कफ का असर शरीर के सर से लेकर सीने तक होता है जैसे :
सिर, नाक, गले, छाती, फेफड़े, नसों, मुख ।
कफ दोष को जैविक जल कहा जा सकता है।
यह दोष पृथ्वी और जल इन दो महाभूतों द्वारा उत्पन्न होता है।
पृथ्वी तत्व किसी भी पदार्थ की संरचना के लिए आवश्यक है अथार्त शरीर का आकार और संरचना कफ दोष पर आधारित होते है।
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कफ दोष के लक्षण :-
जब
कफ का संतुलन बिगड़ता है तो ऐसे लक्षण व्यक्ति के समाने नजर आते हैं जैसे-
मोटापा बढ़ना, आलस्य, भूख- प्यास कम लगना, मुंह से बलगम का आना, नाखून
चिकने रहते हैं, गुस्सा कम आता है, घने, घुंघराले, काले केश(बाल) होना,
आखों का सफ़ेद होना, जीभ का सफेद रेग के लेप की तरह का होना, कभी-कभी कभी
लार भी बहती है, मूत्र सफेद सा, मूत्र की मात्रा अधिक होना, गाढ़ा व चिकना
होना नींद अधिक आना इत्यादि।
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कफ दोष से होने वाले रोग :-
जब
कफ का संतुलन बिगड़ता है तो ऐसे रोग हमको लग जातें हैं जैसे सिर का दर्द,
खांसी, जुकाम, आधासीसी दर्द, शरीर में आलस्य बढ़ जाता है इत्यादि।
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कफ का संतुलन बिगड़ने के कारण :-
कफ बिगड़ने के कई कारण हो सकते हैं जैसे- कफ स्वरूप वाले सेवन से फल जैसे बादाम , केले, आम, खरबूजा, पपीता इत्यादि,
और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे अधिक मात्रा में वसायुक्त पदार्थ का सेवन करना जैसे मांस, ढूध मक्खन, पनीर, क्रीम, इत्यादि।
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कफ का संतुलन कैसे बनायें :-
कफ
संतुलन बनाने के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा जैसे सुबह का
नास्ता थोडा हल्का करें और सुबह गुनगुने पानी का प्रयोग करें।
त्रिफ़ला चूर्ण का प्रयोग करे क्यूंकि कफ का प्रभाव सबसे ज्यादा सुबह के समय होता है ।
अगर
आप इन सूत्रों का अच्छे से पालन करेंगे तो आपके ये तीनो दोष वात, पित्त,
कफ हमेसा संतुलित रहंगे और आप कभी भी बीमार नहीं पड़ेंगे।
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