ़ायदा होता है व शरीर में बल बढ़ता है |

11· उसके कोमल पत्तों को छाया में सुखाकर कूट कर पीस लें | आधा लीटर पानी में एक चम्मच चूर्ण डालकर काढा करें | जब चौथाई  पानी शेष बचे तब उतारकर छान लें और पीसी मिश्री मिलाकर कुनकुना करके पियें | यह प्रयोग दिमागी शक्ति बढाता है व नजला-जुकाम ठीक करता है |

नाभि टलने के कु प्रभाव।

नाभि अर्थात हमारे शरीर की धुरी अर्थात केंद्र। यदि ये खिसक जाए या टल जाए तो सारे शरीर की किर्याएँ अपने मार्ग से विचलित हो जाती हैं। आइये जाने कैसे करे नाभि टलने का इलाज।

नाभि टलने को परखिये।

आमतौर पर पुरुषों की नाभि बाईं ओर तथा स्त्रियों की नाभि दाईं ओर टला करती है।

ऊपर की तरफ

यदि नाभि का स्पंदन ऊपर की तरफ चल रहा है याने छाती की तरफ तो यकृत प्लीहा आमाशय अग्नाशय की क्रिया हीनता होने लगती है ! इससे फेफड़ों-ह्रदय पर गलत प्रभाव होता है। मधुमेह, अस्थमा,ब्रोंकाइटिस -थायराइड मोटापा -वायु विकार घबराहट जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं।

नीचे की तरफ

यही नाभि मध्यमा स्तर से खिसककर नीचे अधो अंगों की तरफ चली जाए तो मलाशय-मूत्राशय -गर्भाशय आदि अंगों की क्रिया विकृत हो अतिसार-प्रमेह प्रदर -दुबलापन जैसे कई कष्ट साध्य रोग हो जाते है। फैलोपियन ट्यूब नहीं खुलती और इस कारण स्त्रियाँ गर्भधारण नहीं कर सकतीं। स्त्रियों के उपचार में नाभि को मध्यमा स्तर पर लाया जाये। इससे कई वंध्या स्त्रियाँ भी गर्भधारण योग्य हो जाती है ।

बाईं ओर

बाईं ओर खिसकने से सर्दी-जुकाम, खाँसी,कफजनित रोग जल्दी-जल्दी होते हैं।

दाहिनी ओर

दाहिनी तरफ हटने पर अग्नाशय -यकृत -प्लीहा क्रिया हीनता -पैत्तिक विकार श्लेष्म कला प्रदाह -क्षोभ -जलन छाले एसिडिटी (अम्लपित्त) अपच अफारा हो सकती है।


नाभि टलने पर क्या करे।

नाभि खिसक जाने पर व्यक्ति को हल्का सुपाच्य पथ्य देना चाहिए । नाभि खिसक जाने पर व्यक्ति को मूँगदाल की खिचड़ी के सिवाय कुछ न दें। दिन में एक-दो बार अदरक का 2 से 5 मिलिलीटर रस बराबर शहद मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।

नाभि कैसे स्थान पर लाये।

ज़मीन पर दरी या कम्बल बिछा ले। अभी बच्चो के खेलने वाली प्लास्टिक की गेंद ले लीजिये। अब उल्टा लेट जाए और इस गेंद को नाभि के मध्य रख लीजिये। पांच मिनट तक ऐसे ही लेटे रहे। खिसकी हुई नाभि (धरण) सही होगी। फिर धीरे से करवट ले कर उठ जाए, और ओकडू बैठ जाए और एक आंवला का मुरब्बा खा लीजिये या फिर 2 आटे के बिस्कुट खा लीजिये। फिर धीरे धीरे खड़े हो जाए।कमर के बल लेट जाएं और पादांगुष्ठनासास्पर्शासन कर लें। इसके लिए लेटकर बाएं पैर को घुटने से मोड़कर हाथों से पैर को पकड़ लें व पैर को खींचकर मुंह तक लाएं। सिर उठा लें व पैर का अंगूठा नाक से लगाने का प्रयास करें। जैसे छोटा बच्चा अपना पैर का अंगूठा मुंह में डालता है। कुछ देर इस आसन में रुकें फिर दूसरे पैर से भी यही करें। फिर दोनों पैरों से एक साथ यही अभ्यास कर लें। 3-3 बार करने के बाद नाभि सेट हो जाएगी।सीधा (चित्त) सुलाकर उसकी नाभि के चारों ओर सूखे आँवले का आटा बनाकर उसमें अदरक का रस मिलाकर बाँध दें एवं उसे दो घण्टे चित्त ही सुलाकर रखें। दिन में दो बार यह प्रयोग करने से नाभि अपने स्थान पर आ जाती है हैं।

नाभि सेट करके पाँव के अंगूठों में चांदी की कड़ी भी पहनाई जाती हैं, जिस से भविष्य में नाभि टलने का खतरा कम हो जाता हैं। अक्सर पुराने बुजुर्ग लोग धागा भी बाँध देते हैं।

नाभि के टलने पर और दर्द होने पर 20 ग्राम सोंफ, गुड समभाग के साथ मिलाकर प्रात: खाली पेट खायें। अपने स्थान से हटी हुई नाभि ठीक होगी। और भविष्य में नाभि टलने की समस्या नहीं होगी।

1 कप दूध में आधा चम्मच हल्दी मिलाकर पीने के हैं ये 13 फायदे

● आयुर्वेद में हल्दी को सबसे बेहतरीन नेचुरल एंटीबायोटिक माना गया है। इसलिए यह स्किन, पेट और शरीर के कई रोगों में उपयोग की जाती है। हल्दी के पौधे से मिलने वाली इसकी गांठें ही नहीं, बल्कि इसके पत्ते भी बहुत उपयोगी होते हैं। ये तो हुई बात हल्दी के गुणों की, इसी प्रकार दूध भी प्राकृतिक प्रतिजैविक है। यह शरीर के प्राकृतिक संक्रमण पर रोक लगा देता है। हल्दी व दूध दोनों ही गुणकारी हैं, लेकिन अगर इन्हें एक साथ मिलाकर लिया जाए तो इनके फायदे दोगुना हो जाते हैं। इन्हें एक साथ पीने से कई स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं दूर होती हैं।

1 . हडि्डयों को पहुंचाता है फायदा

रोजाना हल्दी वाला दूध लेने से शरीर को पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम मिलता है। हड्डियां स्वस्थ और मजबूत होती है। यह ऑस्टियोपोरेसिस के मरीजों को राहत पहुंचाता है।

2. गठिया दूर करने में है सहायक
हल्दी वाले दूध को गठिया के निदान और रियूमेटॉइड गठिया के कारण सूजन के उपचार के लिए उपयोग किया जाता है। यह जोड़ो और पेशियों को लचीला बनाकर दर्द को कम करने में भी सहायक होता है।

3. टॉक्सिन्स दूर करता है
आयुर्वेद में हल्दी वाले दूध का इस्तेमाल शोधन क्रिया में किया जाता है। यह खून से टॉक्सिन्स दूर करता है और लिवर को साफ करता है। पेट से जुड़ी समस्याओं में आराम के लिए इसका सेवन फायदेमंद है।

4. कीमोथेरेपी के बुरे प्रभाव को कम करते हैं
एक शोध के अनुसार, हल्दी में मौजूद तत्व कैंसर कोशिकाओं से डीएनए को होने वाले नुकसान को रोकते हैं और कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को कम करते हैं।

5. कान के दर्द में आराम मिलता है
हल्दी वाले दूध के सेवन से कान दर्द जैसी कई समस्याओं में भी आराम मिलता है। इससे शरीर का रक्त संचार बढ़ जाता है जिससे दर्द में तेजी से आराम होता है।

6. चेहरा चमकाने में मददगार
रोजाना हल्दी वाला दूध पीने से चेहरा चमकने लगता है। रूई के फाहे को हल्दी वाले दूध में भिगोकर इस दूध को चेहरे पर लगाएं। इससे त्वचा की लाली और चकत्ते कम होंगे। साथ ही, चेहरे पर निखार और चमक आएगी।

7. ब्लड सर्कुलेशन ठीक करता है
आयुर्वेद के अनुसार, हल्दी को ब्लड प्यूरिफायर माना गया है। यह शरीर में ब्लड सर्कुलेशन को मजबूत बनाता है। यह रक्त को पतला करने वाला आैर लिम्फ तंत्र और रक्त वाहिकाओं की गंदगी को साफ करने वाला होता है।

8. शरीर को सुडौल बनाता है
रोजाना एक गिलास दूध में आधा चम्मच हल्दी मिलाकर लेने से शरीर सुडौल हो जाता है। दरअसल गुनगुने दूध के साथ हल्दी के सेवन से शरीर में जमा फैट्स घटता है। इसमें उपस्थित कैल्शियम और अन्य तत्व सेहतमंद तरीके से वेट लॉस में मददगार हैं।

9. स्किन प्रॉब्लम्स में है रामबाण
हल्दी वाला दूध स्किन प्रॉब्लम्स में भी रामबाण का काम करता है।

10. लिवर को मजबूत बनाता है
हल्दी वाला दूध लिवर को मजबूत बनाता है। यह लिवर से संबंधित बीमारियों से शरीर की रक्षा करता है और लिम्फ तंत्र को साफ करता है।

11. अल्सर ठीक करता है
यह एक शक्तिशाली एंटीसेप्टिक होता है और आंत के स्वस्थ बनाने के साथ-साथ पेट के अल्सर और कोलाइटिस का उपचार करता है। इससे पाचन बेहतर होता है और अल्सर, डायरिया और अपच नहीं होता।

12. माहवारी में होने वाले दर्द से राहत देता है
हल्दी वाला दूध माहवारी में होने वाले दर्द में राहत देता है। गर्भवती महिलाओं को आसान प्रसव, प्रसव बाद सुधार, बेहतर दूध उत्पादन और शरीर को जल्दी सामान्य करने के लिए हल्दी का दूध लेना चाहिए।

13. सर्दी-खांसी में है रामबाण
हल्दी वाले दूध के एंटीबायोटिक गुण के कारण सर्दी-खांसी में ये एक कारगर दवा का काम करता है। हल्दी वाला दूध मुक्त रेडिकल्स से लड़ने वाले एंटीऑक्सीडेंट का बेहतरीन स्रोत है। इससे कई बीमारियां ठीक हो सकती हैं।

Sunday, 10 July 2016

गुलाब से बने गुलकंद में है कई चमत्कारिक गुण :-


गुलाब सिर्फ एक बहुत खुबसूरत फूल ही नहीं है बल्कि यह कई तरह के औषधिय गुणों से भी भरपूर है। गुलाब की खुश्बु ही नहीं इसके आंतरिक गुण भी उतने ही अच्छे हैं। गुलाब के फूल में कई रोगों के उपचार की भी क्षमता है। नींद न आती हो , मानसिक थकावट हो तो सिरहाने के पास गुलाब रखकर सोएं. फिर देखिए परिणाम। आज हम आपको बताने जा रहे हैं गुलाब का गुलकंद खाने के फायदों के बारे में ....
1-गुलाब से बने गुलकंद में गुलाब का अर्क होता है जो शरीर को ठंडक पहुंचाता है। यह शरीर को डीहाइड्रेशन से बचाता है और तरोताजा रखता है। यह पेट को भी ठंडक पहुंचाता है। गर्मी के दिनों में गुलकंद स्फूर्ति देने वाला एक शीतल टॉनिक है,जो गर्मी से उत्पन्न थकान, आलस्य, मांसपेशियों का दर्द और जलन आदि कष्टों से बचाता है।
2- गुलकंद में विटामिन सी, ई और बी अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। भोजन के बाद गुलकंद का सेवन भोजन को पचाने के लिए फायदेमंद है और इसके सेवन से पाचन संबंधी समस्याएं दूर रहती हैं।
3- दिल की बीमारी में अर्जुन की छाल और देसी गुलाब मिलाकर उबालें और पी लें, हृदय की धडकन अधिक हो तो इसकी सूखी पंखुडियां उबालकर पीएं।
आँतों में घाव हो तो 100 ग्राम मुलेटी ,50 ग्राम सौंफ ,50 ग्राम गुलाब की पंखुडियाँ तीनों को मिलाकर 10 ग्राम की मात्रा में लें। इसका 100 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीएं।
4-गर्मी के कारण चेहरे पर उत्पन्न छोटी-छोटी फुंसियाँ (एक्ने) गुलकंद के सेवन से धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं। बच्चों में कृमि कष्ट (पेट में कीड़े) होने पर बाइविडिंग का चूर्ण गुलकंद में मिलाकर एक-एक चम्मच सुबह-शाम 15 दिनों तक देने से कृमि कष्ट से मुक्ति मिल जाती है।
5- गुलकंद लेने से पेट के रोग व अल्सर कब्ज आदि समस्याएं खत्म हो जाती हैं। रोजाना चम्मचभर गुलकंद खाने से आँखों की रोशनी ठीक रहती है। गुलकंद के नियमित सेवन से इसके पाचन के बाद बनने वाला रस आँतों के लिए बहुत हितकर होता है। पाचन क्षमता में सुधार, चयापचय क्रिया का नियमन, रक्तशोधन करने के लिए गुलकंद फायदेमंद होता है।
6- गर्मियों के मौसम में गुलकंद कई तरह के फायदे पहुंचाता है। हाजमा दुरुस्त रखता है और आलस्य दूर करता है। गुलकंद शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है और कब्ज को भी दूर करता है। सुबह-शाम एक-एक चम्मच गुलकंद खाने पर मसूढ़ों में सूजन या खून आने की समस्या दूर हो जाती है। पीरियड के दौरान गुलकंद खाने से पेट दर्द में आराम मिलता है। मुंह का अल्सर दूर करने के लिए भी गुलकंद खाना फायदेमंद होता है।
7- गुलकंद में अच्छी मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स हैं जो शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाते हैं और थकान दूर करते हैं। आपकी त्वचा के लिए भी यह बहुत फायदेमंद है।
इसमें एंटीबैक्टीरियल गुण हैं जो त्वचा की समस्याओं को दूर करते हैं और त्वचा हाइड्रेट रहती है।

पंचतत्त्व


 हमारा शरीर पांच तत्त्वों (आकाश, वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी) से मिलकर बना है। पंचतत्व निर्मित हमारे शरीर की रक्षा केवल भोजन से नहीं होती, बल्कि उसके साथ-साथ इस काम के लिए बाकी चार तत्व (आकाश, वायु, अग्नि और जल) भी बहुत आवश्यक होते हैं। अर्थात पांचों तत्त्वों का हमारे शरीर के लिए विशेष महत्व होता है। इनमें से किसी भी तत्व का कम या अधिक मात्रा में होने से हमारे शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और हमारा शरीर रोगों से ग्रस्त हो जाता है। हम इन तत्वों की सहायता से विभिन्न प्रकार के रोगों से आसानी से बच सकते हैं लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पंच महाभूत प्राकृतिक चिकित्सा के साधन तो हैं ही किन्तु उनका मूल आधार राम-नाम-तत्व होता है। अर्थात रामनाम के बिना पूरी की पूरी प्राकृतिक चिकित्सा अधूरी है।

          एक प्राकृतिक चिकित्सक भलीभांति जानता है कि प्रत्येक प्राणी के भीतर आरोग्य प्रदान करने वाली एक शक्ति होती है जो उसे स्वस्थ और निरोग रखती है। वही प्राकृतिक शक्ति आवश्यकता पड़ने पर शरीर को स्वच्छ और निरोग बनाने के लिए रोगों की उत्पत्ति भी करती है तथा उन रोगों को नष्ट भी करती है। उसी शक्ति को सभी लोग अलग-अलग नामों जैसे शक्ति, परमात्मा, अंतरात्मा तथा कोई `राम` कहकर पुकारता है। इस प्रकार यदि हम प्राकृतिक चिकित्सा को ईश्वरीय चिकित्सा कहें तो उचित ही होगा क्योंकि इस चिकित्सा में हमें अपना काम ईश्वर के ऊपर छोड़ देना चाहिए जो वही और केवल वही कर सकता हैं। 

1. पृथ्वी- पृथ्वी तत्व से शरीर के सभी जैविक बल निष्क्रिय और चेतनाशून्य हो जाते हैं। अत: उन सबको सक्रिय रखने के लिए अधिक शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। अधिक वजन वाले, मांसल, चर्बीयुक्त व्यक्ति इस तत्व के उदाहरण हैं। ऐसे लोग निश्चित रहते हैं तथा उनमें कुछ भी प्राप्त करने की उत्सुकता नहीं होती है। ऐसे व्यक्ति जीवन में संघर्ष करने से घबराते हैं। इससे उनका शरीर आलसी और जीवन सुस्त (मन्द) हो जाता है। पृथ्वी तत्व जब तक हमारे शरीर में त्रुटिपूर्ण स्थिति में रहता है तो हम स्वार्थी और लोभी बनते जाते हैं। पृथ्वी तत्त्व एक तटस्थ तत्त्व होता है। 

2. जल : जल तत्व हमारे शरीर और जीवन के प्रवाह को सुरक्षित बनाये रखता है। जल की प्रकृति शीतल होती है। हमारे शरीर में लगभग 70 प्रतिशत पानी होता है अत: शरीर के तापमान और रक्त संचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह एक ऋण तत्व होता है।

3. अग्नि : अग्नि तत्त्व हमारे शरीर में अग्नि को उत्पन्न करके शरीर में उपस्थिति जल को उष्णता प्रदान करता है। अग्नि तत्व आंखों की दृष्टि को नियंत्रण में रखता है, तथा आहार के सेवन करने के बाद यही अग्नि तत्त्व हमारे भोजन का पाचन करके ऊर्जा और शक्ति प्रदान करता है। अग्नि भूख और प्यास की वृद्धि करती है। यह स्नायु की स्थिति को उसकी स्वाभाविक स्थिति में बनाये रखती है और चेहरे को आकर्षक बनाती है। यह हमारे विचारों को शुद्ध बनाती है तथा मस्तिष्क के विकारों को नष्ट करके उसे शक्तिशाली बनाती है। अग्नि तत्व हमारे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को उत्पन्न करती है जो हमें रोगों से बचाती है। अग्नि तत्व हमारे शरीर के लिए बहुत अधिक उपयोगी होता है। शरीर में अग्नि तत्व की कमी होने पर एनीमिया, पीलिया, पाचन आदि से सम्बन्धित परेशानियां उत्पन्न होती हैं। हमारे शरीर में अग्नि तत्व का अभाव होने से बेहोशी, विभिन्न प्रकार के मानसिक विकार, व्यर्थ की उलझनें और तनाव, आंखों की कमजोरी, त्वचा सम्बन्धी रोग, मोतियाबिंद तथा पेट की गैस आदि विकार उत्पन्न होते हैं।

          इसलिए पूर्वीय चिकित्सा पद्धति में अग्नि तत्व की सुरक्षा व नियंत्रण को विशेष महत्व दिया जाता है। अग्नि तत्व धन तत्व होता है।

4. वायु :  वायु तत्व ही जीवन होता है। यह एक शक्ति होती है और शरीर के प्रत्येक भाग का संचालन करती है। यह हृदय की क्रिया और रक्त के संचार को नियंत्रित रखती है और शारीरिक संतुलन को बनाये रखती है। यह श्वसन और मल-मूत्र की गति में मदद करती है। यह आवाज उत्पन्न करती है। यह मानसिक शक्ति और शारीरिक क्षमता को बढ़ाती है। यह अपने आप में गति करने में असमर्थ पित्तरस और कफ को यह गति देती है। यह धन तत्व है।

5. आकाश : सृष्टि के निर्माण से पहले जब सम्पूर्ण जीवों के परमात्मा के अलावा कहीं पर कुछ भी नहीं था। सृष्टि के आरम्भ में सर्वप्रथम ईश्वर की चेतनाशक्ति की प्रेरणा से शब्द तन्मात्र उत्पन्न हुआ, जिससे आत्मा को बोध कराने वाले `आकाश` का जन्म हुआ। अन्य चारों तत्वों को अवकाश देना, सबके भीतर और बाहर रहना तथा प्राण, इन्द्रिय, और मन का आश्रय होना- ये सभी आकाश तत्व के कार्य, रूप और लक्षण होते हैं। वर्तमान समय में आकाश को स्पेस कहा जाता है।

           आक्सीजन को सांस के द्वारा हम अपने शरीर के अन्दर लेते हैं। इसलिए शरीर में पोल (खाली स्थान) भी होना चाहिए। यदि यह सांस लेने की क्रिया बंद हो जाए और इसमें किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न हो जाए तो इससे हमारे शरीर को बहुत अधिक कष्ट होता है। जिसके परिणामस्वरूप हार्ट अटैक, लकवा, मूर्छा आदि विकार होते हैं। यह ऋण तत्व होता है।

प्रकृति के प्रकार :

          हमारे शरीर में तत्वों का अलग-अलग संयोजन : हमारे शरीर में व्याप्त पांचों तत्त्वों के भिन्न-भिन्न संयोजन आपस में मिलकर शरीर की प्रकृति निश्चित करते हैं। यदि ये मूल तत्व शरीर में उचित मात्रा में बने रहते हैं तो हमारे शरीर की सभी प्रकार की क्रियाएं सामान्य रूप से अपना कार्य करती रहती हैं और हमारा शरीर भी स्वस्थ बना रहता है। परन्तु वंशानुगत लक्षण, आहार तथा जीवन व्यवहार आदि के कारण एक या दो तत्वों की शरीर में अधिकता या कमी होने से हमारे शरीर की सभी क्रियाएं सामान्य रूप से नहीं हो पाती हैं जिसके परिणामस्वरूप हमारे शरीर में विभिन्न विकार हो जाते हैं। अनेक प्रकार के संयोजनों में तीन प्रकार के संयोजन प्रमुख होते हैं। ये संयोजन हमारे शरीर का प्रकार तथा शरीर की प्रकृति को निश्चित करते हैं। भारतीय चिकित्सा पद्धति ``आयुर्वेद´´ के अनुसार लोगों को तीन प्रकारों में विभक्त किया गया है।

1. कफ प्रकृति : ऐसा संयोजन जिसमें पृथ्वी और जल तत्व अधिक होता है।

2. पित्त प्रकृति : पित्त प्रकृति ऐसा संयोजन है जिसमें कि अग्नि तत्व और वायु तत्व अधिक होता है।

3. वात प्रकृति : वात प्रकृति ऐसा संयोजन होता है जिसमें वायु तत्व की मात्रा अधिक होती है।

           आयुर्वेद चिकित्सा सिद्धांत के अनुसार रोगी की चिकित्सा करते समय उसके शरीर की प्रकृति को ध्यान में रखना चाहिए। कफ प्रकृति वाले लोगों के लिए दूध प्रतिकूल पदार्थ होता है। अत: जिन्हें सांस लेने की बीमारी, दमा, अपच आदि हो उन्हें दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों को अधिक मिर्च और मसाले वाले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा इसलिए कहा जाता है कि किसी एक वस्तु का सेवन एक व्यक्ति के लिए लाभकारी होता है तो दूसरे व्यक्ति के लिए हानिकारक भी हो सकता है।

कफ प्रकृति-

          कफ प्रकृति का आशय होता है कि अत्यधिक पृथ्वी और जल तत्व वाला संयोजन। यह हमारे शरीर के अधिकांश अवयवों में व्याप्त होता है। मीठे आहार और पेय का ठीक से पाचन होने पर सेलाइन में बदल जाता है। जिसके कारण हमारे शरीर का रक्त आल्कली बनता है। यह शरीर के तत्वों को बल प्रदान करता है। जीवन शक्ति में वृद्धि करता है और सुख बढ़ाने में योगदान देता है। यह हमारे शरीर के जोड़ों वाले स्थानों में तेल की आपूर्ति करता है और जोड़ों के दर्द को भी समाप्त करता है। परन्तु इसके लिए हमारे शरीर में अग्नि तत्व का होना आवश्यक होता है।

          शारीरिक व्यायाम की कमी, आवश्यकता से अधिक आहार का सेवन, भोजन-समय के उपरांत भी कुछ न कुछ खाते रहना, मिठाइयों और तले हुए पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करने से हमारे शरीर में पाचन शक्ति प्रभावित होती है। इसके परिणामस्वरूप शरीर में गर्मी उत्पन्न नहीं होती है। इससे शरीर में पानी की मात्रा बढ़ती है तथा गर्मी की मात्रा घटती है जिसके कारण शरीर में सुस्ती, आलस्य, भारीपन, चर्बी की वृद्धि, सर्दी, सांस लेने की परेशानी आदि होती है और अंत में दमा, आर्थराइटिस (हडि्डयों का रोग) और वात आदि रोग हो सकते हैं।

          उपर्युक्त रोगों को नष्ट करने के लिए कफ प्रकृति वाले लोगों को अरुचिकर भोजन, ठंडे पेय पदार्थों और परेशानी उत्पन्न करने भोजन को कम कर देना चाहिए तथा भूख लगने पर हल्के आहार का सेवन करना चाहिए। इस दौरान अधिक सेक्स क्रिया और अधिक नींद का भी त्याग करना चाहिए। ऐसे रोगियों के लिए दूध का सेवन भी हानिकारक होता है। इससे बचने के लिए उन्हें प्रतिदिन व्यायाम करना चाहिए।

पित्त प्रकृति :

          पित्त प्रकृति अत्यधिक अग्नि तत्व और वायु तत्व वाला संयोजन होता है। अधिक गर्मी हमारे मस्तिष्क की कार्यशक्ति, आंख और लीवर के लिए हानिकारक होती है। पेट की गैस, आंतरिक गर्मी से होनी वाली सर्दी, त्वचा सम्बंधी विकार, नपुंसकता, चिड़चिड़ा स्वभाव, बालों का झड़ना आदि विभिन्न प्रकार के रोग होते हैं। इससे बचने के लिए हमें अधिक चिंता, आतुरता, तले भुने खाद्य-पदार्थों का सेवन, सूर्य के धूप में अधिक समय तक कार्य करना तथा एन्टोबायोटिक के अधिक उपयोग से बचना चाहिए। अत: इस प्रकार की आदतों से जहां तक हो सके हमें बचना चाहिए। पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को निम्न सावधानियां रखनी चाहिए।

पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों को एंड्रिनल और स्वाद बिंदु को नियंत्रित रखना चाहिए।
पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों को प्रारम्भ में 10-12 दिन तक प्रतिदिन तथा उसके बाद सप्ताह में कम से कम एक या दो बार के जुलाब के तौर पर हरीतकी का बारीक चूर्ण और खांड को मिलाकर सेवन करना चाहिए।
पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों को सुबह उठने के साथ ही सबसे पहले मीठे फलों का सेवन करना चाहिए।
भोजन सेवन करने के बाद पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों को फल और मिठाई का सेवन करना चाहिए।
पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों को प्रतिदिन कुछ न कुछ व्यायाम अवश्य ही करना चाहिए।
वात प्रकृति-

          जिसमें वायु तत्व की मात्रा अत्यधिक हो ऐसे संयोजन के परिणामस्वरूप वात प्रकृति का निर्माण होता है। इस प्रकार के लोगों में आलसीपन अधिक होता है। दिन में स्वप्न देखना, अधिक नींद लेना, तथा गैस के विकार भी होते हैं। हमारे शरीर में वात तत्व के अंसतुलन से शरीर में बेहोशी भी हो जाती है। अत्यधिक तले हुए आहार और बेसन से बने हुए पदार्थों का सेवन करने से विभिन्न प्रकार की परेशानियां उत्पन्न होती हैं। वात प्रकृति के लोगों को प्रतिकूल प्रवृत्ति के आहार, कब्ज तथा दिन में नींद लेने से बचना चाहिए तथा मेहनत युक्त व्यायाम करना चाहिए ताकि हृदय मजबूत बने और रक्त का संचार भी ठीक प्रकार से होता रहे।

          सभी व्यक्तियों को अपनी शरीर की प्रकृति तथा शरीर के बारे में जानकारी होनी चाहिए। इसी के अनुसार परेशानी उत्पन्न करने वाली वस्तुओं से दूर रहना चाहिए। ऐसे ही आहार का सेवन करना चाहिए जो हमारे शरीर के लिए अनुकूल होते हैं।

          सभी व्यक्तियों की प्रकृति अलग-अलग होती है तथा सभी की शारीरिक संरचना, स्वास्थ्य और परेशानियां अलग-अलग होती हैं परन्तु आहार में उचित परिवर्तन करके अपने स्वास्थ्य की रक्षा की जा सकती है। हमारे मस्तिष्क का निर्माण-मेरुजल रक्त से बनता है। इसलिए रक्त के उचित संयोजन के अभाव में मस्तिष्क-मेरुजल में भी असंतुलन होता है जैसे, आहार में नमक की मात्रा अधिक रहने पर मस्तिष्क-मेरुजल में भी उसकी मात्रा अधिक रहती है जिसके परिणामस्वरूप ब्लडप्रेशर और डायबिटीज होता है।

          हमारे शरीर पर पड़ने वाले जलवायु का भी विशेष महत्व होता है जैसे शरीर के लिए छाछ (मट्ठा) आवश्यक पदार्थ होता है। परन्तु बरसात के मौसम में यह लाभकारी नहीं होता है। बरसात के मौसम में छाछ में कालीमिर्च और अदरक का रस मिलाकर सेवन करना चाहिए।

          प्रकृति सभी मौसम और सभी प्रदेशों में पाये जाने जीवधारियों के लिए उचित फल तथा सब्जियां आदि उत्पन्न करती है। इसलिए हमें सेवन हेतु स्थानीय तथा मौसमी फल और सब्जियों को लेना चाहिए। असम और नीलगिरी में भारी वर्षा होती है तथा चाय का अधिक उत्पादन भी वहीं होता है। इसलिए यहां की नमी वाली जलवायु सेहत के लिए उत्तम होती है।

रामनाम से प्राकृतिक चिकित्सा का संबन्ध

          वैसे देखा जाए तो राम, अल्लाह, नानक तथा गाड सब का अर्थ समान ही होता हैं। सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी ईश्वर तो एक ही होता है। उसके नाम कई होते हैं लेकिन सभी व्यक्तियों को ईश्वर का जो नाम अच्छा लगता है वह उसी नाम से ईश्वर को याद करता हैं।

          जब हम किसी व्यक्ति का उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से कर रहे होते हैं तो हमें उसका उपचार केवल उसके शारीरिक क्रिया के द्वारा ही नहीं करना चाहिए बल्कि उसके मन और आत्मा का उपचार करना चाहिए। जब तक रोगी व्यक्ति का मन, आत्मा तथा शरीर निरोग नहीं होगा तब तक रोगी व्यक्ति का रोग भी ठीक नहीं होगा जिस व्यक्ति का मन, आत्मा तथा शरीर तीनों निरोग होगा वही व्यक्ति निरोगी हो सकेगा। प्राकृतिक चिकित्सा के उपचार में सबसे समर्थ उपचार रामनाम है। ईश्वर की स्तुति और सदाचार का हर तरह के रोगों को रोकने का अच्छे से अच्छा और सस्ते से सस्ता उपचार है।

          बहुत सारे आदमियों द्वारा सच्चे दिल से एक ताल और एक लय के साथ गाई जाने वाली रामधुन की ताकत फौजी ताकत के दिखावे से बिल्कुल अलग और कई गुना बढ़ी-चढ़ी होती है।

          कोई भी मनुष्य यदि राम नाम का जाप सच्चे दिल से करता है तथा वह हर एक बुरे ख्याल को तुरन्त दूर कर देता है तो उसे बहुत ज्यादा शांति मिलती है जिसके फलस्वरूप उसके कई सारे रोग तो अपने आप ही ठीक हो जाते हैं। इसलिए देखा जाए तो जब मनुष्य के मन से बुरा ख्याल मिट जाए तो उसका कोई भी हर्ष बुरा नहीं होता है। यदि मन कमजोर है, तो बाहर की सब सहायता बेकार है। गीता में सच ही कहा गया है कि मनुष्य का मन ही उसे बनाता है और बिगाड़ता भी है। अर्थात मनुष्य का मन ही सब कुछ है, वही स्वर्ग को नरक और नरक को स्वर्ग बनाता है।

          जब तक मनुष्य अपने अन्दर और बाहर की सच्चाई, ईमानदारी और पवित्रता के गुणों को नहीं बढ़ाता, तब तक उसके दिल से रामनाम नहीं निकल सकता है।

          रामनाम या किसी भी रुप में हृदय से ईश्वर का नाम लेना एक बड़ी शक्ति का सहारा लेना है, वह शक्ति जो कर सकती है, सो दूसरी कोई शक्ति नहीं कर सकती, उससे सब दर्द दूर होते हैं।

          जब कभी कोई रोग तुम पर हावी होने लगे तो उस समय तुम घुटनों के बल झुककर भगवान से मदद की प्रार्थना सच्चे दिल से करो, तुम्हारे मन को बहुत शांति मिलेगी तथा इसके साथ-साथ प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार भी करें, जिसके फलस्वरूप रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है अत: कहा जा सकता है कि रामनाम एक औषधि के सामान कार्य करता है।

          यदि कोई मनुष्य अपने अन्दर ईश्वर के अस्तित्व का अनुभव करता है तो उसके कई सारे रोग तो अपने आप ही दूर हो जाते हैं। इस प्रकार के व्यक्तियों के जीवन में आने वाली सारी परेशानियां अपने आप ही दूर हो जाती हैं। लेकिन व्यक्तियों को केवल ईश्वर के सच्चे दिल से प्रार्थना करने की इच्छा से ही सब कुछ नहीं होता है बल्कि उसे दिल से चाहने से ही सब कुछ हो सकता है। ईश्वर को सच्चे दिल से चाहने के लिए केवल अभ्यास करने की जरूरत होती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि सभी व्यक्तियों को प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार कराने के साथ-साथ उसे चिकित्सा में विश्वास रखने तथा ईश्वर में विश्वास रखने तथा संयम बनाये रखने की जरूरत है तभी रोग जड़ से ठीक हो सकता है।

पेट में कीड़े पड़ जायें

गंदा और अशुद्ध भोजन के सेवन से आंत में कीड़े पड़ जाते हैं, इसके कारण पेट में गैस, बदहजमी, पेट में दर्द, बुखार जैसी समस्‍यायें होती हैं, इन कीड़ों को निकाने के लिए घरेलू उपचार आजमायें।

पेट में कीड़े पड़ जायें तो यह बहुत ही दुखदायी होता है। यह समस्‍या सबसे अधिक बच्‍चों में होती है लेकिन बड़ों की आंतों में भी कीड़े हो सकते हैं। ये कृमि लगभग 20 प्रकार के होते हैं जो अंतड़ियों में घाव पैदा कर सकते हैं। इसके कारण रोगी को बेचैनी, पेट में गैस बनना, दिल की धड़कन असामान्‍य होना, बदहजमी, पेट में दर्द, बुखार जैसी कई प्रकार की समस्‍यायें होती हैं। इसके कारण रोगी को खाने में रुचि नहीं होती और उसे चक्‍कर भी आते हैं। गंदगी के कारण ही पेट में कीड़े होते हैं। अशुद्ध और खुला भोजन करने वालों को यह समस्‍या अधिक होती है। घरेलू उपचार के जरिये इस समस्‍या का इलाज किया जा सकता है।

अजवायन

अजवायन का सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। इसके लिए अजवायन का चूर्ण आधा ग्राम और उतना ही गुड़ में गोली बनाकर दिन में तीन बार इसका सेवन मरीज को करायें। अजवायन में एंटी-बैक्‍टीरियल तत्‍व पाये जाते हैं जो कीडों को समाप्‍त कर देते हैं। अजवायन का सेवन सेव 2-3 दिन करने पर कीड़े पेट से पूरी तरह से समाप्‍त हो जायेंगे।

काला नमक

चुटकी भर काला नमक और आधा ग्राम अजवायन चूर्ण मिला लीजिए, इस चूर्ण को रात के समय रोजाना गर्म पानी से लेने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं। अगर बड़ों को यह समस्‍या है तो काला नमक और अजवायन दोनों को बराबर मात्रा में लीजिए। सुबह-शाम इसका सेवन करने से पेट के कीड़े दूर हो जायेंगे।

अनार के छिलके

बच्‍चों और बड़ों दोनों में पेट के कीड़े हो जायें तो यह बहुत ही फायदेमंद उपचार है। अनार के छिलकों को सुखाकर इसका चूर्ण बना लीजिए। यह चूर्ण दिन में तीन बार एक-एक चम्मच लीजिए। कुछ दिनों तक इसका सेवन करने से पेट के कीड़े पूरी तरह से नष्‍ट हो जाते हैं।

नीम के पत्‍ते

नीम के पत्‍तों का सेवन करने से पेट की हर तरह की समस्‍या दूर हो जाती है। नीम के पत्‍ते एंटी-बॉयटिक होते हैं जो पेट के कीड़ों को नष्‍ट कर देते हैं। नीम के पत्‍तों को पीसकर उसमें शहद मिलकार पीने से जल्‍दी फायदा होता है और कीड़े नष्‍ट हो जाते हैं। सुबह के वक्‍त इनका सेवन करना अधिक फायदेमंद होता है।

आयुर्वेद में है एलर्जी का सफल घरेलू इलाज


आमतौर पर जब कोई नाक, त्वचा, फेफड़ों एवं पेट का रोग पुराना हो जाता है। और उसका इलाज नहीं होता तो अकसर लोग उसे एलर्जी कह देते हैं। बहुत सारे ऐसे रोगी जीवा में उपचार के लिए आते हैं और यह बताते हैं कि उन्हें एलर्जी है, लेकिन क्या है यह एलर्जी इसका ज्ञान हमें अकसर नहीं होता। यदि रोग के बारे में ज्ञान नहीं है तो उसका उपचार कैसे होगा।


आयुर्वेदिक उपचार


आयुर्वेद में एलर्जी का सफल इलाज है। आयुर्वेदिक उपचार रोग के मूल कारण को नष्ट करने में सक्षम होने के कारण रोग को जड़ से ठीक करता है। एलर्जी के उपचार में आमविष के निस्कासन के लिए औषधि दी जाती है। इसलिए सर्वप्रथम शोधन चिकित्सा करते हैं, जिससे शरीर में जमे आम विष को नष्ट किया जाता है। इसके अतिरिक्त दोषों एवं धातुओं को साम्यावस्था में लाकर ओज शक्ति को स्वस्थ बनाया जाता है। यदि रोगी मानसिक स्तर पर अस्वस्थ है तो उसका उपचार किया जाता है और एलर्जी के लक्षणों को

शान्त करने के लिए भी औषधि दी जाती है।


उचित उपचार के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लें और उनके द्वारा दी गई। औषधियों का नियमित रूप से सेवन करें। रोग पुराना एवं कष्ट साध्य होने के कारण ठीक होने में कुछ समय लेगा, इसलिए संयम के साथ चिकित्सक के परामर्शनुसार औषधियों एवं आहार-विहार का सेवन करें। यदि आप एलर्जी से पीड़ित हैं तो औषधियों के साथ-साथ निम्न उपचारों के प्रयोग से भी आपको लाभ मिलेगा।


घरेलू उपचार


पानी में ताजा अदरक, सोंफ एवं पौदीना उबालकर उसे गुनगुना होने पर पीयें।, इसे आप दिन में 2-3 बार पी सकते हैं। इससे शरीर के स्रोतसों की शुद्धि होती है एवं आम का पाचन होता है।


लघु एवं सुपाच्य भोजन करें जैसे लौकी, तुरई, मूंग दाल, खिचड़ी, पोहा, उपमा, सब्जियों के सूप, उबली हुई सब्जियां, ताजे फल, ताजे फलों का रस एवं सलाद इत्यादि। सप्ताह में एक दिन उपवास रखें, केवल फलाहार करें। नियमित रूप से योग और प्राणायाम करें। रात को सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण लें और हर रोज एक बड़ा चम्मच च्यवनप्राश लें।

अनार का जूस और खजूर

अनार का जूस और खजूर का ये अद्भुत मिश्रण बचा सकता है आपकी जिंदगी

अनार को वैसे तो कई सारे benefits के लिए जाना जाता है इसको English में Pomegranate भी बोला जाता है | अनार एक लाल रंग का बिजुक्त फल है जो की रसीले होने के साथ हमारे health के लिए काफी लाभदायक भी है। एक कप अनार का जूस पीने से आपको Vitamin C, K और Potassium प्रचुर मात्रा में मिलता है। इसे यदि खजूर के साथ मिला कर लिया जाये तो ये संजीवनी का काम करता है।

➡ अनार के जूस के साथ खजूर
आधा गिलास अनार का रस और कुछ खजूर आपके दिल को दे सकते हैं नया जीवन। हाल ही के शोध से पता चला है कि अनार जूस और खजूर का एक साथ सेवन आपको हृदय की कई बीमारियों से दूर रखता है। बस आपको आधा गिलास अनार का जूस का और खजूर के कुछ दानों की ज़रूरत है।

अनार के जूस और खजूर में anti oxidant होते हैं जो अथेरोस्क्लेओसिस की प्रक्रिया को धीमा करता है। हाल ही में किये गए एक शोध में ये साबित हुआ है।

इजराइल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के रिसर्चर की टीम के अनुसार, अनार जूस और खजूर का एक साथ सेवन हमें अथेरोक्लेरोसिस  से बचाताबचाता है, जो कि हार्ट अटैक या स्ट्रोक का मुख्य कारण है। यह रिसर्च ‘ फ़ूड एंड फंक्शन जर्नल ’में प्रकाशित हुई है। उनके रिसर्च के अनुसार, जहाँ अनार जूस में पाॉलीफेनोलिक एंटीऑक्सीडेंट अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो कि ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करने के लिए जाना जाता है। वहीँ दूसरी तरफ खजूर फेनोलिक रेडिकल स्कावेंगेर एंटीऑक्सीडेंट के मुख्य स्रोत हैं जो खराब कोलेस्ट्रॉल के ऑक्सीडेशन को रोकते हैं । दोनों को मिलाने से जो गुणकारी मिश्रण बनता है वह हमें सवस्थ रखने में मदद करता है।

अगर कोई  हो जाये तो वहां पर खून की गाँठ बन जाती है जिस से दिल को जाने वाला खून रुक जाता और दिल के दौरे का खतरा बना रहता है। इस से दिमाग को जाने वाला खून भी रुक सकता है और ब्रेन स्ट्रोक का कारण बन सकता है।
जानकारों के अनुसार जिन लोगो को दिल की घातक बीमारियाँ हो और सेहतमंद इन्सान भी अगर दिन में एक गिलास अनार का जूस और 3 खजूर खाना शुरू कर दे तो उसे दिल की कोई बीमारी नही होती।

बालों की हर समस्‍या का समाधान : तिल का तेल


● तिल का तेल बालों से ले कर शरीर के हर अंग के लिये फायदेमंद है। इस तेल में बहुत सारा प्रोटीन होता है जो कि हमारे शरीर को प्रोषण से भर देता है। तिल का तेल तिल के बीज से निकाला जाता है। यह तेल खाना पकाने, पूजा के कार्य और बालों में लगाने के लिये किया जाता है। प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणालियों का मानना है कि तिल का तेल तनाव से संबंधित लक्षणों को शांत करता है।
● तिल का तेल चाहे काले तिल के बीज से निकाला गया हो या फिर सफेद तिल के बीज से, यह दोनों ही फायदेमंद होते हैं। आज हम आपको तिल के तेल के बालों में लगाने के 10 फायदे बताएंगे। अगर बालों में चमक नहीं रहती या फिर बालों ने बढ़ना छोड़ दिया है तो काले तिल का तेल रात में लगाना ना भूलें।
1) बालों को खूबसूरत बनाएं :-
यह बालों में चमक भरता है, यह बिल्‍कुल चिपचिपा नहीं होता। इसकी थोड़ी सी मात्रा आपके रूखे बालों को मजबूत बना कर उनमें शाइन भर देगी।
2) बाल बढाए :-
बालों और सिर की तिल के तेल से मसाज करने से हेयर सेल एक्‍टिव हो जाते हैं जिससे नए बाल उग आते हैं। हफ्ते में एक दिन तिल के तेल से मसाज करें।
3) जादुई असर दिखाए :-
बाल खराब होने का एक कारण होता है तनाव लेना। तिल के तेल से मसाज करने पर आपको ठंडक का असर होगा जिससे आप सारी थकान भूल जाएंगे और आपका मूड खुश हो जाएगा।
4) सिर की त्‍वचा को स्‍वस्‍थ बनाए :-
काले तिल का तेल सिर पर लगाने से त्‍वचा में नई जान आ जाती है। इससे सिर के अदंर सर्कुलेशन होता है, बाल फिर से उगने लगते हैं और दो मुंहे बाल भी ठीक हो जाते हैं।
5) हेयर डैमेज से बचाए :-
तिल का तेल हेयर डैमेज से बचाता है। यह तेल रूखे, सूखे और उलझे बालों को कोमल बनाता है। यह बालों के टेक्‍सचर को सही करता है और अदंर से उन्‍हें मजबूत बनाता है।
6) प्रदूषण से बचाए :-
प्रदूषण और तेज सूरज की रौशनी से यह तेल आपके बालों की सुरक्षा करेगा।
7) रूसी से छुटकारा :-
अगर सिर मे रूसी का प्रकोप है तो आपके बाल कभी अच्‍छे रूप से नहीं बढ सकते। सिर धोने से पहले हमेशा बालों में तिल का तेल लगाना चाहिये। यह रूसी का खात्‍मा कर सकता है।
8) प्राकृतिक नमी :-
तिल का तेल बालों में प्राकृतिक रूप से नमी भरता है। इसके प्रयोग से बाल मुलायम होते हैं। हफ्ते में एक दिन तेल लगाएं।
9) बालों को असमय सफेद होने से बचाए :-
यह तेल बालों को असमय सफेद होने से बचाता है और उन्‍हें खूब सारा पोषण देता।
10) सस्‍ता और फायदेमंद :-
बालों को बढाने और उनकी अच्‍छे से देखभाल करने के लिये यह तेल बहुत ही सस्‍ता और आराम से बाजार में उपलब्‍ध है।

Friday, 8 July 2016

प्रसव पीड़ा


प्रत्येक विवाहित स्त्री मां बनने को लालायित रहती है, अपितु उसे प्रसव के समय अपार कष्ट एवं परेशानियां भोगनी पड़ती हैं| कभी-कभी किन्हीं कारणवश स्त्री, बच्चे अथवा दोनों की जान जोखिम में पड़ जाती है| ऐसी स्थिति में विशेष रूप से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता रहती है|

कारण
बच्चा गर्भाशय के बाहर सरलता से नहीं आता, बल्कि माता को बहुत कष्ट सहन करना पड़ता है| माता दर्द के कारण तड़प जाती है| आजकल तो स्त्रियां शारीरिक परिश्रम बहुत कम करती हैं, इसलिए वे बच्चे जनते समय अधमरी हो जाती हैं| कहा जाता है कि बच्चा जनने में स्त्री का दूसरा जन्म होता है| वर्तमान युग में ऐसी बहुत-सी दवाइयों तथा नुस्खों की खोज हो गई है जिनके सेवन से माता का प्रसव पीड़ा नहीं भोगनी पड़ती|

पहचान
बच्चे को जन्म देते समय माता को बहुत घबराहट होती है| उसे उल्टी, पूरे शरीर, पेड़ व पेट में दर्द, बेचैनी, योनि से स्त्राव तथा रक्त आने लगता है| ये प्रसव पीड़ा के आम लक्षण हैं|

नुस्खेप्रसव पीड़ा के समय स्त्री को तुलसी के पत्तों का रस एक-एक चम्मच की मात्रा में थोड़ी-थोड़ी देर बाद पिलाना चाहिए|चुम्बक पत्थर को रेशमी कपड़े में बांधकर स्त्री के बाएं हाथ में पकड़ा देना चाहिए| इससे बच्चा आसानी से पैदा हो जाता है|तीन दाले लाल घुंघची लेकर महीन पीस लें| इसमें थोड़ा-सा पुराना गुड़ मिलाएं| फिर दोनों को अच्छी तरह खरल कर लें| इसे प्रसव के समय खिला दें| नुस्खा पेट में पहुंचने के 10 मिनट बाद बच्चा बिना दर्द के हो जाएगा|अपमार्ग की जड़ को माता की कमर में डोरी में पिरोकर बांधने से प्रसव का कष्ट कम हो जाता है|एरण्ड का तेल बार-बार नाभि पर लगाने से प्रसव शीघ्र हो जाता है|प्रसव होने के आठ दिन पहले से माता को अंजीर का सेवन शुरू कर देना चाहिए|प्रसूति के समय मकोय की जड़ पीसकर नाभि के नीचे लेप करना चाहिए| इससे प्रसव आसानी से हो जाता है|प्रसव के समय स्त्री को गाजर के बीज तथा उसके पत्तों का काढ़ा पिलाना चाहिए|थोड़ी-सी लौकी को उबाल लें| फिर उसका रस निचोड़कर 30 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर माता को दें| प्रसव पीड़ा कम हो जाएगी|
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घुँघुची के प्रयोग से पूर्व आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह लें। इस वनस्पति में abretin नामक विषाक्त तत्व होता है।

घुँघुची एक फल है। झाड़ियों में ए पाया जाता है। छोटे छोटे लाल रंग के मुंग जितने दाने होते हैं। इस पौधे में छोटे कांटे होते हैं।ग्रामीण लोग अच्छी तरह जानते हैं।

रामचरित मानस में भी है।
गूंजा गहई परस मनि खोई।

ऐसे चमकाएं बांहें ~ पहने स्लीवलेस ......... !


स्लीवलेस पहनने का मन करता है - लेकिन बांहें सुंदर नहीं होने से पहन नहीं पाते ........
इन नुस्खों से पाएं खूबसूरत बांहें ....
* ज्यादा समय तक धूप में रहने से बांहों में झांइयां व रंग काला पडऩे लगता है - जब भी धूप में निकलें एसपीएफ 30 एवं पीए + वाला बोर्ड स्पेक्ट्रम संस्क्रीन लगाएं - धूप में रहने के दौरान हर 4 घंटे में त्वचा पर संस्क्रीन लगाना चाहिए !
* बांहों पर गहरे दाग धब्बों को हटाने के लिए छाछ और बेसन का पतला पेस्ट बना - इस उबटन को बांहों पर लगभग 20 मिनट लगा रहने दें - सूखने के बाद हल्के हाथों से मलते हुए पानी से धो लें - ऐसा सप्ताह में एक से दो बार करें - उबटन से त्वचा की रूखी परत हट जाएगी !
* गुलाब अर्क में चीनी मिला बांहों की मसाज करें - चीनी नेचरल स्क्रबर है !
इससे बांहें चिकनी और चमकदार हो जाएंगी !
* बांहों का रूखापन दूर करने के लिए रात में बांहों पर ऑलिव ऑइल लगाकर सो जाएं !
* टमाटर का रस - नींबू का रस और कच्चा दूध मिला बांहों पर लगाएं !
इससे त्वचा का रंग साफ होता है !
* बांहों की सुंदरता में कोहनी को भी चमकाएं - कोहनियों पर सरसों का तेल लगा रगड़ रोएंदार तौलिए से रगड़ साफ करें !
* कुछ दिनों तक नीबू रगडऩे से भी कोहनी का कालापन दूर हो जाता है !
साफ करने के बाद मॉइश्चराइजर लगाना न भूलें !
* रात को सोते समय एक चम्मच मलाई में दो - तीन बूंद नींबू का रस तथा दो -तीन बूंद ग्लिसरीन मिला हाथों पर ठीक से लगाएं - इससे हाथों की त्वचा साफ और सुंदर होगी !
* एक बड़ा चम्मच दही में एक छोटा चम्मच बादाम रोगन मिला हाथों पर लगाएं - इससे हाथों की खुरदरी त्वचा मुलायम हो जायेगी !
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@ साथ में ये व्यायाम भी करें - जिससे बाजू खुबसूरत बनेंगे .....
* सीधे खड़े हो बांहों को सामने की ओर फैलाएं - फिर सिर से ऊपर गोलाई में ले जाते हुए घुमाएं - यह क्रिया कम से कम 5 - 5 बार करें !
* जमीन पर सीधी बैठकर दही बिलोने की तरह अपने हाथों को चलाएं - ऐसा करने से बांहों में कसावट आएगी !