Wednesday, 31 August 2016

⁠⁠⁠तांबे के बर्तन से पानी पीने के 12 स्वास्थ्य लाभ 💦💦💦💦


हम में से ज्यादातर लोगों ने अपने दादा-दादी से तांबे के बर्तन में संग्रहीत पानी पीने के स्वास्थ्य लाभों के बारे में सुना होगा। कुछ लोग तो पानी पीने के लिए विशेष रूप से तांबे से बने गिलास और जग का उपयोग करते हैं। लेकिन क्‍या इस धारणा के पीछे वास्‍तव में कोई वैज्ञानिक समर्थन है? या यह एक मिथक है बस? तो आइए तांबे के बर्तन में पानी पीने के बेहतरीन कारणों को जाने

1 . तांबे के बर्तन में पानी पीना अच्छा       क्यों है?

आयुर्वेद के अनुसार, तांबे के बर्तन में संग्रहीत पानी में आपके शरीर में तीन दोषों (वात, कफ और पित्त) को संतुलित करने की क्षमता होती है और यह ऐसा सकारात्मक पानी चार्ज करके करता है। तांबे के बर्तन में जमा पानी 'तमारा जल' के रूप में भी जाना जाता है और तांबे के बर्तन में कम 8 घंटे तक रखा हुआ पानी ही लाभकारी होता है। 

2. तांबे के बर्तन में पानी पीने के फायदे
जब पानी तांबे के बर्तन में संग्रहित किया जाता है तब तांबा धीरे से पानी में मिलकर उसे सकारात्‍मक गुण प्रदान करता है। इस पानी के बारे में सबसे अच्‍छी बात यह है कि यह कभी भी बासी (बेस्‍वाद) नहीं होता और इसे लंबी अवधि तक संग्रहित किया जा सकता है। 

3. बैक्‍टीरिया समाप्‍त करने में मददगार
तांबे को प्रकृति में ओलीगोडिनेमिक के रूप में (बैक्‍टीरिया पर धातुओं की स्‍टरलाइज प्रभाव) जाना जाता है और इसमें रखे पानी के सेवन से बैक्‍टीरिया को आसानी से नष्‍ट किया जा सकता है। तांबा आम जल जनित रोग जैसे डायरिया, दस्‍त और पीलिया को रोकने में मददगार माना जाता है। जिन देशों में अच्‍छी स्‍वच्‍छता प्रणाली नहीं है उन देशों में तांबा पानी की सफाई के लिए सबसे सस्‍ते समाधान के रूप में पेश आता है। 

4. थायरॉयड ग्रंथि की कार्यप्रणाली पर नियंत्रण
थायरेक्सीन हार्मोन के असंतुलन के कारण थायराइड की बीमारी होती है। थायराइड के प्रमुख लक्षणों में तेजी से वजन घटना या बढ़ना, अधिक थकान महसूस होना आदि हैं। कॉपर थायरॉयड ग्रंथि के बेहतर कार्य करने की जरूरत का पता लगाने वाले सबसे महत्‍वपूर्ण मिनरलों में से एक है। थायराइड विशेषज्ञों के अनुसार, कि तांबे के बर्तन में रखें पानी को पीने से शरीर में थायरेक्सीन हार्मोन नियंत्रित होकर इस ग्रंथि की कार्यप्रणाली को भी नियंत्रित करता है।

5. मस्तिष्क को उत्तेजित करता है

तांबे में मस्तिष्‍क को उत्तेजित करने वाले और विरोधी ऐंठन गुण होते हैं। इन गुणों की मौजूदगी मस्तिष्‍क के काम को तेजी और अधिक कुशलता के साथ करने में मदद करते है।

6. गठिया में फायदेमंद
गठिया या जोड़ों में दर्द की समस्‍या आजकल कम उम्र के लोगों में भी होने लगी है। यदि आप भी इस समस्या से परेशान हैं, तो रोज तांबे के पात्र का पानी पीये। तांबे में एंटी-इफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह गुण दर्द से राहत और दर्द की वजह से जोड़ों में सूजन का कारण बने - गठिया और रुमेटी गठिया के मामले विशेष रूप से फायदेमंद होते है। 

7. त्‍वचा को बनाये स्वस्थ
त्‍वचा पर सबसे अधिक प्रभाव आपकी दिनचर्या और खानपान का पड़ता है। इसीलिए अगर आप अपनी त्‍वचा को सुंदर बनाना चाहते हैं तो रातभर तांबे के बर्तन में रखें पानी को सुबह पी लें। ऐसा इसलिए क्‍योंकि तांबा हमारे शरीर के मेलेनिन के उत्‍पादन का मुख्‍य घटक है। इसके अलावा तांबा नई कोशिकाओं के उत्‍पादन में मदद करता है जो त्‍वचा की सबसे ऊपरी परतों की भरपाई करने में मदद करती है। नियमित रूप से इस नुस्खे को अपनाने से त्‍वचा स्‍वस्‍थ और चमकदार लगने लगेगी।

8. पाचन क्रिया को दुरुस्‍त रखें
पेट जैसी समस्‍याएं जैसे एसिडिटी, कब्‍ज, गैस आदि के लिए तांबे के बर्तन का पानी अमृत के सामान होता है। आयुर्वेद के अनुसार, अगर आप अपने शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना चाहते हैं तो तांबे के बर्तन में कम से कम 8 घंटे रखा हुआ पानी पिएं। इससे पेट की सूजन में राहत मिलेगी और पाचन की समस्याएं भी दूर होंगी। 

9. उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करें
अगर आप त्‍वचा पर फाइन लाइन को लेकर चिंतित हैं तो तांबा आपके लिए प्राकृतिक उपाय है। मजबूत एंटी-ऑक्‍सीडेंट और सेल गठन के गुणों से समृद्ध होने के कारण कॉपर मुक्त कणों से लड़ता है---जो झुर्रियों आने के मुख्‍य कारणों में से एक है---और नए और स्वस्थ त्वचा कोशिकाओं के उत्पादन में मदद करता है। 

10. खून की कमी दूर करें

ज्‍यादातर भारतीय महिलाओं में खून की कमी या एनीमिया की समस्‍या पाई जाती है। कॉपर के बारे में यह तथ्य सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक है कि यह शरीर की अधिकांश प्रक्रियाओं में बेहद आवश्यक होता है। यह शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को अवशोषित कर रक्त वाहिकाओं में इसके प्रवाह को नियंत्रित करता है। इसी कारण तांबे के बर्तन में रखे पानी को पीने से खून की कमी या विकार दूर हो जाते हैं। 

11. वजन घटाने में मददगार
गलत खान-पान और अनियमित जीवनशैली के कारण कम उम्र में वजन बढ़ना आजकल एक आम समस्‍या हो गई है। अगर आप अपना वजन घटाना चाहते हैं तो एक्सरसाइज के साथ ही तांबे के बर्तन में रखा पानी पीना आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। इस पानी को पीने से शरीर की अतिरिक्त वसा कम हो जाती है। 

12.  कैंसर से लड़ने में सहायक
तांबे के बर्तन में रखा पानी वात, पित्त और कफ की शिकायत को दूर करने में मदद करता है। इस प्रकार से इस पानी में एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं, जो कैसर से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार तांबे कैंसर की शुरुआत को रोकने में मदद करता है, कैसे इसकी सटीक कारण अभी तक ज्ञात नहीं है, लेकिन कुछ अध्ययनों के अनुसार, तांबे में कैंसर विरोधी प्रभाव मौजूद होते है। 

13. घाव को तेजी से भरें
तांबा अपने एंटी-बैक्‍टीरियल, एंटीवायरल और एंटी इफ्लेमेटरी गुणों के लिए जाना जाता है। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि तांबा घावों को जल्‍दी भरने के लिए एक शानदार तरीका है।

14.  दिल को स्‍वस्‍थ रखें
दिल के रोग और तनाव से ग्रसित लोगों की संख्या तेजी बढ़ती जा रही है। यदि आपके साथ भी ये परेशानी है तो तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से आपको लाभ हो सकता है। तांबे के बर्तन में रखे हुए पानी को पीने से पूरे शरीर में रक्त का संचार बेहतरीन रहता है। कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में रहता है और दिल की बीमारियां दूर रहती हैं।

बहुत पीले दांत भी सफेद हो जाएंगे

अक्सर आत्मविश्वास न होने के कारण कुछ लोग खुल कर नहीं मुस्कुराते। इसका कारण उनके दांतों का पीलापन होता है। सही ढंग से केयर न करने या प्लाक जमने के कारण दांत पीले हो जाते हैं। इसके अलावा, खाने की कुछ चीजों के लगातार उपयोग, बढ़ती उम्र या अधिक दवाइयों का सेवन भी दांतों के पीलेपन के कारण हो सकते हैं। हममें से अधिकतर लोग चेहरे की खूबसूरती पर बहुत ध्यान देते हैं, लेकिन समय रहते दांतों की खूबसूरती पर ध्यान नहीं देते।
ऐसे में, जब दांत बहुत अधिक पीले या बदरंग हो जाते हैं तो ये अच्छा नहीं लगता। यदि आपके साथ भी यह समस्या है तो दांतों को सफेद बनाने के लिए अपनाएं ये दस तरीके…

तुलसी- तुलसी में दांतों का पीलपन दूर करने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है। साथ ही, तुलसी मुंह और दांत के रोगों से भी बचाती है। तुलसी के पत्तों को धूप में सुखा लें। इसके पाउडर को टूथपेस्ट में मिलाकर ब्रश करने से दांत चमकने लगते हैं।

नमक- नमक दांतों को साफ करने का सदियों पुराना नुस्खा है। नमक में थोड़ा-सा चारकोल मिलाकर दांत साफ करने से पीलापन दूर हो जाता है और दांत चमकने लगते हैं।

संतरे के छिलके- संतरे के छिलके और तुलसी के पत्तों को सुखाकर पाउडर बना लें। ब्रश करने के बाद इस पाउडर से दांतों पर हल्के से रोजाना मसाज करें। संतरे में मौजूद विटामिन सी और कैल्शियम के कारण दांत मोती जैसे चमकने लगते हैं।

गाजर- रोजाना गाजर खाने से भी दांतों का पीलापन कम हो जाता है। दरअसल, भोजन करने के बाद गाजर खाने से इसमे मौजूद रेशे दांतों की अच्छे से सफाई कर देते हैं।

नीम- नीम का उपयोग प्राचीनकाल से ही दांत साफ करने के लिए किया जाता रहा है। नीम में दांतों को सफेद बनाने व बैक्टीरिया को खत्म करने के गुण पाए जाते हैं। यह नेचुरल एंटीबैक्टिीरियल और एंटीसेप्टिक है। रोजाना नीम के दातून से मुंह धोने पर दांतों के रोग नहीं होते हैं।

बेकिंग सोडा- बेकिंग सोडा पीले दांतों को सफेद बनाने का सबसे अच्छा घरेलू तरीका है। ब्रश करने के बाद थोड़ा-सा बेकिंग सोडा लेकर दांतों को साफ करें। इससे दांतों पर जमी पीली पर्त धीरे-धीरे साफ हो जाती है। बेकिंग सोडा और थोड़ा नमक टूथपेस्ट में मिलाकर ब्रश करने से भी दांत साफ हो जाते हैं।

नींबू- नींबू एक ऐसा फल है जो मुंह की लार में वृद्धि करता है। इसलिए यह दांतों और मसूड़ों की सेहत के लिए फायदेमंद होता है। एक नींबू का रस निकालकर उसमें उतनी ही मात्रा में पानी मिला लें। खाने के बाद इस पानी से कुल्ला करें। इस नुस्खे को अपनाने से दांत सफेद हो जाते हैं और सांसों की दुर्गंध भी दूर हो जाती है।

स्ट्रॉबेरी- स्ट्रॉबेरी दांतों को चमकदार बनाने का सबसे टेस्टी उपाय है। स्ट्रॉबेरी में पाया जाने वाला मैलिक एसिड दांतों को सफेद और चमकदार बनाता है। स्ट्रॉबेरी को पीस लें। इसके पल्प में थोड़ा बेकिंग सोडा मिलाएं। ब्रश करने के बाद इस मिश्रण को उंगली से दांतों पर लगाएं, दांत चमकने लगेंगे।

केला- केला पीस लें। इसके पेस्ट से दांतों को रोज 1 मिनट तक मसाज करें। उसके बाद दांतों को ब्रश करें। रोजाना ये उपाय करने से धीरे-धीरे दांतों का पीलापन खत्म हो जाएगा।

विनेगर- एक चम्मच जैतून के तेल में एप्पल विनेगर मिला लें। इस मिश्रण में अपना टूथब्रश डुबाएं और दांतों पर हल्के-हल्के घुमाएं। ये प्रक्रिया तब तक दोहराएं, जब तक मिश्रण खत्म न हो जाएं। इस नुस्खे को अपनाने से दांतों का पीलापन मिट जाता है। साथ ही, सांसों की दुर्गंध की समस्या भी नहीं रहती है।

कब्ज (Constipation)

➡ कब्ज रोग होने की असली जड़ भोजन का ठीक प्रकार से न पचना होता है। यदि पेट रोगों का घर होता है तो आंत विषैले तत्वों की उत्पति का स्थान होता है। यह बहुत से रोगों को जन्म देता है जिनमें कब्ज प्रमुख रोग होता है।

➡ कब्ज एक प्रकार का ऐसा रोग है जो पाचनशक्ति के कार्य में किसी बाधा उत्पन्न होने के कारण होता है। इस रोग के होने पर शारीरिक व्यवस्था बिगड़ जाती है जिसके कारण पेट के कई रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इस रोग के कारण शरीर में कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। इस रोग के कारण कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं जैसे- अफारा, पेट में दर्द, गैस बनना, सिर में दर्द, हाथ-पैरों में दर्द, अपच तथा बवासीर आदि।


✅ कब्ज रोग का लक्षण~

➡ कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को रोजाना मलत्याग नहीं होता है।

➡ कब्ज रोग से पीड़ित रोगी जब मल का त्याग करता है तो उसे बहुत अधिक परेशानी होती है। कभी-कभी मल में गांठे बनने लगती हैं। जब रोगी मलत्याग कर लेता है तो उसे थोड़ा हल्कापन महसूस होता है।

➡ कब्ज रोग से पीड़ित रोगी की जीभ सफेद तथा मटमैली हो जाती है।

➡ कब्ज रोग से पीड़ित रोगी के पेट में गैस अधिक बनती है। पीड़ित रोगी जब गैस छोड़ता है तो उसमें बहुत तेज बदबू आती है।

➡ कब्ज के रोग से पीड़ित व्यक्ति के मुंह से भी बदबू आती रहती है।

➡ इस रोग में रोगी को बहुत कम भूख लगती है।

➡ कब्ज रोग से पीड़ित रोगी के सिर में दर्द भी होता रहता है।

➡ रोगी व्यक्ति की आंखों के नीचे कालापन हो जाता है तथा रोगी का जी मिचलाता रहता है।

➡ कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को कई प्रकार के और भी रोग हो जाते हैं जैसे- मुंहासे निकलना, मुंह के छाले, अम्लता, चिड़चिड़ापन, गठिया, आंखों का मोतियाबिन्द तथा उच्च रक्तचाप आदि।


✅ कब्ज होने के कारण~

➡ तली हुई चीजों का अधिक सेवन करने के कारण कब्ज रोग हो जाता है।

➡ मल तथा पेशाब के वेग को रोकने से कब्ज रोग हो सकता है।

➡ ठंडी चीजे जैसे- आइसक्रीम, पेस्ट्री, चाकलेट तथा ठंडे पेय पदार्थ खाने से कब्ज रोग हो सकता है।

➡ दर्दनाशक दवाइयों का अधिक सेवन करने के कारण कब्ज रोग हो जाता है।

➡ व्यायाम तथा शारीरिक श्रम न करने के कारण भी कब्ज रोग हो जाता है।

➡ शरीर में खून की कमी तथा अधिक सोने के कारण भी कब्ज रोग हो जाता है।

➡ कम पानी पीने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है।

➡ समय पर भोजन न करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है।

➡ गलत तरीके से खान-पान के कारण भी कब्ज का रोग हो सकता है।

➡ मैदा तथा चोकर से बना भोजन खाने के कारण कब्ज का रोग हो सकता है।

➡ बासी भोजन का सेवन करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है।

➡ तरल पदार्थों का सेवन अधिक करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है।

➡ अधिक धूम्रपान तथा नशीली दवाइयों का प्रयोग करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है।
 

✅ कब्ज रोग का प्राकृतिक
      चिकित्सा से उपचार

➡ कब्ज रोग का उपचार करने के लिए कभी भी दस्त लाने वाली औषधि का सेवन नहीं करना चाहिए बल्कि कब्ज रोग होने के कारणों को दूर करना चाहिए और फिर प्राकृतिक चिकित्सा से इसका उपचार कराना चाहिए।

➡ कब्ज के रोग को ठीक करने के लिए चोकर सहित आटे की रोटी तथा हरी पत्तेदार सब्जियां चबा-चबाकर खानी चाहिए। अधिक से अधिक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए। अंकुरित अन्न का अधिक सेवन करने से रोगी व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है।

➡ रोगी व्यक्ति को अधिक से अधिक फलों का सेवन करना चाहिए ये फल इस प्रकार हैं- पपीता, संतरा, खजूर, नारियल, अमरूद, अंगूर, सेब, खीरा, गाजर, चुकन्दर, बेल, अखरोट,  आदि।

➡ नींबू पानी, नारियल पानी, फल तथा सब्जियों का रस पीने से कब्ज से पीड़ित रोगी को बहुत फायदा मिलता है।

➡ गेहूं का रस अधिक मात्रा में पीने से कब्ज से पीड़ित रोगी का रोग बहुत जल्दी ठीक हो जाता है।

➡ कच्चे पालक का रस प्रतिदिन सुबह तथा शाम पीने से कब्ज रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। इस प्रकार से उपचार करने से कब्ज रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

➡ रोगी व्यक्ति को रात के समय में 25 ग्राम किशमिश को पानी में भिगोने के लिए रख देना चाहिए।

➡ रोजाना सुबह के समय इस किशमिश को खाने से पुराने से पुराना कब्ज रोग ठीक हो जाता है।

➡ कब्ज से पीड़ित रोगी को सुबह तथा शाम 10-12 मुनक्का खाने से बहुत लाभ होता है।

➡ नीबू का रस गर्म पानी में मिलाकर रात के समय पीने से शौच साफ आती है।

➡ कब्ज के रोग को ठीक करने के लिए त्रिफला चूर्ण को प्रतिदिन सेवन करना चाहिए।

➡ रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में उठते ही 2-4 गिलास पानी पीना चाहिए और उसके बाद शौच के लिए जाना चाहिए।

➡ कब्ज का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को अपने पेट पर 20 से 25 मिनट तक मिट्टी की या कपड़े की पट्टी करनी चाहिए। यह क्रिया प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। इसके बाद रोगी व्यक्ति को कटिस्नान करना चाहिए तथा एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए।

➡ कब्ज से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में खुली हवा में प्रतिदिन सैर के लिए जाना चाहिए।

➡ कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को शाम के समय में हरे रंग की बोतल का सूर्यतप्त पानी पीना चाहिए।

➡ जिसके फलस्वरूप कब्ज रोग को ठीक होने में मदद मिलती है। इसके बाद ईसबगोल की भूसी ली जा सकती है। लेकिन इसमें कोई खाद्य पदार्थ नहीं होना चाहिए।

➡ रोगी व्यक्ति को मैदा, बेसन, तली-भुनी तथा मिर्च मसालेदार चीजों आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

➡ कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को भोजन करने के बाद लगभग 5 मिनट तक वज्रासन करना चाहिए। यदि सुबह के समय में उठते ही वज्रासन करे तो शौच जल्दी आ जाती है।

➡ कब्ज रोग को ठीक करने के लिए पानी पीकर कई प्रकार के आसन करने से कब्ज रोग ठीक हो जाता है- सर्पासन, कटि-चक्रासन, उर्ध्वहस्तोत्तोनासन, उदराकर्षासन तथा पादहस्तासन आदि।

➡ यदि किसी व्यक्ति को बहुत समय से कब्ज हो तो उसे सुबह तथा शाम को कटिस्नान करना चाहिए और सोते समय पेट पर गर्म सिंकाई करनी चाहिए और प्रतिदिन कम से कम 6 गिलास पानी पीना चाहिए।

➡ कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को 1 चम्मच आंवले की चटनी गुनगुने दूध में मिलाकर लेने तथा रात को सोते समय एक गिलास गुनगुना पानी पीने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

➡ कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में तांबे के बर्तन में पानी को रखकर सुबह के समय में पीने से शौच खुलकर आती है और कब्ज नहीं बनती है।

➡ कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सुबह के समय में 2 सेब दांतों से काटकर छिलके समेत चबा-चबाकर खाना चाहिए। इससे रोगी का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

➡ सप्ताह में 1 बार गर्म दूध में 1 चम्मच एरण्डी का तेल मिलाकर पीने से कब्ज का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

➡ कब्ज रोग से बचने के लिए जब व्यक्ति को भूख लगे तभी खाना खाना चाहिए।

➡ कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेडू पर ठंडे पानी में भिगोया तौलिया कम से कम 8 मिनट तक रखना चाहिए जिसके फलस्वरूप कब्ज रोग जल्दी ठीक हो जाता है।

             जो भी लिखा, कही से पढ़ा, सुना समझा, लिख रहा हूँ।

Friday, 26 August 2016

महीने के वे 4 दिन 😊


हर औरत के लिए कष्टदायक होते हैं, पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर में कई तरह के हार्मोनल बदलाव होते हैं,  ऐसे में खान पान के साथ कई अन्य बातों का विशेष ध्यान रखें
🌜
योन संबंधो से  बचें, ये कष्टदायक,
संक्रमित व असुरक्षित  हो सकते हैं
पौष्टिक व सुपाच्य हल्का आहार लें, खाना छोडें कतई नहीं
शारीरिक श्रम से बचें,  जितना आराम से हो, उतना ही काम  करें वरना आपके शरीर का दर्द और बढ़ सकता है
👍
सफाई का विशेष महत्व है
जहाँ तक हो सके हर तीन घंटे में सेनेटरी नैपकिन  (पैड) बदलें
कपड़े का इस्तेमाल ना ही  करें तो बेहतर है, करना ही है  तो साफ सूती व धुला हुआ कपड़ा  लें
आरामदायक कपड़े पहने
😊
बहुत दर्द हो तो गर्म पानी की बोतल से सिकाई कर सकते हैं
😊
बस इन कुछ  बातों का ध्यान रखें और मस्तिष्क में होआ न बनाएं, आराम से काम पर जायें
आप स्वस्थ रहें                        
[11:17 AM, 8/17/2016] +91 98184 73596: 🍃🍃🍃🍃🍃🍃
〰〰〰〰〰〰
🌹छोटी इलाईची🌹
〰〰〰〰〰〰
✍ छोटी इलाइची -: छोटी इलायची के देखने में छोटी सी होती हैं लेकिन इसके अंदर ढ़ेर सारे गुण होते हैं । इलायची का हर घर में प्रयोग किया जाता हैं । यह न केवल मीठे और स्वादिष्ट व्यंजनों में डाली जाती हैं बल्कि एक माउथ फ्रेशनर के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता हैं । इलायची में आयरन ,रिबोफ्लेविन, विटामिन सी तथा नियासिन जैसे आवश्यक विटामिन पाएं जाते हैं । यह पाचन क्रिया को ठीक करती हैं और एरोमोथेरेपी के लिए इस्तेमाल होने वाले तेल की इसमें भरपूर मात्रा पाई जाती हैं । इलायची दो तरह की होती हैं छोटी इलायची और बड़ी इलायची। इलायची को खाने में डालकर खाने की खुशबू को बढ़ाया जाता हैं। इलायची हमारे स्वास्थय को भी फ़ायदा पहुँचाती हैं । इसे खाने से हमारा रक्तचाप ठीक रहता हैं । हमारी पाचन शक्ति भी सही रहती हैं और अगर गले की कोई समस्या हो तो उसे भी इलाइची के सेवन से दूर किया जा सकता हैं ।
स्वास्थय के लिए छोटी इलायची के लाभ




1. अगर आपके गले में कोई तकलीफ होती हैं, तो आप सुबह उठकर और रात को सोते समय छोटी इलायची को चबा-चबाकर खाएं और उसके ऊपर गुनगुना पानी पी लें। ऐसा करने से आपकी गले की समस्या दूर हो जाएंगी। गले में सूजन आ गई हो तो मूली के पानी में छोटी इलायची को पीसकर खाना चाहिए ,लाभ मिलेगा ।


2. छोटी इलायची का सेवन पाचन को बढ़ाने, पेट की सूजन को कम करने, हृदय की जलन को दूर करने में मदद करता हैं । दो से तीन इलायची, अदरक का एक छोटा सा टुकड़ा, थोड़ी सी लौंग और धनिया के कुछ बीज लें। इन्हें  पीस कर गर्म पानी के साथ खाएं। अपच, सूजन और गैस के लिए यह एक अच्छा उपाय हैं ।

3. इलायची हमारे मुंह में ताज़गी को बनाएं रखने में मदद करता हैं माउथ फ्रेशनर की तरह काम करता हैं । अगर आपके मुंह से हमेशा ही बदबू आती हैं तो आप इलायची से उसे दूर कर सकते हैं । इसके अलावा इलायची में मौजूद गुण मुंह के अल्सर और संक्रमण से भी बचाव करती हैं। इसलिए आप इलायची  का सेवन करना शुरू करें ।

4. तनाव को दूर रखने के लिए इलायची वाली चाय पीयें । चाय में इलायची डालकर पीने से इसका स्वाद बढ़ जाता है लेकिन इसकी चाय पीने से तनाव की समस्या दूर हो जाती हैं। जब भी आप तनाव महसूस करते हैं तो इलायची वाली चाय का सेवन करें ।


5. इलाइची में विटामिन और जरूरी तेल मौजूद होते हैं जो एंटीऑक्सीडेंट का काम करते हैं। यह चेहरे से फ्री रेडिक्लस को हटाने में भी काफी मददगार होता हैं ।

6. हिचकी कभी भी कहीं भी शुरू हो जाती हैं । कभी-कभी यह बिना रुके देर तक आती रहती हैं। हिचकी आने पर इलायची का सेवन काफी फायदेमंद होता हैं । इलायची में हिचकी को दूर करने का गुण होता हैं ।

7. सर्दी-खांसी और छींक होने पर एक छोटी इलायची, एक टुकड़ा अदरक, लौंग तथा पांच तुलसी के पत्ते एक साथ पान में रखकर खाएं, राहत मिलेगी ।

8. अगर आपका जी मचलाता हैं उल्टी आती हैं इलायची का चूर्ण अनार के जूस के साथ पीने से जी घबराने और उल्टियां होने जैसी समस्याओं से छुटकारा मिलता हैं ।

9. इलायची के बीज, बादाम और पिस्ता को एक साथ भिगोएं और बारीक़ करके पीस लें । फिर इसे  दूध में पकाएँ जब तक यह गाढ़ा न हो जाएं फिर इसमें मिश्री को मिक्स करें और धीमी आंच पर पकने दें जब तक यह हलवे की तरह गाढ़ा न हो जाएं । इसे खाने से हमारी स्मरण शक्ति बढ़ती हैं और आंखों की कमज़ोरी भी दूर हो जाती हैं ।


10. मुंह में छाले हो जाने पर बड़ी इलायची को बारीक़ पीसकर और उसमें पिसी हुई मिश्री मिक्स करके अपने मुंह में रखें ,आपको आराम मिलेगा ।

साँसो कि बदबू टिप्स🌿 〰〰〰〰〰〰〰

🌿 साँसों की बदबू, मुँह की दुर्गंध एक काफी गंभीर समस्या है और ताज़ी साँसों के लिए आपको थोड़ा जतन करने की ज़रुरत है। अगर आप किसी सामाजिक कार्यक्रम या पार्टी में गए हुए हैं और आपकी साँसों से बदबू आ रही है तो यह आपके लिए काफी शर्मनाक हो सकता है। ऐसे समय में आपको कुछ महत्वपूर्ण नुस्खों की आवश्यकता होगी जिनसे आप अपने साँसों की ताज़गी को बनाए रख सकें।
बुरी सांसों को ठीक करना आपके व्यवसाय, सम्मान, और दूसरे लोगों के पास जाने के लिये बहुत ही महत्तवपूर्ण है। मुंह की देखभाल और मसूढ़ों की किसी बिमारी का इलाज के द्वारा कीटाणुओं को खत्म करके इसे आप सम्भव बना सकते हैं। यह भी सम्भव है कि अपने शरीर में पोषण करने वाले कीटाणुओं की संख्या बढाकर और अपने आपको जलयोजित कर मुंह की बदबू को ठीक कर सकते हैं।

🌿स्वयं को कैसे मुंह की दुर्गंध के बारे में सूचित करे (How to Inform themselves about undesirable breathing)
मुंह की दुर्गंध के इलाज़ में सबसे बड़ी समस्या यह है कि व्यक्तियों को मुंह की दुर्गंध के बारे में पता नहीं चलता है। मुंह की दुर्गंध जीभ के चारों ओर के कीटाणुओं के कारण होता है। जिन लोगों को बुरी सांस को बतलाना हो उन्हें हाथ के पिछले हिस्से को पूरी जीभ से चाटने के लिये कहें। 3 सेकेण्ड के पश्चात अपने हाथ को सूंघने के लिये कहें। अगर यह महक बुरी है तो मुंह की दुर्गंध को ठीक करने के लिये आपको निम्न सलाह को करना चाहिये।
सांसो की दुर्गंध से बचने के घरेलू उपाय –
🌿नमक या नीम्बू से कुल्ला करना (Salt Rinse out or Of lemon Rinse out)
सोडियम से मुंह का कुल्ला करना आपके मुंह से कीटाणुओं को खत्म कर और मुंह की दुर्गंध का इलाज़ भी होगा। आधा चम्मच सोडियम को 50% पानी में मिलाकर मुंह साफ करें यह उपाय सोने से पहले करना फायदेमंद होगा। इसे कुछ रातों तक प्रयोग करने के बाद आपके मसूढ़े लाल के बजाय गुलाबी हो जायेंगे और मुंह की दुर्गंध मुक्ति मिल जायेगी।

🌿मुंह की दुर्गंध (moo ki badboo) को नीम्बू की सहायता से भी ठीक कर सकते हैं, क्योंकि नीम्बू में पाया जाने वाला अम्ल जीभ और मसूढ़े पर पैदा होने वाले कीटाणुओं के विकास को रोक देगा। आप नीम्बू और सोडियम के मिश्रण का भी प्रयोग बिस्तर पर जाने से पहले कर सकते हैं।

🌿सूर्यमुखी के बीज या मिंट की पत्तियों को चबायें (Chew sun flower seeds or Mint Leafs)
ये दोनों घरेलू उपाय आपके मुंह के क्षेत्र को साफ कर नई खुशबू बिखेरते हैं। रात्रि भोजनोपरान्त सूर्यमुखी के बीज को कुतरना बुरी सांसों के लिये अच्छा रहेगा। मिन्ट की पत्तियों को चबाना मुह के क्षेत्र में नई खुशबू लायेगा। जो बुरी सांसों के इलाज में बेहतर समाधान लायेगा।

🌿चीनी से बचें (Prevent Sugar)
संशोधित चीनी आपके दांतों के लिये हानिकारक है और कैविटी को बनाकर बुरी सांसें परिणाम के रूप में देगी। बिस्किट, कैंडी आदि को छोड़ना कुछ अच्छे उपाय है। भूरी चीनी का उपयोग करें। चीनी आपके मुंह के क्षेत्र में सूखेपन को बढ़ाती है जो मुंह से बदबू आना का मुख्य कारक है।

🌿प्रोबायोटिक दही लें (Probiotic curd)
प्रोबायोटिक, असिडोफाइलस के समान कार्य कर मुंह से बदबू का उपाय करता है जब यह नियमित उपयोग किया जाये। दही में पाये जाने वाले पोषक कीटाणुओं का उपभोग मुंह की दुर्गंध को ठीक करने में सहायता करेगा।

🌿मेंथी की चाय पियें (Drink Fenugreek Tea)
मेथी बीज के उत्पाद (मेथी बीज) हमेशा से मुंह से बदबू के लिये अच्छे माने गये हैं। एक चम्मच मेंथी उत्पाद को 3 कप पीने के पानी में एक घंटे तक धीमी आंच पर पकायें जिससे एक चौथाइ बचा रहे। इसे उपयोग करें।

🌿मिनरल पानी, चाय या अनन्नास फल का रस पियें (Drink Mineral water, Tea or Pineapple Veggie juice)
ठीक अन्यों की तरह बुरी सांसों के इलाज़ के लिये पानी एक सीधा तरीका है जो आपके लिये लाभकारी है। मिनरल पानी आपके पेट को ठीक रखता है और जीभ को जलयोजित करता है और कीटाणुओं को नष्ट और साफ कर बुरी सासों को खत्म करता है।
गर्म चाय भी अच्छा परिणम देती है। अनन्नास रस में पाया जाने वाला उच्च अम्ल भी बुरी सांसों के इलाज़ में लाभ देता पाया गया है।
कब्ज से बचें (Keep Constipation)
नियमित रूप से व्यायाम करें और उच्च मात्रा में फाइबर आधारित भोजन को लें यह आपके पेट को ठीक रखकर मुंह से बदबू आना का इलाज़ करेगा।

🌿इलायची बीज या लौंग को चबायें (Chew Cardamom Seeds, Cloves)
दोनो ही समान रूप से मुंह की दुर्गंध को ठीक करने में लाभदायक हैं। खासतौर पर ठीक भोजनोपरांत इसे चबाना अच्छा है।

🌿मुंह की सफाई (Mouth Cleanliness)
यह एक काफी सामान्य बात लग सकती है, परन्तु मुंह की सही देखभाल साँसों की बदबू को दूर करने के लिए काफी आवश्यक है। फ्लॉस करना बिलकुल ना भूलें क्योंकि इसकी मदद से मसूड़ों की समस्या के फलस्वरूप साँसों की बदबू की दूर करने में सहायता मिलती है। इसके अलावा ऐसा टूथपेस्ट चुनें जो मुंह के अंदरूनी भाग को सूखा न बनाता हो।

🌿प्याज और लहसुन खाने से परहेज़ करें (Avoid Eating Onions and Garlic)
ज़्यादातर समय हम लहसुन और प्याज का सेवन करते हैं। ये वे उत्पाद हैं जिनसे हमारी सांसों में बदबू उत्पन्न होती है। अतः जब भी आप इन उत्पादों का सेवन करें, तो इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि आपने अपने दांतों को अच्छे से साफ़ कर लिया हो, जिससे कि आपके मुंह खोलने या किसी से बात करने पर आपके साँसों की बदबू ना आए। आमतौर पर यह काफी आवश्यक है कि आप दिन में दो बार अपने दांतों की सफाई करें। इससे आपको निरंतर साँसों की बदबू से दूर रहने में काफी मदद मिलेगी।

🌿गार्गल करने के लिए पेरोक्साइड का प्रयोग (Using Peroxide to Gargle)
अगर आपको प्लाक की समस्या है तो आपको ऐसे एंटी माइक्रोबियल माउथवाश की ज़रुरत है जो आपको इस समस्या से पूरी तरह निजात दिला सके। सांसों को तरोताज़ा रखने के लिए यह काफी ज़रूरी है कि आप पेरोक्साइड से गार्गल करें। यह बिलकुल साँसों को माउथवाश की मदद से ठीक करने जैसा ही होता है, तथा इस प्रक्रिया के बाद आप अपने शरीर के उस भाग को काफी परफेक्ट महसूस करेंगे।
बुरी सांसो को ताज़ा सांसों में बदलने के इलाज के लिये

🌿फ्लोराइड काफी फायदेमंद (Fluoride is Good for Bad Breath)
अगर आप अपनी साँसों को खुशबूदार बनाना चाहते हैं तो यह काफी ज़रूरी है कि अपने मुंह की सफाई अच्छे से करने के लिए आप फ्लोराइड का प्रयोग करें। अगर आपकी दांतों में सड़न आ गयी है तो साँसों की बदबू कायम रहेगी। इसके अलावा, एक बार आपके दांत खराब हो जाएं तो इनमें काफी दर्द होता है और ऐसी स्थिति में आपके लिए सबसे अच्छा यही रहेगा कि आप निरंतर रूप से फ्लोराइड का इस्तेमाल करें। इस बात का ध्यान रखें कि आपके टूथपेस्ट में फ्लोराइड की मात्रा हो। इससे आपके दांतों को लम्बे समय तक फायदा मिलता रहेगा।

🌿पेट की गड़बड़ी पर नियंत्रण करें (Avoid Upset Stomach for Bad Breath)
अगर आपके पेट में गड़बड़ है तो यह बात बिलकुल पक्की है कि आपके मुंह से बड़ी भयंकर बदबू आएगी। पेट के खराब होने से साँसों में भी बदबू, मुंह की बदबू (moo ki badboo) पैदा हो जाती है। इस स्थिति से निपटने के लिए रोज़ाना एंटासिड लें, जिससे कि आपको पेट में बन रही गैस और अन्य गड़बड़ियों से छुटकारा मिलेगा। जब आपका पेट अच्छी स्थिति में ना हो तो आपको डकार लेने के वक़्त हेलीटोसिस की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। अगर आप दूध पीना सहन नहीं कर सकते और आपको GI की समस्या है तो आप साँसों की बदबू से लड़ने के लिए लैक्टेस टेबलेट्स का अच्छा प्रयोग कर सकते हैं।

🌿इन्फेक्शन का इलाज (Treating the Infection to Cure Bad Breath)
अगर आपको साइनस का इन्फेक्शन है तो आपके मुंह से साँसों की बदबू आना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। जब यह इन्फेक्शन कायम रहता है तो खराब साँसों की समस्या आपको काफी तकलीफ देती है। ऐसी स्थिति में आपको किसी के साथ बात करना तो दूर, किसी के सामने खड़े होने में भी काफी संकोच होता है। इस इन्फेक्शन को दूर करने के लिए आप

🌿प्यूरुलेन्ट पोस्ट नेसल ड्रिप(purulent post nasal drip)का प्रयोग करते हैं और यही आपकी साँसों में बदबू होने का कारण होता है। अतः सुबह आप जैसे ही नींद से जागें तो तुरंत वाशरूम जाएं, ब्रश उठाएं और दांतों की सफाई करना शुरू करें। इस विधि से आप आसानी से साँसों की बदबू की समस्या से दूर रहेंगे। एक बार दांतों को अच्छे से ब्रश कर लेने पर आपको किसी से भी बात करने में किसी प्रकार का संकोच नहीं होगा।

छोटी सी सौंफ के बड़े-बड़े फायदे...


अक्सर रेस्त्रां में खाने के बाद आपके सामने माउथ फ्रेशनर के तौर पर सौंफ रखी जाती है। लेकिन मुँह की बदबू दूर करने के अलावा भी सौंफ के कई फायदे होते हैं। सौंफ में आयरन, कैल्शियम, पोटैशियम, मैंगनीज, जिंक और मैग्नीशियम जैसे मिनरल्स पाए जाते हैं। इसे हमारे शरीर को कई फायदे होते हैं। आपको बताते हैं कि सौंफ खाने से और क्या-क्या फायदे होते है


बदहजमी में मिलती राहत

बदहजमी और कब्ज़ जैसी बीमारियों में भी सौंफ बहुत राहत देती है। जैसे ही आप सौंफ को चबाना शुरू करते हैं, इसमें मौजूद तत्व पाचन क्रिया का काम करना शुरू कर देते हैं। साथ ही इसमें मौजूद फाइबर कब्ज़ की समस्या को दूर करता है।

बीपी को भी कंट्रोल करती है

जर्नल ऑफ फ़ूड साइंस के अध्ययन के अनुसार सौंफ में नाइट्राइड और नाइट्रेट काफी मात्रा में पाए जाते हैं। ये दोनों नए रक्त कोशिकाओं के बनने में सहायता करते हैं। ये लार में नाइट्राइड की मात्रा को बढ़ाकर नैचरल तरीके से बीपी को नियंत्रित करती है। सौंफ में पोटैशियम की उच्च मात्रा कोशिका के लिए जरूरी तत्वों में से एक है।

मुँहासों को आने से रोके

एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-ऑक्सिडेंट गुणों के कारण यह त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसके बीज से बनाया हुआ सॉल्युशन लगाने से मुँहासे कम हो जाते हैं। साथ ही स्किन टोन्ड, हेल्दी और रिंकल-फ्री भी होती है।

एनिमिया से बचाती है

सौंफ में आयरन, कॉपर और हिस्टिडाइन तीनों भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इससे शरीर में लाल रक्त कण (रेड ब्लड सेल्स) ठीक तरह से बन पाती हैं। सौंफ से शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ने लगती है। इससे हीमोग्लोबिन भी बढ़ता है। रोजाना सौंफ खाना प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होता है क्योंकि ये उन्हें एनिमिया से बचाती है।

साँस की बदबू दूर करे

सौंफ माउथ फ्रेशनर का काम करती है। इसमें कई तरह के सुगंधित तेल होते हैं, जो मुँह से बदबू को दूर करते हैं। एंटी-बैक्टिरियल और एंटी इंफ्लैमैटरी गुणों के अलावा ये साँसों की बदबू और मसूड़ों को संक्रमित करने वाले जर्म्स को नष्ट करती है।

मसूड़ों में संक्रमण है तो सौंफ के कुछ दानों को पानी में डालकर उबाल लें और उस काढ़े से गार्गल करें। इस काढ़े से नियमित रूप से गरारा करने पर साँस की बदबू दूर होती है।

कैंसर में भी मिलती राहत!

सौंफ मैंगनीज के अच्छे स्रोतों में एक है। शरीर जब इस मिनरल का इस्तेमाल करता है, तब एक शक्तिशाली एन्टी-ऑक्सिडेंट एन्जाइम सुपरऑक्साइड डिस्म्यूटेस (Super Oxide Dismutase) पैदा होता है। ये कैंसर की संभावना को कम करता है। सौंफ चबाने से त्वचा, पेट और ब्रेस्ट कैंसर की संभावना को कम करता है।

नोट-सौंफ खाने से चंद्रमा ग्रह मजबूत होता है।

दादी माँ के घरेलु नुस्के


》जोड़ों में यूरिक एसिड जमा होना या गठिया
● अक्सर पचास की उम्र के बाद लोगो को गठिया, जोड़ों में यूरिक एसिड जमा होना, जोड़ो का फूलना, जोड़ों की गाँठों में दर्द व सूजन, हड्डी का बढ़ना, जोड़ों में टेढ़ापन आदि शिकायते हो जाती हैं.
इनका कारण दूषित खान-पान, ज्यादा दवाई खाना, थोड़ा सा कमर दर्द या घुटनों के दर्द या गर्दन, पीठ के दर्द में टीवी और कई तरह की पत्र-पत्रिकाओं में आ रहे पेटेंट विज्ञापनों में बताये दर्द नाशक ऑइंटमेंट का प्रयोग करना होता है.
इन दवाइयों और दर्दनाशक ऑइंटमेंट से बचें, नहीं तो उनके विशेषज्ञों के अनुसार आप अपने घुटने के जोड़ को बदलवा लें, जिस पर खर्च मात्र रु. पांच लाख से पंद्रह लाख ही आएगा.
》क्या करें और क्या न करें :-
1. रोगी को कम प्रोटीन व कम वसा वाली शाकाहारी खुराक का सेवन करना चाहिए।
2. भोजन में अधिक मात्रा में सलाद व हल्की पकी हुई सब्जियों का सेवन कर सकते हैं।
3. इस रोग से पीड़ित रोगी को तनाव से बचना चाहिए।
4. रोगी को स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए विशेष उपाए अपनानी चाहिए।
5. पौष्टिक खुराक का सेवन करना चाहिए।
6. स्वास्थ्य के नियमों का पालन करना चाहिए।
7. फलों व सूर्य-तप्त सब्जियों का प्रयोग रोगी के लिए लाभदायक है।
8. प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट तक पैदल चलना लाभदायक होता है।
9. मांस, अम्लीय फल जैसे सन्तरा, नींबू, कॉफी, चाय तथा एल्कोहल आदि पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए।
10. दूध का सेवन नहीं या कम करना चाहिए।
11. सुबह के समय में पैदल घूमना चाहिए।
12. हल्का गर्म पानी से स्नान करना चाहिए।
13. यदि दर्द अधिक तेज हो तो आराम करना चाहिए
14. अपने शरीर को सक्रिय रखना चाहिए।
15. प्रतिदिन सुबह बताये अनुसार व्यायाम करना चाहिए।
16. गर्म पानी की बोतल से रोग ग्रस्त भाग की सिंकाई करनी चाहिए।
17. इच्छा शक्ति को दृढ़ रखना चाहिए।
18. तनाव से मुक्त रहने के लिए योग तथा आसनों का सहारा लेना चाहिए।
19. यदि शरीर का वजन अधिक हो गया हो या अधिक मोटे हो तो उसे कम करने का प्रयास करना चाहिए।
20. इस रोग से यदि कमर तथा पैर अधिक प्रभावित हो तो भारी वस्तुए नहीं उठानी चाहिए।
21. कड़ी मेहनत वाले काम नहीं करना चाहिए।
22. रोग के होने पर रोगी को कभी भी हताश नहीं रहना चाहिए।

》शरीर की ओवरहालिंग और रिचार्जिंग –
हमेशा स्वस्थ रहने के लिए कोई भी व्यक्ति या परिवार अगर निम्न उपचार द्वारा अपने शरीर की ओवरहालिंग और रिचार्जिंग करता है और खान-पान तथा एक्सरसाइज भी निम्न अनुसार लेता है, तो उसे कभी भी कैंसर, डायबटीज, ह्रदय रोग, लिवर रोग, किडनी फेल्यर, टी.बी., फेफड़े के रोग, चर्म रोग आदि कोई भी गंभीर बीमारी नहीं होगी और वह आजीवन सपरिवार स्वस्थ, प्रसन्न और खुशहाल रह सकेगा -
1. सबसे पहले आप सुबह 7 बजे कुल्ला करके सल्फर 200 को, फिर दोपहर को आर्निका 200 और रात्रि को खाने के एक से दो घंटे बाद या नौ बजे नक्स वोम 200 की पांच-पांच बूँद आधा कप पानी से एक हफ्ते तक ले, फिर हर तीन से छह माह में तीन दिन तक लें.
2. इन दवाइयों को लेने के एक हफ्ते बाद हर 15-15 दिन में सोरिनम 200 का मात्र एक-एक पांच बूँद का डोज चार बार तक ले, ताकि आपके शरीर के अंदर जमा दवाई और दूसरे अन्य केमिकल और पेस्टीसाइड के विकार दूर हो सकें और आपके शरीर के सभी ह्रदय, फेफड़े, लीवर, किडनी आदि मुख्य अंग सुचारू रूप से कार्य कर सकेंगे. बच्चों और ज्यादा वृद्धों में ये सभी दवा 30 की पावर में दें.
3. अगर कब्ज रहता हो, तो होम्योलेक्स या HSL कम्पनी की होम्योकाम्ब नं. 67 की एक या आधी गोली रोज रात एक सफ्ताह तक 9.30 बजे लें. इसके बाद हर व्यक्ति को चाहिए कि वह इसे हर हफ्ते एक या आधी गोली रात्रि 9.30 बजे ले.
4. आप सुबह दो से चार गिलास कुनकुना पानी पीकर 5 मिनिट तक कौआ चाल (योग क्रिया) करें.
5. साथ ही पांच या अधिक से अधिक दस बार तक सूर्य नमस्कार करें. फिर 200 से 500 बार तक कपाल-भांति करें. इसके बाद प्राणायाम करें.
6. रोज सुबह और रात को 15-15 मिनिट का शवासन भी करें.
7. फिर एक घंटे बाद अगर सूट करे, तो कम से कम एक माह तक नारियल पानी लें. या फिर इसे दोपहर चार बजे भी ले सकते हैं.
8. सुबह और शाम को अगर संभव हो, तो एक घंटा अवश्य घूमें.
9. रात को सोते समय अष्टावक्र गीता में बताये अनुसार दो मिनिट के लिए “मैं स्वयं ही तीन लोक का चैतन्य सम्राट हूँ” ऐसा जाप करें.
10. उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के चार्ज किये और मिलाकर बने चुम्बकित जल को लगभग 50 मिलीलीटर की मात्रा में रोज दिन में 3 बार उपयोग करें.
11. रोज सुबह उच्च शक्ति चुम्बकों को हथेलियों पर 15 मिनिट से आधे घंटे के लिए लगायें और रात्रि को खाने के दो घंटे बाद पैर के तलुवों पर 15 मिनिट से आधे घंटे के लिए दक्षिणी चुम्बक को बायीं ओर और उत्तरी चुम्बक को दाहिनी ओर लगाये.
12. गेंहू, जौ, देसी चना और सोयाबीन को सम भाग मिलाकर पिसवा ले और उसकी रोटी सादे मसाले की रेशेदार सब्जी से खाएं. दाल का प्रयोग कम कर दें.
13. बारीक आटे व मैदे से बनी वस्तुएं, तली वस्तुएं एव गरिष्ठ भोजन का त्याग करे।
14. सुबह-शाम चाय के स्थान पर नीबू का रस गरम पानी में मिला कर पिएं।
15. खाने में सिर्फ सेंधे नमक का प्रयोग करें.
16. रात को सोने से पहले पेट को ठण्डक पहुँचायें। इसके लिए खाने के चार घंटे बाद एक नेपकिन को सामान्य ठन्डे पानी से गीली करके पेट पर रखें और हर दो मिनिट में पलटते रहें. 15 मिनिट से 20 मिनिट तक इसे करें.
17. मैथी दाना 250 ग्राम, अजबाइन 100 ग्राम और काली जीरी 50 ग्राम को पीस कर इस चूर्ण को कुनकुने पानी से रात्रि 9.30 बजे एक चम्मच लें.
18. रात्रि को खाना और जमीकंद खाना, शराब पीना व धूम्रपान अगर करते हों या तम्बाखू खाते हों, तो इन्हें बंद करें. शाकाहारी भोजन ही लें.
19. अपने शरीर की सालाना ओवरहालिंग के लिए साल में एक बार अपने आसपास के किसी भी प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र में जाकर वहां का दस दिन का कोर्स करें.
20. अपने घर के बुजुर्ग लोगों की रोज एक घंटे के लिये सेवा और मदद करें.
21. अपने आसपास की झोपड़पट्टी में रहने वाले किसी गरीब व्यक्ति की हर हफ्ते जाकर मदद करें.
22. अध्यात्मिक कैप्सूल के रूप में मेरी पुस्तक मुक्तियाँ की एक-एक मुक्ति तीन माह तक रोज पढ़ें. इससे आपकी नेगेटिव एनर्जी कम होगी और पॉजिटिव एनर्जी बहुत तेजी से बढेगी.
23. मेरी स्वस्थ रहे, स्वस्थ करें, मुक्तियाँ और अन्य कई पुस्तकों को मेरे Samadhan समाधान ग्रुप से निशुल्क डाउन लोड करें. आप चाहे तो अपना email address मेरे मेसेज बाक्स में दे दे, तो मैं आपको डायरेक्ट मेल कर दूंगा.
24. होम्योकाम्ब और बायोकाम्ब नम्बर से मिलती हैं. इनके नम्बर ध्यान से लिखें. साथ ही होम्योकाम्ब और बायोकाम्ब में कन्फ्यूज न हों. इन्हें साफ़-साफ़ लिखें.
25. किसी भी गंभीर मरीज को किसी विशेषज्ञ डॉक्टर को तत्काल दिखायें.
26. होम्योपैथी की दवाइयों को मुंह साफ़ करके कुल्ला करके लेना चाहिए. इनको लेते समय किसी भी तरह की सुगन्धित चीजों और प्याज, लहसुन, काफी, हींग और मांसाहार आदि से बचे और दवा लेने के आधा घंटा पहले और बाद में कुछ न लें.
27. हर दिन नई एलोपथिक दवाइयां बन रही हैं और अधिकांश पुरानी दवाइयों के घातक और खतरनाक परिणामों के कारण इन्हें कुछ ही वर्षों में भारत को छोड़ कर विश्व के कई देशों में बेन भी किया जा रहा है.
28. हमें भी चाहिये कि हम मात्र एलोपथिक दवाइयों पर ही निर्भर न रहकर योगासन, सूर्य किरण भोजन, अमृत-जल या सूर्य किरण जल चिकित्सा, एक्यूप्रेशर, बायोकेमिक दवाइयाँ आदि निर्दोष प्रणालियों को अपना कर खुद और अपने परिवार को सुरक्षित करें.
》गठिया का उपचार निम्न है -
1) सबसे पहले आप सुबह 7 बजे कुल्ला करके सल्फर 200 को, फिर दोपहर को आर्निका 200 और रात्रि को खाने के एक से दो घंटे बाद या नौ बजे नक्स वोम 200 की पांच-पांच बूँद आधा कप पानी से एक हफ्ते तक ले, फिर हर तीन से छह माह में तीन दिन तक लें.
2) HSL कम्पनी की होम्योकाम्ब नं. 7 की दो गोली दिन में चार बार लें
3. HSL कम्पनी की DROX 14 की 20 बूँद आधा कप पानी से दिन में चार बार लें.
4. ARTIKA URENS Q की बीस बूँद आधा कप पानी में दिन में तीन बार लें.
5. साथ ही बायो काम्ब नं. 19 की छः गोली दिन में चार बार लम्बे समय तक लें.
6. दर्द और सूजन के लिए आप RHUS BRYO आइन्टमेंट को भी लगा सकते हैं.
7. अगर कभी भी दर्द ज्यादा हो, तो डाबर (आयुर्वेदिक) की सरबाइना स्ट्रांग की एक गोली भी ले सकते हैं.

नीम टिप्स 🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃 •

नीम के तेल से मालिश करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
• नीम के तेल का दिया जलाने से मच्छर भाग जाते है और डेंगू , मलेरिया जैसे रोगों से बचाव होता है
• नीम की दातुन करने से दांत व मसूढे मज़बूत होते है और दांतों में कीडा नहीं लगता है, तथा मुंह से दुर्गंध आना बंद हो जाता है।
• इसमें दोगुना पिसा सेंधा नमक मिलाकर मंजन करने से पायरिया, दांत-दाढ़ का दर्द आदि दूर हो जाता है।
• नीम की कोपलों को पानी में उबालकर कुल्ले करने से दाँतों का दर्द जाता रहता है।
• नीम की पत्तियां चबाने से रक्त शोधन होता है और त्वचा विकार रहित और चमकदार होती है।
• नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर और पानी ठंडा करके उस पानी से नहाने से चर्म विकार दूर होते हैं, और ये ख़ासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक है।
• चेचक होने पर रोगी को नीम की पत्तियों बिछाकर उस पर लिटाएं।
• नीम की छाल के काढे में धनिया और सौंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से मलेरिया रोग में जल्दी लाभ होता है।
• नीम मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को दूर रखने में अत्यन्त सहायक है। जिस वातावरण में नीम के पेड़ रहते हैं, वहाँ मलेरिया नहीं फैलता है। नीम के पत्ते जलाकर रात को धुआं करने से मच्छर नष्ट हो जाते हैं और विषम ज्वर (मलेरिया) से बचाव होता है।
• नीम के फल (छोटा सा) और उसकी पत्तियों से निकाले गये तेल से मालिश की जाये तो शरीर के लिये अच्छा रहता है।
• नीम के द्वारा बनाया गया लेप वालों में लगाने से बाल स्वस्थ रहते हैं और कम झड़ते हैं।
• नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबालें, ठंण्डा होने पर इससे बाल, धोयें स्नान करें कुछ दिनों तक प्रयोग करने से बाल झडने बन्द हो जायेगें व बाल काले व मज़बूत रहेंगें।
• नीम की पत्तियों के रस को आंखों में डालने से आंख आने की बीमारी (कंजेक्टिवाइटिस) समाप्त हो जाती है।
• नीम की पत्तियों के रस और शहद को 2:1 के अनुपात में पीने से पीलिया में फ़ायदा होता है, और इसको कान में डालने कान के विकारों में भी फ़ायदा होता है।
• नीम के तेल की 5-10 बूंदों को सोते समय दूध में डालकर पीने से ज़्यादा पसीना आने और जलन होने सम्बन्धी विकारों में बहुत फ़ायदा होता है।
• नीम के बीजों के चूर्ण को ख़ाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से बवासीर में काफ़ी फ़ायदा होता है।
• नीम की निम्बोली का चूर्ण बनाकर एक-दो ग्राम रात को गुनगुने पानी से लें कुछ दिनों तक नियमित प्रयोग करने से कब्ज रोग नहीं होता है एवं आंतें मज़बूत बनती है।
• गर्मियों में लू लग जाने पर नीम के बारीक पंचांग (फूल, फल, पत्तियां, छाल एवं जड) चूर्ण को पानी मे मिलाकर पीने से लू का प्रभाव शांत हो जाता है।
• बिच्छू के काटने पर नीम के पत्ते मसल कर काटे गये स्थान पर लगाने से जलन नहीं होती है और ज़हर का असर कम हो जाता है।
• नीम के 25 ग्राम तेल में थोडा सा कपूर मिलाकर रखें यह तेल फोडा-फुंसी, घाव आदि में उपयोग रहता है।
• गठिया की सूजन पर नीम के तेल की मालिश करें। (
)
• नीम के पत्ते कीढ़े मारते हैं, इसलिये पत्तों को अनाज, कपड़ों में रखते हैं।
• नीम की 20 पत्तियाँ पीसकर एक कप पानी में मिलाकर पिलाने से हैजा़ ठीक हो जाता है।
• निबोरी नीम का फल होता है, इससे तेल निकला जाता है। आग से जले घाव में इसका तेल लगाने से घाव बहुत जल्दी भर जाता है।
• नीम का फूल तथा निबोरियाँ खाने से पेट के रोग नहीं होते।
• नीम की जड़ को पानी में उबालकर पीने से बुखार दूर हो जाता है।
• छाल को जलाकर उसकी राख में तुलसी के पत्तों का रस मिलाकर लगाने से दाग़ तथा अन्य चर्म रोग ठीक होते हैं।

केन्सर वाले मरिज तक ये मेसेज पहोचाये 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰

👉 अगर किसीको किसी भी प्रकार का केन्सर है तो वो अपनी दवा चल रही है उसे चलने दे . साथ मे निचे दिया गया प्रयोग भी करे आपको केन्सरमे असाधारण लाभ मिलेगा मेने कई मरिजो पर ईसका सफल ईलाज किया है.

👉 सुबह शाम अदरक टुकडा + तुलसी के 15  पत्ते + 1 हल्दी  चमच + 3 चमच शहद मिक्स करके सुबह खालि पेट ले.

👉 रोज सुबह शाम २०-२० मिली गौमुञ अकँ लिजिऐ.

👉 ज्वारे का रस दिनमे ४ बार २०० मिली लिजिये.

केन्सर का अनुभूत सप्लिमेंट
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
👉  नोनी केप्सुल तिनो समय १-१ गोलि खाने से पुवँ ले.

👉 वेस्टीज फ्लेक्स सिड केप्सुल सुबह शाम १-१ केप्सुल खाने के ३० मिनिट बाद ले.

👉 स्पिरुलिनां केप्सुल सुबह शाम २-२ केप्सुल खाने के बाद लिजिऐ.

👉 काव कोलोस्ट्रम केप्सुल तिनो समय २-२ केप्सुल खाने के बाद लिजिऐ.

👉 ये सभी दवाई आयुवैदिक फूड सप्लिमेंट है जिसका कोई भी दुषप्रभाव नहि है आप अपनी ऐलोपेथिक दवाई के साथ ईसे ले सकते है

गुदा के रोग और बवासीर का होमियोपैथिक इलाज


मलद्वार एवं गुदा (Anus) से संबंधित बीमारियां कोई असाधारण बीमारियां नहीं हैं। हर तीसरा या चौथा व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, किसी-न-किसी रूप में इन बीमारियों से पीड़ित पाया जाता है।

बवासीर : मलद्वार के अन्दर अथवा बाहर हीमोरायडल नसों के अनावश्यक फैलाव की वजह से ही बवासीर होता है।

बवासीर का कारण
कब्ज बने रहने, पाखाने के लिए अत्यधिक जोर लगाने एवं अधिक देर तक पाखाने के लिए बैठे रहने के कारण नसों पर दबाव पड़ता है एवं खिंचाव उत्पन्न हो जाता है, जो अन्तत: रोग की उत्पत्ति का कारण बनता है।

बवासीर का लक्षण
गुदा में खुजली महसूस होना, कई बार मस्से जैसा मांसल भाग गुदा के बाहर आ जाता है। कभी-कभी बवासीर में दर्द नहीं होता, किन्तु बहुधा कष्टप्रद होते हैं। मलत्याग के बाद कुछ बूंदें साफ एवं ताजे रक्त की टपक जाती हैं। कई रोगियों में मांसल भाग के बाहर निकल आने से गुदाद्वार लगभग बंद हो जाता है। ऐसे रोगियों में मलत्याग अत्यंत कष्टप्रद होता है।

भगन्दर : गुदा की पिछली भित्ति पर उथला घाव बन जाता है। दस प्रतिशत रोगियों में अगली भिति पर बन सकता है अर्थात् गुदाद्वार से लेकर थोड़ा ऊपर तक एक लम्बा घाव बन जाता है। यदि यही घाव और गहरा हो जाए एवं आर-पार खुल जाए, तो इसे ‘फिस्चुला’ कहते हैं। इस स्थिति में घाव से मवाद भी रिसने लगता है।

भगन्द का लक्षण
अक्सर स्त्रियों में यह बीमारी अधिक पाई जाती है। वह भी युवा स्त्रियों में अधिक। इस बीमारी का मुख्य लक्षण है ‘दर्द’ मल त्याग करते समय यह पीड़ा अधिकतम होती है। दर्द की तीक्ष्णता की वजह से मरीज पाखाना जाने से घबराता है। यदि पाखाना सख्त होता है या कब्ज रहती है, तो दर्द अधिकतम होता है। कई बार पाखाने के साथ खून आता है और यह खून बवासीर के खून से भिन्न होता है। इसमें खून की एक लकीर बन जाती है, पाखाने के ऊपर तथा मलद्वार में तीव्र पीड़ा का अनुभव होता है।

भगन्दर की स्थिति अत्यंत तीक्ष्ण दर्द वाली होती है। इस स्थिति में प्राय: ‘प्राक्टोस्कोप’ से जांच नहीं करते। यदि किसी कारणवश प्राक्टोस्कोप का इस्तेमाल करना ही पड़े, तो मलद्वार को जाइलोकेन जेली लगाकर सुन कर देते हैं।

जांच के दौरान मरीज को जांच वाली टेबल पर करवट के बल लिटा देते हैं। नीचे की टांग सीधी व ऊपर की टांग को पेट से लगाकर लेटना होता है। मरीज को लम्बी सांस लेने को कहा जाता है। उंगली से जांच करते समय दस्ताने पहनना आवश्यक है। ‘प्राक्टोस्कोप’ से जांच के दौरान पहले यंत्र पर कोई चिकना पदार्थ लगा लेते हैं।

बचाव
कब्ज नहीं रहनी चाहिए, पाखाना करते समय अधिक जोर नहीं लगाना चाहिए।

उपचार
आधुनिक चिकित्सा पद्धति में बवासीर का इलाज आपरेशन एवं भगन्दर का इलाज यंत्रों द्वारा गुदाद्वार को चौड़ा करना है। होमियोपैथिक औषधियों का इन बीमारियों पर चमत्कारिक प्रभाव होता है।

‘एलो’, ‘एसिड नाइट्रिक’, ‘एस्कुलस’, ‘कोलोसिंथर’, ‘हेमेमिलिस’, ‘नवसवोमिका’, ‘सल्फर’, ‘थूजा’, ‘ग्रेफाइटिस’, ‘पेट्रोलियम’, ‘फ्लोरिक एसिड’, ‘साइलेशिया’, औषधियां हैं। कुछ प्रमुख दवाएं इस प्रकार हैं –

एलो : मलाशय में लगातार नीचे की ओर दबाव, खून जाना, दर्द, ठंडे पानी से धोने पर आराम मिलना, स्फिक्टर एनाई नामक मांसपेशी का शिथिल हो जाना, हवा खारिज करते समय पाखाने के निकलने का अहसास होना, मलत्याग के बाद मलाशय में दर्द, गुदा में जलन, कब्ज रहना, पाखाने के बाद म्यूकस स्राव, अंगूर के गुच्छे की शक्ल के बाहर को निकले हुए बवासीर के मस्से आदि लक्षण मिलने पर 6 एवं 30 शक्ति की कुछ खुराक लेना ही फायदेमंद रहता है।

एस्कुलस : गुदा में दर्द, ऐसा प्रतीत होना, जैसे मलाशय में छोटी-छोटी डंडिया भरी हों, जलन, मलत्याग के बाद अधिक दर्द, कांच निकलना, बवासीर, कमर में दर्द रहना, खून आना, कब्ज रहना, मलाशय की श्लेष्मा झिल्ली की सूजन आदि लक्षणों पर, खड़े होने से, चलने से परेशानी बढ़ती हो, 30 शक्ति में दवा लेनी चाहिए।

हेमेमिलिस : नसों का खिंचाव, खून आना, गुदा में ऐसा महसूस होना, जैसे चोट लगी हो, गंदा रक्त टपकना, गुदा में दर्द, गर्मी में परेशानी बढ़ना, रक्तस्राव के बाद अत्यधिक कमजोरी महसूस करना आदि लक्षणों के आधार पर 30 शक्ति की दवा कारगर है।

एसिड नाइट्रिक : कब्ज रहना, अत्यधिक जोर लगाने पर थोड़ा-सा पाखाना होना, मलाशय में ऐसा महसूस होना, जैसे फट गया हो, मलत्याग के दौरान तीक्ष्ण दर्द, मलत्याग के बाद अत्यधिक बेचैन करने वाला दर्द, जलन काफी देर तक रहती है। चिड़चिड़ापन, मलत्याग के बाद कमजोरी, बवासीर में खून आना, ठंड एवं गर्म दोनों ही मौसम में परेशानी महसूस करना एवं किसी कार आदि में सफर करने पर आराम मालूम देना आदि लक्षणों के आधार पर 30 शक्ति एवं 6 शक्ति की दवा उपयोगी है।

साइलेशिया : मलाशय चेतनाशून्य महसूस होना, भगन्दर, बवासीर, दर्द, ऐंठन, अत्यधिक जोर लगाने पर थोड़ा-सा पाखाना बाहर निकलता है, किन्तु पुन:अंदर मलाशय में चढ़ जाता है, स्त्रियों में हमेशा माहवारी के पहले कब्ज हो जाती है। फिस्चुला बन जाता है, मवाद आने लगता है, पानी से दर्द बढ़ जाता है। गर्मी में आराम मिलने पर साइलेशिया 6 से 30 शक्ति में लेनी चाहिए।

दवाओं के साथ-साथ खान-पान पर भी उचित ध्यान देना आवश्यक है। गर्म वस्तुएं, तली वस्तुएं, खट्टी वस्तुएं नहीं खानी चाहिए। पानी अधिक पीना चाहिए। रेशेदार वस्तुएं – जैसे दलिया, फल – जैसे पपीता आदि का प्रयोग अधिक करना चाहिए।

कोलिन्सोनिया : महिलाओं के लिए विशेष उपयुक्त। गर्भावस्था में मस्से हों, योनिमार्ग में खुजली, प्रकृति ठण्डी हो, कब्ज रहे, गुदा सूखी व कठोर हो, खांसी चले, दिल की धड़कन अधिक हो।

नक्सवोमिका : प्रकृति ठण्डी, तेज मिर्च-मसालों में रुचि, शराब का सेवन, क्रोधी स्वभाव, दस्त के बाद आराम मालूम देना, मल के साथ खून आना, पाचन शक्ति मन्द होना।

सल्फर : भयंकर जलन, खूनी व सूखे मस्से, प्रात: दर्द की अधिकता, पैर के तलवों में जलन, खड़े होने पर बेचैनी, त्वचा रोग रहे, भूख सहन न हो, रात को पैर रजाई से बाहर रखे, मैला-कुचैला रहे।

थूजा : सख्त कब्ज, बड़े-बड़े सूखे मस्से, मल उंगली से निकालना पड़े, प्यास अधिक, भूख कम, मस्सों में तीव्र वेदना जो बैठने से बढ़ जाए, मूत्र विकार, प्रकृति ठण्डी, प्याज से परहेज करे, अधिक चाय पीने से रोग बढ़े, तो यह दवा लाभप्रद। बवासीर की श्रेष्ठ दवा।

रैटेन्हिया : मलद्वार में दर्द व भारीपन, हर वक्त ऐसा अहसास जैसे कटा हो, 6 अथवा 30 शक्ति में लें।

लगाने की दवा : बायोकेमिक दवा ‘कैल्केरिया फ्लोर’ 1 × शक्ति में पाउडर लेकर नारियल के तेल में इतनी मात्रा में मिलाएं कि मलहम बन जाए। इस मलहम को शौच जाने से पहले व बाद में और रात को सोते समय उंगली से गुदा में अन्दर तक व गुदा मुख पर लगाने से दर्द और जलन में आराम होता है। ‘केलेण्डुला आइंटमेंट’ से भी आराम मिलता है। लगाने के लिए ‘हेमेमिलिस’ एवं ‘एस्कुलस आइंटमेंट’ (मलहम) भी शौच जाने के बाद एवं रात में सोते समय, मलद्वार पर बाहर एवं थोड़ा-सा अंदर तक उंगली से लगा लेना चाहिए। बवासीर, भगन्दर के रोगियों के लिए ‘हॉट सिट्जबाथ’ अत्यधिक फायदेमंद रहता है। इसमें एक टब में कुनकुना पानी करके उसमें बिलकुल नंगा होकर इस प्रकार बैठना चाहिए कि मलद्वार पर पानी का गर्म सेंक बना रहे। 15-20 मिनट तक रोजाना 10-15 दिन ऐसा करने पर आशाजनक लाभ मिलता है।

फायदेमंद भोजन जो कर सकते हैं नुकसान

 आज के विचार में हम बात करते हैं कुछ ऐसे भोजन के बारे में जो स्वास्थ्यवर्धक तो है पर गलत समय पर खाने से वह आपको फायदे की जगह नुकसान करेंगे।

🍌 1. केला - वैसे तो केला एक बहुत ही स्वास्थ्य वर्धक फल माना गया है, जो आपका बल बढ़ाता है। लेकिन अगर इसे सुबह भूखे पेट खाएँ तो यह कैल्शियम और मैग्नीशियम का बैलेंस बिगाड़ कर आपके शरीर में जलन पैदा  करेगा।

🍎 2. सेब - रात को सेब खाने से शरीर में एसिड ज्यादा बनेगा, जिससे आपको खाना पचाने की प्रॉब्लम होगी। इसलिए रात को कभी भी सेब ना खाएँ।

🍵 3. ग्रीन टी - आजकल वजन कम करने के लिए लोग ग्रीन टी का बहुत प्रयोग करते हैं। लेकिन इसे रात के समय में ले। सुबह भूखे पेट लेने से यह आपको फायदा नहीं करेगा।

☕ 4. कॉफी - इसे रात में ना लें। कैफीन ज्यादा होने से आपको नींद नहीं आने की शिकायत रहेगी। शरीर में पानी की कमी हो सकती है।

☕5. चाय - चाय आप कभी खाली पेट ना पिएँ, वरना एसिडिटी की तकलीफ हो सकती है। और हमेशा खाली चाहे भी ना लें। चाय के साथ हमेशा बिस्किट या कुछ और जरूर लेवे।

🍶6. दूध - भूखे पेट कभी दूध न पिएँ, क्योंकि इसमें मौजूद सैचुरेटेड फैट और प्रोटीन पेट की माँस पेशियों को कमजोर करेंगे।

🍲7. दाल - देर रात को दाल न खाएँ, क्योंकि इन में प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, जिससे पाचन नहीं होगा। और indigestion की प्रॉब्लम हो सकती है।

😊 मित्रों !! इसके अलावा आइए कुछ ऐसी चीजे जानते हैं जो छोटी है पर बहुत उपयोगी है।
🍵1) रात को ग्रीन टी लेने से आप अपना वजन कम कर सकते हैं।
🌶2) रात के खाने में हरी मिर्च लेकर भी आप अपना वजन कम कर सकते हैं।
🍒3) सुबह भूखे पेट फल खाना सबसे ज्यादा फायदेमंद है। लेटेस्ट रिसर्च से पता चला है कि इस से कैंसर जैसे रोग भी रोके जा सकते हैं।
🚰4) जो लोग सुबह 1 लीटर पानी पीते हैं वह लोग ज्यादा स्वस्थ रहते हैं।
🚱5) खाने के पहले और बाद 45 मिनट तक पानी ना पिएँ, तो खाना पूर्ण रूप से पच सकता है।
❗6) सिर्फ सुबह सबसे पहले आधा लिटर गरम पानी पीकर आप अपना पेट का फैट कम कर सकते हैं।

धनियां पंजीरी 〰〰〰〰


जन्माष्टमी आने वाली है कान्हा के भोग के लिए प्रसाद मे धनियें का प्रसाद की रेसीपि....

धनियां पंजीरी विशेष रूप से जन्माष्टमी के दिन फलाहार व्रत खोलने में भी खाई जाती है. वैसे आप धनियां की पंजीरी कभी भी बनाकर खा सकते हैं ये बहुत ही स्वादिष्ट और पौष्टिक है.

आवश्यक सामग्री -

🍓धनियां पाउडर- 100 ग्राम (एक कप)

🍓देशी घी - 3 टेबल स्पून

🍓मखाने - आधा कप

🍓पिसी चीनी या बूरा - आधा कप

🍓पका नारियल - आधा कप (कद्दूकस किया हुआ)

🍓काजू ,बादाम - 10 - 10

🍓चिरोंजी - एक चम्मच

विधि :

कढ़ाई में 1 टेबल स्पून घी डालिये और बारीक पिसे धनिये को अच्छी सुगन्ध आने तक भून लिजिये कुछ लोग  साबुत धनियां लेकर पहले उसे भून लेते हैं और बाद में बारीक पीस लेते हैं लेकिन मुझे पिसे धनियां को पीस कर पंजीरी बनान ज्यादा आसान और अच्छा लगता है.

मखाने को काट कर चार टुकड़े कर लीजिये और बचा हुआ घी डाल कर घी में तल कर निकाल लीजिये.  भुने मखाने को बेलन या किसी भारी चीज से दरदरा कर लीजिये.

काजू और बादाम छोटे छोटे काट लीजिये.

भुना हुआ धनियां पाउडर, दरदरे मखाने, कद्दूकस किया नारियल, बूरा और मेवे मिला कर पंजीरी बना लीजिये.

धनियां की पंजीरी  तैयार है. ये धनियां की पंजीरी आप अपने लड्डू गोपाल को खिलाइये और आप खाइये

अदरक के फायदे🍃🍃 〰〰〰〰〰〰〰

अदरक आयुर्वेद व यूनानी चिकित्सा प्राणालियों में शीर्ष स्थान रखती है। इसका हमारे आहार में नियमित स्थान है वा इसका सेवन हमें कई बीमारियों से निजात दिलाता है। वैजानिको के अनुसार ताज़ी अदरक में 81% जल, 2.5% प्रोटीन, 1 % वसा, 2.5 रेशे और 13% कार्बोहाइड्रेट होता है। चलिए जानते हैं अदरक के कुछ लाभदायक गुण।
कैसे है लाभदायक-
1. अदरक में आयरन, केल्शियम, लोह फास्फेट, आयोडीन, क्लोरिन, खनिज लवण तथा विटामिन की प्रचूर मात्रा होती है। शोधों के अनुसार अदरक एक शक्तिशाली एन्टिवायरल भी है इसलिए खाद्य पदार्थों में इसका अधिक से अधिक प्रयोग करने से पाचन तंत्र मजबूत होता है।
2. अदरक को भोजन से पहले सेंधानमक व नींबू का रस डालकर खाने से पाचन क्रिया ठीक रहती है। इससे पेट में गैस नहीं बनती और शौच शुद्वि भी होती है।
3. अदरक के प्रयोग से अजीर्ण, जोडों में दर्द, वमन, बवासीर, अतिसार, संग्रहणी, पेचिस, पीलिया आदि रोगों में लाभ मिलता है।
4. अदरक का प्रयोग हमारे कोलेस्ट्रोल को भी कंट्रोल करता है, इससे ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहता है और इसके इस्तेमाल से खून में क्लाट भी नहीं बनते।
5. अगर आप अपनी त्वचा को आकर्षक व चमकदार बनाना चाहती हैं तो सुबह खाली पेट एक गिलास गुनगुने पानी के साथ अदरक का एक टुकड़ा जरूर खाएं। इससे न केवल आपकी त्वचा में निखार आएगा बल्कि आप लंबे समय तक जवां दिखेंगीं।

6. यदि आपको खांसी के साथ कफ की भी शिकायत है तो रात को सोते समय दूध में अदरक डालकर उबालकर पिएं। यह प्रक्रिया करीब 15 दिनों तक अपनाएं, इससे सीने में जमा कफ आसानी से बाहर निकल आएगा।

Tuesday, 23 August 2016

मलेरिया

⁠⁠⁠परिचय: मलेरिया एक प्रकार का संक्रामक रोग है। यह रोग कई प्रकार के परजीवियों के द्वारा होता है। ये परजीवी मादा मच्छर के शरीर में होते हैं। इन परजीवियों को एनोफलीज कहते हैं।

मलेरिया रोग होने का कारण- जब मादा मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है तो ये एनोफलीज जीवाणु मच्छर के शरीर से व्यक्ति के खून में चले जाते हैं और व्यक्ति को रोगग्रस्त कर देते हैं। कोई व्यक्ति मलेरिया रोग से पीड़ित हो उसे किसी मच्छर ने काट लिया हो और फिर वही मच्छर किसी दूसरे व्यक्ति को काट लेता है तो दूसरे व्यक्ति को भी मलेरिया रोग हो जाता है।

मलेरिया रोग के लक्षण-

मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को ठंड लगकर बुखार आता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी के सिर में दर्द भी होता रहता है।
जिस व्यक्ति को मलेरिया रोग होता है उसके पैरों में दर्द होता है।
मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को कुछ समय बाद पसीना आकर बुखार हो जाता है।
मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को चौथे दिन आने वाला बुखार भी हो सकता है तथा उसका बुखार जीवाणुओं के प्रकार पर निर्भर करता है।
मलेरिया रोग के कारण रोगी के शरीर मे खून की कमी भी हो जाती है।

मलेरिया रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

मलेरिया रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को तब तक उपवास रखना चाहिए जब तक कि उसके शरीर सें मलेरिया रोग के लक्षण दूर न हो जाए। फिर इसके बाद दालचीनी के काढ़े में कालीमिर्च और शहद मिलाकर खुराक के रूप में लेना चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
यदि किसी व्यक्ति को मलेरिया रोग के कारण बुखार है तो उसे लहसुन का काढ़ा बनाकर पिलाने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
मलेरिया रोग से पीड़ित व्यक्ति को उपवास रखने के बाद धीरे-धीरे फल खाने शुरू करने चाहिए तथा इसके बाद सामान्य भोजन सलाद, फल तथा अंकुरित दाल को भोजन के रूप में लेना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से मलेरिया रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी के बुखार को ठीक करने के लिए रोगी को प्रतिदिन गुनगुने पानी का एनिमा देना चाहिए तथा इसके बाद उसके पेट पर मिट्टी की गीली पट्टी लगानी चाहिए और फिर आवश्यकतानुसार गर्म या ठंडा कटिस्नान तथा जलनेति भी कराना चाहिए। इससे मलेरिया रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
यदि मलेरिया रोग का प्रभाव बहुत तेज हो तो रोगी के माथे पर ठण्डी गीली पट्टी रखनी चाहिए तथा उसके शरीर पर स्पंज, गीली चादर लपेटनी चाहिए और फिर इसके बाद गर्म पादस्नान क्रिया करानी चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा उपचार करने से मलेरिया रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को जिस समय बुखार तेज नहीं हो उस समय उसे कुंजल क्रिया करानी चाहिए। इससे मलेरिया रोग में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
यदि मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को ठंड लग रही हो तो रात को सोते समय उसके पास गर्म पानी की बोतल रखकर उसे कम्बल औढ़ा देना चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
रोगी के शरीर पर घर्षण क्रिया करने से मलेरिया रोग बहुत जल्दी ठीक हो जाता है।
मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को पूर्ण रूप से विश्राम करना चाहिए तथा इसके बाद रोगी को अपना इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए।
मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को सूर्यतप्त नीली बोतल का पानी हर 2-2 घंटे पर पिलाने से उसका बुखार जल्दी ठीक हो जाता।
शीतकारी प्राणायाम, शीतली, शवासन तथा योगध्यान करने से भी मलेरिया के रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
मलेरिया रोग से पीड़ित व्यक्ति को ठंडा स्पंज स्नान या ठंडा फ्रिक्शन स्नान कराने से उसके शरीर में फुर्ती पैदा होती है और उसका बुखार भी उतरने लगता है।
रोगी की रीढ़ की हड्डी पर बर्फ की मालिश करने से उसका बुखार कम हो जाता है मलेरिया रोग भी ठीक होने लगता है।
मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को खुले हवादार कमरे में रहना चाहिए। रोगी को हल्के आरामदायक वस्त्र पहनने चाहिए तथा उसे पूरी तरह आराम करना भी बहुत आवश्यक है।
जब रोगी व्यक्ति का बुखार उतर जाता है और उसकी जीभ की सफेदी कम हो जाती है तो उसे फलों का ताजा रस पीकर उपवास तोड़ देना चाहिए और इसके बाद फलों के ताजा रस, कच्चे सलाद, अंकुरित दालों व सूप का सेवन करना चाहिए। ऐसा करने से रोगी को दुबारा बुखार नहीं होता है और मलेरिया रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है।
मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को संतरे का रस दिन में 2 बार पीना चाहिए इससे उसका बुखार जल्दी ही ठीक हो जाता है।
मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को तुलसी के पत्तों का सेवन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
तुलसी की पत्तियों को उबालकर उसमें कालीमिर्च पाउडर और थोड़ी चीनी मिलाकर पीने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को दूध नहीं पीना चाहिए लेकिन यदि उसे दूध पीने की इच्छा हो तो दूध में पानी और 1 चम्मच शहद मिलाकर पीना चाहिए परन्तु इसमें चीनी बिल्कुल भी नहीं मिलानी चाहिए। इस प्रकार से रोगी व्यक्ति का उपचार करने से मलेरिया रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को अपने चारों ओर साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए और फिर प्राकृतिक चिकित्सा से अपना उपचार करना चाहिए।
मलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को रात में मच्छरदानी लगाकर सोना चाहिए।🙏🏻

अमरूद एक बेहतरीन स्वादिष्ट फल है।

अमरूद है एक बेहतरीन औषधि, इन रोगों में करता है दवा का काम
 अमरूद कई गुणों से भरपूर है। अमरूद में प्रोटीन 10.5 प्रतिशत, वसा 0. 2 कैल्शियम 1.01 प्रतिशत बी पाया जाता है। अमरूद का फलों में तीसरा स्थान है। पहले दो नम्बर पर आंवला और चेरी हैं। इन फलों का उपयोग ताजे  फलों की तरह नहीं किया जाता, इसलिए अमरूद विटामिन सी पूर्ति के लिए सर्वोत्तम है।

विटामिन सी छिलके में और उसके ठीक नीचे होता है तथा भीतरी भाग में यह मात्रा घटती जाती है। फल के पकने के साथ-साथ यह मात्रा बढती जाती है। अमरूद में प्रमुख सिट्रिक अम्ल है 6 से 12 प्रतिशत भाग में बीज होते है। इसमें नारंगी, पीला सुगंधित तेल प्राप्त होता है। अमरूद स्वादिष्ट फल होने के साथ-साथ अनेक गुणों से भरा से होता है।

यदि कभी आपका गला ज्यादा ख़राब हो गया हो तो अमरुद के तीन -चार ताज़े पत्ते लें ,उन्हें साफ़ धो लें तथा उनके छोटे-छोटे टुकड़े  तोड़ लें  | एक गिलास पानी लेकर उसमे इन पत्तों को डाल कर उबाल लें , थोड़ा पकाने के बाद आंच बंद कर दें | थोड़ी देर इस पानी को ठंडा होने दें ,जब गरारे करने लायक ठंडा हो जाये तो इसे छानकर ,इसमें नमक मिलाकर गरारे करें , याद रखें कि इसमें ठंडा पानी नहीं मिलना है | 

अमरूद के ताजे पत्तों का रस 10 ग्राम तथा पिसी मिश्री 10 ग्राम मिलाकर 21 दिन प्रात: खाली पेट सेवन करने से भूख खुलकर लगती है और शरीर सौंदर्य में भी वृद्धि होती है।

अमरूद खाने या अमरूद के पत्तों का रस पिलाने से शराब का नशा कम हो जाता है। कच्चे अमरूद को पत्थर पर घिसकर उसका एक सप्ताह तक लेप करने से आधा सिर दर्द समाप्त हो जाता है। यह प्रयोग प्रात:काल करना चाहिए। गठिया के दर्द को सही करने के लिए अमरूद की 4-5 नई कोमल पत्तियों को पीसकर उसमें थोड़ा सा काला नमक मिलाकर रोजाना खाने से से जोड़ो के दर्द में काफी राहत मिलती है।

डायबिटीज के रोगी के लिए एक पके हुये अमरूद को आग में डालकर उसे भूनकर निकाल लें और भुने हुई अमरुद को छीलकर साफ़ करके उसे अच्छे से मैश करके उसका भरता बना लें, उसमें स्वादानुसार नमक, कालीमिर्च, जीरा मिलाकर खाएं, इससे डायबिटीज में काफी लाभ होता है। ताजे अमरूद के 100 ग्राम बीजरहित टुकड़े लेकर उसे ठंडे पानी में 4 घंटे भीगने दीजिए। इसके बाद अमरूद के टुकड़े निकालकर फेंक दें। इस पानी को मधुमेह के रोगी को पिलाने से लाभ होता है।

जब भी आप फोड़े और फुंसियों से परेशान हो तो अमरूद की 7-8 पत्तियों को लेकर थोड़े से पानी में उबालकर पीसकर पेस्ट बना लें और इस पेस्ट को फोड़े-फुंसियों पर लगाने से आराम मिल जाएगा। चार हफ्तों तक नियमित रूप से अमरूद खाने से भी पेट साफ रहता है व फुंसियों की समस्या से राहत मिलती है।

कब्ज का बहुत बढिया उपाय !!!

आज आप जानिये कब्ज के बारे में, कब्ज का मूल कारण  ,कब्ज का बहुत बढिया उपाय है।…………………

अनियमित खान-पान के चलते लोगों में कब्ज एक आम बीमारी की तरह प्रचलित है। यह पाचन तन्त्र का प्रमुख विकार है। मनुष्यों मे मल निष्कासन की फ़्रिक्वेन्सी अलग अलग पाई जाती है। किसी को दिन में एक बार मल विसर्जन होता है तो किसी को दिन में २-३ बार होता है। कुछ लोग हफ़्ते में २ य ३ बार मल विसर्जन करते हैं। ज्यादा कठोर,गाढा और सूखा मल जिसको बाहर धकेलने के लिये जोर लगाना पडे यह कब्ज रोग का प्रमुख लक्छण है।ऐसा मल हफ़्ते में ३ से कम दफ़ा आता है और यह इस रोग का दूसरा लक्छण है। कब्ज रोगियों में पेट फ़ूलने की शिकायत भी साथ में देखने को मिलती है। यह रोग किसी व्यक्ति को किसी भी आयु में हो सकता है हो सकता है लेकिन महिलाओं और बुजुर्गों में कब्ज रोग की प्राधानता पाई जाती है। कब्ज निवारक नुस्खे इस्तेमाल करने से कब्ज का निवारण होता है और कब्ज से होने वाले रोगों से भी बचाव हो जाता है--

१---कब्ज का मूल कारण शरीर मे तरल की कमी होना है। पानी की कमी से आंतों में मल सूख जाता है और मल निष्कासन में जोर लगाना पडता है। अत: कब्ज से परेशान रोगी को दिन मे २४ घंटे मे मौसम के मुताबिक ३ से ५ लिटर पानी पीने की आदत डालना चाहिये। इससे कब्ज रोग निवारण मे बहुत मदद मिलती है।

२...भोजन में रेशे की मात्रा ज्यादा रखने से कब्ज निवारण होता है।हरी पत्तेदार सब्जियों और फ़लों में प्रचुर रेशा पाया जाता है। मेरा सुझाव है कि अपने भोजन मे करीब ७०० ग्राम हरी शाक या फ़ल या दोनो चीजे शामिल करें।

३... सूखा भोजन ना लें। अपने भोजन में तेल और घी की मात्रा का उचित स्तर बनाये रखें। चिकनाई वाले पदार्थ से दस्त साफ़ आती है।

४..पका हुआ बिल्व फ़ल कब्ज के लिये श्रेष्ठ औषधि है। इसे पानी में उबालें। फ़िर मसलकर रस निकालकर नित्य ७ दिन तक पियें। कज मिटेगी।

५.. रात को सोते समय एक गिलास गरम दूध पियें। मल आंतों में चिपक रहा हो तो दूध में ३ -४ चम्मच केस्टर आईल (अरंडी तेल) मिलाकर पीना चाहिये।

६..इसबगोल की की भूसी कब्ज में परम हितकारी है। दूध या पानी के साथ २-३ चम्मच इसबगोल की भूसी रात को सोते वक्त लेना फ़ायदे मंद है। दस्त खुलासा होने लगता है।यह एक कुदरती रेशा है और आंतों की सक्रियता बढाता है।

७..नींबू कब्ज में गुण्कारी है। मामुली गरम जल में एक नींबू निचोडकर दिन में २-३बार पियें। जरूर लाभ होगा।

८..एक गिलास दूध में १-२ चाम्मच घी मिलाकर रात को सोते समय पीने से भी कब्ज रोग का समाधान होता है।

९...एक कप गरम जल मे १ चम्म्च शहद मिलाकर पीने से कब्ज मिटती है। यह मिश्रण दिन मे ३ बार पीना हितकर है।

१०.. जल्दी सुबह उठकर एक लिटर गरम पानी पीकर २-३ किलोमीटर घूमने जाएं। बहुत बढिया उपाय है।

११..दो सेब फ़ल प्रतिदिन खाने से कब्ज में लाभ होता है।

१२..अमरूद और पपीता ये दोनो फ़ल कब्ज रोगी के लिये अमॄत समान है। ये फ़ल दिन मे किसी भी समय खाये जा सकते हैं। इन फ़लों में पर्याप्त रेशा होता है और आंतों को शक्ति देते हैं। मल आसानी से विसर्जीत होता है।

१२..अंगूर मे कब्ज निवारण के गुण हैं । सूखे अंगूर याने किश्मिश पानी में ३ घन्टे गलाकर खाने से आंतों को ताकत मिलती है और दस्त आसानी से आती है। जब तक बाजार मे अंगूर मिलें नियमित रूप से उपयोग करते रहें।

13..एक और बढिया तरीका है। अलसी के बीज का मिक्सर में पावडर बनालें। एक गिलास पानी मे २० ग्राम के करीब यह पावडर डालें और ३-४ घन्टे तक गलने के बाद छानकर यह पानी पी जाएं। बेहद उपकारी ईलाज है।

१४.. पालक का रस या पालक कच्चा खाने से कब्ज नाश होता है। एक गिलास पालक का रस रोज पीना उत्तम है। पुरानी कब्ज भी इस सरल उपचार से मिट जाती है।

१५.. अंजीर कब्ज हरण फ़ल है। ३-४ अंजीर फ़ल रात भर पानी में गलावें। सुबह खाएं आंतों को गतिमान कर कब्ज का निवारण होता है।

■ " चूना अमृत है " ..■

सुबह को खाली पेट चूना खाओ
〰〰〰〰〰〰〰

चूना जो आप पान में खाते है वो सत्तर बीमारी ठीक कर देते है ।
जैसे किसी को पीलिया हो जाये माने जॉन्डिस उसकी सबसे अच्छी दवा है चूना ;
गेहूँ के दाने के बराबर चूना गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से बहुत जल्दी पीलिया ठीक कर देता है ।
और ये ही चूना नपुंसकता की सबसे अच्छी दवा है -

■ अगर किसी के शुक्राणु नही बनता उसको अगर गन्ने के रस के साथ चूना पिलाया जाये तो  साल डेढ़ साल में भरपूर शुक्राणु बनने लगेंगे; और  जिन माताओं के शरीर में अन्डे नही बनते उनकी बहुत अच्छी दवा है ये चूना ।

■ बिद्यार्थीओ के लिए चूना बहुत अच्छा है जो लम्बाई बढाता है -

■ गेहूँ के दाने के बराबर चूना रोज दही में मिला के खाना चाहिए,
दही नही है तो दाल में मिला के खाओ,  दाल नही है तो पानी में मिला के पियो - इससे लम्बाई बढने के साथ स्मरण शक्ति भी बहुत अच्छा होता है ।

■ जिन बच्चों की बुद्धि कम काम करती है मतिमंद बच्चे उनकी सबसे अच्छी दवा है चूना

■ जो बच्चे बुद्धि से कम है, दिमाग देर में काम करते है, देर में सोचते है हर चीज उनकी स्लो है उन सभी बच्चे को चूना खिलाने से अच्छे हो जायेंगे ।

■ बहनों को अपने मासिक धर्म के समय अगर कुछ भी तकलीफ होती हो तो उसका सबसे अच्छी दवा है चूना ।

हमारे घर में जो माताएं है जिनकी उम्र पचास वर्ष हो गयी और उनका मासिक धर्म बंध हुआ उनकी सबसे
अच्छी दवा है चूना;
गेहूँ के दाने के बराबर चूना हर दिन खाना दाल में, लस्सी में, नही तो पानी में घोल के पीना । जब कोई माँ गर्भावस्था में है तो चूना रोज खाना चाहिए
क्योंकि गर्भवती माँ को सबसे ज्यादा केल्शियम की जरुरत होती है और चूना केल्शियम का सबसे बड़ा भंडार है ।

■ गर्भवती माँ को चूना खिलाना चाहिए

अनार के रस में - अनार का रस एक कप और चूना गेहूँ के दाने के बराबर ये मिलाके रोज पिलाइए नौ महीने तक लगातार दीजिये

तो चार फायदे होंगे -

■ पहला फायदा :-
माँ को बच्चे के जनम के समय कोई तकलीफ नही होगी और नॉर्मल डीलिवरी होगा,

■ दूसरा :-
बच्चा जो पैदा होगा वो बहुत हृष्ट पुष्ट और तंदुरुस्त होगा ,

■ तीसरा फ़ायदा :-
बच्चा जिन्दगी में जल्दी बीमार नही पड़ता जिसकी माँ ने चूना खाया ,

■ चौथा सबसे बड़ा लाभ :-
बच्चा बहुत होशियार होता है बहुत Intelligent और Brilliant होता है उसका IQ बहुत अच्छा होता है ।

चूना घुटने का दर्द ठीक करता है , ■ कमर का दर्द ठीक करता है ,
■ कंधे का दर्द ठीक करता है,

■ एक खतरनाक बीमारी है Spondylitis वो चुने से ठीक होता है ।

कई बार हमारे रीढ़की हड्डी में जो मनके होते है उसमे दुरी बढ़ जाती है Gap आ जाता है - ये चूना ही ठीक करता है

उसको; रीड़ की हड्डी की सब बीमारिया चूने से ठीक होता है ।
अगर आपकी हड्डी टूट जाये तो टूटी हुई हड्डी को जोड़ने की ताकत सबसे ज्यादा चूने में है ।
चूना खाइए सुबह को खाली पेट ।

■ मुंह में ठंडा गरम पानी लगता है तो चूना खाओ बिलकुल ठीक हो जाता है ,

■ मुंह में अगर छाले हो गए है
तो चूने का पानी पियो तुरन्त ठीक हो जाता है ।

■ शरीर में जब खून कम हो जाये तो चूना जरुर लेना चाहिए ,

■ एनीमिया है खून की कमी है उसकी सबसे अच्छी दवा है ये चूना ,

चूना पीते रहो गन्ने के रस में , या संतरे के रस में नही तो सबसे अच्छा है अनार के रस में - अनार के रस में चूना पिए खून बहुत बढता है ,
बहुत जल्दी खून बनता है -
एक कप अनार का रस गेहूँ के दाने के बराबर चूना सुबह खाली पेट ।

भारत के जो लोग चूने से पान खाते है, बहुत होशियार लोग है पर तम्बाकू नही खाना, तम्बाकू ज़हर है और चूना अमृत है ..

तो चूना खाइए तम्बाकू मत खाइए और पान खाइए चूने का उसमे कत्था मत लगाइए, कत्था केन्सर करता है,

● पान में सुपारी मत डालिए ● सोंट डालिए उसमे ,
● इलाइची डालिए ,
● लौंग डालिए.
● केशर डालिए ;
ये सब डालिए पान में चूना लगा के पर तम्बाकू नही , सुपारी नही और कत्था नही ।

■ घुटने में घिसाव आ गया और डॉक्टर कहे के घुटना बदल दो तो भी जरुरत नही चूना खाते रहिये  और हरसिंगार के पत्ते का काढ़ा खाइए घुटने बहुत अच्छे काम करेंगे ।

दोस्तों का फायदा चाहते हो तो फॉरवर्ड करे

ताम्बे के पात्र में जल पीने से लाभ


पेट में गैस:-निरोगिता अर्थात स्वस्थ शरीर के लिए हमारे ऋषि मुनि प्राचीन काल से ही जल को ताम्बे के बर्तन में संग्रहित करते थे । उस समय में लोग पानी पीने के लिए ताम्बे के बर्तनो का ही प्रयोग करते थे । आयुर्वेद में कहा गया है कि ताम्बे के बर्तन में रखा गया पानी हमारे शरीर के कई विकारो को दूर करता है। आयुर्वेद के अनुसार इस पानी के सेवन से हमारे शरीर के सभी जहरीले तत्व मल मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर निकल जाते हैं। हमारे ऋषियों के अनुसार यदि हम रात को तांबे के बर्तन में पानी रख दें और सुबह इस पानी का सेवन करें तो इससे बहुत से लाभ मिलते हैं। रात को तांबे के बर्तन में रखा हुआ जल ताम्रजल के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, तांबे के बर्तन में संग्रहीत किया हुआ जल हमारे शरीर में तीन दोषों वात, कफ और पित्त को संतुलित करने में पूर्णतया सक्षम होता है तांबे के बर्तन में कम 8 घंटे तक रखा हुआ जल ही लाभदायक होता है, इस अवधि के दौरान तांबा धीरे धीरे जल में मिलकर उसे सकारात्‍मक गुण प्रदान करता है। ताम्बे के पात्र में रखे जल की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि यह कभी भी बासी या बेस्‍वाद नहीं होता, यह लम्बे समय तक पीने के योग्य बना रहता है । यहाँ पर हम आपको तांबे के बर्तन में रखे पानी को पीने से होने वाले कुछ महत्वपूर्ण लाभ बता रहे है:--

पानी के बैक्टीरिया को दूर करता है :- तांबे में ऐसा नैसर्गिक गुण है जिससे ताम्बे के बर्तन में रखे पानी से बैक्‍टीरिया को नष्‍ट किया जा सकता है। इसी कारण से तांबा डायरिया, दस्‍त , पेट की अन्य बिमारियों और पीलिया आदि को रोकने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। वास्तव में तांबा पानी के शोधन के लिए सबसे सस्‍ता और उपयोगी साधन है। आयुर्वेद के अनुसार, ताम्बे में रखे जल के सेवन से हमारे शरीर के विषाक्त पदार्थ बहार निकाल जाते है ।

पाचन क्रिया के लिए आदर्श :- वैज्ञानिको ने अपने शोध में यह पाया है की ताम्बे के बर्तन में 8 घंटे से ज्यादा रखे पानी के सेवन से हमारा पाचन तंत्र मजबूत होता है । वर्तमान समय में अनियमित और दूषित खानपान से बहुत से लोगो को एसीडिटी, बदहजमी, अपाच्य आदि की समस्या का सामना करना पड़ता है । लेकिन तांबे के बर्तन में रखे पानी के नियमित सेवन से इनसे छुटकारा मिल जाता है। शोधों से यह भी पता चला है कि तांबे में ऐसे तत्व विधमान होते हैं जो हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करके पेट की समस्त समस्याओं को दूर करते है ।

वजन घटाने में सहायक :- ताम्बे के बर्तन में रखा पानी वजन कम करने में बहुत असरदार माना जाता है ।यदि तमाम प्रयासों , रेशेदार फल, सब्जियाँ खाने के बाद भी अगर आपका वजन कम नहीं हो रहा है तो नियम पूर्वक तांबे के बर्तन में संग्रहीत पानी को पियें। इस पानी के नित्य सेवन से हमारे शरीर की चर्बी धीरे धीरे कम होती जाती है।

त्वचा स्वस्थ रखे:- आजकल लोग अपनी त्वचा को खुबसूरत और स्वस्थ बनाये रखने के लिए तरह-तरह के सौन्दर्य प्रसाधनो का उपयोग करते हैं लेकिन त्वचा की खूबसूरती के लिए केवल यही काफी नहीं है, हमारी त्वचा पर सबसे अधिक प्रभाव हमारे खानपान और हमारी दिनचर्या का पड़ता है। इसीलिए अगर आप अपनी त्वचा को स्वस्थ और सुन्दर बनाना चाहते हैं तो आप नियमपूर्वक तांबे के बर्तन में रातभर का रखा हुआ 4 गिलास पानी सुबह के समय पीने की आदत डालें। इस पानी के नियमित रूप से सेवन से आपकी त्वचा का ढीलापन दूर होता है और डेड स्किन भी निकल जाती है, और त्वचा लम्बे समय तक जवान नज़र आती है। आयुर्वेद के अनुसार नित्य प्रात: तांबे के बर्तन में पानी पीने से त्वचा में बहुत फर्क आ जाता है।

झुर्रियों को दूर रखे:- बदती उम्र के कारण चेहरे पर झुर्रियों आ जाती है जिसको दूर करने के लिए लोग तरह तरह के जतन करते है लेकिन ताम्बे के पात्र में संगृहीत किया हुआ पानी इसके लिए एक आदर्श प्राकृतिक उपचार माना गया है। ताम्बे में बहुत अधिक मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट होते है, और अपनी स्वाभाविक कोशिकाओं के निर्माण की क्षमता के कारण से तांबा फ्री रेडिकल्स को ख़त्म करता जाता है जो कि झुर्रियों के मुख्य कारण होते है। ताम्बे के पात्र में रखे पानी के नियमित सेवन से पुरानी कोशिकाओं की जगह नई कोशिकाएं आ जाती है जिससे व्यक्ति की उम्र का पता ही नहीं चलता है, उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है । ।

दिल की समस्याओं को दूर करें :- वर्तमान समय में दिल से जुडी बीमारियां समाज में बहुत ही आम होती जा रही हैं। लेकिन ताम्बें के बर्तन में रखे पानी का सेवन करने से दिल की बीमारीयों का खतरा कम हो जाता है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी की एक रिपोर्ट के अनुसार ताम्बे में यह गुण होते है जिससे हमारा रक्तचाप और दिल की धड़कनों को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। तम्बा हमारे शरीर से बुरे कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है। इसलिए अगर कोई भी व्यक्ति दिल की बिमारियों से दूर रहना चाहता है तो उसे तांबे के बर्तन में रखा पानी ही पीना चाहिए ।

गठिया में लाभकारी :- गठिया या जोड़ों में दर्द की समस्‍या वैसे तो एक उम्र के बाद अधिकांश लोगो को हो जाती है लेकिन वर्तमान समय में यह बहुत ही कम उम्र में भी लोगो को होने लगी है। लेकिन यदि आप नियमित रूप से ताम्बे के पात्र में रखे पानी का सेवन करते है तो यह समस्या आपसे लम्बे समय तक दूर ही रहेगी । जी हाँ चूँकि तांबे में एंटी-इफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो ना केवल दर्द से राहत देते है वरन इससे गठिया में भी विशेष रूप से लाभ मिलता है। तांबे के बर्तन में रखे जल का सेवन करने की वजह से शरीर में यूरिक एसिड कम हो जाता है जिससे गठिया व जोड़ों में सूजन के कारण होने वाले दर्द में आराम मिलता है।

थायराइड को नियंत्रित करे :- थायराइड की बीमारी थायरेक्सीन हार्मोन के असंतुलन के कारण होती है। तेजी से वजन घटना या बढ़ना, अधिक थकान महसूस होना आदि थायराइड के प्रमुख लक्षणों में हैं। कॉपर थायरॉयड ग्रंथि के बेहतर कार्य करने की जरूरत के लिए सबसे महत्‍वपूर्ण मिनरलों में से एक है। थायराइड विशेषज्ञों के अनुसार, कि तांबे के बर्तन में रखा पानी में ताम्बे के सपर्क के कारण यह गुण आ जाते है कि इस पानी को पीने से शरीर में थायरेक्सीन हार्मोन नियंत्रित होकर बेहतर कार्य करते हुए इस ग्रंथि की कार्यप्रणाली को भी नियंत्रित करता है। दुसरे शब्दों में कॉपर की वजह से यह पानी शरीर में थायरेक्सीन हार्मोन को बैलेंस कर देता है। इसीलिए तांबे के बर्तन में रखे पानी के सेवन से थायराइड नियंत्रित रहता है।

मस्तिष्क के लिए लाभकारी :- ताम्बें के पात्र में रखे जल का नियमित रूप से सेवन करने से हमारे मस्तिष्क को बहुत ही लाभ मिलता है । हमारा मस्तिष्क एक तंत्रिका कोशिका के दूसरे तंत्रिका कोशिका तक संदेश पहुंचाने से ही काम कर पाता है। ये तंत्रिका कोशिकाएं एक मायलिन नाम के आवरण से ढंकी होती हैं, जो उनके संदेशो को पहुंचाने में सहायक होता है। तांबा इसी मायलिन आवरण के तैयार होने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है , जिससे मस्तिष्क स्वस्थ रहता है और हम चीजों को लम्बे समय तक याद रख पाते है ।

खून की कमी को दूर करें - आज ना केवल भारत वरन विश्व की बहुत बड़ी आबादी एनीमिया या खून की कमी एक से परेशान हैं। विशेषकर महिलाओं में यह समस्या बहुत ही ज्यादा पाई जाती है । कॉपर हमारे शरीर की अधिकांश प्रक्रियाओं में बेहद आवश्यक है। कापर हमारे शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को भी अवशोषित करने का काम करता है। तांबे के इन्ही गुणों के कारण इसमें रखे पानी को पीने से एनीमिया अर्थात खून की कमी और खून के ने विकार दूर हो जाते हैं।

कैंसर को दूर करें :- कैंसर के शिकार व्यक्ति को सदैव तांबे के बर्तन में रखा हुआ जल का ही सेवन करना चाहिए। इससे कैंसर में बहुत लाभ मिलता है। ताम्बे के बर्तन में रखे जल में एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं, जो शरीर को इस रोग से लड़ने की शक्ति देते हैं। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, कॉपर बहुत से तरीको से कैंसर के मरीज की मदद करता है। कैंसर में ताम्बा बहुत ही लाभकारी होती है और तांबे के बर्तन में रखा हुआ जल हमारी वात, पित्त और कफ की शिकायत को भी दूर करता है।

घाव भरने में मददगार :- तांबा अपने एंटी-बैक्‍टीरियल, एंटीवायरल और एंटी इफ्लेमेटरी गुणों के लिए बहुत ही प्रसिद्द है। शायद इसलिए तांबा घावों को जल्‍दी भरने के लिए बहुत मददगार सिद्ध होता है । जी हाँ ताम्बे के पात्र में रखे पानी का नियमित रूप से सेवन करने से सभी तरह के घाव जल्दी भर जाते है । प्रसव के बाद स्त्रियों को तो विशेष रूप से ताम्बे के बर्तन में रखा जल ही पीना चाहिए ।

तांबे का बर्तन खरीदते हुए यह विशेष रूप से ध्यान रखें कि वो बर्तन शुद्ध तांबे से बना हो। आप ताम्बे के बर्तनों में तांबे का जग, लोटा या ताम्बे का गिलास खरीद सकते हैं। एक बात का और ध्यान रखे कि तांबे के बर्तन में जब पानी डालकर रखें तो उसे ढंकना बिलकुल भी न भूलें। तांबे के बर्तन को धोने , साफ करने के लिए नींबू का इस्तेमाल अच्छा रहता है।

Saturday, 20 August 2016

ब्रेड और पांव

आपके घर में अक्सर ब्रेड और पांव आते होंगे.

सुबह का नाश्ते से लेकर शाम के नाश्ते तक आप और आपके बच्चे ना जाने कितनी बार ब्रेड और पांव खाते होंगे.

आपको भी लगता होगा कि चलो कोई बात नहीं, बेटा बटर लगाकर ब्रेड ही तो खा रहा है.

चलिए इसको छोड़िये और यह देखिये कि कई बार तो माँ-बाप ही अपने छोटे-छोटे बच्चों को बचपन से ब्रेड ही खिलाते हैं. ब्रेड जिसे डबल रोटी भी बोला जाता है. इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह जल्द बच्चों-बड़ों का पेट भर देती है और इसको खाने के बाद काफी समय तक भूख नहीं लगती है.

अब जरा पाव की बात करें तो आजकल बर्गर और वडा के साथ यह खूब फेमस हो रहा है. आराम से बैठकर हम बर्गर खाते हैं और तब खुद को विकसित समझते हैं.

अब जरा घर की बनाई दो दिन की पुरानी रोटी खा लीजिये

अब आपसे कोई यह बोल दे कि घर में रखी दो दिन पुरानी रोटी खा लीजिये तो तब आप गुस्से से लाल पीले हो जायेंगे लेकिन यह रोटी नहीं खायेंगे. लेकिन आपको आज हम बता दें कि जो आप ब्रेड और पाव खा रहे हैं वह तो कम से कम 5 से 6 दिन पुराना सामान होता है और कई बार तो सप्ताह भर पुराने आटे से ब्रेड और पाव का निर्माण हो रहा है.

पढ़ाई लिखाई के इस दौर में पढ़े लिखे अनपढ़ लोगों की संख्या अधिक होती जा रही है.

हम दुकान पर जाते हैं और एक्सपायर डेट देखकर ब्रेड ले आते हैं. अब एक बात का जवाब आप दीजिये कि जो ब्रेड बचती हैं आखिर वह कहाँ जाती हैं? कम्पनी के पास इस बात का जवाब होगा, इसकी उम्मीद उनसे आप मत कीजिये. वह बोलेंगे कि जानवरों को खिला दी जाती हैं. तो क्या आपको लगता है कि यह बहुराष्ट्रीय कम्पनियां ऐसा कर सकती हैं. असल में सच यह है कि वह आपके पास लौटकर वापस आ जाती हैं.

बिमारियों का घर हैं ब्रेड

जो लोग ब्रेड और पांव का उपयोग बहुत ज्यादा करते हैं, उन लोगों को बीमारियाँ भी उतनी ज्यादा होती हैं. ब्रेड और पांव खाने से मोटापा बढ़ता है. शुगर के मरीज के लिए तो ब्रेड जहर है. दिल की बीमारियों का डर ब्रेड खाने से बढ़ जाता है.

गेहूं वाली ब्रेड भी बेकार है क्या?

तो इसका जवाब हां है. आपको अगर लगता है कि कम्पनियां आपके लिए अच्छा गेहूं खरीदती हैं तो यह आपकी बेवकूफी है. सबसे खराब क्वालिटी का गेंहू ब्रेड बनाने में उपयोग किया जाता है. साथ ही साथ जिस तरह से यहाँ आटा गूंथा जाता है, उसको बताने पर तो बड़ा हंगामा हो जाने के चांस हैं.

क्या ब्रेड एक भारतीय खाना है?

आपको अगर ऐसा लगता है कि ब्रेड एक भारतीय खाना है तो आप गलत सोच रहे हैं.

ब्रेड जैसी चीजें और पाव, यह सब यूरोप का खाना है. ब्रेड उन देशों का भोजन है जहाँ सालभर सर्दी रहती है और बहुत अधिक सर्दी रहती है. तापमान इतना कम होता है कि पानी की बर्फ बनी होती है. तब यहाँ पर आटा गुथने के लिए भी पानी नहीं होता है और इसलिए यहाँ एक बार में ही आटा बनाकर ब्रेड बना दी जाती है.

ये लोग दिन में दो बार ही खाते हैं इसलिए ब्रेड पेट में जाकर फूल जाती हैं और कई घंटों में पचती हैं. इससे इन लोगों को भूख कम लगती है. आटे को सड़ाकर जब ब्रेड बनती है तो यह इन देशों में कई दिनों तक रखी रहती हैं. सर्दी इतनी कि यह खराब नहीं होती हैं और ठंडे लोगों के पेट में जाकर रखी रहती हैं.

वहीँ भारतीय वातावरण के अनुसार ब्रेड जहर का काम करती है.

यहाँ तापमान इतना नहीं होता है कि आप आटा ना गुंथ सको. साथ ही साथ ब्रेड इतने गर्म देश के लोगों के लिए अत्यधिक नुकसानदायक होती है. कई दिनों तक यह पेट में पड़ी रहती हैं. पेट में पड़ी-पड़ी बदबू देने लगती हैं.

तो अब आप इस बात का निर्धारण आप कीजिये कि आपको अब भी क्या यह जहर खाना है?

तो सच यही है जो हमने आपको बता दिया है बाकी जीवन आपका है और यह शरीर भी आपका है, आप जो चाहे इसके साथ कर सकते हैं.

खसखस

खसखस सूक्ष्म आकार का बीज होता है।
इसे लोग पॉपी सीड (Poppy Seed) के नाम से भी जानते हैं। खसखस प्यास को बुझाता है और ज्वर, सूजन और पेट की जलन से राहत दिलाता है और यह एक दर्द-निवारक भी है।
लंबे समय से ही प्राचीन सभ्यता मे इसका उपयोग औषधीय लाभों के लिए किया जाता रहा है|
पौष्टक और स्वाद से भरपूर खसखस का इस्तेमाल सब्जी की ग्रेवी बनाने और सर्दी के दिनों में स्वादिष्ट हलवा बनाने के लिए किया जाता है। यह स्वाद और सेहत से भरपूर है,
इसलिए स्वास्थ्य समस्याओं का उपचार करने के लिए भी इसे दवा के रूप में प्रयोग करते हैं।
➡ आइए जानते हैं, खसखस के ऐसे ही बेहतरीन गुणों के बारे में –
1. अनिद्रा– खसखस नींद से जुड़ी दिक्कतों में मदद करता है क्योंकि इसके सेवन से आपके अंदर सोने के लिए मजबूत इच्छा पैदा होती हैं। अगर आप भी अनिद्रा की समस्या से परेशान हैं, तो सोने से पहले खसखस के पेस्ट को गर्म दूध के साथ सेवन करना समस्या में बहुत प्रभावी साबित हो सकता है।
2. श्वसन संबंधी विकार – खसखस के बीज में शांतिदायक गुण होने के कारण यह सांस की बीमारियों के इलाज में बहुत कारगर होता है। यह खांसी को कम करने में मदद करता है और अस्थमा जैसी समस्याओं के खिलाफ लंबे समय तक राहत प्रदान करता है।
3. बलवान – खसखस के बीज ओमेगा-6 फैटी एसिड, प्रोटीन, फाइबर का अच्छा स्रोत हैं। इसके अलावा इसमें विभिन्न फाइटोकेमिकल्स, विटामिन बी, थायमिन, कैल्शियम और मैंगनीज भी होता हैं। इसलिए खसखस को एक उच्च पोषण वाला आहार माना जाता है।
4. कब्ज– खसखस फाइबर को बहुत अच्छा स्रोत हैं।
इसमें इसके वजन से लगभग 20-30 प्रतिशत आहार फाइबर शामिल होता हैं। फाइबर स्वस्थ मल त्याग में और कब्ज की दिक्कत दूर करने में बहुत लाभकारी होती है। लगभग 200 ग्राम खसखस आपके दैनिक फाइबर की जरूरत को पूरा कर सकता हैं|
5. शांतिकर औषधि– सूखी खसखस को प्राकृतिक शांति प्रदान करने वाली औषधि माना जाता है कारण ,इसमें थोड़ी सी मात्रा में ओपियम एल्कलॉइड्स नामक रसायन होता है। यह रसायन तंत्रिका की अतिसंवेदनशीलता, खांसी और अनिद्रा को कम करते हुए आपकी तंत्रिका तंत्र पर एक न्यूनतम प्रभाव उत्पन्न करता है।
6. एंटीऑक्सीडेंट– माना जाता है कि खसखस में बहुत अधिक मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होने के कारण इसमें अद्भुत एंटीऑक्सीडेंट गुण होते है। ये एंटीऑक्सीडेंट फ्री रेडिकल के हमलों से अंगों और ऊतकों की रक्षा करते है।
इसलिए इन सब खतरों से बचने के लिए हमें अपने आहार में खसखस को शामिल करना चाहिए।
7. दर्द-निवारक – खसखस में मौजूद ओपियम एल्कलॉइड्स नामक रसायन होता है, जो दर्द-निवारक के रूप में बहुत कारगर होता है। खसखस को दांत में दर्द, मांसपेशियों और नसों के दर्द को दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।खसखस एक लोकप्रिय दर्द-निवारक भी है।
8. त्वचा की देखभाल – आयुर्वेद में तो हमेशा से ही खसखस को त्वचा के लिए अच्छा माना जाता है। यह एक मॉइस्चराइजर की तरह काम करता है और त्वचा की जलन और खुजली को कम करने में मदद करता है। इसके अलावा इसमें मौजूद लिनोलिक नामक एसिड एक्जिमा के उपचार में भी मददगार होता है।

सिर्फ 1 पिस्ता रोजाना

सिर्फ 1 पिस्ता रोजाना क्योंकि इसके 9 चमत्कारिक फ़ायदे जानकर आप दंग रह जायेंगे सूखे मेवों में काजू और आखरोट से सबसे अधिक पौष्टिक और ताकतवर होता है पिस्ता। पिस्ता आपकी सेहत के लिए बहुत ही लाभदायक होता है।
खाने में स्वादिष्टि होने के साथ-साथ इसमें वसाए प्रोटीन और फाइबर की अधिक मात्रा होती है। पिस्ता आपको कई बीमारियों बचाता भी है और कई रोगों को ठीक भी कर देता है। इसलिए वैदिक वाटिका आपको बता रही है पिस्ता खाने से मिलने वाले फायदों के बारे में।
➡ पिस्ता के आयुवेर्दिक फायदे :
1. आंखों की सेहत के लिए : उम्र बढ़ने के साथ आंखों की कमजोरी और बीमारी बढ़ने लगती है। एैसे में आप नियमित पिस्ता खाते हैं तो आपकी आंखों पर किसी भी तरह का प्रभाव नहीं पड़ेगा। आपकी आंखे बुढ़ापे तक स्वस्थ और निरोगी रहेंगी।
2. सूजन होने पर : यदि आपके शरीर में सूजन रहती हो तो पिस्ता का सेवन करें। इसमें मौजूद विटामिन-ए और विटामिन-ई सूजन को घटाते हैं।
3. संक्रमण का प्रभाव : शरीर में संक्रमण के खतरे को रोकता है पिस्ता। और शरीर को हर तरह से संक्रमण से लड़ने में सक्षम बनाता है।
4. कैंसर से बचाव : जो लोग बचपन से पिस्ता खा रहे होते हैं उन्हें भविष्य में कैंसर की बीमारी नहीं लगती है। पिस्ता में बीटा कैरोटीन होता हे जो कैंसर से लड़ता है। कैसर से परेशान लोगों को पिस्ता खाना चाहिए।
5. शरीर के अंदर जलन : शरीर के अंदर किसी भी तरह की जलन हो रही हो चाहे वह पेट की जलन या छाती की जलन। आप पिस्ता का सेवन करें।
6. बनाए सुंदर चेहरा : सुंदर चेहरे के लिए पिस्ता किसी प्राकृतिक औषधि से कम नहीं है।
उम्र के बढ़ते प्रभाव को रोकना और झुर्रियों को चेहरे से साफ करना पिस्ता में मौजूद गुण आसानी से करते हैं। पिस्ता खाने से चेहरे की त्वचा टाइट होती है।
7. तेज दिमाग : काजू, बादाम से भी अधिक पौष्टिक होता है पिस्ता। पिस्ता खाने से दिमाग तेज होता है और इंसान की स्मरण शक्ति तेज होती है।
इसलिए बच्चों को पिस्त जरूर खिलाएं।
8. डायबिटीज : पिस्ता डायबिटीज यानि कि मधुमेह को बढ़ने से रोक देता है। पिस्ता में फास्फोरस उचित मात्रा में होता है जिससे शुगर निंयत्रण में रहता है।
9. ब्लड प्रेशर यानि रक्तचाप की समस्या : यदि आपका रक्तचाप अचानक से बढ़ता व घटता रहता हो तो आपके लिए पिस्ता का सेवन जरूरी है। पिस्ता रक्तचाप को नियंत्रण में रखता है।

साइनस नाक का एक रोग

साइनस नाक का एक रोग है। आयुर्वेद में इसे प्रतिश्याय नाम से जाना जाता है। सर्दी के मौसम में नाक बंद होना, सिर में दर्द होना, आधे सिर में बहुत तेज दर्द होना, नाक से पानी गिरना इस रोग के लक्षण हैं। इसमें रोगी को हल्का बुखार, आंखों में पलकों के ऊपर या दोनों किनारों पर दर्द रहता है।

तनाव, निराशा के साथ ही चेहरे पर सूजन आ जाती है। इसके मरीज की नाक और गले में कफ जमता रहता है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति धूल और धुवां बर्दाश्त नहीं कर सकता। साइनस ही आगे चलकर अस्थमा, दमा जैसी गंभीर बीमारियों में भी बदल सकता है। इससे गंभीर संक्रमण हो सकता है।

क्या होता है साइनस रोग : साइनस में नाक तो अवरूद्ध होती ही है, साथ ही नाक में कफ आदि का बहाव अधिक मात्रा में होता है। भारतीय वैज्ञानिक सुश्रुत एवं चरक के अनुसार चिकित्सा न करने से सभी तरह के साइनस रोग आगे जाकर 'दुष्ट प्रतिश्याय' में बदल जाते हैं और इससे अन्य रोग भी जन्म ले लेते हैं। जिस तरह मॉर्डन मेडिकल साइंस ने साइनुसाइटिस को क्रोनिक और एक्यूट दो तरह का माना है। आयुर्वेद में भी प्रतिश्याय को नव प्रतिश्याय 'एक्यूट साइनुसाइटिस' और पक्व प्रतिश्याय 'क्रोनिक साइनुसाइटिस' के नाम से जाना जाता है।

आम धारणा यह है कि इस रोग में नाक के अंदर की हड्डी का बढ़ जाती है या तिरछा हो जाती है जिसके कारण श्वास लेने में रुकावट आती है। ऐसे मरीज को जब भी ठंडी हवा या धूल, धुवां उस हड्डी पर टकराता है तो व्यक्ति परेशान हो जाता है।

चिकित्सकों अनुसार साइनस मानव शरीर की खोपड़ी में हवा भरी हुई कैविटी होती हैं जो हमारे सिर को हल्कापन व श्वास वाली हवा लाने में मदद करती है। श्वास लेने में अंदर आने वाली हवा इस थैली से होकर फेफड़ों तक जाती है। इस थैली में हवा के साथ आई गंदगी यानी धूल और दूसरे तरह की गंदगियों को रोकती है और बाहर फेंक दी जाती है। साइनस का मार्ग जब रुक जाता है अर्थात बलगम निकलने का मार्ग रुकता है तो 'साइनोसाइटिस' नामक बीमारी हो सकती है।

वास्तव में साइनस के संक्रमण होने पर साइनस की झिल्ली में सूजन आ जाती है। सूजन के कारण हवा की जगह साइनस में मवाद या बलगम आदि भर जाता है, जिससे साइनस बंद हो जाते हैं। इस वजह से माथे पर, गालों व ऊपर के जबाड़े में दर्द होने लगता है।

इसका उपाय : इस रोग में सर्दी बनी रहती है और कुछ लोग इसे सामान्य सर्दी समझ कर इसका इलाज नहीं करवाते हैं। सर्दी तो सामान्यतः तीन-चार दिनों में ठीक हो जाती है, लेकिन इसके बाद भी इसका संक्रमण जारी रहता है। अगर वक्त रहते इसका इलाज न कराया जाए तो ऑपरेशन कराना जरूरी हो जाता है। लेकिन इसकी रोकथाम के लिए योग में क्रिया और प्राणायाम को सबसे कारगर माना गया है। नियमित क्रिया और प्राणायाम से बहुत से रोगियों को 99 प्रतिशत लाभ मिला है।

इस रोग में बहुत से लोग स्टीम या सिकाई का प्रयोग करते हैं और कुछ लोग प्रतिदिन विशेष प्राकृतिक चिकित्सा अनुसरा नाक की सफाई करते हैं। योग से यह दोनों की कार्य संपन्न होते हैं। प्राणायाम जहां स्टीम का कार्य करता है वही जलनेती और सूत्रनेती से नाक की सफाई हो जाती है। प्रतिदिन अनुलोम विलोम के बाद पांच मिनट का ध्यान करें। जब तक यह करते रहेंगे साइनस से आप कभी भी परेशान नहीं होंगे।

शुद्ध भोजन से ज्यादा जरूरी है शुद्ध जल और सबसे ज्यादा जरूरी है शुद्ध वायु। साइनस एक गंभीर रोग है। यह नाक का इंफेक्शन है। इससे जहां नाक प्रभावित होती है वहीं, फेंफड़े, आंख, कान और मस्तिष्क भी प्रभावित होता है इस इंफेक्शन के फैलने से उक्त सभी अंग कमजोर होते जाते हैं।

योग पैकेज : अत: शुद्ध वायु के लिए सभी तरह के उपाय जरूर करें और फिर क्रियाओं में सूत्रनेती और जल नेती, प्राणायाम में अनुलोम-विलोम और भ्रामरी, आसनों में सिंहासन और ब्रह्ममुद्रा करें। असके अलावा मुंह और नाक के लिए बनाए गए अंगसंचालन जरूर करें। कुछ योग हस्त मुद्राएं भी इस रोग में लाभदायक सिद्ध हो सकती है। मूलत: क्रिया, प्राणायाम और ब्रह्ममुद्रा नियमित करें।

उड़द की दाल

परिचय :
         उड़द की दाल का उत्पादन पूरे भारत में होता है। इसकी दाल का रंग सफेद होता है। इसकी दाल व बाजरे की रोटी मेहनती लोगों का प्रिय भोजन है। यह पौष्टिक और शीतल (ठण्डा) होती है। उड़द पाक अपने पौष्टिक गुणों के कारण ज्यादा ही प्रसिद्ध है। इसकी दाल वायुकारक होती है। इसके इस दोष को दूर करने के लिए उड़द में लहसुन और हींग पर्याप्त मात्रा में डालना चाहिए। उड़द खिलाने से पशु स्वस्थ रहते हैं। दूध देने वाली गाय या भैंस को उड़द खिलाने से दूध अधिक मात्रा में देती हैं। इसके पत्तों और डण्डी का चूरा भी पशुओं को खिलाया जाता है।

गुण :
       उड़द एक पौष्टिक दाल है। यह भारी, रुचिकारक, मल (पैखाना) रोगी के लिए लाभकारी, प्यास बढ़ाने वाला, बल बढ़ाने वाला, वीर्यवर्धक, अत्यन्त पुष्टिदायक, मल-मूत्र को मुक्त करने वाला, दूध पिलाने वाली माता का दूध बढ़ाने वाला और मोटापा बढ़ाने वाला है। उड़द पित्त और कफ को बढ़ाता है। बवासीर, गठिया, लकवा और दमा में भी इसकी दाल का सेवन करना लाभदायक है। 

उड़द की दाल के पापड़ : उड़द के पापड़ स्वादिष्ट, भूख को बढाने वाले और भोजन को पचाने वाले होते हैं। यह गरिष्ठ (भारी) भोजन है। सर्दी के मौसम में वायु प्रकृति वालों के लिए उड़द दाल लाभदायक है किन्तु पाचन होने पर ये गर्म और मीठा रस उत्पन्न करता है। कफ तथा पित वालों के लिए इसका सेवन करना नुकसानदायक है। उड़द की दाल की बड़ियां शारीरिक शक्ति को बढ़ाती हैं। इसकी दाल वीर्यवर्धक होती है।

नोट : उड़द को अपनी पाचन शक्ति को ध्यान में देखते हुए उपयोग करना चाहिए।

विभिन्न रोगों में उपयोग :

1. शक्तिदायक:

उड़द में शक्ति को बढ़ाने (शक्तिवर्द्धक) का गुण है। उड़द का प्रयोग किसी भी तरह से करने पर शक्ति बढ़ती है। रात्रि को 30 ग्राम उड़द की दाल पानी में भिगो दें और सुबह इसे पीसकर दूध व मिश्री के साथ मिलाकर पीने से मस्तिष्क व वीर्य के लिए बहुत ही लाभकारी है। ध्यान रहें : इसे अच्छी पाचन शक्ति वाले ही इस्तेमाल करें। छिलके सहित उड़द खाने से मांस बढ़ता है। उड़द दाल में हींग का छौंका देने से इसके गुणों में अधिक वृद्धि हो जाती है। भीगी हुई उड़द दाल को पीसकर एक चम्मच देशी घी व आधा चम्मच शहद में मिलाकर चाटने के बाद मिश्री मिला हुआ दूध पीना लाभदायक है। इसका प्रयोग लगातार करते रहने से पुरुष घोड़े की तरह ताकतवर हो जाता है।
उड़द दाल को पानी में भिगोकर और उसे पीसकर उसमें नमक, कालीमिर्च, हींग, जीरा, लहसुन और अदरक मिलाकर उसके `बड़े´ (एक पकवान) बनायें। ये बड़े घी या तेल में डालकर खाने से वायु, दुर्बलता, बेस्वाद (अरुचि), टी.बी. व दर्द दूर हो जाता है। उड़द दाल को पीसकर दही में मिलाकर व तलकर सेवन से पुरुषों के बल और धातु में बढ़ोत्तरी होती है।
उड़द दाल का आटा 500 ग्राम, गेहूं का आटा 500 ग्राम व पीपर का चूर्ण 500 ग्राम लें और उसमें 100 ग्राम घी मिलाकर चूल्हे पर पकाकर 40-40 ग्राम वजन का लड्डू बना लें। रात को सोने के समय एक लड्डू सेवन करके ऊपर से 250 मिलीलीटर दूध पी लें। इसके प्रयोग में खट्टे, खारे व तेल वाले चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए जिससे शरीर क्षीण नहीं होता और शारीरिक ताकत बढ़ती है।

2. सफेद दाग:

उड़द के आटे को भिगोकर व पीसकर सफेद दाग पर नित्य चार महीने तक लगाने से सफेद दाग खत्म हो जाते हैं।
काले उड़द को पीसकर सफेद दागों पर दिन में 3-4 बार दागों में लगाने से सफेद दागों का रंग वापस शरीर के बाकी रंग की तरह होने लगता है।

3. गंजापन : उड़द दाल को उबालकर पीस लें। रात को सोने के समय सिर पर लेप करें। इससे गंजापन धीरे-धीरे दूर होकर नये बाल आने शुरू हो जाते हैं।

4. मर्दाना शक्ति: उड़द का एक लड्डू रोजाना खाकर उसके बाद दूध पीने से वीर्य बढ़कर धातु पुष्ट होता है और रति शक्ति (संभोग) बढ़ती है।

5. अर्धांगवात: उड़द व सौंठ को चाय की तरह उबालकर इसका पानी पिलाने से लाभ होता है।

6. हिचकी:

साबूत उड़द जले हुए कोयले पर डालें और इसका धुंआ सूंघे। इससे हिचकी खत्म हो जाती है।
उड़द और हींग का चूर्ण मिलाकर अग्नि में जलाकर इसका धूम्रपान करने से हिचकी में फायदा होता है।

7. नकसीर, सिरदर्द: उड़द दाल को भिगोकर व पीसकर ललाट पर लेप करने से नकसीर व गर्मी से हुआ सिरदर्द ठीक हो जाता है।

8. फोडे़: फोड़े से गाढ़ी पीव निकले तो उड़द की पट्टी बांधने से लाभ होता है।

9. नासा रोग: उड़द का आटा, कपूर व लाल रेशमी कपड़े की राख को पानी में मिलाकर सिर पर लेप करने से नासा रोग में लाभ होता है।

10. पेशाब के साथ वीर्य का जाना : उड़द दाल का आटा 10 से 15 ग्राम लेकर उसे गाय के दूध में उबालें, फिर उसमें घी डालकर थोड़ा गर्म-गर्म 7 दिनों तक लगातार पीने से मूत्र के साथ धातु का निकलना बन्द हो जाता है।

11. पेशाब का बार-बार आना:

आंवले का रस, शहद से या अडूसे का रस जवाक्षार डालकर पीने से पेशाब का बार बार आना बन्द होता है।
अगर एक चम्मच आंवले के रस में, आधा चम्मच हल्दी और 1 चम्मच शहद मिलाकर खाये तो पूरा लाभ होता है।

12. नपुंसकता:

उड़द की दाल 40 ग्राम को पीसकर शहद और घी में मिलाकर खाने से पुरुष कुछ ही दिनों में मैथुन करने के लायक बन जाता है।
उड़द की दाल के थोड़े-से लड्डू बना लें। उसमें से दो-दो लड्डू खायें और ऊपर से दूध पी लें। इससे नुपंसकता दूर हो जाती है।

13. बालों के रोग:

200 ग्राम उड़द की दाल, 100 ग्राम आंवला, 50 ग्राम शिकाकाई, 25 ग्राम मेथी को कूटकर छान लें। इस मिश्रण में से 25 ग्राम दवा 200 मिलीलीटर पानी के साथ एक घंटा भिगोकर रख दें और इसके बाद इसको मथ-छानकर बालों को धो लें, इससे बालों के रोगों में लाभ होता है।
उड़द की दाल उबालकर पीस लें और इसको रात को सोते समय सिर के गंजेपन की जगह पर लगायें। इससे बाल उग आते हैं।

14. स्तनों में दूध की वृद्धि: उड़द की दाल में घी मिलाकर खाने से स्त्रियों के स्तनों में पर्याप्त मात्रा में दूध की वृद्धि होती है।

15. अतिझुधा भस्मक रोग (अधिक भूख का लगना): उड़द, जौ, कुल्थी, डाब की जड़ का चूर्ण दूध और घी के साथ पीने से एक महीने तक भूख नहीं लगती है।

16. कमजोरी: उड़द की दाल का लड्डू रोजाना सुबह खाकर ऊपर से दूध पीने से कमजोरी कम होती है।

17. पक्षाघात-लकवा-फालिस फेसियल, परालिसिस: उड़द और सौंठ को उबालकर उसका पानी रोगी को पिलाने से लकवा ठीक हो जाता है।

18. मोटापा बढ़ाना: उड़द की दाल छिलके सहित खाने से शरीर मोटा होता है।

19. रक्तपित्त: वनउड़द 2 से 4 ग्राम सुबह-शाम खाने से रक्तपित्त ठीक होता है।

20. सभी प्रकार के दर्द: उड़द की दाल की बड़ियां (पकौड़ी) को तेल में पकाकर बना लें, फिर इन बड़ियों को शहद और देशी घी में डालकर खाने से `अन्नद्रव शूल´ यानी अनाज के कारण होने वाले दर्द में लाभ देता हैं।

21. धातुवर्द्धक: उड़द की दाल को पीसकर नमक, कालीमिर्च, जीरा, हींग, लहसुन और अदरक आदि को डालकर घी में तलकर दही में मिलाकर खाने से वीर्य बढ़ता है।

22. नकसीर: उड़द की दाल को भिगोकर पीस लें। इस पिसी हुई दाल को माथे पर लगाने से नकसीर (नाक से खून बहना) बन्द हो जाती है।

23. गठिया (जोड़ों का दर्द): उड़द की दाल को अरण्ड की छाल के साथ उबालकर उबले उड़द के दाने चबाने से गठिया में हड्डी के अन्दर होने वाली कमजोरी दूर हो जाती है।

24. हृदय की दुर्बलता: रात को 50 ग्राम उड़द की दाल भिगो दें। सुबह इसे पीसकर आधा गिलास दूध में स्वादानुसार मिश्री मिलाकर पीयें। यह हृदय को शक्ति देता है।

25. मुंहासे: उड़द और मसूर की बिना छिलके की दाल को सुबह दूध में भिगो दें। शाम को बारीक से बारीक पीसकर उसमें नींबू के रस की थोड़ी बूंदे और शहद की थोड़ी बूंदे डालकर अच्छी तरह मिला लें और लेप बना लें। फिर इस लेप को चेहरे पर लगा लें। सुबह इसे गर्म पानी से धो लें। ऐसा लगातार कुछ दिनों तक करने से चेहरे के मुंहासे और दाग दूर हो जाते है और चेहरे में नयी चमक पैदा हो जाती है।

26. लिंग वृद्धि:

लिंग को मोटा करने के लिए चिरचिटा, जौ, उड़द एवं पीपल सभी को जल के साथ पीसकर लेप करने से लिंग बढ़ जाता है और लिंग का पतलापन दूर होता है।
लिंग में वृद्धि करने के लिए चिमटी, जौ, उड़द और पीपल को जल के साथ पीसकर लिंग पर लेप करने से लिंग में वृद्धि होती है।

27. सिर का दर्द: उड़द की दाल को पानी में भिगोकर फुला लें और इसको पीसकर सिर पर लेप की तरह से लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।

28. याददास्त कमजोर होना: रात को सोते समय लगभग 60 ग्राम उड़द की दाल को पानी में भिगोकर रख दें। सुबह इस दाल को पीसकर दूध और मिश्री मिलाकर पीने से याददास्त मजबूत होती है और दिमाग की कमजोरी खत्म हो जाती है।

29. शरीर में सूजन: काले उड़द, यव (जौ) और गोधूम को बराबर मात्रा में लेकर पानी में पीस लें और इसको लेप की तरह बदन पर लगाने से शरीर की सूजन खत्म हो जाती है।

Tuesday, 16 August 2016

उल्टी और दस्त के घरेलु उपचार💤 📕✏✏📕

घर के किसी भी छोटे बड़े सदस्य को उल्टी एवँ दस्त किसी भी वजह से हो सकते हैं जिनमें से बदहजमी सबसे मुख्य है। कभी-कभी सर्दी या गर्मी लगने, दूषित खानपान से भी उल्टी और दस्त की समस्या हो जाती है ।

* उल्टी होने पर नीँबू का रस पानी में घोल कर लेने से शीघ्र ही फायदा होता है ।

* आप एक दो लौंग, दालचीनी या इलायची मुहँ में रखकर चूसिये यह मसाले उल्टियाँ विरोधक औषधियों होने के कारण उल्टियाँ रोकने में बहुत ही मददगार साबित होते है।

* तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस शहद के साथ लेने से उल्टी में लाभ मिलता है ।

* एक चम्मच प्याज का रस पीने से भी उल्टी में लाभ मिलता है ।

* गर्मियों में यदि बार बार उल्टियाँ आती है तो बर्फ चूसनी चाहिए ।

* पुदीने के रस को लेने से भी उल्टी में लाभ मिलता है ।

* धनिये के पत्तों और अनार के रस को थोड़ी थोड़ी देर के बाद बारी-बारी से पीने से भी उल्टी रुक जाती है ।
🌷💟🍃🕉🍃🌻🌷🌺🌿💐🌾
* 1/4 चम्मच सोंठ एक चम्मच शहद के साथ लेने से उल्टी में शीघ्र आराम मिलता है ।

* नींबू का टुकड़ा काले नमक के साथ अपने मुंह में रखने से आपको उल्टी महसूस नहीं होती है, रुक जाती है ।

* आधा चम्मच पिसे हुए जीरे का पानी के साथ सेवन करने से उल्टियों से शीघ्र छुटकारा मिलता है ।
💐🌾💐🌾💐🌾💐🌾💐🌾
* एक गिलास पानी में एक चम्मच एप्पल का सिरका डालकर पियें उल्टी में तुरंत आराम मिलेगा ।

* उल्टियाँ होने से 12 घंटो बाद तक ठोस आहार का सेवन न करें, लेकिन भरपूर मात्रा में पानी और फलों के रस का सेवन करते रहें।

* तैलीय, मसालेदार, भारी और मुश्किल से पचनेवाले खाद्द्य पदार्थों का सेवन न करें इससे भी उल्टियाँ आती है ।
🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿
* पित्त की उल्टी होने पर शहद और दालचीनी मिलाकर चाटें ।

* हरर को पीसकर शहद के साथ मिलाकर चाटने से उल्टी बंद होती है|

* खाना खाने के तुरंत बाद न सोयें। खाने के बाद टहलने की आदत डालें । जब भी सोयें तो अपनी दाहिनी बाज़ू पर सोयें। इससे आपके पेट के पदार्थ मुंह तक नहीं आयेंगे ।

* दही, भात, को मिश्री के साथ खाने से दस्त में आराम आता है।
🍃🌻🍃🌻🍃🌻🍃🌻🍃🌻
* एक एक चम्मच अदरक , नीबूं का रस काली मिर्च के साथ लेने पर भी दस्त में आराम मिलता है ।

* सौंफ और जीरे को बराबर-बराबर मिला कर भून कर पीस लें । इसे आधा-आधा चम्मच पानी के साथ दिन में तीन बार लेने से दस्तों में फायदा मिलता है ।

* केले, सेब का मुरब्बा और पके केले का सेवन करें दस्त में तुरंत आराम मिलेगा ।

* दस्त आने पर अदरक के टुकड़े को चूसे या अदरक की चाय पियें पेट की मरोड़ भी शांत होती है और दस्त में भी आराम मिलता है ।
🌾🐄🌾🐄🌾🐄🌾🐄🌾🐄
* दस्त रोकने के लिए चावल के माड़ में हल्का नमक और काली मिर्च डालकर उसका सेवन करें दस्त रुक जायेंगे ।

* जामुन के पेड़ की पत्तियाँ पीस कर उसमें सेंधा नमक मिला कर 1/4 चम्मच दिन में दो बार लेने से दस्त रुक जाते है ।

* दस्त आने पर दूध और उससे बनी हुई चीजों का सेवन कतई भी ना करें ।

* दस्त आने पर दस्त के साथ शरीर के खनिज वा तरल पदार्थ बाहर निकलते है इनकी कमी पूरी करने के लिए O.R.S का घोल पियें

गुड़ का सेवन

        गुड़ का सेवन करने से शरीर में होने वाले कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं। मिठाई और चीनी की अपेक्षा गुड़ अधिक लाभकारी है। आज कल चीनी का प्रयोग अधिक होने के कारण से गुड़ के उपयोग कम ही हो रहा है। गन्ने के रस से गुड़ बनाया जाता है। गुड़ में सभी खनिज द्रव्य और क्षार सुरक्षित रहते हैं।

          गुड़ से कई प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं जैसे- हलुआ, चूरमा तथा लपसी आदि। गुड़ खाने से थकावट मिट जाती है। परिश्रमी लोगों के लिए गुड़ खाना अधिक लाभकारी है। मटके में जमाया हुआ गुड़ सबसे अच्छा होता है।

पुराना गुड़ का गुण : पुराना गुड़ हल्का तथा मीठा होता है। यह आंखों के रोग दूर करने वाला, भुख को बढ़ने वाला, पित्त को नष्ट करने वाला, शरीर में शक्ति को बढ़ाने वाला और वात रोग को नष्ट करने वाला तथा खून की खराबी को दूर करने वाला होता है।

नया गुड़ से हानि : नया गुड़ कफ, खांसी, पेट में कीडे़ उत्पन्न करने वाला तथा भुख को बढ़ाने वाला होता है।

गुड़ का प्रयोग दूसरे पदार्थों के साथ सेवन करने पर इसके गुण :

          अदरक के साथ गुड़ खाने से कफ खत्म होता है। हरड़ के साथ इसे खाने से पित्त दूर होता है तथा सोंठ के साथ गुड़ खाने से वात रोग नष्ट होता है।

विभिन्न भाषाओं में गुड़ का नाम :

संस्कृत गुड़
हिन्दी गुड़
अंग्रेजी ट्राकले
बंगाली गुड़
मराठी गूल
गुजराती गोड़
तेलगू वेल्लामु
फारसी     .कन्देसिया
अरबी       कन्देअस्वद


रंग : गुड़ का रंग लाल पीला, काला और सफेद होता है।

स्वाद : इसका स्वाद मीठा होता है।

स्वरूप : गन्ने का रस निकालकर इसे आग पर पकाकर गुड़ बनाया जाता है।

वैज्ञानिक मतानुसार : 100 ग्राम गुड़ में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग खनिज द्रव्य होता है। चीनी में खनिज द्रव्यों और क्षारों का अभाव होता है। इसलिए चीनी की अपेक्षा गुड़ खाना अधिक लाभकारी होता है। गुड़ में बिटामिन `बी´-1, `बी´-2, विटामिन `सी´ और अल्पमात्रा में विटामिन `ए` होता है।

प्रकृति : गुड़ की गर्म होती हे।

जवान दिखना चाहते हो तो शुरू करें ये 5 चीजें खाना

● आप अपनी त्वचा को जवान बनाये रखने के लिए बहुत से उपाय करते होंगे जैसे कि ब्यूटी क्रीम आदि जो काफी मंहगा होता है l आज हम आपकी मदद करते है और आपको बहुत ही आसान तरीका बताते है जवां बने रहने के लिए l आपको बस ये बताई गयी 5 चीजें खाना है और आप हमेशा जवान दिखेंगे l


1) कद्दू
रुकिए रुकिए….हम जानते है जैसे आप अभी इस वक़्त नाक सिकूड रहे है वैसे ही हर बार जब आप कद्दू का नाम सुनते है तो नाक और मुह दोनों सिकोड़ने लगते है लेकिन आपको बता दें कि लम्बे समय तक जवान दिखने में कद्दू बहुत मददगार सिद्ध हो सकता है l इसमें बीटा कैरोटीन, विटामिन ए, सी और ई भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो झुर्रियों को आने रोकता है, और आपको बनाए रखता है जवां।


2) रेड वाइन
जी हां, अगर रेड वाइन के शौकीन हैं, तो यह शौक आपके लिए फायदेमंद है। इसमें पाए जाने वाले एंटी एजिंग तत्व आपको बनाए रखते हैं, जवां और आपकी त्वचा को स्वस्थ व खूबसूरत।


3) कि‍वी
यह फल देखने और खाने में जितना अच्छा और मंहगा लगता है, उतने ही फायदेमंद इसके गुण भी हैं। इसमें आपके लिए भरपूर एंटीऑक्सीडेंट्स हैं और विटामिन-सी भी। प्रतिदिन इसका सेवन आपको जवां बनाए रखेगा।


4) डार्क चॉकलेट
प्रतिदिन थोड़ी मात्रा में डार्क चॉकलेट खाना, न केवल आपको जवां बनाए रखने में सहायक है बल्‍कि सूरज की हानिकारक किरणों से भी आपकी त्वचा को बचाता है।


5) जैतून
जैतून के तेल काे खाएं या त्वचा पर लगाएं। यह हर तरह से आपको जवां बनाए रखने में कारगर है। एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन ई से भरा जैतून आपके लिए बेहद फायदेमंद साबित होगा।