जानिए नाड़ी देखकर रोग का
पता लगाने का सबसे प्राचीन तरीका
नाड़ी परीक्षा (नाड़ी देखना)
बहुत पुराने आयुर्वेदिक ग्रन्थ “योग रत्नाकर” में लिखा है कि रोग से पिडीत व्यक्ति के शरीर कि 8 प्रकार से परीक्षा करके रोग का निदान करना चाहिए ,इसमें नाड़ी परीक्षा सबसे प्रथम विधि है .
प्राचीन मतानुसार नाड़ी परीक्षा द्वारा शरीर के वात,पित ,कफ या दिव्दोशज या त्रिदोषज रोगों को ज्ञात करते है .
यधपि सम्पूर्ण शरीर में अनेक नाडिया है लेकिन अंगूठे के मूल प्रदेश वाली नाड़ी कि विशेष रूप से परीक्षा कि जाती है .यह सम्पूर्ण शरीर में फैली हुयी मानी गयी है .
इसे ही आचार्य शारंगधर ने जीव साक्षिणी कहा है .आइये जाने नाड़ी परिक्षण का प्राचीनतम तरीका .
नाडी/नाड़ी परीक्षा
पोस्ट डालने का उद्देश्य कृपया पोस्ट को पूरा ध्यान से पढ़िए नाडी परीक्षा के बारे में शारंगधर संहिता ,भावप्रकाश ,योगरत्नाकर आदि ग्रंथों में वर्णन है । महर्षि सुश्रुत अपनी योगिक शक्ति से समस्त शरीर की सभी नाड़ियाँ देख सकते थे । ऐलोपेथी में तो पल्स सिर्फ दिल की धड़कन का पता लगाती है : पर ये इससे कहीं अधिक बताती है ।
आयुर्वेद में पारंगत वैद्य नाडी परीक्षा से रोगों का पता लगाते है । इससे ये पता चलता है की कौनसा दोष शरीर में विद्यमान है । ये बिना किसी महँगी और तकलीफदायक डायग्नोस्टिक तकनीक के बिलकुल सही निदान करती है । जैसे की शरीर में कहाँ कितने साइज़ का ट्यूमर है , किडनी खराब है या ऐसा ही कोई भी जटिल से जटिल रोग का पता चल जाता है ।
दक्ष वैद्य हफ्ते भर पहले क्या खाया था ये भी बता देतें है । भविष्य में क्या रोग होने की संभावना है ये भी पता चलता है ।
महिलाओं का बाया और पुरुषों का दाया हाथ देखा जाता है ।
कलाई के अन्दर अंगूठे के नीचे जहां पल्स महसूस होती है तीन उंगलियाँ रखी जाती है ।
अंगूठे के पास की ऊँगली में वात , मध्य वाली ऊँगली में पित्त और अंगूठे से दूर वाली ऊँगली में कफ महसूस किया जा सकता है ।
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वात की पल्स अनियमित और मध्यम तेज लगेगी ।
पित्त की बहुत तेज पल्स महसूस होगी ।
कफ की बहुत कम और धीमी पल्स महसूस होगी ।
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तीनो उंगलियाँ एक साथ रखने से हमें ये पता चलेगा की कौनसा दोष अधिक है ।
प्रारम्भिक अवस्था में ही उस दोष को कम कर देने से रोग होता ही नहीं ।
हर एक दोष की भी 7 प्रकार की पल्स होती है ; जिससे रोग का पता चलता है , इसके लिए अभ्यास की ज़रुरत होती है ।
कभी कभी 2 या 3 दोष एक साथ हो सकते है ।
नाडी परीक्षा अधिकतर सुबह उठकर आधे एक घंटे बाद करते है जिससे हमें अपनी प्रकृति के बारे में पता चलता है ।
ये भूख- प्यास , नींद , धुप में घुमने , रात्री में टहलने से ,मानसिक स्थिति से , भोजन से , दिन के अलग अलग समय और मौसम से बदलती है ।
चिकित्सक को थोड़ा आध्यात्मिक और योगी होने से मदद मिलती है .
सही निदान करने वाले नाडी पकड़ते ही तीन सेकण्ड में दोष का पता लगा लेते है । वैसे ३० सेकण्ड तक देखना चाहिए ।
मृत्यु नाडी से कुशल वैद्य भावी मृत्यु के बारे में भी बता सकते है ।
आप किस प्रकृति के है ? –
वात प्रधान , पित्त प्रधान या कफ प्रधान या फिर मिश्र ?
खुद कर के देखे या किसी वैद्य से पता कर के देखिये ।
यह सब हमारी हताशा को दर्शाता है आपका कमेंट क्योंकि हम उन्हें ही डॉक्टर या वैध मानते हैं जिनके बड़े बड़े होर्डिंग लगते हैं या जो टीवी चैनलों पर airtime खरीदकर नाड़ी वैद होने का दावा करते हैं
यह भी सच है कि आजकल नाड़ी वैद्य प्राय लुप्त हो गए हैं क्योंकि आजकल की पढ़ाई किताबों में कराई जाती है कंप्यूटर में कराई जाती है ।
प्रेक्टिकल नॉलेज ना के बराबर है केवल पैसा ही लक्ष्य बन चुका है सबसे बड़ी बात अगर इस चिकित्सा को दोबारा लागू करवाना है तो स्कूल कॉलेजों में लाखों रुपए में डॉक्टर बनाने बंद करने होंगे फ्री की चिकित्सा प्रणाली या अल्प मूल्य पर शिक्षण संस्थान बनाने होंगे।
आश्रमों की तरह तभी हम इस पद्धति को जीवित रह पाएंगे अंयथा तो यह् लुप्त ही हो गई है.
समझ लीजिए सबसे ज्यादा इस पद्धति को नुकसान आजकल के स्वयंभू वेदो जैसे आश्रमों में बिकने वाली दवाइयों ने इस पद्धति को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाया है क्योंकि अनाड़ी वेदों को बैठाकर जब वह लोगों का निदान नहीं कर पाते।
तो इस पद्धति से लोगों का विश्वास उठना स्वभाविक है बड़े-बड़े आश्रमों में जितने भी चिकित्सक बैठे होते हैं ।
सब अनाड़ी है इनमें से कोई भी सही तरीके से रोग का निदान कर ही नहीं पाता जब निदान ही नहीं होगा तो रोग से मुक्ति कैसे संभव होगी
.इस महत्वपूर्ण जानकारी को अपने मित्रो और स्नेहीजन को बताने के लिए शेयर जरुर कीजिये .
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