Thursday, 14 September 2017

पित्त रोग क्या होता है

पित्त शरीर के मध्य में होता है पेट से होने वाली बीमारिया पित्त के संतुलन बिगड़ने से होती है। शरीर में पित्‍त अग्नि का प्रतिनिधि है। भोजन का पाक और आहार के तत्‍वों का विघटन करके रस धातुओं आदि को रूप देता है, जिससे धातुयें पुष्‍ट होती है। पित्‍त द्वारा रक्‍त, त्‍वचा आदि अंगों को रंजक वर्ण प्रदान किया जाता है। पित्‍त हृदय पर स्थिति श्‍लेष्‍मा को दूर करता है। अपक्‍व अवस्‍था मे पित्‍त शरीर में अम्‍ल और अम्‍लपित्‍त जैसी तकलीफें पैदा करता है।

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पित्त दोष के लक्षण :- 

जब पित्त का संतुलन बिगड़ता है तो ऐसे लक्षण व्यक्ति के समाने नजर आते हैं जैसे – पेशाब में जलन होना, शरीर में फोड़े फुंसी होना, नाक से रक्त बहना या नकसीर(नक्की) चलना, नाखूनों का पीला पड़ना, आखों का लाल व् पीला पड़ना, युवावस्था में बाल सफेद होना, शरीर में जलन , खट्टी डकार, दस्त लगना,  भूख-प्यास ज्यादा लगना, गुस्सा आना इत्यादि लक्षण देखने को मिलते हैं।

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पित्त के कार्य :-

 पित्त हमारे शरीर में बहुत से कार्य करता है जैसे भोजन को पचाता है , नेत्र ज्योयी में फायदेमंद होता है , शरीर में से मल को बहार निकालने में मदद करता है, स्मृति तथा बुद्धि प्रदान करता है , भूक प्यास को नियंत्रित रखता है, त्वचा में कांति और प्रभा की उत्पत्ति करता है, शरीर के तापमान को स्थिर रखता है इत्यादि।

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पित्त दोष से होने वाले रोग :- 

जब पित्त का संतुलन बिगड़ता है तो ऐसे रोग हमको लग जातें हैं जैसे गले में जलन का होना , अपच , कब्ज इत्यादि का होना।

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पित्त का संतुलन बिगड़ने के कारण :-  

पित्त बिगड़ने के कई कारण हो सकते हैं जैसे जरूरत से अधिक कडवा खाने पर, आयोडीन नमक का अधिक सेवन करने से, नशीले पदार्थों का सेवन करने से, फास्ट फ़ूड के अधिक सेवन करने से, तले हुए भोजन अधिक सेवन से, गर्म व जलन पैदा करने वाले भोजन का सेवन करने से इत्यादि।

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पित्त का संतुलन कैसे बनायें :- 

इसका संतुलन बनाने के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा जैसे दोपहर समय में छाछ, (मठ्ठा) का सेवन करना चाहिए | क्यूंकि पित्त का प्रभाव दोपहर के समय अधिक होता है। और देसी गाय का घी और त्रफला चूर्ण का प्रयोग कर सकते हैं। इन सबका निरंतर प्रयोग करने से पित्त संतुलन में हो जाएगा।

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पित्त दोष का आयुर्वेदिक उपचार :- 

10 ग्राम आंवला रात को पानी में भिगो दें और प्रातःकाल आंवले को मसलकर छान लें अब इस पानी में थोड़ी मिश्री और जीरे का चूर्ण मिलाकर इसका सेवन करें। इसका प्रयोग 15-20 दिन करना चाहिए।

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