भारत के कुछ लोग रैकी के पीछे भाग
कर अपना पैसा बर्बाद कर रहे है भारत के प्राचीन स्पर्श चिकित्सा अलग अलग
प्रकार की है उस में एक नीचे लिख रहा हु। कृपया धयान दे
मेथी स्पर्श द्वारा असाध्य रोगों का उपचार
मेथी के औषधिय गुण- दाणा मेथी हमारे रसोइघरों में दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तु है, जो अनेक औषधिय-गुणों से भरपूर होती है। प्राचीन काल से ही इसका प्रयोग खाद्य और औषधि के रूप में हमारे घरों में होता आ रहा है।
आयुर्वेद के ग्रन्थ भावप्रकाश में कहा गया है कि मेथी वात को शान्त करती है, कफ और ज्वर का नाश करती है। राज निघन्टु में मेथी को पित्त नाशक, भूख बढ़ाने वाली, रक्त शोधक, कफ और वात का शमन करने वाली बतलाया गया है। मेथी में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेटस, खनिज, विटामिन, केल्शियम, फासफोरस, लोह तत्त्व, केरोटीन, थायमिन, रिवाफलेबिन, विटामिन सी आदि प्रचुर मात्रा में होते हैं। लोह तत्त्व की अधिकता के कारण मेथी रक्त की कमी वालों के लिये विशेष लाभप्रद होती है।
मेथी दानों से शरीर की आन्तरिक सफाई होती है। मेथी का उबला पानी बुखार को कम करने में बहुत ही लाभप्रद होता है। मेथी सेवन से पाचन तंत्र सुधरता है। पेट में कर्मियों की उत्पत्ति नहीं होती। आंतों में भोजन का पाचन बराबर होता है। बड़ी आंत में, मल में कुछ गाढ़ापन आता है और मल आसानी से बड़ी आंत में गमन करने लगता हैं। मेथी खाने से भूख अच्छी लगती है। मेथी सेवन से गंध और स्वाद इन्द्रियाँ अधिक संवेदनशील होती हैं। यह शरीर का आन्तरिक शोधन करती है। शलेष्मा को घोलती है तथा पेट और आंतों की सूजन ठीक करने में सहायक होती है। मेथी सेवन से मुंह की दुर्गन्ध दूर होती है। कफ, खांसी, इनफ्लेन्जा, निमोनिया, दमा आदि श्वसन संबंधी रोगों में लाभ होता है। गले की खराश में मेथी दाने के पानी से गरारे करने से बहुत लाभ होता है।
मेथी सेवन की विभिन्न विधियाँ- अलग-अलग रोगों के उपचार हेतु मेथी का प्रयोग अनेक प्रकार से किया जाता है। जैसे- मेथी दाणा भिगोंकर उसका पानी पीना, उसे अंकुरित कर खाना, उबालकर उसका पानी पीना, सब्जी बनाकर खाना, विभिन्न अचारों, सब्जियों अथवा अन्य खाद्य पदार्थों के साथ पकाकर सेवन करना, मेथी दानों को चूसना, चबाना अथवा पानी के साथ निगलना, मेथी की चाय अथवा काढ़ा बनाकर पीना, उसका पाउडर बना पानी के साथ लेना, अथवा लेप करना, मेथी की पुडि़ये बनाकर खाना अथवा पकवान बनाकर उपयोग करना इत्यादि, कई तरीकों से मेथी का प्रयोग हमारे घरों में होता रहता है।
स्वयं करें मेथी स्पन्दन का अनुभव- कागज की चिपकाने वाली टेप पर मेथी दानों को चिपका कर हथेली के अंगूठें के नाखून वाले ऊपरी पोरवे में उस टेप को लगा दें जिससे अंगूठे को मेथी का स्पर्श होता रहे। कुछ ही क्षणों में हमें उस स्थान पर स्पंदन की अनुभूति होनी प्रारम्भ हो जाती है। इससे प्रमाणित होता है कि मेथी का उसके गुणों के अनुरूप बाह्य उपयोग भी लाभप्रद हो सकता है।
मेथी स्पर्श चिकित्सा का सिद्धान्त- शरीर में अधिकांश दर्द और अंगों की कमजोरी का कारण आयुर्वेद के सिद्धान्तानुसार प्रायः वात और कफ संबंधी विकार होते हैं। मेथी वात और कफ का शमन करती है।
अतः जिस स्थान पर मेथी का स्पर्श किया जाता है, वहाँ वात और कफ विरोधी कोशिकाओं का सृजन होने लगता हैं, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगती है। दर्द वाले अथवा कमजोर भाग में विजातीय तत्त्वों की अधिकता के कारण शरीर के उस भाग का आभा मंडल विकृत हो जाता है। मेथी अपने गुणों वाली तरंगें शरीर के उस भाग के माध्यम से अन्दर में भेजती है। जिसके कारण शरीर में उपस्थित विजातीय तत्त्व अपना स्थान छोड़ने लगते हैं, प्राण ऊर्जा का प्रवाह संतुलित होने लगता है। फलतः रोगी स्वस्थ होने लगता है। मेथी रक्त शोधक है, रोगग्रस्त भाग का रक्त प्रायः पूर्ण शुद्ध नहीं होता। जिस प्रकार सोडा कपड़े की गंदगी अलग कर देता है, मेथी की तरंगे रोग ग्रस्त अथवा कमजोर भाग में शुद्ध रक्त का संचार करने में सहयोग करती है जिससे उपचार अत्यधिक प्रभावशाली हो जाता है।
मेथी स्पर्श द्वारा असाध्य रोगों का उपचार
मेथी के औषधिय गुण- दाणा मेथी हमारे रसोइघरों में दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तु है, जो अनेक औषधिय-गुणों से भरपूर होती है। प्राचीन काल से ही इसका प्रयोग खाद्य और औषधि के रूप में हमारे घरों में होता आ रहा है।
आयुर्वेद के ग्रन्थ भावप्रकाश में कहा गया है कि मेथी वात को शान्त करती है, कफ और ज्वर का नाश करती है। राज निघन्टु में मेथी को पित्त नाशक, भूख बढ़ाने वाली, रक्त शोधक, कफ और वात का शमन करने वाली बतलाया गया है। मेथी में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेटस, खनिज, विटामिन, केल्शियम, फासफोरस, लोह तत्त्व, केरोटीन, थायमिन, रिवाफलेबिन, विटामिन सी आदि प्रचुर मात्रा में होते हैं। लोह तत्त्व की अधिकता के कारण मेथी रक्त की कमी वालों के लिये विशेष लाभप्रद होती है।
मेथी दानों से शरीर की आन्तरिक सफाई होती है। मेथी का उबला पानी बुखार को कम करने में बहुत ही लाभप्रद होता है। मेथी सेवन से पाचन तंत्र सुधरता है। पेट में कर्मियों की उत्पत्ति नहीं होती। आंतों में भोजन का पाचन बराबर होता है। बड़ी आंत में, मल में कुछ गाढ़ापन आता है और मल आसानी से बड़ी आंत में गमन करने लगता हैं। मेथी खाने से भूख अच्छी लगती है। मेथी सेवन से गंध और स्वाद इन्द्रियाँ अधिक संवेदनशील होती हैं। यह शरीर का आन्तरिक शोधन करती है। शलेष्मा को घोलती है तथा पेट और आंतों की सूजन ठीक करने में सहायक होती है। मेथी सेवन से मुंह की दुर्गन्ध दूर होती है। कफ, खांसी, इनफ्लेन्जा, निमोनिया, दमा आदि श्वसन संबंधी रोगों में लाभ होता है। गले की खराश में मेथी दाने के पानी से गरारे करने से बहुत लाभ होता है।
मेथी सेवन की विभिन्न विधियाँ- अलग-अलग रोगों के उपचार हेतु मेथी का प्रयोग अनेक प्रकार से किया जाता है। जैसे- मेथी दाणा भिगोंकर उसका पानी पीना, उसे अंकुरित कर खाना, उबालकर उसका पानी पीना, सब्जी बनाकर खाना, विभिन्न अचारों, सब्जियों अथवा अन्य खाद्य पदार्थों के साथ पकाकर सेवन करना, मेथी दानों को चूसना, चबाना अथवा पानी के साथ निगलना, मेथी की चाय अथवा काढ़ा बनाकर पीना, उसका पाउडर बना पानी के साथ लेना, अथवा लेप करना, मेथी की पुडि़ये बनाकर खाना अथवा पकवान बनाकर उपयोग करना इत्यादि, कई तरीकों से मेथी का प्रयोग हमारे घरों में होता रहता है।
स्वयं करें मेथी स्पन्दन का अनुभव- कागज की चिपकाने वाली टेप पर मेथी दानों को चिपका कर हथेली के अंगूठें के नाखून वाले ऊपरी पोरवे में उस टेप को लगा दें जिससे अंगूठे को मेथी का स्पर्श होता रहे। कुछ ही क्षणों में हमें उस स्थान पर स्पंदन की अनुभूति होनी प्रारम्भ हो जाती है। इससे प्रमाणित होता है कि मेथी का उसके गुणों के अनुरूप बाह्य उपयोग भी लाभप्रद हो सकता है।
मेथी स्पर्श चिकित्सा का सिद्धान्त- शरीर में अधिकांश दर्द और अंगों की कमजोरी का कारण आयुर्वेद के सिद्धान्तानुसार प्रायः वात और कफ संबंधी विकार होते हैं। मेथी वात और कफ का शमन करती है।
अतः जिस स्थान पर मेथी का स्पर्श किया जाता है, वहाँ वात और कफ विरोधी कोशिकाओं का सृजन होने लगता हैं, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगती है। दर्द वाले अथवा कमजोर भाग में विजातीय तत्त्वों की अधिकता के कारण शरीर के उस भाग का आभा मंडल विकृत हो जाता है। मेथी अपने गुणों वाली तरंगें शरीर के उस भाग के माध्यम से अन्दर में भेजती है। जिसके कारण शरीर में उपस्थित विजातीय तत्त्व अपना स्थान छोड़ने लगते हैं, प्राण ऊर्जा का प्रवाह संतुलित होने लगता है। फलतः रोगी स्वस्थ होने लगता है। मेथी रक्त शोधक है, रोगग्रस्त भाग का रक्त प्रायः पूर्ण शुद्ध नहीं होता। जिस प्रकार सोडा कपड़े की गंदगी अलग कर देता है, मेथी की तरंगे रोग ग्रस्त अथवा कमजोर भाग में शुद्ध रक्त का संचार करने में सहयोग करती है जिससे उपचार अत्यधिक प्रभावशाली हो जाता है।
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