दो प्रकार की हरड़ बाजार में मिलती हैं –
बड़ी और छोटी।
बड़ी हरड़ में पत्थर के समान सख्त गुठली होती है, छोटी हरड में कोई गुठली नहीं होती,
ऐसे फल जो गुठली पैदा होने से पहले ही पेड़ से गिर जाते हैं या तोड़कर सुखा लिया जाते हैं उन्हें छोटी हरड़ कहते हैं।
आयुर्वेद के जानकार छोटी हरड़ का उपयोग अधिक निरापद मानते हैं क्योंकि आँतों पर उनका प्रभाव सौम्य होता है, तीव्र नहीं।
इसके
अतिरिक्त आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार हरड़ के 3 भेद और किए जा सकते हैं-
पका फल या बड़ी हरड़, अधपका फल पीली हरड़ (इसका गूदा काफी मोटा स्वाद में
कसैला होता है।) कच्चा फल जिसे ऊपर छोटी हरड़ के नाम से बताया गया है। इसका
रंग गहरा भूरा-काला तथा आकार में यह छोटी होती है। यह गंधहीन व स्वाद में
तीखी होती है।
फल के
स्वरूप, प्रयोग एवं उत्पत्ति स्थान के आधार पर भी हरड़ को कई वर्ग भेदों
में बाँटा गया है. पीछे उल्लेखित किस्मों को ही उर्दू व यूनानी पद्धति में
छोटी स्याह, पीली जर्द, बड़ी काबुली के नाम से जाना जाता है व ये तीन ही
सर्व प्रचलित हैं।
औषधि के
लिये फल ही प्रयुक्त होते हैं एवं उनमें भी डेढ़ तोले (18 ग्राम) से अधिक
भार वाली भरी हुई, छिद्र रहित छोटी गुठली व बड़े खोल वाली हरड़ उत्तम मानी
जाती है। भाव प्रकाश निघण्टु के अनुसार जो हरड़ जल में डूब जाए वह उत्तम
है।
हरड़
में ग्राही (एस्टि्रन्जेन्ट) पदार्थ है, टैनिक अम्ल (बीस से चालीस
प्रतिशत) गैलिक अम्ल, शेबूलीनिक अम्ल और म्यूसीलेज। रेजक पदार्थ हैं
एन्थ्राक्वीनिन जाति के ग्लाइको साइड्स। इनमें से एक की रासायनिक संरचना
सनाय के ग्लाइको साइड्स सिनोसाइड ‘ए’ से मिलती जुलती है। इसके अतिरिक्त
हरड़ में 10 प्रतिशत जल, 13.9 से 16.4 प्रतिशत नॉन टैनिन्स और शेष अघुलनशील
पदार्थ होते हैं।
वैज्ञानिक
शोध के अनुसार ग्लूकोज, सार्बिटाल, फ्रक्टोस, स्क्रोज़, माल्टोस एवं
अरेबिनोज हरड़ के प्रमुख कार्बोहाइड्रेट हैं। 18 प्रकार के मुक्तावस्था में
अमीनो अम्ल पाए जाते हैं। फास्फोरिक तथा सक्सीनिक अम्ल भी उसमें होते हैं।
फल जैसे पकता चला जाता है, उसका टैनिक एसिड घटता एवं अम्लता बढ़ती है। बीज
में एक तीव्र तेल होता है।
हरड के फायदे अथवा लाभ
हरीतकी
एक टॉनिक तो है ही, साथ ही पेट की बीमारियों के साथ साथ अन्य कई बीमारियों
में बेहद लाभ पहुंचाती है| हरड़ खाने के कुछ लाभ इस प्रकार बताये गए है:
हरड़ से बनी गोलियों का सेवन करने से भूख बढ़ती है।
हरड़ का चूर्ण खाने से कब्ज से छुटकारा मिलता है।
उल्टी होने पर हरड़ और शहद का सेवन करने से उल्टी आना बंद हो जाता है।
हरड़ को पीसकर आंखों के आसपास लगाने से आंखों के रोगों से छुटकारा मिलता है।
भोजन के बाद अगर पेट में भारीपन महसूस हो तो हरड़ का सेवन करने से राहत मिलती है।
हरड़ का सेवन लगातार करने से शरीर में थकावट महसूस नहीं होती और स्फूर्ति बनी रहती है।
हरड़ का सेवन गर्भवती स्त्रियों को नहीं करना चाहिए।
हरड़ पेट के सभी रोगों से राहत दिलवाने में मददगार साबित हुई है।
हरड़ का सेवन करने से खुजली जैसे रोग से भी छुटकारा पाया जा सकता है।
अगर शरीर में घाव हो जांए हरड़ से उस घाव को भर देना चाहिए।
हरड
के उपयोग लगभग हर प्राकृतिक चिकत्सा पद्धत्ति में मिलते हैं. चाहे वह
आयुर्वेद हो, यूनानी हो, तिब्बतन हो या फिर बौद्धिक चिकित्सा.
आयुर्वेद विशेषज्ञों ने हरड के भिन्न भिन्न प्रकार से उपयोग कर आश्चर्यजनक परिणाम पाए हैं.
1. आंव, मरोड़ में
बड़ी
हरड़ के छिलके, अजवाइन एवं सफेद जीरा बराबर बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण
बनाकर रख लें। इस चूर्ण को प्रतिदिन सुबह—शाम दही में मिलाकर लेते रहने से
सूखी आंव तथा मरोड़ में लाभ पहुंचता है। पेटदर्द होने पर हरड़ को घिसकर
गुनगुने पानी के साथ लेने पर तत्काल लाभ होता है।
2. मुंह के छाले
काली
हरड़ को महीन पीसकर मुंह तथा जीभ के छालों पर लगाते रहने से छालों से
मुक्ति मिलती है। प्रतिदिन दो—चार बार लगाते रहने से हरेक प्रकार के छालों
से मुक्ति मिलती है।
3. लिवर टॉनिक
पीली
हरड़ के छिलके का चूर्ण तथा पुराना गुड़ बराबर मात्रा में लेकर गोली बनाकर
रख लें। मटर के दानों के बराबर वाली इन गोलियों को दिन में दो बार
सुबह—शाम पानी के साथ एक महीनें तक लेते रहने से यकृत लीवर एवं प्लीहा के
रोग दूर हो जाते हैं।
4. पांडुरोग (Anemia)
छोटी
हरड़ के चूर्ण को गाय के घी के साथ मिलाकर सुबह —शाम खाते रहने से
पांडुरोग में लाभ मिलता है। सुबह खाली पेट एक चम्मच त्रिफला का क्वाथ काढ़ा
पीते रहने से खून की कमी दूर हो जाती है
5. पुरानी कब्ज़
पुराने
कब्ज के रोगी को नित्यप्रति भोजन के आधा घंटा बाद डेढ़—दो ग्राम की मात्रा
में हरड़ का चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लेते रहने से फायदा होता हैं।
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