Wednesday, 8 November 2017

इन्द्रजौ

(Oval leaves rose way)

परिचय :

         इन्द्रजौ का पौधा एक जंगली पौधा होता है। इसका पौधा 5-10 फुट ऊंचा होता है। इसके पत्ते बादाम के पत्तों की तरह लंबे होते हैं। महाराष्ट्र के कोंकण में इन पत्तों का बहुत उपयोग किया जाता है। इसके फूलों की सब्जी बनायी जाती है। इसमें फलियां लगती हैं, जो पतली और लंबी होती हैं, इन फलियों का भी साग और अचार बनाया जाता है। फलियों के अंदर से जौ की तरह बीज निकलता है। उसी को इन्द्रजौ कहते हैं। सिरदर्द तथा साधारण प्रकृति वाले मनुष्यों के लिए यह नुकसानदायक है। इसके दोषों को दूर करने के लिए इसमें धनियां मिलाया जाता है। इसकी तुलना हम जायफल से भी कर सकते हैं। इसके फूल भी कड़वे होते हैं। इनका एक पकवान भी बनाया जाता है। इन्द्रजौ के पेड़ की दो जातियां होती हैं और इन दोनों में ये कुछ अन्तर होते हैं।

काली इन्द्र जौ : 

काली इन्द्र जौ के पेड़ बड़े होते हैं।
काली इन्द्र जौ के पत्ते हल्के काले होते हैं।
काली इन्द्र जौ के पेड़ की फलियां सफेद इन्द्रजौ के पेड़ की फलियों से दो गुने होते हैं।
काली इन्द्र जौ ज्यादा गर्म होता है।
काली इन्द्रजौ बवासीर, त्वचा के विकार और पित्त का नाश करती है। और खून की गंदगी, कुष्ठ, अतिसार (दस्त), कफ, पेट के कीड़े, बुखार और जलन को नाश (खत्म) करता है। बाकी काले इन्द्रजौ के सभी गुण सफेद इन्द्र जौ के गुण से मिलते जुलते हैं।
सफेद इन्द्र जौ :

सफेद इन्द्र जौ के पेड़ काले इन्द्र जौ से छोटे होते हैं।
सफेद इन्द्र जौ के पत्ते हल्के सफेद होते हैं।
सफेद इन्द्र जौ की फलियां थोड़ी छोटी होती हैं।
सफेद इन्द्र जौ हल्का गर्म होता है।
सफेद इन्द्र जौ कड़वा, तीखा, भूखवर्द्धक, पाचक और फीका होता है।
इन्द्रजौ का विभिन्न भाषाओं में नाम :

संस्कृत      कुटज।    
हिंदी        इन्द्र जौ, कुड़ा।
अंग्रेजी          ओवल् लीब्ड रोजवे
बंगाली          इन्द्रजव।
गुजराती    इन्द्रजव।       
तैलिंगी    कोड़िश्चंट्टु, कुटजमु, अंकेलु, चगंलकुष्ट।
तमिल          वेप्पालें।
मलयम    वेनपाला।
कनाड़ी          कोड़ सिगेयबीज, कोड मुरकन बीज।
फारसी          जबान कुचिंस्क।
अरबी      तिराज।
लैटिन      होलर्रहिना एन्टीडाइसेन्ट्रिका।
विभिन्न रोगों में सहायक :

1. पीलिया : काले इन्द्रजौ के बीजों का रस निकालें और थोड़ा-थोड़ा तीन दिनों तक खायें।

2. पुराना बुखार : इन्द्र जौ के पेड़ की छाल और गिलोय का काढ़ा पिलायें अथवा रात को छाल को पानी में गला दें और सुबह उस पानी को छानकर पिलायें। इससे पुराना बुखार दूर हो जाता है।

3. हैजा : इन्द्र जौ की जड़ और एरंड की जड़ को छाछ के पानी में घिसकर और उसमें थोड़ी हींग डालकर पिलाने से लाभ मिलता है।

4. पेट की ऐंठन : इन्द्रजौ के बीजों को कुछ गर्म करके पानी में भिगोयें, बाद में उस पानी को सेवन करें। इससे पेट की ऐंठन खत्म हो जाती है।

5. बच्चों के दस्त : छाछ के पानी में इन्द्र जौ के मूल को घिसे और उसमें थोड़ी हींग डालकर पिलायें। इससे बच्चों का दस्त आना बंद हो जाता है।

6. पथरी :

इन्द्र जौ और नौसादर का चूर्ण दूध अथवा चावल के धोये हुए पानी में डालकर पीना चाहिए। इससे पथरी गलकर निकल जाती है।
इन्द्र जौ की छाल को दही में पीसकर पिलाना चाहिए। इससे पथरी नष्ट हो जाती है।
7. फोड़े-फुंसियां : इन्द्र जौ की छाल और सेंधानमक को गाय के मूत्र में पीसकर लेप करने से लाभ मिलता है।

8. कान से पीव बहना : इन्द्रजौ के पेड़ की छाल का चूरन कपड़छन करके कान में डालकर और इसके बाद मखमली के पत्तों का रस कान में डालना चाहिए।

9. दर्द : इन्द्र जौ का चूर्ण गरम पानी के साथ देना चाहिए। 

10. वातशूल : इन्द्र जौ का काढ़ा बना लें और उसमें संचर तथा सेंकी हुई हींग डालकर पिलायें। इससे वातशूल नष्ट हो जाती है।

11. वात ज्वर : इन्द्र जौ की छाल 10 ग्राम को बिलकुल बारीक कूटे और 50 ग्राम पानी में डालकर तथा कपड़े में छानकर पिलायें।

12. जलोदर : इन्द्र जौ की जड़ को पानी में घिसकर चौदह या इक्कीस दिन तक प्रतिदिन पीने से जलोदर का रोग नष्ट हो जाता है।

13. बुखार में दस्त होना : 10 ग्राम इन्द्र जौ को थोड़े से पानी में ड़ालकर काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलायें और पियें। इससे सभी तरह के बुखार दूर हो जाते हैं।

14. गर्भनिरोध : इन्द्रजौ, सुवासुपारी, शीतलमिर्च, सोंठ 10-10 ग्राम की मात्रा में कूट-छानकर इसमें 20 ग्राम की मात्रा में चीनी मिला दें। इसे 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम माहवारी खत्म होने के बाद तीन दिनों तक लगातार प्रयोग करना चाहिए। इससे तीन वर्षों तक गर्भ नहीं ठहरता है।

15. मुंह के छाले : इन्द्र जौ और काला जीरा 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर कूटकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को छालों पर दिन में 2 बार लगाने से छाले नष्ट होते हैं।

16. दस्त :

इन्द्र-जौ को पीसकर चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में ठंडे पानी के साथ दिन में 3 बार पिलाने से अतिसार समाप्त हो जाती है।
इन्द्र जौ की छाल का रस निकालकर पिलायें।
इन्द्र-जौ की जड़ को छाछ में से निकले हुए पानी के साथ पीसकर थोड़ी-सी मात्रा में हींग को डालकर खाने से बच्चों को दस्त में आराम पहुंचता है।
इन्द्रजौ की जड़ की छाल और अतीस को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बनाकर लगभग 2 ग्राम को शहद के साथ 1 दिन में 3 से 4 बार चाटने से सभी प्रकार के दस्त समाप्त हो जाते हैं।
इन्द्रजौ की 40 ग्राम जड़ की छाल और 40 ग्राम अनार के छिलकों को अलग-अलग 320-320 ग्राम पानी में पकाएं, जब पानी थोड़ा-सा बच जाये तब छिलकों को उतारकर छान लें, फिर दोनों को 1 साथ मिलाकर दुबारा आग पर पकाने को रख दें, जब वह काढ़ा गाढ़ा हो जाये तब उतारकर रख लें, इसे लगभग 8 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पिलाने से अतिसार में लाभ पहुंचता है।
17. बवासीर (अर्श) : कड़वे इन्द्रजौ को पानी के साथ पीसकर बेर के बराबर गोलियां बना लें। रात को सोते समय दो गोली ठंडे जल के साथ खायें। इससे बादी बवासीर ठीक होती है।

18. आंवरक्त (पेचिश) : 50 ग्राम इन्द्रजौ की छाल पीसकर उसकी 10 पुड़िया बना लें। सुबह-सुबह एक पुड़िया गाय के दूध की दही के साथ सेवन करें। भूख लगने पर दही-चावल में डाकर लें। इससे पेचिश के रोगी को लाभ मिलेगा।

19. अग्निमान्द्य (हाजमे की खराबी) : इन्द्रजौ के चूर्ण को 2-2 ग्राम खाने से पेट का दर्द और मंदाग्नि समाप्त हो जाती है।

20. पित्त ज्वर : इन्द्र जौ, पित्तपापड़ा, धनिया, पटोलपत्र और नीम की छाल को बराबर भाग में लेकर काढ़ा बनाकर पी लें। इससे पित्त-कफ दूर होता है। काढ़े में मिश्री और शहद भी मिलाकर सेवन करने से पित्त ज्वर नष्ट हो जाता है।

21. जलोदर : इन्द्रजौ चार ग्राम, सुहागा चार ग्राम, हींग चार ग्राम और शंख भस्म चार ग्राम और छोटी पीपल 6 ग्राम को गाय के पेशाब में पीसकर पीने से जलोदर सहित सभी प्रकार के पेट की बीमारियां ठीक हो जाती हैं।

22. पेट के कीड़े : इन्द्रजौ को पीस और छानकर 1-1 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम पीने से पेट के कीडे़ मरकर, मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।

23. कुष्ठ (कोढ) : इन्द्र-जौ को पीसकर गाय के पेशाब में मिलाकर लेप करने से चर्म-दल कोढ़ मिट जाता है।

24. लिंग वृद्धि : रात को सोते समय 7 ग्राम इन्द्रजौ को भैंस के कच्चे दूध में पीस लें, फिर इसे हल्का गर्म करके लेप लगाकर ऊपर से कपड़ा बांध दें। सुबह उठकर गर्म-गर्म पानी से लिंग को धो लें। इससे लिंग मोटा और लंबा हो जाता है।

25. विस्फोटक (चेचक): इन्द्रजौ को चावलों के पानी के साथ पीसकर शरीर में लेप करने से चेचक के दाने बिल्कुल ठीक हो जाते हैं।

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