Friday, 8 July 2016

प्रसव पीड़ा


प्रत्येक विवाहित स्त्री मां बनने को लालायित रहती है, अपितु उसे प्रसव के समय अपार कष्ट एवं परेशानियां भोगनी पड़ती हैं| कभी-कभी किन्हीं कारणवश स्त्री, बच्चे अथवा दोनों की जान जोखिम में पड़ जाती है| ऐसी स्थिति में विशेष रूप से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता रहती है|

कारण
बच्चा गर्भाशय के बाहर सरलता से नहीं आता, बल्कि माता को बहुत कष्ट सहन करना पड़ता है| माता दर्द के कारण तड़प जाती है| आजकल तो स्त्रियां शारीरिक परिश्रम बहुत कम करती हैं, इसलिए वे बच्चे जनते समय अधमरी हो जाती हैं| कहा जाता है कि बच्चा जनने में स्त्री का दूसरा जन्म होता है| वर्तमान युग में ऐसी बहुत-सी दवाइयों तथा नुस्खों की खोज हो गई है जिनके सेवन से माता का प्रसव पीड़ा नहीं भोगनी पड़ती|

पहचान
बच्चे को जन्म देते समय माता को बहुत घबराहट होती है| उसे उल्टी, पूरे शरीर, पेड़ व पेट में दर्द, बेचैनी, योनि से स्त्राव तथा रक्त आने लगता है| ये प्रसव पीड़ा के आम लक्षण हैं|

नुस्खेप्रसव पीड़ा के समय स्त्री को तुलसी के पत्तों का रस एक-एक चम्मच की मात्रा में थोड़ी-थोड़ी देर बाद पिलाना चाहिए|चुम्बक पत्थर को रेशमी कपड़े में बांधकर स्त्री के बाएं हाथ में पकड़ा देना चाहिए| इससे बच्चा आसानी से पैदा हो जाता है|तीन दाले लाल घुंघची लेकर महीन पीस लें| इसमें थोड़ा-सा पुराना गुड़ मिलाएं| फिर दोनों को अच्छी तरह खरल कर लें| इसे प्रसव के समय खिला दें| नुस्खा पेट में पहुंचने के 10 मिनट बाद बच्चा बिना दर्द के हो जाएगा|अपमार्ग की जड़ को माता की कमर में डोरी में पिरोकर बांधने से प्रसव का कष्ट कम हो जाता है|एरण्ड का तेल बार-बार नाभि पर लगाने से प्रसव शीघ्र हो जाता है|प्रसव होने के आठ दिन पहले से माता को अंजीर का सेवन शुरू कर देना चाहिए|प्रसूति के समय मकोय की जड़ पीसकर नाभि के नीचे लेप करना चाहिए| इससे प्रसव आसानी से हो जाता है|प्रसव के समय स्त्री को गाजर के बीज तथा उसके पत्तों का काढ़ा पिलाना चाहिए|थोड़ी-सी लौकी को उबाल लें| फिर उसका रस निचोड़कर 30 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर माता को दें| प्रसव पीड़ा कम हो जाएगी|
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घुँघुची के प्रयोग से पूर्व आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह लें। इस वनस्पति में abretin नामक विषाक्त तत्व होता है।

घुँघुची एक फल है। झाड़ियों में ए पाया जाता है। छोटे छोटे लाल रंग के मुंग जितने दाने होते हैं। इस पौधे में छोटे कांटे होते हैं।ग्रामीण लोग अच्छी तरह जानते हैं।

रामचरित मानस में भी है।
गूंजा गहई परस मनि खोई।

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