कफ का असर शरीर के सर से लेकर सीने तक होता है जैसे :
सिर, नाक, गले, छाती, फेफड़े, नसों, मुख ।
कफ दोष को जैविक जल कहा जा सकता है।
यह दोष पृथ्वी और जल इन दो महाभूतों द्वारा उत्पन्न होता है।
पृथ्वी तत्व किसी भी पदार्थ की संरचना के लिए आवश्यक है अथार्त शरीर का आकार और संरचना कफ दोष पर आधारित होते है।
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कफ दोष के लक्षण :-
जब
कफ का संतुलन बिगड़ता है तो ऐसे लक्षण व्यक्ति के समाने नजर आते हैं जैसे-
मोटापा बढ़ना, आलस्य, भूख- प्यास कम लगना, मुंह से बलगम का आना, नाखून
चिकने रहते हैं, गुस्सा कम आता है, घने, घुंघराले, काले केश(बाल) होना,
आखों का सफ़ेद होना, जीभ का सफेद रेग के लेप की तरह का होना, कभी-कभी कभी
लार भी बहती है, मूत्र सफेद सा, मूत्र की मात्रा अधिक होना, गाढ़ा व चिकना
होना नींद अधिक आना इत्यादि।
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◆कफ विकार◆
बलगम आसानी से निकालने के लिए।
बहेड़ा
की छाल का टुकड़ा मुख में रखकर चूसते रहने से खांसी मिटती हैं और कफ आसानी
से निकल जाता हैं। खांसी की गुदगुदी बंद होकर नींद आ जाती हैं।
अगर ये ना कर सकते हो तो अदरक को छीलकर मटर के बराबर उसका टुकड़ा मुख में रखकर चूसने से कफ सुगमता से निकल आता हैं।
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●बलगम साफ़ करने के लिए●
आंवला सूखा और मुलहठी को अलग अलग बारीक करके चूर्ण बना ले। और मिलाकर रख ले।
इसमें से एक चम्मच चूर्ण दिन मे दो बार खाली पेट प्रात : सांय दो सप्ताह आवश्यकतानुसार ले।
छाती में जमा हुआ बलगम साफ़ हो जायेगा।
विशेष
– उपरोक्त चूर्ण में बराबर वजन की मिश्री का चूर्ण डालकर मिला ले। 6 ग्राम
चूर्ण 250 ग्राम दूध में डालकर पिए तो गले के छालो में शीघ्र आराम होगा।
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★यदि कफ छाती पर सूख गया हो तो★
25
ग्राम अलसी (तीसी) को कुचलकर 375 ग्राम पानी में औटाये। जब पानी एक तिहाई
125 ग्राम रह जाए, तो उसे मल छानकर १२ ग्राम मिश्री मिलाकर रख ले। उसमे से
एक चम्मच भर काढ़ा एक एक घंटे के अंतर से दिन में कई बार पिलाये। इससे बलगम
छूट जाता हैं। जब तक छाती साफ़ न हो, इसे पिलाते रहे।
विशेष
– खांसी से बिना कफ निकले ही, कोई गर्म दवा खिलाई जाती हैं तो कफ सूखकर
छाती पर जम जाता हैं। सूखा हुआ कफ बड़ी कठिनाई से निकलता हैं और खांसने में
कफ निकलते समय बड़ी पीड़ा होती हैं। छाती पर कफ का घर्र घर्र शब्द होता
हैं। उपरोक्त नुस्खे से सूखा कफ छूट जाता हैं। सूखी और पुरानी खांसी में
निश्चय ही लाभ होता हैं।
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खांसी की सभी अवस्थाओ के लिए
विशेष लाभदायक ‘सुहागा और मुलहठी का चूर्ण‘
सुहागे
का फूला और मुलहठी को अलग अलग खरल कर या कूटपीसकर कपड़छान कर, मैदे की तरह
बारीक चूर्ण बना ले। फिर इन दोनों औषिधियो को बराबर वजन मिलाकर किसी शीशी
में सुरक्षित रख ले। बस श्वांस, खांसी, जुकाम की सफल दवा तैयार हैं।
सेवन विधि –
साधारण
मात्र आधा ग्राम से एक ग्राम तक दवा दिन में दो तीन बार शहद के साथ चाटे
या गर्म जल के साथ ले। बच्चो के लिए एक रत्ती (चुटकी भर) की मात्रा या आयु
के अनुसार कुछ अधिक दे।
परहेज – दही, केला, चावल, ठन्डे पदार्थो का सेवन ना करे।
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कफ दोष से होने वाले रोग :-
जब
कफ का संतुलन बिगड़ता है तो ऐसे रोग हमको लग जातें हैं जैसे सिर का दर्द,
खांसी, जुकाम, आधासीसी दर्द, शरीर में आलस्य बढ़ जाता है इत्यादि।
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कफ का संतुलन बिगड़ने के कारण :-
कफ बिगड़ने के कई कारण हो सकते हैं जैसे- कफ स्वरूप वाले सेवन से फल जैसे बादाम , केले, आम, खरबूजा, पपीता इत्यादि,
और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे अधिक मात्रा में वसायुक्त पदार्थ का सेवन करना जैसे मांस, ढूध मक्खन, पनीर, क्रीम, इत्यादि।
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कफ का संतुलन कैसे बनायें :-
कफ
संतुलन बनाने के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा जैसे सुबह का
नास्ता थोडा हल्का करें और सुबह गुनगुने पानी का प्रयोग करें।
त्रिफ़ला चूर्ण का प्रयोग करे क्यूंकि कफ का प्रभाव सबसे ज्यादा सुबह के समय होता है ।
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★सुखी और तर खांसी★
भुनी
हुई फिटकरी दस ग्राम और देशी खांड 100 ग्राम, दोनों को बारीक़ पीसकर आपस
में मिला ले और बराबर मात्रा में चौदह पुड़िया बना ले। सुखी खांसी में 125
ग्राम गर्म दूध के साथ एक पुड़िया नित्य सोते समय ले। गीली खांसी में 125
ग्राम गर्म पानी के साथ एक पुड़िया नित्य सोते समय ले।
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◆पुरानी खांसी के लिए फिटकरी का फुला ◆
फिटकरी
को पीसकर लोहे की कड़ाही में या तवे पर रखकर आग पर चढ़ा दे। फूलकर पानी हो
जाएगी। जब सब फिटकरी पानी होकर नीचे की तरफ से खुश्क होने लगे तब उसी समय
आंच तनिक कम करके किसी छुरी आदि से उल्टा दे। अब फिर दोबारा आंच थोड़ी
अब
फिर दोबारा आंच थोड़ी तेज करे तांकि इस तरफ भी नीचे से खुश्क होने लगे। फिर
इस खुश्क फूली फिटकरी का चूर्ण बनाकर रख ले। इस तरह फिटकरी का कई रोगो में
सफलतापूर्वक बिना किसी हानि के में व्यवहार में लायी जाती हैं।
विशेष-
इससे पुरानी से पुरानी खांसी दो सफ्तह के अंदर दुर हो जाती है। साधारण दमा
भी दूर हो जाता है। गर्मियों की खांसी के लिए विशेष लाभप्रद है। बिलकुल
हानिरहित सफल प्रयोग है।
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अगर आप इन सूत्रों का अच्छे से पालन करेंगे तो आपके ये तीनो दोष वात, पित्त, कफ हमेसा संतुलित रहंगे और आप कभी भी बीमार नहीं पड़ेंगे।
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