सौ वर्ष जीने की कला:
(1) उषःपान से लाभ व आयु:-
उषःपान के अनेक लाभ आयुर्वेद के ग्रन्थों में लिखे हैं। धन्वन्तरि संहिता में लिखा है-
सवितुः समुदयकाले प्रसृतिः सलिलस्य पिबेदष्टौ ।
रोगजरापरिमुक्तो जीवेद्वत्सरशतं साग्रम् ।।
अर्थ:-जो मनुष्य सूर्योदय से पूर्व आठ अञ्जली जल पीता है वह रोग और बुढ़ापे से मुक्त होकर सदैव स्वस्थ और युवा रहता है।
भावप्रकाश में लिखा है-
बवासीर,सूजन,संग्रहणी,ज्वर,पेट के अन्य रोग,बुढ़ापा,कुष्ठ,मेदरोग अर्थात् बहुत मोटा होना,पेशाब का रुकना,रक्तपित्त,आँख,कान,नासिका,सिर,कमर,गले इत्यादि के सब शूल(पीड़ा) तथा वात,पित्त,कफ और व्रण(फोड़े) इत्यादि होने वाले अन्य सभी रोग उषःपान से दूर होते हैं।
इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर लिखा है-
नासिका द्वारा प्रतिदिन शुद्ध जल को तीन घूँट वा अञ्जलि प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में पीना चाहिये क्योंकि इससे विकलांग,झुर्रियाँ पड़ना,बुढ़ापा,बालों का सफेद होना,पीनस आदि नासिका रोग,जुकाम,स्वर का बिगड़ना,विरसता,कास व खाँसी,सूजनादि रोग नष्ट हो जाते हैं और बुढ़ापा दूर होकर पुनः युवावस्था प्राप्त होती है।चक्षु रोग दूर होते हैं।
अतः प्रत्येक स्त्री व पुरुष को मुख वा नासिका द्वारा उषःपान का अमृत-पान करके अमूल्य लाभ उठाना चाहिए।
प्रातःकाल उठकर पाव या आधापाव के लगभग जल का नासिका द्वारा पान करना,शरीर स्वास्थय के लिए अत्यन्त लाभकारी है।इसे ‘उषःपान’ कहते हैं।उषःपान की महिमा मुक्तकण्ठ से गायी है।
आयुर्वेद में लिखा है-
जो मनुष्य प्रातःकाल घना अंधेरा दूर होने पर उठकर नासिका द्वारा जलपान करता है।वह पूर्ण बुद्धिमान तथा नेत्र-ज्योति में गरुड़ के समान हो जाता है।उसके बाल जल्दी सफेद नहीं होते,तथा सारे रोगों से सदा मुक्त रहता है।
इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर लिखा है-
सर्व रोग विनाशाय निशांते तु पिबेज्जलम्।
अर्थात्-सब रोगों को नष्ट करने के लिए रात्रि के अन्त में अर्थात् प्रातःकाल जल पिये।
(2) स्नान द्वारा आयु:-
प्रतिदिन ताजे जल से स्नान करना चाहिए।
योगी याज्ञवल्क्य जी कहते हैं-
-हे सज्जनों ! सदैव स्नान करने वाले मनुष्य को रुप,तेज,बल,पवित्रता,आयुष्य,आरोग्यता,अलोलुपता,बुरे स्वप्नों का न आना,यश और मेधादि गुण प्राप्त होते हैं।
अतः प्रतिदिन ताजे जल से स्नान करना चाहिए।
नोट-बिमार व्यक्ति व जो स्त्री मासिक धर्म से हो-इनको स्नान नहीं करना चाहिए।
(3) पथ्य (परहेज) द्वारा आयु:-
आयुर्वेद में कहा है-
यदि मनुष्य पथ्य (परहेज) से रहे तो दवा की आवश्यकता ही न होगी और यदि पथ्य का पालन न करे तो दवाएं उसका क्या बना सकेंगी?
दवाएं व्यर्थ जाएँगी और उसका रोग छूटेगा नहीं।
(4) रात्रि शयन द्वारा आयु:-
रात्रि में सदा बाईं करवट से सोना चाहिए।इससे सायंकाल का किया हुआ भोजन भी शीघ्र पच जाता है।आयुर्वेद में कहा है-
-बाईं करवट से सोने वाला,दिन में दो बार भोजन करने वाला,सारे दिन में कम से कम छः बार मूत्र त्याग करने वाला,व्यायामशील और ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला व्यक्ति सौ वर्ष तक जीता है।
(5) रात्रि में दही कभी न खाएं।इससे शरीर की शोभा व कान्ति नष्ट होती है व आयु घटती है।
(6) गीले पैर भोजन करें परन्तु गीले पैर कभी सोये नहीं।
(1) उषःपान से लाभ व आयु:-
उषःपान के अनेक लाभ आयुर्वेद के ग्रन्थों में लिखे हैं। धन्वन्तरि संहिता में लिखा है-
सवितुः समुदयकाले प्रसृतिः सलिलस्य पिबेदष्टौ ।
रोगजरापरिमुक्तो जीवेद्वत्सरशतं साग्रम् ।।
अर्थ:-जो मनुष्य सूर्योदय से पूर्व आठ अञ्जली जल पीता है वह रोग और बुढ़ापे से मुक्त होकर सदैव स्वस्थ और युवा रहता है।
भावप्रकाश में लिखा है-
बवासीर,सूजन,संग्रहणी,ज्वर,पेट के अन्य रोग,बुढ़ापा,कुष्ठ,मेदरोग अर्थात् बहुत मोटा होना,पेशाब का रुकना,रक्तपित्त,आँख,कान,नासिका,सिर,कमर,गले इत्यादि के सब शूल(पीड़ा) तथा वात,पित्त,कफ और व्रण(फोड़े) इत्यादि होने वाले अन्य सभी रोग उषःपान से दूर होते हैं।
इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर लिखा है-
नासिका द्वारा प्रतिदिन शुद्ध जल को तीन घूँट वा अञ्जलि प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में पीना चाहिये क्योंकि इससे विकलांग,झुर्रियाँ पड़ना,बुढ़ापा,बालों का सफेद होना,पीनस आदि नासिका रोग,जुकाम,स्वर का बिगड़ना,विरसता,कास व खाँसी,सूजनादि रोग नष्ट हो जाते हैं और बुढ़ापा दूर होकर पुनः युवावस्था प्राप्त होती है।चक्षु रोग दूर होते हैं।
अतः प्रत्येक स्त्री व पुरुष को मुख वा नासिका द्वारा उषःपान का अमृत-पान करके अमूल्य लाभ उठाना चाहिए।
प्रातःकाल उठकर पाव या आधापाव के लगभग जल का नासिका द्वारा पान करना,शरीर स्वास्थय के लिए अत्यन्त लाभकारी है।इसे ‘उषःपान’ कहते हैं।उषःपान की महिमा मुक्तकण्ठ से गायी है।
आयुर्वेद में लिखा है-
जो मनुष्य प्रातःकाल घना अंधेरा दूर होने पर उठकर नासिका द्वारा जलपान करता है।वह पूर्ण बुद्धिमान तथा नेत्र-ज्योति में गरुड़ के समान हो जाता है।उसके बाल जल्दी सफेद नहीं होते,तथा सारे रोगों से सदा मुक्त रहता है।
इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर लिखा है-
सर्व रोग विनाशाय निशांते तु पिबेज्जलम्।
अर्थात्-सब रोगों को नष्ट करने के लिए रात्रि के अन्त में अर्थात् प्रातःकाल जल पिये।
(2) स्नान द्वारा आयु:-
प्रतिदिन ताजे जल से स्नान करना चाहिए।
योगी याज्ञवल्क्य जी कहते हैं-
-हे सज्जनों ! सदैव स्नान करने वाले मनुष्य को रुप,तेज,बल,पवित्रता,आयुष्य,आरोग्यता,अलोलुपता,बुरे स्वप्नों का न आना,यश और मेधादि गुण प्राप्त होते हैं।
अतः प्रतिदिन ताजे जल से स्नान करना चाहिए।
नोट-बिमार व्यक्ति व जो स्त्री मासिक धर्म से हो-इनको स्नान नहीं करना चाहिए।
(3) पथ्य (परहेज) द्वारा आयु:-
आयुर्वेद में कहा है-
यदि मनुष्य पथ्य (परहेज) से रहे तो दवा की आवश्यकता ही न होगी और यदि पथ्य का पालन न करे तो दवाएं उसका क्या बना सकेंगी?
दवाएं व्यर्थ जाएँगी और उसका रोग छूटेगा नहीं।
(4) रात्रि शयन द्वारा आयु:-
रात्रि में सदा बाईं करवट से सोना चाहिए।इससे सायंकाल का किया हुआ भोजन भी शीघ्र पच जाता है।आयुर्वेद में कहा है-
-बाईं करवट से सोने वाला,दिन में दो बार भोजन करने वाला,सारे दिन में कम से कम छः बार मूत्र त्याग करने वाला,व्यायामशील और ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला व्यक्ति सौ वर्ष तक जीता है।
(5) रात्रि में दही कभी न खाएं।इससे शरीर की शोभा व कान्ति नष्ट होती है व आयु घटती है।
(6) गीले पैर भोजन करें परन्तु गीले पैर कभी सोये नहीं।
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