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Tuesday, 18 April 2017

Acidity

प्रात: का भोजन :-
1) केला (2-3) चबा - चबाकर खाना।
2) रात में भिगोर्इ हुई किशमिश (10 ग्राम) चबाकर खाना।
3) गेहूँ की रोटी (जीरा डालकर बनी) घृत लगाकर, मूंग की दाल
4) चावल खाने के बाद मिश्री मिली छाछ पीना शाम का भोजन :-
1) मूंग चावल की हल्की खिचड़ी खायें ।
2) दूध में 1 चम्मच घी डालकर और चूना मिलाकर पियें ।
पथ्य :- दूध और घृत का प्रयोग ज्यादा करें, आँवला , तरबूज, संतरा रस, केला, अनन्नास का प्रयोग ज्यादा करें, अनार, जौ, पान, करेला, हरी सब्जियाँ, चावल का माड़ ।
अपथ्य :- बासी भोजन ना करें (2 घंटे पुराना आहार), सरसों, दही, माँस मछली, ऊष्ण अम्लीय पदार्थ, तेल, मिर्च मसाला, शराब ना उपयोग करें, अत्यधिक क्रोध ना करें, रात्रि में जागरण ना करें, चाय ना पियें, मैदे वाले पदार्थ, बिस्कुट, बड़े आदि ना खायें, लहसुन, अदरक, तेल मसालों का प्रयोग ना करें या कम खायें, आलू, बैगन, बेसन, मैदा।

रोग मुक्ति के लिये आवश्यक नियम :

पानी के सामान्य नियम :
१) सुबह बिना मंजन/कुल्ला किये दो गिलास गुनगुना पानी पिएं ।
२) पानी हमेशा बैठकर घूँट-घूँट कर के पियें ।
३) भोजन करते समय एक घूँट से अधिक पानी
कदापि ना पियें, भोजन समाप्त होने के डेढ़ घण्टे बाद पानी अवश्य पियें ।
४) पानी हमेशा गुनगुना या सादा ही पियें (ठंडा पानी का प्रयोग कभी भी ना करें।

भोजन के सामान्य नियम :
१) सूर्योदय के दो घंटे के अंदर सुबह का भोजन और सूर्यास्त के एक घंटे पहले का भोजन अवश्य कर लें ।
२) यदि दोपहर को भूख लगे तो १२ से २ बीच में अल्पाहार कर लें, उदाहरण - मूंग की खिचड़ी, सलाद, फल और छांछ ।
३) सुबह दही व फल दोपहर को छांछ और सूर्यास्त के पश्चात दूध हितकर है ।
४) भोजन अच्छी तरह चबाकर खाएं और दिन में ३ बार से अधिक ना खाएं ।

अन्य आवश्यक नियम :
१) मिट्टी के बर्तन/हांडी मे बनाया भोजन स्वस्थ्य के लिये सर्वश्रेष्ठ है ।
२) किसी भी प्रकार का रिफाइंड तेल और सोयाबीन, कपास, सूर्यमुखी, पाम, राईस ब्रॉन और वनस्पति घी का प्रयोग विषतुल्य है । उसके स्थान पर मूंगफली, तिल, सरसो व नारियल के घानी वाले तेल का ही प्रयोग करें ।
३) चीनी/शक्कर का प्रयोग ना करें, उसके स्थान पर गुड़ या धागे वाली मिश्री (खड़ी शक्कर) का प्रयोग करें ।
४) आयोडीन युक्त नमक से नपुंसकता होती है इसलिए उसके स्थान पर सेंधा नमक या ढेले वाले नमक प्रयोग करें ।
५) मैदे का प्रयोग शरीर के लिये हानिकारक है इसलिए इसका प्रयोग ना करें ।

Saturday, 28 January 2017

अम्लता (Acidity)

परिचय:-

अम्लता (एसिडिटी) रोग के कारण रोगी व्यक्ति के पेट में कब्ज बनने लगती है जिसके कारण उसके पेट में हल्का-हल्का दर्द बना रहता है। इस रोग में रोगी का खाया हुआ खाना पचता नहीं है। इस रोग का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से किया जा सकता है।

अम्लता रोग होने के लक्षण:-

         अम्लता (एसिडिटी) रोग के कारण रोगी के पेट में जलन होने लगती है, उल्टी तथा खट्टी डकार आने लगती है और रोगी व्यक्ति को मिचली भी होने लगती है।

अम्लता रोग होने के कारण:-

अम्लता रोग पेट में कब्ज रहने के कारण होता है।मानसिक तनाव तथा अधिक चिंता फिक्र करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।तेज मसालेदार भोजन खाना, भूख से अधिक खाना, कॉफी-चाय, शराब, धूम्रपान तथा तम्बाकू का अधिक सेवन करना आदि से भी अम्लता रोग हो जाता है।गुटका खाने, चीनी तथा नमक का अधिक सेवन करने और मानसिक तनाव के कारण भी अम्लता रोग हो सकता है।पेट में अधिक हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का स्राव होने के कारण भी अम्लता रोग हो जाता है।

अम्लता रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

अम्लता रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को गाजर, खीरा, पत्ता गोभी, लौकी तथा पेठे का अधिक सेवन करना चाहिए।अम्लता रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 1 बार उपवास रखना चाहिए ताकि उसकी पाचनशक्ति पर दबाव कम पड़े और पाचनशक्ति अपना कार्य सही से कर सके। इसके फलस्वरूप अम्लता रोग जल्द ही ठीक हो जाता है।अम्लता रोग से ग्रस्त रोगी को 1 सप्ताह से 3 सप्ताह तक केवल फल, सलाद तथा अंकुरित अन्न ही खाने चाहिए तथा रोगी व्यक्ति को चीनी तथा नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। जब कभी भी रोगी व्यक्ति को खाना खाना हो तो उसे भोजन को अच्छी तरह से चबा-चबाकर खाना चाहिए।अम्लता रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन नींबू, शहद का पानी, नारियल पानी, फलों का रस और सब्जियों का रस अधिक पीना चाहिए।गाजर तथा पत्तागोभी का रस इस रोग से पीड़ित रोगी के लिए बहुत ही उपयोगी है। इनका सेवन प्रतिदिन करने से अम्लता रोग ठीक हो जाता है।ताजे आंवले का रस या फिर आंवले का चूर्ण रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन चटाने से अम्लता रोग कुछ ही दिनों में ही ठीक हो जाता है।थोड़ी सी हल्दी को शहद में मिलाकर चाटने से भी रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है। हल्दी तथा शहद के मिश्रण को चाटने के बाद रोगी को गुनगुना पानी पीना चाहिए।5 तुलसी के पत्तों को सुबह के समय में चबाने से अम्लता रोग  नहीं होता है।अम्लता रोग से पीड़ित रोगी को अगर सूर्य की किरणों से बनाया गया आसमानी बोतल का पानी 2-2 घंटे पर पिलाया जाए तो उसे बहुत अधिक लाभ मिलता है और उसका रोग ठीक हो जाता है।अम्लता रोग से पीड़ित रोगी को भोजन करने के बाद वज्रासन करना चाहिए इससे अम्लता रोग ठीक हो जाता है।अम्लता रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में रोज एनिमा क्रिया करनी चाहिए तथा इसके बाद कुंजल क्रिया करना चाहिए और इसके बाद स्नान करना चाहिए। फिर सूखे तौलिये से शरीर को अच्छी तरह से रगड़ना चाहिए। इसके परिणाम स्वरूप यह रोग तथा बहुत से रोग ठीक हो जाते हैं।इस रोग से पीड़ित रोगी को खुली हवा में लम्बी-लम्बी सांसे लेनी चाहिए।रोगी व्यक्ति का इलाज करने के लिए रोगी के पेट पर गीली मिट्टी की पट्टी करनी चाहिए तथा इसके बाद रोगी को कटिस्नान कराना चाहिए। फिर उसके पेट गर्म तथा ठंडा सेंक करना चाहिए। इसके बाद रोगी को गर्म पाद स्नान भी कराना चाहिए तथा सप्ताह में एक बार रोगी व्यक्ति के शरीर पर गीली चादर लपेटनी चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।अम्लता रोग से पीड़ित रोगी को तुरन्त आराम पाने के लिए अपने पेट पर गर्म व ठंडी सिंकाई करनी चाहिए।अम्लता रोग से पीड़ित रोगी यदि प्रतिदिन रात को सोते समय अपने पेट पर ठंडी पट्टी करे तो उसका यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह उठकर नियमानुसार शौच के लिए जाना चाहिए तथा अपने दांतों को साफ करना चाहिए।रोगी व्यक्ति को रात के समय में सोने से पहले तांबे के बर्तन में पानी को भरकर रखना चाहिए तथा सुबह के समय में उठकर उस पानी को पीना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

अम्लता रोग से पीड़ित रोगी के लिए सावधानी :-

प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार अम्लता रोग से पीड़ित रोगी को दूध का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि दूध एक बार तो जलन को शांत कर देता है लेकिन दूध को हजम करने के लिए पेट की पाचनशक्ति को तेज करना पड़ता है और यदि रोगी को अम्लता रोग हो जाता है तो उसकी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है।दवाइयों के द्वारा यह रोग ठीक तो हो जाता है लेकिन बाद में यह रोग अल्सर रोग बन जाता है तथा यह रोग कई रोगों के होने का कारण भी बन जाता है जैसे- नेत्र रोग, हृदय रोग आदि। इसलिए दवाईयों के द्वारा इस रोग को ठीक नहीं करना चाहिए बल्कि इसका इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए।

जानकारी-

          इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज करने से रोगी का अम्लता रोग ठीक हो जाता है तथा बहुत समय तक यह रोग व्यक्ति को फिर दुबारा भी नहीं होता है। यदि रोगी व्यक्ति अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दे तो उसे दुबारा यह रोग नहीं होता है।