मुख्य लक्षण
इसमें जोड़ों में दर्द व सूजन रहती है। शरीर में संचारी वेदना होती है अर्थात दर्द कभी हाथों में होता है तो कभी पैरों में ।
मसुजन
सहित शरीर के जोडों मे दर्द ,भुख कम लगना, आलस्य, शरीर मे भारीपन,मंद
ज्वर,कटि शूल, और भोजन का पूरी तरह से परिपाक न होना, मुख के स्वाद का बदल
जाना,दिन मे नींद आना और रात मे नींद का न आना, अधिक पुराना होने पर शरीर
के जोडो मे विकृति आकर अंग मुड जाते है।
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इस रोग में अधिकांशतः उपचार के पूर्व लंघन आवश्यक है तथा प्रात: पानी प्रयोग एवं रेत या अँगीठी (सिगड़ी) का सेंक लाभदायक है।
3 ग्राम सोंठ को 10 से 20 मि.ली. (1-2 चम्मच) अरण्डी के तेल के साथ खायें।
250 मि.ली. दूध एवं उतने ही पानी में दो लहसुन की कलियाँ, 1-1 चम्मच सोंठ और हरड़ तथा 1-1 दालचीनी और छोटी इलायची डालकर पकायें।
पानी जल जाने पर वही दूध पीयें।
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आहार - विहार व्यवस्था-
जल्दी
पचने वाला, लघु, उष्ण, और कम मात्रा मे आहार ग्रहण करे, लस्सी, चावल,
ठन्डा पानी, कोल्ड ड्रिन्क्स, भारी खाना, तला हुआ भोजन, आदि से परहेज रखें।
परवल और करेले या अन्य कटु साग सव्जीयों का प्रयोग ज्यादा करें , हमेशा
कोष्ण जल का प्रयोग करें।
पथ्य-----
जौ, कुल्थी की दाल, करेला, बथुआ, परवल, एरण्ड का तैल, अजवायन,पराने चावल,
शहद, लहसून, सोंठ, मेथी, हल्दी का नित्य सेवन करें।
अपथ्य-------वेगावरोध,चिन्ता
करना, शोक करना, दूध गुड, दुध मांस, दुध मछली, का सेवन, रात मे जागना,
भारी खाना, अत्यधिक चिकने पदार्थों का सेवन।
आमवात मे हमेशा गर्म बालु रेत की पोटली बनाकर प्रभावित अंग को सेके और एक घन्टा तक हवा न लगने दें।
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